Friday, January 13, 2006
गीतः गुजरे साल का बयान
मैं गुजर गया, मैं गुजर गया
यह शोर मेरी तो निन्दा है
क्योंकि, मुझमें मेरा अपना
इतिहास अभी तक जिन्दा है...
जो नहीं घुलाया जायेगा
दुनिया के साबुन-पानी से
फिर वक्त उसे दुहरायेगा
देखेंगे सब हैरानी से
यह बारह महिनों का जीवन-
मेरा, क्या एक परिन्दा है...
जो एक वर्ष हो जाने पर
कलेण्डर से उड जाता है
फिर नया रूप, उत्साह नया
लेकर क्या फिर ना आता है
माना कि नाम नया होता
पर वक्त वही कारिन्दा है...
घटनाएँ मुझमें घटती हैं
मुझमें, पर में क्या दोषी हूँ
ईमान-धरम से कहना तुम
मैं सही-विघ्नसंतोषी हूँ
मैं घरती पर घटने वाली
विपदाओं का ही पुलिन्दा हूँ...
मैं नहीं खुशी ना पीडा ही
मैं तो सपाट सा आँगन हूँ
तुम रंगोली से भरो उसे
यो शोणित से, मैं दामन हूँ
सारे सुख-दुख पलते मुझमें
मैं घटना नहीं चुनिन्दा हूँ ...
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