Monday, October 22, 2007

इंटरनेट पर नक्सलवाद के खिलाफ़ पहला वैचारिक फोरम

वेब-भूमि-10

लुकीज़ क्या बला है ?
पिछले दिनों मेरे नाम छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश से एक मित्र का ई-मेल आया । उनकी समस्या है कि वे हिंदी में टाइप करना नहीं जानते किंतु चाहते हैं कि अपने रिश्तेदार को, जो इन दिनों जापान में किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते हैं, हिंदी में मेल करें । यानी कि उन्हें ऑनलाइन संवाद करने की कोई तकनीक चाहिए । शायद यही समस्य़ा आपकी भी हो तो चलिए इस बार हम ऐसे ही एक नये औजार या टूल्स के विषय में चर्चा करते हैं जो मेरे मित्र जैसे कई लोगों की समस्या का निदान हो ।


लूकीज़ वह सॉफ्टवेयर है जो इस समस्या का हल है । यह पूर्णतः मुफ़्त है । यानी कि इसे आप बिना किसी खर्च के डाउनलोड़ कर सकते हैं । इसे अपने कम्पयूटर पर इंस्टाल करके प्रतिष्टित कर लेने पर आप बड़ी सरलता से बिना टायपिंग जाने भी हिंदी में ई-मेल कर सकते हैं । चैटिंग कर सकते हैं । कुल मिलाकर यह एक ऑनलाइन शब्द संवाद की सुविधा मुहैया कराने वाला ऐसा उपकरण है जिसे हम ऑनलाइन संवाद भी कह सकते हैं । इतना ही नहीं यह ऑफलाइन टायपिंग कार्य भी करता है- वह भी सिर्फ़ हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि में नहीं अपितु अंगरेज़ी सहित बांग्ला, तेलगू, मराठी, तमिल, गुजराती, कन्नड़,
मलयालम एवं पंजाबी भाषाओं का समर्थन भी है उसे ।

लूकीज मूलतः भारतीय भाषाओं का सॉफ्टवेयर है जो कि चैट,ई-मेल एवं ऑन लाईन शब्द सम्वाद प्रदान करता है, वह भी आश्चर्यचकित वास्तविक की बौर्डों के साथ। कहने का आशय है कि आपके कंप्यूटर स्क्रीन में ऐसा मार्गदर्शक की बोर्ड खुलता है जिसमें अंकित शब्द कुंजी को दबा-दबाकर आप हिंदी या अन्य किसी भारतीय भाषा में टाइप कर सकते हैं । माना कि आपको संजय द्विवेदी टाइप करना है तो आपको इन अक्षरों के की-बोर्ड पर मात्र क्लिक करते जाना है । आप जिन-जिन बटनों या की बोर्ड पर क्लिक करते जायेंगे वैसे-वैसे शब्द या वाक्य आपके द्वारा खोले गये वर्ड फाइल में अंकित होता चला जायेगा । इसे आप सेव या सुरक्षित भी रख सकते हैं । और जब चाहें अपना संदेश या लेख किसी वेब पत्रिका को भेज सकते हैं । है ना जादू । तो चलिए फटाफट इंटरनेट जोड़ कर अपना मुफ्त लूकीज़
तुरंत डाउनलोड करें। लूकीज़ ऑन लाईन आपकी मनपसंद इंटरनैट वैबसाईटों, ई-मेल एवं चैट्स को भारतीय भाषाओं के अनुरुप ढाल देगा। इसे आप www.keyboard4all.com/ नामक वेबसाइट से डाउनलोड़ कर इंस्टाल कर सकते हैं ।

गूगल सबसे बड़ी मीडिया कंपनी
सभी को पता ही है कि सर्च इंजन गूगल पर संभवत: हर तरह की जानकारी खोजी जा सकती है । इंटरनेट पर उपलब्ध तकरीबन हर तरह की जानकारी खोज निकालने वाला सर्च इंजन 'गूगल' दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी बन गया है । स्टॉक मार्केट के आकलन के मुताबिक गूगल ने बाकी सभी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है और उसके शेयरों की कीमतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं । पिछले दिनों न्यूयार्क स्टॉक बाज़ार में गूगल के शेयरों की क़ीमत 80 अरब डॉलर तक पहुंच गई थी । यह राशि सबसे बड़ी मीडिया कंपनी मानी जाने वाली टाइम वार्नर के शेयरों की कीमत से दो अरब अधिक थी । हालांकि गूगल की सालाना बिक्री टाइम वार्नर के मुक़ाबले बहुत अधिक कम है। गूगल को सालाना 3.4 अरब डॉलर की आय होती है जबकि टाइम वार्नर को सालाना 42 अरब डॉलर की आय होती है । कुछ जानकारों का मानना है कि गूगल के शेयरों की क़ीमत कुछ ज्यादा रखी गई है और ऐसा 1990 के दशक में इंटरनेट क्रांति की शुरुआत के दौरान भी हुआ था । अन्य लोग मानते हैं कि गूगल के शेयरों की बढ़ती कीमत दर्शाती है कि आने वाले दिनों में गूगल कितना आगे जा सकती है. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में गूगल के एक शेयर की कीमत 325 से 350 डॉलर तक हो सकती है । गूगल ने दस महीने पहले ही पब्लिक कंपनी के तौर पर व्यापार करना शुरु किया था और इसी अरसे में मीडिया कंपनियों में उसकी स्थिति सबसे मज़बूत हो गई है । पिछले कई सालों से मीडिया के क्षेत्र में काम कर रही कई मीडिया कंपनियां मसलन वाल्ट डिज़नी और वायकॉम से कहीं आगे निकल गई हैं । गूगल ने पिछले साल अगस्त में जब अपने शेयरों को बाज़ार में उतारा था तो इसके एक शेयर की क़ीमत 85 डॉलर थी । गूगल की अधिकतर आय उसके सर्च इंजन पर प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों से होती है ।


नक्सलवाद के विरोध में देश का पहला वेबसाइट तैयार –
इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर के शिविरों में भले ही आदिजन कुव्यवस्था के शिकार हों । भले ही सलवा जुडूम के कर्ता-धर्ता अपने स्वार्थ से नक्सलवाद का विरोध करते हों पर पूरे विश्व में पहली बार हिंसावादियों के खिलाफ शुरू हुए आदिवासियों की इस पहली क्रांति की वैचारिक ज़मीन तैयार करने के लिए एक वेबसाइट शुरू हो चुकी है । जहाँ सलवा जुडूम आंदोलन से जुड़ी सम्यक बातें पढ़ी जा सकती हैं । इस पहल के लिए वेब साइट के संपादक सद्भावना समिति, रायपुर के तपेश जैन की भूमिका का जिक्र किया ही जाना चाहिए जिसे अंतरजाल पर
www.salvajudum.com में लॉग ऑन कर देखा-परखा जा सकता है । इसे नक्सलवाद के खिलाफ देश का पहला वैचारिक और बौद्धिक फोरम कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी । इस स्वयंसेवी प्रयास के लिए सद्भावना समिति को भी बधाई । बधाई इस बात की भी कि हिंदी के विविध विषयों पर जाल स्थलों की संख्या भी बढ़ रही है ।

Tuesday, October 16, 2007

पासवर्ड को हैकर्स से बचानेवाला नायाब सॉफ्टवेयर

वेब-भूमि-9

स्मरणशक्ति भी बड़ी नायाब चीज़ होती है । कब साथ छोड़ दे, कह नही सकते । कई बार कम्प्यूटर और इंटरनेट उपयोग कर्ता अपना आईडी और पासवर्ड ही भूल जाया करते हैं । नेट पर विभिन्न तरह के कार्य से लेकर मात्र ई-मेल का उपयोग करने वाले सामान्य से सामान्य यूजर्स भी चाहता हैं कि उसके स्वयं का आईडी और पासवर्ड्स कोई याद रख दे । इतना ही नहीं कुछ लोग अपनी कमजोरीवश हैकर्स से डरते रहते हैं कि कहीं उसका अपना पासवर्ड भी हैकिंग न हो जाये । अक्सर जब कोई बुनियादी और आवश्यक निजी जानकारी उसे संबंधित साइट के फार्म में भरना होता है तो आलस्य का अनुभव करने लगता है और सिर खुजलाने लगता है । ऐसी बहुत सारी दिक्कतों से मुक्ति दिलाने का काम अब तकनीक ने संभव कर दिखाया है । न पासवर्ड याद रखने की कवायद न ही किसी लम्बे फार्म को भरने का सिरदर्द । ऊपर से पासवर्ड और आईड़ी को हैंकर से बचाने की पूर्णतः सुरक्षा का उपहार भी । यह सारी दुनिया में रोबोफार्म के नाम से जाना जाता है ।

रोबोफ़ार्म की प्रसिद्धि के बारे में इतना ही जान लेना काफ़ी है कि उसके लांच होने के कुछ ही दिन के भीतर ही इसे दुनिया भर के उपयोगकर्ताओं द्वारा 8 मिलियन से ज्यादा बार डाउनलोड़ किया जा चुका है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, रोबोफार्म PC Magazine Editor's Choice और CNET Download.com's के द्वारा सॉफ्टवेयर ऑफ ईयर की प्रतिष्ठा भी अर्जित कर चुका है । इसका मुफ्त वितरण और स्पाईवेयर और एडवेयर यानी कि अवांछित वायरस से मुक्त होना उसकी लोकप्रियता की खास वज़ह जो है ।

