Thursday, January 12, 2006

बाल वाटिका ( मेरी बाल कविताओं की श्रृंखला )



मेरा प्यारा घर

एक छोटे से गाँव में
बादलों की छाँव में
मेरा प्यारा घर...


बूढे पर्वत के पीछे
घाटी में सबसे नीचे
दूर से आये नजर...


वनफूलों से गमकता
हरी किरनों से दमकता
स्वागत को तत्पर...


आँगन में तुलसी मैंया
पास बंधी श्यामा गैया
बाँचे तोता अक्षर...


पेड झूम, मुस्काते हैं
पंछी आपस में गाते हैं
आओ मीत इधर...


कभी तितलियों के फेरे
भौंरे आते शाम-सबेरे
यहाँ कहाँ मच्छर...


सपनों में नित आता है
अपने पास बुलाता है
परदेश रहा अगर...

2 comments:

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

badee sundar rachna hai.

renu ahuja said...

yoo hi khojtey khojtey aap ke blog ki taraf aanaa huaa, jab ye kavitaa padi to 'ghar' shabd kee sundartaa aur bhee badi huee lagi, ghar, fir aangan oosmey tulsi maiyaa kaa chitran, man pad kar huaa magan, yeh NILAY, SADAN hee hai jo jag me reh kar banaayen apno ka sansaar magan magan, sunder rachanaa hai,Badhaai. regrads,renu ahuja, my blog is http://www.kavyagagan.blogspot.com