सबसे पहले युनिवार्ता को बधाई ।
बधाई इसलिए कि उसने हम छत्तीसगढ़ीभाषी 2 करोड़ों लोगों तक यह समाचार सबसे पहले पहुँचाया । बधाई इसलिए कि यह शुष्क समाचार नहीं । इसमें हमारी मुरझाती हुई अस्मिता को रससिक्त करने वाला जल भी है ।
राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ी को लेकर हर जागरुक इंसान सचेत था कि आम जनता का अधिकांश कार्य छत्तीसगढ़ी में हो । उसे राजकाज में अँगरेज़ी और कठिन हिंदी का सामना न करना पड़े । वह न्यायालयीन भाषा को समझ सके । वह सरकारी दफ्तर, कोर्ट-कचहरी में अपनी भावना और समस्या को अपनी भाषा में बोल सके और उसी लय में उसे सामनेवाला सुनने से परहेज या तौहीनी न करे । सरकारी स्कूलों, खासकर प्राथमिक स्कूलों में भी वह अपनी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में पढ़ने-समझने का अवसर जुटा सके । यात्रा के दौरान अपनी भाषा में रेलवे और बसों के आने-जाने की जानकारी भी उसे अपनी भाषा में मिल सके । इसके लिए बकायदा बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और खासकर साहित्यकारों (तथाकथित बड़ी पत्रिकाओं में छपने वाले स्वनामधन्य हिंदी के कथाकार, उपन्यासकार, कवि कदापि नहीं) ने लंबा संघर्ष किया है । राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों ने भी समय की नज़ाकत को परखते हुए इसमें अपना योगदान दिया है । इसके लिए सभी मातृभाषा प्रेमियों को बधाई ।
यह भारत सरकार की ओर से 2 करोड़ छत्तीसगढ़ियों के लिए सुखद सौगात है । इसलिए उसे भी साधुवाद, कि आयद दुरुस्त आयद ।
मैंने प्रसार भारती आकाशवाणी के समाचार विस्तार की योजना (कल घोषित योजना के अनुसार - आगामी छह जुलाई से विभिन्न भाषाओं में 49 समाचार बुलेटिनों का प्रसारण होगा। आकाशवाणी से इस समय 87 भाषाओं और बोलियों में 511 समाचार बुलेटिनों का प्रसारण हो रहा है । जिन एफएम केन्द्रों से समाचार बुलेटिन प्रसार होंगे वे हैं जम्मू, श्रीनगर, नागपुर, आरंगाबाद, रांची, विजयवाड़ा, पोर्ट ब्लेयर, कोच्चि और पुडुचेरी। कारगिल के आकाशवाणी केन्द्र से पुरगी और बालटी भाषाओं में समाचार बुलेटिन के प्रसारण की व्यवस्था पूरी हो गई है। दिल्ली के एफ.एम.गोल्ड और डीटीएच चैनल पर भी समाचार आधारित कार्यक्रम का समय बढ़ाया जा रहा है। श्रीनगर और जम्मू के एफएम केन्द्रों पर समाचार प्रसारण का समय बढ़ाया जा रहा है तथा ‘रेडियों कश्मीर’ से उर्दू की एक और बुलेटिन प्रसारित की जाएगी। छत्तीसगढ़ में रायपुर केन्द्र से छत्तीसगढ़ी भाषा में तथा अरुणाचल प्रदेश में ईटानगर से अतिरिक्त समाचार बुलेटिनों का प्रसारण किया जाएगा।) की बारे में विभिन्न लोगों से बातचीत की । हमें जो टिप्पणी मिली उसे मैं अविकल बताना चाहता हूँ –
श्री विश्वरंजन, वरिष्ठ कवि एवं पुलिस महानिदेशक, छत्तीसगढ़