रोबोफार्म सबसे अच्छा पासवर्ड मैनेजर और वेब फार्म फिलर है जो पूरी तरह से अपने आप पासवर्ड और फार्म भर देता है। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं । रोबोफॉर्म
याद रखता है आपके पासवर्डस् और लॉग करवाता है आपको वह भी अपने आप। यानी कि स्वचालित । यह लम्बे रजिस्ट्रेशन और चेकऑउट फार्मों को सिर्फ एक क्लिक भर देता है । आपके पासवर्डों को पूर्ण सुरक्षा देने के लिए एंक्रिप्ट करता है । बेतरतीब पासवर्डों को जनरेट करता है ताकि कोई भी हैकर उसका अनुमान ही न लगा सके । यह फिशिंग से भी लड़ता है अर्थात् सिर्फ मेल खाती हुईं वेब साइटों पर पासवर्डों को भरते हुए। पासवर्डों को कीबोर्ड के बिना ही टाइप करते हुए कीलॉगर्स को हराता है । आपके पासवर्डों को, कम्प्यूटरों के बीच में कॉपी करते हुए बैकअप करता है। रोबोफॉर्म सिंक्रनाईज़ करता है पासवर्डों को कम्प्यूटरों के बीच में गुडसिंक का प्रयोग करते हुए। इसकी खासियत यह भी है कि यह इंटरनेट एक्सप्लोरर्, AOL/MSN, फायरफॉक्स जैसे बहुप्रयुक्त ब्राउजर के साथ तटस्थ: काम करता है । यदि आप तैयार हैं तो यह लीजिए पता - www.roboform.com/hi/ । लॉग ऑन होइये तो चंद मिनटों में ही ढ़ेरों समस्याओं से मुक्त हो उठिये । संशय मत करिये कि आपको ज़्यादा अँग्रेज़ी नहीं आती । यह साइट अपनी भाषा में भी है ।

चलते-चलते
रिश्वतखोरी विश्वव्यापी समस्या है । विचारक, नेतागण, पत्रकार, साहित्यकार के साथ-साथ आम आदमी भी आये दिन इससे मुक्त होने के लिए भाँति-भाँति का परामर्श देते हैं । अब कुछ ट्रेक्नोक्रेट भी इस विश्वव्यापी दानव से जूझने का मन बना चुके हैं । ऐसा लगता है उनके द्वारा सुझाये गये उसे नये उपाय को देखकर । उन्होंने प्रौद्योगिकी का सहारा लेते हुए एक नया रास्ता खोज निकाला है । संक्षेप में कहें तो ग्लोबल ऐंटी करप्शन वेबसाइट अब दुनिया भर के भ्रष्ट्राचार निवारण के लिए लांच हो चुका है ।

वॉशिंगटन के कुछ कंपनियों के एक समूह ने ऐसी वेबसाइट शुरू की है जो दुनिया भर के रिश्वतखोर अफसरों और सरकारों का ब्यौरा रखेगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक गैरलाभकारी समूह ट्रेस इंटरनैशनल ने कहा कि उनकी नई वेबसाइट ब्राइबलाइन डॉटओआरजी में लोग या संगठन अपना नाम जाहिर किए बिना ही रिश्वत मांगे जाने संबंधी शिकायत कर सकेंगे। अमेरिका स्थित ट्रेस इंटरनेशनल ने कहा कि उसका इरादा लोगों के नाम एकत्र करना नहीं बल्कि रिश्वत देने और लेने वालों को समझना, मामलों की जाँच करना और फिर कानूनी कार्रवाई करना होगा। लोग रिश्वत माँगे जाने की शिकायत एक ऑनलाइन फार्म के जरिए कर सकते हैं। ब्राइबलाइन साइट पर उपलब्ध इस फॉर्म में 10 सवाल होते हैं।

जो भी हो इससे भले ही रिश्वतखोरी पर प्रत्यक्षतः लगाम नहीं लगया जा सकता परंतु उसे विश्वव्यापी अपमान का भागीदार तो सिद्ध ज़रूर किया जा सकता है। प्रौद्योगिकी और विश्वग्राम की वर्तमान जीवनशैली में यह भी कम दंड़ नहीं है और हम जानते हैं ही हैं, समाजशास्त्रीय सच भी है कि अपमान बहुत बड़ा सामाजिक नियंत्रण है ।

Monday, October 15, 2007

दुनिया में हिंदी-रस घोलता रेडियो यानी सलाम नमस्ते

वेब-भूमि-8
लगता है सचमुच रेडियो की वापसी होने वाली है । भारत में भले ही यह अभी बहुत दूर है किन्तु पश्चिमी-दुनिया में रेडियो की वापसी तेजी से हो रही है । इंटरनेट के कारण रेडियो भी वैश्विक होने लगे हैं । सुखद तो यह कि इसमें भारतीय बढ़ चढकर योगदान दे रहे हैं । मैं बात कर रहा हूँ रेडियो सलाम नमस्ते की जो सारे विश्व को हिंदी के सातों रस में घोलने लगा है । अमेरिका की डलास शहर से इसे सच कर दिखाया है – चालीस वर्षीय युवा अहिंदीभाषी जयपाल रेड्डी ने । वैसे तो यह यू.एस.ए का पहला एफ एम (104.9)रेडियो स्टेशन है जो सातों दिन चौबीस घटों अपने प्रसारण के लिए चर्चित है किन्तु इंटरनेट के कारण यह समूचे विश्व में चर्चित होने लगा है । इसके सारे कार्यक्रम संपन्न भारतीय दृष्टि से प्रसारित किये जाते हैं । आखिर ऐसे रेडियो प्रसारण को दुनिया भर में प्रतिसाद न क्योंकर मिले ! प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् - चलिए और लॉग ऑन करके सुन लीजिए- www.radiosalaamnamaste.com/

रेडियो सलाम नमस्ते भाषायी विविधता को प्रोत्साहित करने वाला प्रतिष्टान है । इस मायने में वह पश्चिम की भाषायी वर्चस्ववाद का जबाब भी है । यहाँ हम हिंदी के अलावा तीन भाषाओं का आस्वाद ले सकते हैं । भविष्य में यहाँ से कई भाषाओं में प्रसारण की योजना बनायी जा रही है । कविताजंलि(प्रस्तोता- नंदलाल सिंह और आदित्यप्रकाश सिंह), गुलदस्ता, चलते-चलते(नीलम), एक गरम चाय की प्याली(अंबरीन), चाँदनी रातें(रोहित), ज़िंदगी का सफ़र (गिरीश कल्याणपुरी) आपकी सेहत(डॉ. हैदर) ऐसे लोकप्रिय कार्यक्रम हैं जिनकी प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से देश-विदेश के श्रोता करते हैं । शेष समय यह मनोरंजनात्मक हो जाता है । इसका भी एक कारण है - पश्चिम दुनिया में रहने वाली भारतीयों की नयी पीढ़ी हिंदी फिल्मों के बारे में जानने को अधिक उत्सुक रहता है । रेडियो सलाम नमस्ते में नये-पुराने गानों की बरसात होती रहती है । लगता है मनभावन फुहारें है मानसून की । प्रतिदिन मध्यान्ह 1.30 से 2 बजे तक समाचार प्रसारित किये जाते हैं । रेडियो सलाम नमस्ते को एक पूर्ण भारतीय रेडियो कहा जाना अनुचित नहीं होगा । क्योंकि विज्ञापन भी हिदीं में प्रसारित किया जाता है । यहाँ अन्य भारतीय भाषाओं से कोई टकराव या दुराव नहीं है बल्कि समय-समय पर पंजाबी, गुजराती आदि भाषा में भी प्रसारण किया जाता है। शायद यही कारण है कि अमेरिका का हर प्रवासी भारतीय इन रेडियो सलाम नमस्ते को दिल से सुनता है । यहाँ भारत में भी ऐसा कोई रेडियो नहीं है जो रात दिन इस तरह प्रसारण करता हो । और वह भी हिंदी में । रेडियो सलाम नमस्ते को आप लगातार सुनें तो निश्चित ही युवाओं पर संस्कृतिभ्रष्टता का आरोप लगाना भूल जायेंगे । इस रेडियो के लगभग सारी टीम सतर्क और समर्पित युवाओं की है । चाहे आप इसके दोनों वाइस प्रेजीडेंट्स को लें जिन्हें हम मोहम्मद अब्बास या अम्बरीन हसनात के नाम से जान सकते हैं । एक और प्रतिभा मोनिका शर्मा का नाम लिये बिना रेडियो सलाम नमस्ते की कहानी पूरी नहीं हो सकती । वे रेडियो पत्रिका का सम्पादन करती हैं । यह पत्रिका पूरी तरह मुफ़्त वितरित की जाती है । वे इसके साथ-साथ हैलो डलास कार्यक्रम का कुशल संचालन भी करतीं हैं । सीता की वापसी कराने वाली राम की सेना के सेनापति की तरह जुटे रहते हैं वे दोनों । सच तो ही है हिंदी की सीता इन दिनों रावण के राज्य में ही तो निर्वासित है ।

वैसे तो सारे के सारे कार्यक्रम एक आदर्श रेडियो श्रोता को बाँधे रखने में सफल हैं किन्तु जहाँ तक कवितांजलि नामक कार्यक्रम की बात है उसकी जितनी प्रशंसा की जाय उतनी कम है । यदि आप वास्तव में एक अच्छे कवि हैं तो मान कर चलिए आपके पास कभी भी हिंदीसेवी आदित्यप्रकाश सिंह का कभी भी डलास से सीधा फोन आ सकता है । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप भारत के किसी गाँव में रहते हैं या फिर पाकिस्तान में रहते हैं । इस वैश्विक रेडियो से कविता प्रसारण होने का गौरव तो मिलेगा ही बतरस का आनंद अलग से उपलब्ध करायेगें सिंह साहब। पर आपमें यदि थोड़ा-सा भी उच्चारण दोष है तो आप बच नहीं पायेंगे उनकी पारखी नज़रों से । इतने सतर्क रहते हैं जैसा भाषाविज्ञानी रहता है । हो भी क्यों ना, उनका बचपन जो गोपाल सिंह नेपाली के सानिध्य में गुजरा है।
चलते-चलते-
माल्लपुरम् (केरल) भारत का पहला ई-जिला बन चुका है । केरल सरकार ने राज्य के एक पिछड़े जिले में विश्व के सबसे बड़े ग्रामीण वायरलेस ब्रॉडबैण्ड सेवा की स्थापना कर उसे भारत का पहला ई-साक्षर जिला में परिणत कर दिया है। इसके द्वारा लोग ई-मेल के माध्यम से अपना बिजली जमा कर सकते तथा जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह के बिल के ई-भुगतान के लिए भारतीय स्टेट बैंक को नियुक्त किया गया है। साथ ही, जिले में स्थित पुलिस केन्द्र तक अक्षय केन्द्र या सूचना कियोस्क से ई-मेल के माध्यम से अपनी शिकायत दर्ज़ करा सकते हैं।

