Monday, October 22, 2007

इंटरनेट पर नक्सलवाद के खिलाफ़ पहला वैचारिक फोरम

वेब-भूमि-10

लुकीज़ क्या बला है ?
पिछले दिनों मेरे नाम छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश से एक मित्र का ई-मेल आया । उनकी समस्या है कि वे हिंदी में टाइप करना नहीं जानते किंतु चाहते हैं कि अपने रिश्तेदार को, जो इन दिनों जापान में किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी करते हैं, हिंदी में मेल करें । यानी कि उन्हें ऑनलाइन संवाद करने की कोई तकनीक चाहिए । शायद यही समस्य़ा आपकी भी हो तो चलिए इस बार हम ऐसे ही एक नये औजार या टूल्स के विषय में चर्चा करते हैं जो मेरे मित्र जैसे कई लोगों की समस्या का निदान हो ।


लूकीज़ वह सॉफ्टवेयर है जो इस समस्या का हल है । यह पूर्णतः मुफ़्त है । यानी कि इसे आप बिना किसी खर्च के डाउनलोड़ कर सकते हैं । इसे अपने कम्पयूटर पर इंस्टाल करके प्रतिष्टित कर लेने पर आप बड़ी सरलता से बिना टायपिंग जाने भी हिंदी में ई-मेल कर सकते हैं । चैटिंग कर सकते हैं । कुल मिलाकर यह एक ऑनलाइन शब्द संवाद की सुविधा मुहैया कराने वाला ऐसा उपकरण है जिसे हम ऑनलाइन संवाद भी कह सकते हैं । इतना ही नहीं यह ऑफलाइन टायपिंग कार्य भी करता है- वह भी सिर्फ़ हिंदी भाषा की देवनागरी लिपि में नहीं अपितु अंगरेज़ी सहित बांग्ला, तेलगू, मराठी, तमिल, गुजराती, कन्नड़,
मलयालम एवं पंजाबी भाषाओं का समर्थन भी है उसे ।

लूकीज मूलतः भारतीय भाषाओं का सॉफ्टवेयर है जो कि चैट,ई-मेल एवं ऑन लाईन शब्द सम्वाद प्रदान करता है, वह भी आश्चर्यचकित वास्तविक की बौर्डों के साथ। कहने का आशय है कि आपके कंप्यूटर स्क्रीन में ऐसा मार्गदर्शक की बोर्ड खुलता है जिसमें अंकित शब्द कुंजी को दबा-दबाकर आप हिंदी या अन्य किसी भारतीय भाषा में टाइप कर सकते हैं । माना कि आपको संजय द्विवेदी टाइप करना है तो आपको इन अक्षरों के की-बोर्ड पर मात्र क्लिक करते जाना है । आप जिन-जिन बटनों या की बोर्ड पर क्लिक करते जायेंगे वैसे-वैसे शब्द या वाक्य आपके द्वारा खोले गये वर्ड फाइल में अंकित होता चला जायेगा । इसे आप सेव या सुरक्षित भी रख सकते हैं । और जब चाहें अपना संदेश या लेख किसी वेब पत्रिका को भेज सकते हैं । है ना जादू । तो चलिए फटाफट इंटरनेट जोड़ कर अपना मुफ्त लूकीज़
तुरंत डाउनलोड करें। लूकीज़ ऑन लाईन आपकी मनपसंद इंटरनैट वैबसाईटों, ई-मेल एवं चैट्स को भारतीय भाषाओं के अनुरुप ढाल देगा। इसे आप www.keyboard4all.com/ नामक वेबसाइट से डाउनलोड़ कर इंस्टाल कर सकते हैं ।