यह केवल प्रसारण का ही मामला नहीं, दूरस्थ अंचलों में चेतना के आत्मीय विस्तारण का भी ज़रिया बनेगा । चित-परिचित और निजी भाषा में लोगों को समाचार यानी देश-दुनिया में हो रही हलचलों की जानकारी मिलेगी । मातृभाषा में समाचार का प्रसारण क्षेत्रीय अस्मिता को भी बल देने जैसा है । सूचना-प्रौद्योगिकी के जिस दौर में हम ले जाये जा रहे हैं उस दौर में यदि हम हमारी ही भाषा में कुछ न जान सकें तो इससे बढ़कर और क्या विडंबना होगी । मैं समझता हूँ कि यह वैश्वीकरण के दौर में, जहाँ किसी एक ही भाषा में सबकुछ सिखाने-बताने-पढ़ाने का कारोबार चल रहा हो, आंचलिक भाषाओं को सरंक्षण देने का गंभीर प्रयास है ।
श्री सत्यनारायण शर्मा, पूर्व शिक्षा मंत्री, विधायक एवं कार्यकारी अध्यक्ष(छ.गढ़ प्रदेश कांग्रेस)
छत्तीसगढ़ी सहित आंचलिक या प्रादेशिक भाषाओं में समाचार का प्रसारण को लेकर कांग्रेस सदैव सचेत थी । आज भी राज्य में ऐसे लाखों लोग हैं जो ठीक से हिंदी नहीं समझ सकते । ऐसे लोगों के लिए छत्तीसगढ़ी में समाचार सुनना एक विश्वसनीय आस्वाद होगा । वे राज्य, देश, समाज की ख़बरे अपनी भाषा में सुन सकेंगे । इन समाचारों के समक्ष स्वयं की स्थिति का मूल्याँकन भी कर पायेंगे ।
श्री गिरीश पंकज, सदस्य, भारतीय साहित्य अकादमी व संपादक, ख़बरगढ़
आकाशवाणी रेडियो से स्थानीय भाषा में समाचार का प्रसारण छत्तीसगढ़ी अस्मिता के पक्ष में है और इस रूप में यह हिंदी के प्रति आंचलिक मनीषा को जोड़ने का भी नेक क़दम है । यह एक तरह से संविधान की अनुसूची में छत्तीसगढ़ी को रखे जाने की दिशा में भी उल्लेखनीय प्रवेश-द्वार की तरह काम करेगा ।
श्री संजय द्विवेदी, संपादक-इंपुट, जी-छत्तीसगढ़,न्यूज़ चैनल, रायपुर
मानस जी, हम जैसा कि आप जानते हीं है कि जी न्यूज के स्थानीय चैनल में भी छत्तीसगढ़ी में समाचार प्रसारण की सोंच रहे हैं । भारत सरकार द्वारा राज्य की भाषाओं में समाचार प्रसारण का अवसर देना भाषाओं और स्थानीय मन को तरजीह देने जैसा है । समाचार केवल हमें संसूचित नहीं करते, वे हमें आत्ममूल्यांकन के लिए तैयार भी करते हैं । वे विकास की नयी दिशाओं से भी लोगों को जोड़ते हैं । वे एक तरह से ग्रामीण दुनिया के लिए पाठ की तरह हैं । आज जब हम सभी जगह अख़बार और टी.व्ही नहीं पहुँचा पाये हैं, रेडियो ही वहाँ मनोरंजन के साथ समाचारों से जुड़ने का एकमात्र साधन है । यदि रेडियोवाले यानी कि प्रसार भारती देर से भी जागती है तो उसका स्वागत तो किया ही जाना चाहिए ।
श्री हसन खान, पूर्व केंद्र निदेशक, आकाशवाणी, रायपुर
प्रसार भारती का यह क़दम बहु-प्रतीक्षित था । राज्य के लिए हर्ष का विषय है । मैंने अपने कार्यकाल में ऐसे प्रश्नों का कई बार सामना किया है कि बाबू यदि आपके प्रसारण केंद्रों से हमारी भाषा में गीत, संगीत, कथा, कविता, खेती-बाड़ी आदि सभी विषयों का प्रसारण स्थानीय भाषा में होता है, पर समाचार क्यों नहीं ? प्रसार भारती और केंद्र सरकार का यह कार्य निश्चित रूप से परिणाममूलक और प्रसारण के मर्म को सिद्ध करने वाला है । यह एक तरह से आंचलिक भाषाओं के हाथ पर पीठ रखने जैसा भी है । वह इसलिए, क्योंकि अब राजकाज की बातें, सूचनायें, घटनाओं को जनपदों का श्रोता अपनी भाषा में सुन सकेगा । सुन सकेगा तो वह गुन भी सकेगा । यह सामाजिक परिवर्तन के लिए ज़रूरी टूल्स की तरह है और इसका मैं स्वागत करता हूँ ।