Saturday, October 13, 2007

आया हवाई ऑपरेटिंग सिस्टम

वेब-भूमि-7

कंप्यूटर और इंटरनेट का गंभीर रूचि रखने वाले मेरे बेटे की जिज्ञासा थी – क्या बिना ऑपरेटिंग सिस्टम किसी एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर पर काम किया जा सकता है ? मैंने तब यूँ ही कहा था – यह तो नामुनकिन है । लगभग टाल-सा दिया था उसे । शायद मैं भी भारतीय टेक्नोक्रेट्स के कौशल का आंकलन नहीं कर सका था जिनके बदौलत हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि जी हाँ, अब बगैर ऑपरेटिंग सिस्टम अपने कम्प्यूटर या पीसी को हम कहीं से भी एक्सेस कर सकते हैं। और सिर्फ इतना ही नहीं किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम की फाइलों को किसी भी कंप्यूटर पर रीड़ कर सकते हैं, उनका उपयोग भी कर सकते हैं । हमारे पास इंटरनेट कनेक्शन मात्र हो । कहने का आशय तो यही कि अब हवा में होगा हमारा ऑपरेटिंग सिस्टम ।

एक कंप्यूटर उपयोगकर्ता इतना तो जानता ही है कि यदि पीसी के हार्ड डिस्क यानी कि बूटिंग डिस्क में ऑपरेटिंग सिस्टम ही न हो तो उसके सम्मुख कभी भी कमांड प्राम्ट नहीं आयेगा । कंमाड प्राम्ट नहीं आयेगा तो पीसी किसी भी उपयोग लायक नहीं रहेगा, तब वह खाली डिब्बे से ज़्यादा नज़र नहीं आयेगा । ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह मंच है जो पीसी को काम करने योग्य बनाता है । यही कारण है कि पहले हार्ड डिस्क पर सबसे पहले ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) इंस्टाल होता हैं जिसकी सहायता से किसी भी इंस्टाल किये एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर पर मनमाफ़िक कार्य किया जा सकता है । चाहे वह विडोंज हो या मैक या फिर लाइनेक्स या यूनिक्स ही क्यों न हो ।

आम पीसी उपभोक्ता यह भी जानता है कि एक आपरेटिंग सिस्टम में तैयार फाइल किसी अन्य आपरेटिंग सिस्टम वाले पीसी में कतई काम नहीं आता है । उदाहरण के तौर पर यदि विडोंज के एमएसवर्ड में तैयार डेटा या फाईल को मैकिंटोश या लिनक्स के वर्ड पर न खोला जा सकता है, न पढ़ा जा सकता है न ही उसमें संशोधन किया जा सकता है । यह सभी जानते हैं कि विभिन्न देशों में अलग-अलग तरह के ओएस(operating system) प्रचलित हैं । यहाँ तक कि एक ही देश के विभिन्न शहरों में भी समान ओएस प्रचलित नहीं है । यह भी कम अड़चन नहीं थी । इसे एक उदाहरण से समझते हैं - माना कि किसी भारतीय को किसी ऐसे देश में चाहे व्यापार के सिलसिले में हो या जॉब या किसी अन्य प्रसंग पर प्रस्तुतिकरण (Presentation) करना हो, और वहाँ के पीसी में विंडोज के स्थान पर लाइनेक्स या मैक ओएस वाली पीसी हो तो वह सीडी या पेन ड्राइव में डेटा रखने के बाद भी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह जायेगा । सब कुछ उसका धरा का धरा रह जायेगा । प्रौद्योगिकी की तेज रफ़्तार वाले इस युग में इस कंप्यूटरी बाधा को दूर करने में हो सकता है कि कई देश के टेक्नोक्रेट लगे हों पर सफलता जिसे सबसे पहले मिली है उनमें भारतीय भी हैं । इसका हल ढूँढ़ निकाला है मद्रास के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने । नाम है निवियो । पता है –
www.nivio.com

यूँ तो वर्षों से ब्राउज़र के मार्फत ऑइस तरह के लिनक्स आधारित रिमोट ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग की बात सुनाई देती है । कई ऐसे ऑनलाइन प्रयोग भी हो चुके हैं और कुछ तो सफल भी हो रहे हैं । (आज कम से कम 12 प्रकार के ऐसे ही ऑनलाइन ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलन में हैं । इसमें प्रमुख हैं -
1. Craythur (www.craythur.com) 2. Desktoptwo (www.desktoptwo.com) 3. EyeOS(www.eyeos.com) 4. Glide (www.glidedigital.com) 5. Goowy (www.goowy.com )6. Orca (www.orcaa.com)7. Purefect 8. SSOE 9. XinDESK 10. YouOS (www.youos.com) ) परंतु विंडोज़ एक्स-पी आधारित निवियो नामक यह वेब अनुप्रयोग अपने किस्म का अनोखा और अव्वल है ।

यदि आप इस ऑनलाइन आपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करने की ख्वाहिश रखते हैं तो चलिए हमारे साथ – पहले इंटरनेट से जुडिए । फिर
www.nivio.com पर लॉग आन होइये । कुछ ही क्षण मे ओएस आपके सम्मुख होगा । हो सकता है कि आपको कुछ ज्यादा इंतजार करना पडे । ओएस के आते ही स्वयं को रजिस्टर कीजिए । रजिस्टर्ड होते ही आप प्रयोगकर्ताओं की कतार में सम्मिलित हो जायेंगे । तब वह खुद ब खुद आपको आमंत्रित करेगा कि आइये मेरे आका ! मैं आपकी सेवा के लिए तैयार हूँ । जब एक बार डेस्कटॉप को एक्सेस कर लेंगे तो आप मुक्त और आराम से कई तरह के प्रोग्रामों पर कार्य कर सकते हैं जैसे – वर्ड, एक्सेल, पॉवरपाइंट आदि-आदि । शुरु में आपको इस आनलाइन आपरेटिंग सिस्टम पर कार्य करने के लिए एक माह का समय मिलेगा । इसके बाद आपको निवियो कंपनी को प्रत्येक माह 399 रुपया अदा करने होंगे जो सुविधा को देखते हुए कम ही है । विद्यार्थियों के लिए यह शुल्क मात्र 199.50 रुपये प्रति माह है । निवियो को अदा की गई राशि के एवज में आपको एक पैकेज मिलेगा जिसमें 5 जीगाबाइट आनलाइन स्टोरेज, संपूर्ण विंडोज डेस्कटाप, एडाब एक्रोबेट रीडर8, आइट्यून्स और फॉयरफॉक्स मिलेगा । इसी साइट पर माइक्रोसाफ्ट ऑफिस 2003 भी कुछ शुल्क के साथ उपयोग हेतु उपलब्ध है । यदि आप पैसा बचाना चाहते हैं तो वैकल्पिक तौर पर वहाँ ओपन ऑफिस सुइट पर काम कर सकते हैं ।

निवियो की विशेषता यह भी है कि वह सुरक्षा सेवा भी प्रदान करती है – यहाँ की सभी फाइलें वायरस और स्पैम मुक्त होती है । फिलहाल तो यह बीटा संस्करण(टेस्टिंग) की स्थिति में है । आम जन के इस्तेमाल के लिए जारी नहीं किया गया है । उपयोगिता की दृष्टि से यद्यपि यह हिंदी में काम करने वालों के लिए किसी खास काम का नहीं है किन्तु भविष्य में यहाँ वांछित एप्लीकेशनों को भी इंस्टाल करके उपयोग किया जा सकता है । खास कर उन लोगों के लिए जो लैपटाप का बोझ भी नहीं उठाना चाहते । या फिर लैपटाप भी खरीदना नहीं चाहते । यहाँ अपना बैकअप भी सुरक्षित रखा जा सकता है । यहाँ अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज भी सबकी नजर बचाकर रखा जा सकता है । फिलहाल और क्या चाहिए । आइये स्वागत करें इस विडोंज आधारित विश्व के प्रथम ऑनलाइन ऑपरेटिंग सिस्टम का ।