गूगल सबसे बड़ी मीडिया कंपनी
सभी को पता ही है कि सर्च इंजन गूगल पर संभवत: हर तरह की जानकारी खोजी जा सकती है । इंटरनेट पर उपलब्ध तकरीबन हर तरह की जानकारी खोज निकालने वाला सर्च इंजन 'गूगल' दुनिया की सबसे बड़ी मीडिया कंपनी बन गया है । स्टॉक मार्केट के आकलन के मुताबिक गूगल ने बाकी सभी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को पीछे छोड़ दिया है और उसके शेयरों की कीमतें लगातार बढ़ती ही जा रही हैं । पिछले दिनों न्यूयार्क स्टॉक बाज़ार में गूगल के शेयरों की क़ीमत 80 अरब डॉलर तक पहुंच गई थी । यह राशि सबसे बड़ी मीडिया कंपनी मानी जाने वाली टाइम वार्नर के शेयरों की कीमत से दो अरब अधिक थी । हालांकि गूगल की सालाना बिक्री टाइम वार्नर के मुक़ाबले बहुत अधिक कम है। गूगल को सालाना 3.4 अरब डॉलर की आय होती है जबकि टाइम वार्नर को सालाना 42 अरब डॉलर की आय होती है । कुछ जानकारों का मानना है कि गूगल के शेयरों की क़ीमत कुछ ज्यादा रखी गई है और ऐसा 1990 के दशक में इंटरनेट क्रांति की शुरुआत के दौरान भी हुआ था । अन्य लोग मानते हैं कि गूगल के शेयरों की बढ़ती कीमत दर्शाती है कि आने वाले दिनों में गूगल कितना आगे जा सकती है. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में गूगल के एक शेयर की कीमत 325 से 350 डॉलर तक हो सकती है । गूगल ने दस महीने पहले ही पब्लिक कंपनी के तौर पर व्यापार करना शुरु किया था और इसी अरसे में मीडिया कंपनियों में उसकी स्थिति सबसे मज़बूत हो गई है । पिछले कई सालों से मीडिया के क्षेत्र में काम कर रही कई मीडिया कंपनियां मसलन वाल्ट डिज़नी और वायकॉम से कहीं आगे निकल गई हैं । गूगल ने पिछले साल अगस्त में जब अपने शेयरों को बाज़ार में उतारा था तो इसके एक शेयर की क़ीमत 85 डॉलर थी । गूगल की अधिकतर आय उसके सर्च इंजन पर प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों से होती है ।


नक्सलवाद के विरोध में देश का पहला वेबसाइट तैयार –
इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर के शिविरों में भले ही आदिजन कुव्यवस्था के शिकार हों । भले ही सलवा जुडूम के कर्ता-धर्ता अपने स्वार्थ से नक्सलवाद का विरोध करते हों पर पूरे विश्व में पहली बार हिंसावादियों के खिलाफ शुरू हुए आदिवासियों की इस पहली क्रांति की वैचारिक ज़मीन तैयार करने के लिए एक वेबसाइट शुरू हो चुकी है । जहाँ सलवा जुडूम आंदोलन से जुड़ी सम्यक बातें पढ़ी जा सकती हैं । इस पहल के लिए वेब साइट के संपादक सद्भावना समिति, रायपुर के तपेश जैन की भूमिका का जिक्र किया ही जाना चाहिए जिसे अंतरजाल पर
www.salvajudum.com में लॉग ऑन कर देखा-परखा जा सकता है । इसे नक्सलवाद के खिलाफ देश का पहला वैचारिक और बौद्धिक फोरम कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी । इस स्वयंसेवी प्रयास के लिए सद्भावना समिति को भी बधाई । बधाई इस बात की भी कि हिंदी के विविध विषयों पर जाल स्थलों की संख्या भी बढ़ रही है ।