श्री मोहन लाल देवांगन,35 साल से 17 घंटे प्रतिदिन रेडियो सुनने वाले विशिष्ट श्रोता, रायपुर
मेरे मन में कई वर्षों से यह प्रश्न उठता था कि जब हम अँगरेज़ी, संस्कृत, उर्दू में समाचार सुना सकते हैं तो आख़िर करोड़ों लोगों की भाषा में क्यों नहीं । जाहिर है इस रूप में मेरे समक्ष छत्तीसगढ़ी, भोजपुरी, आदि भाषायें ही पहले दिखाई देती थीं । यदि भारत सरकार, प्रसार भारती यह भाषायी कार्य करने जा रही है तो उसका स्वागत मैं सबसे पहले करना चाहूँगा । यह छोटी-छोटी भाषाओं को बचाने की दिशा में उचित कार्य है ।
डॉ. सुधीर शर्मा, भाषाविद्, रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर
भाषा ही जीवन है । भाषा ही अस्मिता है । भाषा के बगैर मनुष्य कुछ भी नहीं । छत्तीसगढ़ी में समाचार प्रसारण को सरकारी मान्यता देने से 2 करोड़ छत्तीसगढ़ियों के मन में नया उत्साह जागा है । केंद्र शासन इसके लिए बधाई की पात्र है । यदि भारत सरकार, जैसा कि कहा गया है आंचलिक और क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार प्रसारण की सुविधा के लिए राजी हो गयी है और निकट भविष्य मे ही हम अपनी भाषा में समाचार सुन सकेंगे तो यह केवल राजकीय दृष्टि ही नहीं, इसमें आंचलिक उद्वेग को भी तरजीह देने की भी दृष्टि सम्मिलित है । यह राष्ट्रीय एकता और सदभाव की दिशा में भी केंद्र शासन की सकारात्मक पहल है ।
श्री बलराम मिश्रा, अध्यापक, प्राथमिक शाला छैडोरिया, जिला रायगढ़
मैं यदि निजी अनुभव बताऊँ तो यही कहूँगा कि जब हमें सरकार द्वारा रेडियो शिक्षा कार्यक्रम के तहत रेडियो दिया गया और उससे ज्ञानवाणी आदि कार्यक्रमों से विद्यार्थियों को जोड़ने को कहा गया तो मैने पाया कि वे कई बार हिंदी के शब्दों को नहीं समझ पाते थे और हमारी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते थे ।
मैं एक दूसरा उदाहरण देना चाहूँगा – आज भी दूरस्थ और पिछड़े गाँवों में समाचार का सबसे विश्वसनीय माध्यम रेडियो है जिसमें आकाशवाणी और बीबीसी प्रमुखतः विश्वसनीय हैं । ऐसे ग्रामीणों, आदिवासियों, किसानों के लिए अपनी भाषा में समाचारों से अवगत होने का स्वर्णिम अवसर बहुत ही कारगर सुविधा है और इसके लिए इसके योजनकारों को बधाई देना होगा ।
अंत में जब मैंने अपनी माँ से पूछा - माँ आप क्या सोचती हैं ? तो उन्होंने कहा - बेटा, यह भाषा को लेकर यदि सरकारें सोचतीं हैं तो यह उनके सुधरते जाने का परिचायक है । अब मैं जब गाँव जाऊँगी तो गाँव की सहेलियों को इसकी बात बताऊँगी । वे भी अब मानक छत्तीसगढ़ी में बात कहने, लिखने का प्रयास कर सकती हैं ।
मैं जो कहना चाहता था वह तो सबों ने कह दिया । अब मैं क्या कहूँ ।
बस्स आप ही कुछ कहें...
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Saturday, July 05, 2008
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