Thursday, October 11, 2007

तकनीक से तकदीर बदलने की सरकारी कोशिश

वेब-भूमि-6
यह समय कंप्यूटर और इंटरनेट से दूर भागने का नहीं है । इसमें अरुचि का मतलब सामाजिक सरोकारों से अरुचि भी है । यही कारण है कि ई-तकनीक के रूप में ई-शासन जनता के लिए कारगर नहीं बन पा रहा है और कुछ कालेमन वाले इसका भी इस्तेमाल अपने गंदे कॉलर को चमकाने के लिए सर्फ एक्सेल की तरह करने में तुले हुए हैं, आये दिन उन्हें फ़र्जी वैश्विक रिकार्ड बनाते देखा जा सकता है । और इसीलिए ई-शासन योजना का आदर्श लक्ष्य - “सभी सरकारी सुविधाएँ एवं सेवाओं को आम जनता के द्वार पर उपलब्ध कराना” के स्थान पर सभी सरकारी सुविधाओं को अपनी झोली में डाल लेना सिद्ध हो रहा है। यदि हम इधर भी ध्यान दें, उसकी व्यापक शक्ति को आजमायें, औरों को भी इससे जोड़ें तो निश्चय ही यह आम गरीब, पिछड़े और साधन संपन्नहीन नागरिकों के लिए भ्रष्ट्राचार से मुक्ति का कारगर साधन बन सकती है । ई-शासन के लंगड़ाने के पीछे फिलहाल जनता रुचि संवर्धन और तकनीकी ज्ञान का अभाव ही है परंतु ई-शासन की तकनीक तकदीर बदलने की कला बन सकती है ।
देश की सबसे उपेक्षित परिवार- “ग्रामीण जनता” को लाभान्वित कराने के उद्देश्य से कंप्यूटर आधारित ई-शासन परियोजना की शुरुआत की गई है ताकि सूचना-प्रौद्योगिकी को आम आदमी के लिए लाभप्रद बनाया जा सके । इसी दिशा में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र(एनआईसी) काफी लंबे समय से सभी स्तरों पर तकनीक एवं नेटवर्किंग से संबंधित सरकारी ज़रूरतों को पूरा करने में सुविधाएँ प्रदान करने को प्रतिबद्ध है। नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेन्टर केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, केन्द्र शासित प्रदेशों, जिला एवं अन्य सरकारी निकायों को नेटवर्क आधार एवं ई-शासन सहायता प्रदान कर रहा है। यह सरकारी योजनाओं को लागू करने, सरकारी सेवाओं के स्तर में सुधार करने एवं राष्ट्रीय व स्थानीय सरकारों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए राष्ट्रव्यापी संचार नेटवर्क उपलब्ध कराने के साथ बहुत सारे संचार व सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ भी उपलब्ध करा रहा है। भारत में एनआईसी की प्रमुख उत्पाद एवं सेवाएँ -


1. एगमार्कनेट-
यह देश में विपणन सूचना के आदान-प्रदान के लिए कृषि उत्पाद के थोक बाज़ार को आपस में जोड़ने का कार्य करता है। यह पोर्टल कृषक विपणन से संबंधित सरकारी एवं गैर सरकारी संस्था, किसान, व्यापारी, निर्यातक, नीति निर्माता, शैक्षणिक संस्थान आदि को सशक्त बनाने वाली अभिकरण के रूप में उभरा है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://agmarknet.nic.in को लॉग करें।

2. भूईयान-
भू-अभिलेख कंप्यूटरीकरण-वेब आधारित यह सॉफ्टवेयर सुविधा भू-अभिलेख से संबंधित सूचनाएँ ऑनलाइन उपलब्ध कराती है। सामान्य रूप से भूमि से संबंधित ये सूचनाएँ किसानों द्वारा, बैंकों से ऋण प्राप्त करने के लिए, प्राप्त किया जाता है। और इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से ये सूचनाएँ वे राज्यभर में फैले कियोस्क के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। इस सॉफ्टवेयर की एक और विशेषता यह है कि प्रशासक (एडमिस्ट्रेटर) एक स्थान पर बैठे-बैठे भूमि की क्षेत्रवार स्थिति, किसानवार स्थिति एवं किसी खास भूमि की राजस्व संग्रह की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://eglrc.nic.in को लॉग करें।

3. ई-पोस्ट -
ई-पोस्ट सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर पोस्ट ऑफिस के माध्यम से देशभर में कहीं भी सूचनाएँ भेजी या प्राप्त की जा सकती है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://indiapost.nic.in को लॉग करें।

4. परीक्षा परिणाम पोर्टल -
वेबसाइट पर परीक्षा परिणाम प्राप्त करने का यह प्रथम स्रोत है। यह वेबसाइट विभिन्न सरकारी अभिकरणों द्वारा संचालित शैक्षणिक, प्रवेश परीक्षा एवं भर्त्ती परीक्षा से संबंधित परिणाम ऑनलाइन उपलब्ध कराता है। इस वेबसाइट पर प्रकाशित प्रमुख परीक्षा परिणाम हैं- केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10 वीं व 12 वीं का परीक्षा परिणाम, राज्य स्कूल बोर्ड, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए, सीए आदि हैं। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://results.nic.in को लॉग करें।

5. ज्यूडिस
ज्यूडिस विभिन्न न्यायालयों में दायर मुकदमों एवं उसपर आये निर्णयों का एक विस्तृत ऑनलाइन पुस्तकालय की तरह कार्य करता है। इस पर आप भारत के सर्वोंच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा सुनाये गये निर्णयों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://www.judis.nic.in को लॉग करें।

6. रूरल मार्केट -
इस सॉफ्टवेयर का उपयोग ग्रामीण लोगों एवं कलाकारों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन प्रयास एवं प्रदर्शन को सशक्त करने के लिए किया जाता है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://ruralbazar.nic.in को लॉग करें।

एनआईसी द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे अन्य विभिन्न उत्पाद एवं सेवाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://offerings.nic.in/products or http://offerings.nic.in/egovsearchres.asp को लॉग करें।

7निर्णय सूचना तंत्र (ज्यूडिस) -
ज्यूडिस विभिन्न न्यायालयों में दायर मुकदमों एवं उसपर आये निर्णयों का एक विस्तृत ऑनलाइन पुस्तकालय की तरह कार्य करता है। इस पर आप भारत के सर्वोंच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा सुनाये गये निर्णयों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://www.judis.nic.in को लॉग करें।

चलते-चलते -
केन्द्र सरकार द्वारा विगत दिनों ई-तैयारी के क्षेत्र में अग्रणी राज्य का मान्यता देने के बाद अब केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को ई-शासन के क्षेत्र में उत्कृष्ट पहल के लिए के लिए कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया से सर्वश्रेष्ठ ई-शासन राज्य का पुरस्कार मिला है। पुरस्कार समिति ने राज्य में चलाये जा रहे ई-सम्पर्क परियोजना (भारत सरकार द्वारा गोल्डेन आइकॉन अवार्ड से सम्मानित) एवं जन सम्पर्क परियोजना (समाज के लिए सूचना-प्रौद्योगिकी) की भी सराहना की।

Wednesday, October 10, 2007

अमेरिका में पाणिनी –ब्रिटेन में लेखनी

वेबभूमि -5


चौंकिए नहीं । अमेरिका अब धीरे-धीरे हिंदी की ताकत को स्वीकारने लगा है। वहाँ आये दिन हिंदी भाषा के माध्यम से भारत को समझने के नये-नये तरीके तलाशे जा रहे हैं । यदि ऐसा न होता तो वहाँ के एक कुलाधिपति शास्त्री जे सी फिलिप इस दिशा में नहीं आ झँपाते । वैसे वे भारतीय मूल के ही हैं । उन्होंने हाल ही में हिन्दी चिट्ठों एवं जालस्थलों में उप्लब्ध सामग्री की खोज हिन्दी में करने के लिये सारथी का वृहद खोज-यंत्र "नाचिकेत" (
www.Sarathi.info) की शुरूआत की है ।

नाचिकेत में हिन्दी के 1000 से अधिक जाल-स्थल इसमें शामिल कर दिये गये हैं, एवं अगले कुछ दिनों में सारे ज्ञात हिन्दी जालस्थल इसमें जोड दिये जायेंगे । जाल-स्थल सारथी/नाचिकेत के सम्पादकों के द्वारा चुने/जोडे जाते हैं एवं इन चुने हुवे जाल-स्थलों की खोज गूगल द्वारा होती है । अत: खोजियों को सही जानकारी तुरंत उपलब्ध हो जाती है व प्राप्त फल में अनावश्यक जानकरी आपका समय भी नष्ट नहीं करती । हिन्दी खोज एवं अनुसंधान के लिये अब कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है ।

चलिए जानते हैं ये शास्त्री जे सी फिलिप के बारे में कि ये करते क्या हैं ? एक समर्पित लेखक, अनुसंधानकर्ता, एवं हिन्दी-सेवी हैं. उन्होंने भौतिकी, देशीय औषधिशास्त्र, और ईसा के दर्शन शास्त्र में अलग अलग विश्व्वविद्यालयो से डाक्टरेट किया है । आजकल वे पुरातत्व के वैज्ञानिक पहलुओं पर अपने अगले डाक्टरेट के लिये गहन अनुसंधान कर रहे हैं । शास्त्रीजी बताते हैं - उनका बचपन मध्य प्रदेश के ग्वालियर मे बीता है, जहां उन्होंने कई स्वतंत्रता सेनानियों से शिक्षा एवं प्रेरणा पाई थी । इस कारण उन्होंने अपने जीवन में राजभाषा हिन्दी की साधना और सेवा करने का प्रण बचपन में ही कर लिया था। उनका मानना है कि यदि हम भारतीय संगठित हो जायें तो सन २०२५ से पहले हिन्दुस्तान एक विश्व-शक्ति बन जायगा। फिर से एक सोने की चिडिया भी बन जायगा। इस चिट्‍ठे में वे इस विषय से संबंधित लेख प्रस्तुत करेंगे।

