।। ऊँ ।।
त्र्यंबकं यजामहे सुगंधिम् पुष्टि वर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बंधनात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।
(हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो संपूणर् जगत का पालन-पोषण कर रहे हैं । उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बन्धनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जावे जिस प्रकार एक ककडी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है उसी प्रकार हम भी इस संसार रूपी बेल में पक जाने के बाद जन्म-मृत्यु के बंधनों से सदैव के लिए मुक्त हो जाएँ और आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्याग कर आप में लीन हो जावें ।)
Friday, January 06, 2006
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