वैज्ञानिक विषयों के अतिरिक्त उन्होंने जाने-माने अध्यापकों की देखरेख में दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों का भी अध्ययन किया है। वे इन सभी विषयों पर आप के प्रश्नों का स्वागत करेंगे, और उनका जवाब इस चिट्‍ठे मे देंगे। प्रश्न पूछने के लिये या तो उनको ईमेल भेजें (जिसका पता मुख्य पेज पर दहिनी ओर दिया गया है), या इस चिट्‍ठे मे हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणी के साथ अपना प्रश्न भी जोड दें।
फिलिप साहब ने हिंदी की मानकता के लिए कमर कस ली है – पाणिनि बनाकर । पाणिनि हिन्दी में मानक एवं सरल/सहज शब्दों की कोई कमी नहीं है। पाणिनि का लक्ष्य है हर कार्य के लिये सरल/सहज मानक शब्द सुझाना जिससे कि हिन्दी बोलते/लिखते समय अंग्रेजी शब्दों पर हमारा आश्रय कम हो। यदि आप में से कोई हिंदी प्रेमी चाहता है कि तो अपने सुझाव पाणिनी को भेज सकता है उनका पता है
-Panini@iicet.com

हस्तलिखित पाठ्य को पढ़ेगा कम्प्यूटर

कंप्यूटर क्या-क्या नहीं कर सकता । कोई भी वास्तविक मूल्याँकन नहीं कर सकता । भविष्यवाणी नहीं कर सकता । आप ही जान लीजिए ना । अब वह हस्तलिखित और मुद्रित सामग्री को भी बाँच सकता है । ऍच पी ने एक टूलकिट - यानी लाइब्रेरी निकाली है जो कि भारतीय भाषाओं के हस्तलिखित और छपे हुए पाठ्य को पढ़ने में कम्पयूटर को मदद करेगा। यह मुक्तस्रोत है - जीपीऍल और ऍमआईटी अनुमतिपत्र के तहत उपलब्ध है। क्योंकि यह मुक्तस्रोत है, और साथ ही एक बड़ी कम्पनी का इसमें हाथ भी है, अतः सम्भवतः देवनागरी और अन्य लिपियों का ओसीआर - ऑप्टिकल कॅरॅक्टर रीडर - बनाने में काफ़ी मदद करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि आप छपी हुई पुस्तकों को - जैसे कि रामायण, गोदान आदि - बिना टङ्कित किए, केवल स्कॅनर की मदद से अपने कम्प्यूटर पर यूनिकोडित रूप में पा सकेंगे - इस टूलकिट का इस्तेमाल करके बने तन्त्रांशों की मदद से, और वे मुफ़्त भी होंगे।

चलते-चलते –
भारत में भले ही कोई हिंदी सेवी या प्रौद्योगिकी को हिंदी की श्रीवृद्धि के लिए उपयोग में लाने में विश्वास करने वाले बुद्धिजीवी कोई साहित्यिक साइट विगत एक दो वर्ष में भले ही शुरू न कर सके हों पर ब्रिटेन में प्रवासी साहित्यकार शैल अग्रवाल ने एक हिंदी पत्रिका ऑनलाइन निकाल कर अपने देश राग की तीव्रता का परिचय दिया है । हाल ही में उन्होंने एक साहित्यिक पत्रिका प्रांरभ की है –
http://www.lekhni.net । इस पत्रिका का लोगो है - सोच और संस्कारों की साँझी धरोहर । आखिर क्यों न हो । लेखिका जो हैं । यहाँ आप कहानी, कविता, व्यंग्य, ग़ज़ल कई विधा की सामग्री पढ़ भी सकते हैं और छपने को भेज भी सकते हैं । वैसे यह द्विभाषी पत्रिका है । हिंदी के अलावा यहाँ कुछ सामग्री अँग्रेजी में भी रखी जा रही है । कई पृष्ठों में टायपिंग की त्रुटियाँ हैं जो हिंदी पत्रिकाओं की कमजोरी को ही रेखांकित करती है । हड़बड़ी में प्रकाशन लगता है हिंदीवालों का स्थायी चरित्र बन चुका है । कई पत्रिका के संपादकों को, खासकर अंतरजालीय पत्रिकाओं में, विधा तक की परख नहीं है, वहाँ लेखनी में विभिन्न विधाओं के साथ अब तक तो न्याय हुआ है । वैसे तो अंतरजाल की कई पत्रिकाओं में संपादकीय इस तरह से गायब है जैसे गधे के सिर से सिंग, पर लेखनी के संपादक को बधाई दी जानी चाहिए कि वह लगातार लेखनी को अपने संपादकीय के साथ प्रस्तुत कर रही हैं । संपादकीय के बगैर संपादन या पत्रिका रचनाओं का कलेक्शन मात्र बन जाती है और आज के तकनीकी सुविधाओं के दौर में रचनाओं का कलेक्शन साधारण काम हो चुका है । लेखनी के हर अंक में संपादकीय का जाना संपादक की दृष्टि, गंभीरता और विचारवान् होने का प्रमाण भी है । अक्टूबर-07 के अंक में गाँधी जी की महत्ता पर लिखा गया संपादकीय पठनीय है ।

Tuesday, October 09, 2007

इंटरनेट पर मूल्य आधारित पत्रकारिता यानी लोकमंच डॉट कॉम

वेब-भूमि-4
इंटरनेट को कभी भारतीय संस्कृति में विपक्षी भूमिका के रूप में देखा जा रहा था । कुछ विचारक और समाजशास्त्री इसे भारतीयता की मूल आत्मा के विरूद्ध वैश्वीकरण के हथकंडों के रूप में बताते नहीं थकते थे । पर लगता है ऐसे लोगों को इंटरनेट अब जीवन का जरूरी चीज जैसा नज़र आने लगा है । शायद यही कारण है कि देश के प्रमुख संस्कृति विशेषज्ञ और कवि अशोक बाजपेयी ने इंटरनेट के लिए अंतरजाल शब्द भी गढ़ा जो अब सर्वमान्य भी हो चुका है । अंतरजाल अब राष्ट्रीयता के पुरोधाओं के लिए भी अवांछवीय नहीं रहा । सच तो यह है कि उन्हें राष्ट्रीयता को बचाने के कारगर उपायों में अंतरजाल की भूमिका भी दिखाई देने लगी है । वे बकायदा उसे एक अस्त्र के रूप में लेने हैं या फिर अंतरजाल को हम भारतीयों के लिए एक सकारात्मक दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं । जो भी हो, वे मीडिया के प्रक्षेत्र में इसे आजमाते हुए वैकल्पिक मीडिया करार दे रहे हैं । भारत में ऐसे ही वैकल्पिक मीडिया की शुरूआत की है – लोक मंच (www.lokmanch.com)नामक वेबसाइट ने । वैसे यह ऐसे विचारधारा के उन हिमायती लोगों के लिए अचरज का विषय भी हो सकता है कि आखिर कॉम(.com) जिसका मतलब कामर्शियल होता है, ही क्यों चुना गया जबकि ओआरजी (.org) लेने का विकल्प तो बचा ही था और जिसका मतलब संगठन होता है । खैर....

यद्यपि पत्रकारिता पर आधारित इस वेबजाल से राष्ट्रीय विचारधारा के कुशल वक्ता के.एन. गोविन्दाचार्य प्रत्यक्षः नहीं जुड़े हैं तथापि उनका प्रभाव इस वेबजाल पर प्रतिबिंबित होता है । क्योंकर भी न हो । नई दिल्ली से प्रकाशित ‘भारतीय पक्ष’ नामक पत्रिका भी तो यही कर रही है जो मूल रूप में वैश्वीकरण के वैकल्पिक चिन्तन को मान्यता प्रदान करती है। ज्ञातव्य हो कि भारतीय पक्ष प्रसिद्ध विचारक के.एन. गोविन्दाचार्य के कुशल मार्गदर्शन में संचालित पत्रिका है । इसके सम्पादक विमल कुमार सिंह और उप-सम्पादक हर्षित जैन हैं। भारत की सज्जन शक्ति को संगठित करते हुये विभिन्न श्रेत्रों में असंगठित रूप में चलने वाली स्वदेशी पद्धतियों और कलाओं को संगठित करने के उद्देश्य से श्री गोविन्दाचार्य के नेतृत्व में चलने वाला राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन और भारत विकास संगम इस पत्रिका के माध्यम से वैचारिक पुष्टता प्राप्त कर रहा है। भारतीय पक्ष’ के अलावा लोकमंच नेटवर्क से डेनियल पाइप्स , संस्कृति सरगम तथा हिन्दू विश्व आदि भी संबंद्ध हैं । ज्ञातव्य हो कि डेनियल पाइप्स मध्य-पूर्व एवं राजनीति के विशेषज्ञ अमेरिका के निवासी हैं और विश्व के अग्रणी विद्वानों में अपना स्थान रखते हैं। इस्लामी राजनीति और मध्य-पूर्व पर पिछले दो दशकों से लगातार लिखते आ रहे डेनियल पाइप्स सम्प्रति मिडिल ईस्ट फोरम संस्था के निदेशक भी हैं। उनके लेखों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है। संस्कृति सरगम नई दिल्ली से प्रकाशित व मूल रूप में देश के भाषाई समाचार पत्रों को गुणवत्तापरक सामग्री प्रदान करने का माध्यम है। इस पाक्षिक पत्रिका के सम्पादक अमिताभ त्रिपाठी हैं। यह पाक्षिक पत्रिका देश के 1,000 से अधिक भाषाई समाचार पत्रों को प्रति पक्ष सामग्री प्रदान करती है। विश्व हिन्दू परिषद की प्रमुख पत्रिका हिन्दू विश्व पाक्षिक पत्रिका है। इसके सम्पादक ओंकार भावे हैं। इस पत्रिका का प्रसार मुख्य रूप से विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं और धर्मप्रिय लोगों के मध्य है।

जो राष्ट्रीयता यानी भारतीयता के आग्रही हैं और फ्रीलांसिग करना चाहते हैं । पत्रकारिता जिनके लिए जनता के सुख-दुःख का मिशन है वे लोकमंच से किसी भी क्षण जुड़कर अपनी अभिव्यक्ति को वैश्विक कर सकते हैं । कदाचित् यह हिंदी की मूल संस्कृति को भी समूची दुनिया के लिए अभिव्यक्त करने जैसा होगा । लोकमंच से जुड़ने में तकनीकी दृष्टि से भी कोई खास कठिनाई नहीं दिखाई देती । जो युनिकोड़ फोंट में लिखना –पढ़ना जानते हैं वे किसी भी क्षण यहाँ अपने निजी मेल के सहारे मुफ्त पंजीकृत हो कर लिख सकते हैं । लिखने के लिए यहाँ कई स्तंभ तय किये गये हैं इनमें
स्वदेश, परदेश, बहस, ब्लॉगर्स पार्क, आस्था, गिल्ली-डंडा, राशन-पानी, ज्ञान विज्ञान, विविधा, चिट्ठी-चोखा आदि प्रमुख हैं । स्वदेश और परदेश स्तम्भ के अंतर्गत देश एवं विदेश के किसी कोने में रहकर भी वहाँ से संबधित प्रमुख समाचार भेज कर प्रकाशित कराया जा सकता है । लोकमंच में प्रारंभ से ही इस्लामाबाद, लदन, न्यूयार्क, काठमांडू, पयुरटो रिको आदि विदेशी शहरों के समाचार वहाँ के फ्रीलांसरों द्वारा भेजे जा रहे हैं और वे बाकायदा प्रकाशित भी हो रहे हैं । प्रिंट मीडिया में किसी समाचार, विचार या संपादकीय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए अलग से पत्र लिखना होता है जबकि वेबमीडिया में यह तत्क्षण संभव है । जाहिर हैं लोकमंच में भी उसी क्षण समाचार या विचार या आलेखों को पढ़कर प्रतिक्रिया लिखी जा सकती है जो स्थायी रूप से प्रकाशित रहता है ।

ओपन सोर्स से उपलब्ध जुमला नामक सॉफ्टवेयर में निर्मित यह जाल स्थल केवल पत्रकारों के लिए ही नहीं अपितु साहित्यिक पत्रकारिता से संबंद्ध तथा साहित्यकारों के लिए भी उपयोगी नज़र आता है । यहाँ किताबघर नामक स्तम्भ के अंतर्गत 8 विविध उप स्तम्भों में रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को वैश्विक बना सकते हैं । ये 8 विषय है – कविता, कहानी, नाटक, संस्मरण, समीक्षा, हास्य-व्यंग्य, साहित्य विविधा, साहित्य समाचार हैं ।

इस जाल स्थल की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के डैनियल पाइप्स जैसे प्रमुख स्तम्भकार भी एक नियमित लेखक के रूप में संबंद्ध हैं । अपूर्व कुलश्रेष्ठ भी इस जाल स्थल के नियमित लेखक हैं ।

ऐसे समय में जब मीडिया अब मिशन नहीं अपितु कमीशन केंद्रित होता जा रहा है, लोकमंच जैसे वेब मीडिया मंचों की स्थापना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है । इसे मात्र हिंन्दूत्व के प्रचार-प्रसार का माध्यम नहीं माना जा सकता है । आज जबकि मीडिया जनता के घर की चिंता नहीं अपने बाजार की चिंता में व्याकुल है । जाहिर है बाजार मूलक वैश्वीकरण की शक्तियाँ अधिकतम मुनाफे के लिये विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित समाचार पत्रों को खरीदकर या उनमें अपनी पूँजी बढ़ाकर देश में हर क्षेत्र में व्याप्त होने की व्यापक योजना पर कार्यरत हैं । यदि यह योजना सफल हुई तो संस्कृति, भाषा, मूल्य व परम्पराओं को सहेज पाना किसी के लिये संभव न हो सकेगा । वैश्वीकरण के इस प्रवाह को रोकने का एकमात्र मार्ग है । मूल्य आधारित पत्रकारिता को जीवित रखना । ऐसे में आवश्यक है कि वैकल्पिक राष्ट्रवादी पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करते हुये वैश्वीकरण की बाजार मूलक शक्तियों से प्रेरित तथाकथित मुख्यधारा की पत्रकारिता को अप्रासंगिक बनाया जाये ।

जैसा कि लोकमंच के उद्देश्यों में भी कहा गया है कि वर्तमान समय में जबकि वैश्वीकरण में अन्तर्निहित बाजार मूलक शक्ति ने मूल्यों को नये सिरे से परिभाषित कर उसे मुनाफे से जोड़ दिया है और संस्कृति, भाषा, परम्परा को क्षीण कर उसे विकृत और क्षत-विक्षत करने का प्रयास आरम्भ कर दिया है, ऐसे में पत्रकारिता में भारतीय तासीर, संस्कृति, भाषा, परम्परा और मूल्यों को सहेज कर रखने वाले पत्रकारों को राष्ट्रीय क्षितिज पर लाने का समय आ गया है ।

यह अब एक सच की तरह व्याख्यातित और प्रमाणित हो चुका है कि वैश्वीकरण केवल आर्थिक चिन्तन नहीं है यह एक जीवन दर्शन है जो मुनाफे को ही जीवन मूल्य मानता है. ऐसे में इस बात का संकट उत्पन्न हो गया है कि समाज को दिशा देने वाली पत्रकारिता को अब बाजार में एक वस्तु बनाकर प्रस्तुत कर दिया जायेगा और उसका दायित्व जनशिक्षण और संस्कार निर्माण के स्थान पर स्वयं को बेचना हो जायेगा । ऐसे कठिन दौर में लोकमंच जैसे वेब मीडिया के साथ जुड़ना मूल्य आधारित पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना होगा । पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह देश का तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया राष्ट्रीय भावना का प्रकटीकरण करने में असमर्थ रहा है उसे देखते हुए लोकमंच वालों पर विश्वास करने में कोई सांपदायिकता नज़र नहीं आती ।

Monday, October 08, 2007

किसानों का नया सखा है इंटरनेट

वेब-भूमि-3

इस वक्त मैं अपने शहर के एकाकी कक्ष में कंप्यूटर के सम्मुख बैठे-बैठे इंटरनेट पर जूझ रहा हूँ पर खिड़की से साफ-साफ दिखाई देती मानसून की पहली फूहार से मुझे धरती पुत्र याद आने लगा है। शहर निवासी स्वयंभू धरतीपुत्र नहीं । प्रायोजित विज्ञप्तियों वाला धरतीपुत्र भी नहीं बल्कि वह माटी का बेटा जो सारे हिन्दुस्तान के लिए अन्न उपजाता है । गरीब के घर जनमता है, गरीबी की गोद पलता है और गरीब लोगों के कांधे में सवार होकर एक दिन चुपचाप श्मशान की ओर चल देता है – लहलहाते खेतों को अकेले छोड़कर । खिलखिलाते खलिहान को उदास छोड़कर ।

मेरे मन में एकाएक प्रश्न उभरता है – आखिर यह नई प्रौद्योगिकी किसानों के जीवन में कितनी खुशियाँ ला सकता है ? कंप्यूटर और इंटरनेट की क्षमता का आंकलन करने पर बुद्धि से जबाब मिलता है तो प्रसन्नता से भर उठता हूँ । राहत महसूसता हूँ कि सिर्फ शहरी लोगों के लिए नहीं अपितु गाँवो की ज़िंदगी में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में ये दोनों चीजें कारगर हैं। मित्रवत् हैं । सखाभाव है इनमें । बशर्ते कि उन्हें किसानों तक पहुँचाया जाय । किसानों को उस स्तर पर शिक्षित किया जाय।

यदि गाँव के चौपालों तक कंप्यूटर और इंटरनेट पहुँच गया तो समझिए कि वह कृषि की सारी उन्नत तकनीक को जान सकता है । विकसित तौर-तरीकों को आत्मसात कर सकता है । इसके लिए वह घर वैठे भारतीय किसान का सूचना केंद्र यानी कि http://www.krishisewa.com/ पहुँच सकता है । भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के जाल स्थल (www.icar.org.in/hindi)में जाने की देरी है । वहां वह मौसम वार फसल, बीजोपचार, रोग एवं निदान, मंडी भाव की जानकारी और ज्ञान मुफ्त में प्राप्त कर सकता है । यह धान, गेहूँ, आलू प्याज से लेकर मशरूम, सर्पगंधा, बायोडीजल आदि के उत्पादन, विपणन, बिक्रय की वांछित पाठ पढ़ाने वाली नियमित पाठशाला है । यहाँ हर किसान फसल विज्ञान, बागवानी, प्राणी विज्ञान, कृषि अभियांत्रिकी, प्राकृतिक संसाधन, मछली पालन आदि की व्यापक जानकारी हासिल कर सकता है । देश-विदेश के कृषि समाचार का अतिरिक्त आनंद । उसके अपने सांसद लोकसभा में लफ्फाजी करते हैं या उसकी आवाज़ उठाते हैं यह की चुगली भी यह साइट बकायदा करता है । विधायक महोदय विधान सभा में सोते रहते हैं या कुछ उसके हित पर बहस करते हैं या नही । यह भी किसान यहाँ से जान सकता है । किसानों के जीवन से जुड़े सारे समाचार के लिए नेट पर चर्चित साइट है – किसान समाचार डॉट कॉम ।

हमारे कुछ कृषक खासकर उन्नत किसान जो अंग्रेजी पढ़ना-लिखना जानते हैं वे राष्ट्रीय बायोडायवर्सिटी अथारिटी (www.nbaindia.org)और अनेक प्रांसगिक और महत्वपूर्ण साइट में जाकर अपनी जानकारी को दूरुस्त कर सकते हैं । कृषक आयोग, भारत सरकार भी हिंदी में साइट चलाता है। जहाँ (www.krishakayog.gov.in)कृषि नीति से लेकर अन्य शासकीय कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जान सकते हैं ।

नवोदित राज्य झारखंड के कृषि प्रशासकों की प्रशंसा की जानी चाहिए कि वे केंद्रीय सहयोग से अपने राज्य के किसानों को प्रौद्योगिकी से जोड़कर विकसित करने में ईमानदार दिखाई देते हैं । www.bitmesra.net में आगे बढ़ने से बहुत सारी नयी और वैज्ञानिक जानकारी कृषकों को मिलने लगती है जैसे- भूमि संरक्षण, शुष्क भूमि तकनीक, मिट्टी एवं नमी परीक्षण, मानसून देर से आने से फसल प्रवंधन, बोआई की तैयारी आदि।

जो किसान जड़ी-बूटी यानी कि औषधीय फसल अपनाना चाहते हैं उनके लिए महत्वपूर्ण गुरु हो सकता है -www.hrdiua.org । उत्तरांचल का यह साइट भी हिंदी भाषा में है । हर्बल राज्य बनाने का सपना देखने वाले राज्य सरकारों के लिए यह वेबसाइट एक ई-पाठ की तरह है । शैक्षणिक एवं अन्य संस्थानों की पारस्परिक क्रिया के लिए रक्षा कृषि शोध प्रयोगशाला की भी शैक्षिक साइट(www.drdo.org) कम महत्वपूर्ण नहीं जहाँ अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय संस्थान तथा कृषि विश्वविद्यालयों की सम्यक जानकारी उपलब्ध है । हरियाणा सोनीपत के जिला प्रशासन और कृषि विभाग भी इंटरनेट पर इन दिनों कृषकों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है । sonipat.nic.in कृषकों के लिए मार्गदर्शिका की तरह है । बिहार के राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, वैशाली अर्थात् kvkvaishali.bih.nic.in का भ्रमण कम फायदेमंद नहीं जहाँ फलों के उत्पादन के बारे में आवश्यक सूचनाएं और जानकारियाँ उपलब्ध हैं । हाल ही मैं इंडिया डेव्हलपमेंट गेटवे नामक संस्था ने कृषि पर एक समृद्द जास स्थल विकसित की है यहाँ कृषि ऋण, किसान क्रेडिट कार्ड, रेशम, भेड़, बकरी, खरगोश, सुअर पालन, आदि की से संबंधित जिज्ञासाओं का शमन किया जा सकता है । यहाँ ग्रामीण ऊर्जा विषयक काफी पठनीय सामग्री भी है । इस जाल स्थल का पता है - www.indg.in/agriculture । जो घर बैठे पर्यावरण के बारे में नियमित पत्रिका बाँचना चाहते हैं उनके लिए पर्यावरण डाइजेस्ट नामक पत्रिका ऑनलाइन मौजूद है – www.paryavaran-digest.blogspot । वैसे तो यह ब्लॉग तकनीक पर है पर सामग्री को सुचारूपूर्वक रखा गया है ।

भारतीय लोक में भी कृषि संबंधी प्रणालियों, संकेतों और उपचारों का दर्शन होता है । इस प्रसंग में हम घाघ को नहीं बिसार सकते । घाघ की कृषि कहावतों को भारत सरकार ने सजाकर रखा है और http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/dharti.htm में धऱती और बीज नामक एक महत्वपूर्ण किताब भी आनलाइन है जो जाने माने लेखक राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी द्वारा लिखी गयी है जो अपनी कोटि की हिंदी में पहली पुस्तक है। कहने को कृषकों के लिए कई जगह है नेट में पर वे या तो अंग्रेजी में हैं या फिर अपठनीय फोंट में हैं ।

ज़मीन का नक्शा कंप्यूटर में
कंप्यूटर और इंटरनेट किसानों के अर्थशास्त्र को भी बदलने वाला है । ये दोनों जटिल जमीन विवाद हल करने की दिशा में भी कारगर हो सकते हैं जिसकी शुरुआत उत्तरप्रदेश के राजस्व परिषद ने जमीनों के कई दशक पुराने नक्शे डिजिटल करने की प्रक्रिया के रूप में कर चुकी है । लखनऊ, गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद में यह काम पूरा हो चुका है और इस साल सत्रह अन्य जिलों में योजना लागू हो जायेगी। इसके बाद इन बीस जिलों के लोग अपनी दशकों पुरानी मिल्कियत न सिर्फ देख सकेंगे बल्कि तहसील दफ्तर से जमीन के नक्शे का कंप्यूटर प्रिंट साधारण फीस पर खरीद भी सकेंगे। अब वहाँ लोगों को नक्शों के लिए तहसीलों के चक्कर लगाने नहीं पड़ते हैं। भूमि विवाद हल करने में सहुलियत हो रही है । बताया जा रहा है कि वहाँ डेढ़ करोड़ खतौनी कंप्यूटर से तैयार हो चुके हैं । लेखपाल की खुशामद करने से छुटकारा दिलाने में प्रौद्योगिकी का यह चमत्कार कम नहीं है । किसान हितैषी होने का दंभ भरने वालों को सोचना चाहिए कि कैसे प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर उन्हें भ्रष्टाचार से मुक्त किया जा सकता है ? कलेक्टर और तहसीलदार साहब के घर दुध पहुँचाने की आड़ में किसानों से हजारों रुपये डकारने वाले पटवारियों और आरआई से गरीब आदिवासी कृषकों को कब मुक्ति मिल सकेगी ? लालफीता शाही और रिश्वतखोरी के पंजे से भूमिपुत्र को कैसे बचाया जा सकता है और इसमें कंप्यूटर और इंटरनेट कैसे उपयोगी साबित हो सकता है इस दिशा में कौन-कौन से कारगर कदम उठाये जा सकते हैं ? किसानों के नाम पर करोड़ों का कंप्यूटर खरीद लेने मात्र से सरकार कुछ नहीं कर सकती है सिर्फ कमीशनबाजी के अलावा । बाँते भी बहुत है कंप्यूटर और इंटरनेट पर विकसित तकनीक को लेकर जो किसानों को कई कोणों से उन्नत और खुशहाल बना सकते है । इसकी चर्चा फिर कभी ।

चलते-चलते –
इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन करना अब आसान हो जाएगा। वे घर बैठे-बैठे एक क्लिक कर इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकेंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में एक वेबसाइट विकसित करने जा रहा है। वेबसाइट बनने के बाद शिवभक्त काशी विश्वनाथ मंदिर की वेबसाइट पर जाकर प्रार्थना कर सकेंगे।तिरुपति बालाजी मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर और वैष्णव देवी तीर्थ के सफल ई-दर्शन से प्रेरित होकर ट्रस्ट ने भी मंदिर के दर्शन के लिए वेबसाइट विकसित करने का निर्णय लिया है ।

Saturday, October 06, 2007

घर बैठे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर

वेब-भूमि-2

वैसे तो मैं प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर आपको न्यायालय जाने से बचाये । वकील साहब का मुँह भी देखना न पड़े । घर-घाट न बिके । मन का सुकून सलामत रहे, पर ख़ुदा न खास्ता; कहीं से आपको न्याय न मिले और आप न्यायालय के शरण लेने बाध्य हैं । और इतना ही नहीं आपको सर्वोच्च न्यायालय तक का द्वार खटखटाना पड़ रहा हो । इस पर आपका कंप्यूटर यदि कहे कि मेरे आका, चिंता की कोई बात नहीं, मैं हूँ ना ! तो समझिए वह सच कह रहा है । यह अब बायें हाथ का खेल हो चुका है कि आप अपने किसी मामले को सुप्रीम कोर्ट में घर बैठे दायर कर सकते हैं । आपको पता होना चाहिए कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अक्तूबर, 2006 से सर्वोच्च न्यायालय में ई-फाइलिंग की शुरुआत हो चुकी है ।
ई-फाइलिंग का मतलब है किसी भी नागरिक द्वारा इंटरनेट के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा दायर करने की सौगात । इस कार्य के लिए वकील से मदद की कोई आवश्यकता नहीं । ई-फाइलिंग के इच्छुक व्यक्ति को मात्र इंटरनेट पर जाकर सर्वोच्च न्यायालय के वेबसाइट- http://tempweb97.nic.in/sc-efiling/login.jsp को लॉगइन कर अपना पंजीकरण कराना होगा। चलिए हम ही दोहराये देते हैं कि पंजीकरण कराने के लिए आपको क्या-क्या करना होगा-

1. सर्वोच्च न्यायालय के ई-फाइलिंग सेवा का पहली बार उपयोग करने वाले को उसमें दिए गए साईन-अप विकल्प के माध्यम से अपने नाम का पंजीकरण कराना होगा। इंटरनेट पर यह पंजीकरण मुफ्त है और कोई भी अपने नाम का पंजीकरण करा सकता है।

2. पंजीकरण कराने के लिए इंटरनेट पर दो विकल्प आपको दिखेंगे- (1) यूजर नेम अर्थात् उपयोगकर्त्ता का नाम व (2) पासवर्ड।

3. ई-फाइलिंग के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में पीड़ित व्यक्ति अर्थात् मुकदमा दायर करने के इच्छुक व्यक्ति स्वयं और अनुबंधित वकील ही मुकदमा दायर कर सकता है।

4. पंजीकरण के लिए वहाँ पर दो विकल्प उपलब्ध होंगे –(1) एडवोकेट ऑन पर्सन अर्थात् आप वकील के रूप में अपना नाम पंजीकृत कराना चाहते हैं या (2) पेटिशनर इन पर्सन अर्थात् आप साधारण व्यक्ति के रूप में अपने को पंजीकृत कराना चाहते हैं। यदि आप कोई साधारण जनता है और मुकदमा दायर कराना चाहते हैं तो आपको पेटिशनर इन पर्सन के रूप में पंजीकृत करानी चाहिए। वकील एडवोकेट ऑन रिकार्ड के रूप में अपना नाम पंजीकृत करायें। दोनों के पहले खाली स्थान बना होता है और अपने उपयोग के अनुसार उसमें माऊस की सहायता से क्लिक कर दें।

5. एडवोकेट ऑन रिकार्ड के लिए “लॉग इन कोड” उनका एडवोकेट ऑन रिकार्ड कोड होगा जबकि साधारण व्यक्ति को साइन-अप विकल्प के द्वारा अपना लॉग-इन आईडी बनानी होगी। उसके बाद पासवर्ड डालनी जरूरी होगी। एक बार लॉग-इन आईडी बन जाने के बाद भविष्य में ई-फाइलिंग के लिए उसका उपयोग अनिवार्य होगा। सफलतापूर्वक लॉग-इन करने के बाद आप अपना मुकदमा इंटरनेट के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से दायर कर सकते हैं।

6. यहाँ पर आपके सामने फिर दो विकल्प होंगे- (1) नया मुकदमा व (2) संशोधित (यह मुख्य रूप से ई-फाइलिंग के तहत पहले से ही दायर की गई मुकदमा से संबंधित है)। नया मुकदमा वाले विकल्प पर क्लिक करके आप कोई नया मुकदमा दायर कर सकते हैं। संशोधित वाले विकल्प चुनने पर आपके द्वारा पहले से दायर किसी मुकदमे में सुधार करने का मौका दिया जाएगा।

7. सर्वोच्च न्यायालय में ई-फाइलिंग के लिए शुल्क केवल क्रेडिट या डेबिट कार्ड के माध्यम से ही जमा किया जा सकता है।

भारत सरकार को धन्यवाद देना होगा कि यह फीस भी ज्यादा नहीं है । यानी कि फोलियो प्रतिपेज 1 रुपया, सर्टिफिकेशन चार्ज 10 रुपये, शीघ्रता शुल्क 5 रुपये, रजिस्ट्री हेतु डॉक शुल्क 22 रुपये, थर्ड पार्टी शुक्ल 5 रुपये मात्र पर । इसकी भी सूचना बकायदा आपको ई-मेल से भेजी जायेगी । यदि आप अपने केश की स्थिति का जायजा लेना चाहते हैं तो उसकी भी व्यवस्था दुरुस्त है । http://causelists.nic.in/sccause/index1.html पर जाकर आप कॉजलिस्ट देख सकते हैं ।

चलते-चलते-
देश के किसी भी शहर में आपका तबादला हो गया और आपको वहाँ किराये का मकान चाहिए या आप वहाँ स्थायी रूप से प्रापर्टी खरीदना चाहते हैं तो आपके लिए ही कुछ खास साइटें हैं– www.Indiaproperty.com, www.99acres.com, www. Magicbricks.com, Indiaproperties.com । ये साइटें ब्रम्हास्त्र हैं – चाहें तो आप पसंदीदा फ्लैट, बंगला आदि का चित्र भी देख सकते हैं । यहाँ आपको त्वरित ऋण सुविधा भी मिल जायेगी ।

Friday, October 05, 2007

रोजगार के द्वार तक पहुँचाता माऊस

वेब-विमर्श-01
यूँ तो कंप्यूटर रोजगार के सशक्त साधन के रूप में सर्वविदित हो चुका है पर अब उसका माऊस आपको सैकड़ों तरह के सरकारी नौकरियों और प्रायव्हेट कंपनियों मे इच्छित कैरियर्स तक पहुँचाने के लिए कटिबद्ध हो चुका है । चाहे आप किसी भी तरह के रोजगार के फ़िराक में क्यों न हों, वह भी अपनी मातृभाषा हिंदी में । यानी कि बिना अंग्रेज़ी जाने भी आप कैफे या घरेलु इंटरनेट की सहायता से दुनिया भर में रोजगार के अवसरों, परीक्षा और चयन पद्धतियों, तैयारी हेतु वांछित प्रयास और अन्य तरह की उपयोगी जानकारी पलक झपकते ही हासिल कर सकते हैं । इसे सच कर दिखाया है – श्री संजय सुमन ने और वहाँ तक पहुंचने के लिए सिर्फ आपको एक्सप्लोरर के एड्रेस बार पर सिर्फ www.careersalah.com लिखना है । कैरियर्स सलाह इंटरनेट पर रोजगार पर पहली हिंदी वेबसाइट है ।

आज का यथार्थ यही है कि रोजगार के ढेरों अवसर उपलब्ध होने के बाद भी हमारे युवा समुचित मार्गदर्शन के अभाव में तदर्थवाद के शिकार होकर अपनी योग्यता से कम स्थिति वाला रोजगार भी स्वीकार लेते हैं । कुछ तो ऐसे होते हैं कि योग्यता के बावजूद भी वांछित सफलता हस्तगत नहीं कर पाते । हमारी शैक्षणिक संस्थायें भी इतनी कारगर नहीं है कि वे अध्ययन के दौरान ही सभी छात्रों को एक समुचित रोजगार के द्वार तक पहुँचाने में मदद कर सकें । कैरियर्स सलाह नामक यह साइट ऐसी विकट परिस्थितियों से गुजरने वाले खासकर ग्रामीण प्रतिभाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हो रहा है । इस जाल-स्थल इन्हीं उद्देश्यों को लेकर संचालित है जहाँ कोई भी छात्र किसी भी कैरियर्स के बारे में निःशुल्क सलाह प्राप्त कर सकता है ।

कैरियर्स चयन से पहले नामक स्तम्भ पर जाकर सरलता से तृतीय श्रेणी से लेकर आईएएस जैसे उच्चस्तरीय शासकीय पदों पर नियुक्ति होने के विषय में सारी संभावनाओं को स्वयं आंका जा सकता है । छात्रोपयोगी स्तम्भ - असीमित रोजगार विकल्प, आगामी प्रतियोगिता परीक्षाएं, रोजगार रिक्तियाँ एवं पाठ्यक्रम, विश्वविद्यालय एवं संस्थान, विदेशों में अध्ययन, कोचिंग संस्थान का चयन, कैरियर्स पत्र-पत्रिकाएं कैरियर्स पुस्तकें आदि के सहारे विद्यार्थी या एक पढ़ा लिखा नौजवान सभी तरह की अद्यतन जानकारियों और सूचनाओं से स्वयं की तैयारी बड़े बेहत्तरीन ढंग से कर सकता है । यहाँ टाइम पास नामक कुछ खास कॉलम भी दिये गये हैं जिसमें स्वस्थ कैसे रहें, महत्वपूर्ण शब्दकोश, विश्वकोश, पत्र लेखन प्रारूप, ज्ञान गंगा, क्विज आदि रोचक और ज्ञानवर्धक हैं । इनके बारे में इतना ही कहा जाना पर्याप्त होगा कि यह जाल स्थल एक संपूर्ण कैरियर्स पत्रिका है । इस साइट की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ हिंदी की जानी-मानी कैरियर्स पत्रिका ‘प्रतियोगिता दर्पण’ के संपादकीय विभाग में प्रमुख, दैनिक आर्यावर्त के पूर्व रोजगार मंच सलाहकार व 1989 से कैरियर्स सलाहकार के रूप में सक्रिय और सफल संजय सुमन नियमित रूप से परामर्श देते हैं ।

इस जाल स्थल(website) पर जो भी छात्र एक बार पहुँचेगा, वह बार-बार पहुंचना चाहेगा । इसका कारण यहाँ रोजगार से संबंधित सभी प्रकार के साइटों तक जाकर अपने ज्ञान और जानकारी को अधिक कारगर बनाने के लिंक दिया जाना है । इस साइट की सहायता से अब तक दस हजार से अधिक शिक्षित नौजवान दुनिया भर के रोजगार अवसरों, रिक्तियों, चयन-प्रक्रिया, आवश्यक तैयारिया घर बैठे कर चुके हैं । हजारों वांछित रोजगार भी प्राप्त कर चुके हैं । अक्सर हम ऊँची डिग्री लेने के नाम पर फर्जी संस्थानों के शिकार हो जाते हैं ऐसे लोगों के लिए भी यह जाल स्थल एक मार्गदर्शक की तरह है । सच कहें तो जो नियमित रूप से पत्र-पत्रिका नहीं खरीद सकते उनके लिए बिना किसी शुल्क पर सम्यक और समस्त जानकारी देना कम चुनौती भरा नहीं पर इस जाल-स्थल के संचालन टीम इस चुनौती में खरे हैं । उस पर भी यह साइट बिना किसी विज्ञापन (कार्टून - रोजगार को छोड़कर)के संचालित है।

कुल मिलाकर यह हजारों तरह के रोजगार और शैक्षिक पाठ्यक्रम की ए टू जेड तक की जानकारी देने में सफल साइट है और इस रूप में संजय सुमन के परिश्रम की प्रशंसा की जा सकती है, मागर्दशन के नाम पर हजारों-लाखों रूपये खर्च करने वाले सरकारी संगठनों के लिए भी यह साइट एक पाठ की तरह है जिसे कम से कम हिंदी भाषी राज्य सरकारों को अपनाना चाहिए ।

चलते-चलते –
रफ़्तार (www.raftaar.com)पर कभी जाकर देखा क्या ? नहीं ना, आज ही उसे आजमा कर देखिए । यह एक महत्वपूर्ण हिंदी सर्च इंजन है । इतना ही नहीं इस जाल स्थल पर हिंदी की-बोर्ड की भी सुविधा है जिससे आप बिना हिंदी टाइप जाने मात्र देखकर मैन्युअली शब्द टाइप कर सकते हैं और वांछित जानकारी की वेब-स्थल तक क्षण भर में पहुँच सकते हैं । हिंदी में लिखने की तकनीक भी यहाँ मुफ़्त में सिखायी जाती है ।