Tuesday, October 16, 2007

पासवर्ड को हैकर्स से बचानेवाला नायाब सॉफ्टवेयर

वेब-भूमि-9

स्मरणशक्ति भी बड़ी नायाब चीज़ होती है । कब साथ छोड़ दे, कह नही सकते । कई बार कम्प्यूटर और इंटरनेट उपयोग कर्ता अपना आईडी और पासवर्ड ही भूल जाया करते हैं । नेट पर विभिन्न तरह के कार्य से लेकर मात्र ई-मेल का उपयोग करने वाले सामान्य से सामान्य यूजर्स भी चाहता हैं कि उसके स्वयं का आईडी और पासवर्ड्स कोई याद रख दे । इतना ही नहीं कुछ लोग अपनी कमजोरीवश हैकर्स से डरते रहते हैं कि कहीं उसका अपना पासवर्ड भी हैकिंग न हो जाये । अक्सर जब कोई बुनियादी और आवश्यक निजी जानकारी उसे संबंधित साइट के फार्म में भरना होता है तो आलस्य का अनुभव करने लगता है और सिर खुजलाने लगता है । ऐसी बहुत सारी दिक्कतों से मुक्ति दिलाने का काम अब तकनीक ने संभव कर दिखाया है । न पासवर्ड याद रखने की कवायद न ही किसी लम्बे फार्म को भरने का सिरदर्द । ऊपर से पासवर्ड और आईड़ी को हैंकर से बचाने की पूर्णतः सुरक्षा का उपहार भी । यह सारी दुनिया में रोबोफार्म के नाम से जाना जाता है ।

रोबोफ़ार्म की प्रसिद्धि के बारे में इतना ही जान लेना काफ़ी है कि उसके लांच होने के कुछ ही दिन के भीतर ही इसे दुनिया भर के उपयोगकर्ताओं द्वारा 8 मिलियन से ज्यादा बार डाउनलोड़ किया जा चुका है। सिर्फ़ इतना ही नहीं, रोबोफार्म PC Magazine Editor's Choice और CNET Download.com's के द्वारा सॉफ्टवेयर ऑफ ईयर की प्रतिष्ठा भी अर्जित कर चुका है । इसका मुफ्त वितरण और स्पाईवेयर और एडवेयर यानी कि अवांछित वायरस से मुक्त होना उसकी लोकप्रियता की खास वज़ह जो है ।

रोबोफार्म सबसे अच्छा पासवर्ड मैनेजर और वेब फार्म फिलर है जो पूरी तरह से अपने आप पासवर्ड और फार्म भर देता है। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं । रोबोफॉर्म
याद रखता है आपके पासवर्डस् और लॉग करवाता है आपको वह भी अपने आप। यानी कि स्वचालित । यह लम्बे रजिस्ट्रेशन और चेकऑउट फार्मों को सिर्फ एक क्लिक भर देता है । आपके पासवर्डों को पूर्ण सुरक्षा देने के लिए एंक्रिप्ट करता है । बेतरतीब पासवर्डों को जनरेट करता है ताकि कोई भी हैकर उसका अनुमान ही न लगा सके । यह फिशिंग से भी लड़ता है अर्थात् सिर्फ मेल खाती हुईं वेब साइटों पर पासवर्डों को भरते हुए। पासवर्डों को कीबोर्ड के बिना ही टाइप करते हुए कीलॉगर्स को हराता है । आपके पासवर्डों को, कम्प्यूटरों के बीच में कॉपी करते हुए बैकअप करता है। रोबोफॉर्म सिंक्रनाईज़ करता है पासवर्डों को कम्प्यूटरों के बीच में गुडसिंक का प्रयोग करते हुए। इसकी खासियत यह भी है कि यह इंटरनेट एक्सप्लोरर्, AOL/MSN, फायरफॉक्स जैसे बहुप्रयुक्त ब्राउजर के साथ तटस्थ: काम करता है । यदि आप तैयार हैं तो यह लीजिए पता - www.roboform.com/hi/ । लॉग ऑन होइये तो चंद मिनटों में ही ढ़ेरों समस्याओं से मुक्त हो उठिये । संशय मत करिये कि आपको ज़्यादा अँग्रेज़ी नहीं आती । यह साइट अपनी भाषा में भी है ।

चलते-चलते
रिश्वतखोरी विश्वव्यापी समस्या है । विचारक, नेतागण, पत्रकार, साहित्यकार के साथ-साथ आम आदमी भी आये दिन इससे मुक्त होने के लिए भाँति-भाँति का परामर्श देते हैं । अब कुछ ट्रेक्नोक्रेट भी इस विश्वव्यापी दानव से जूझने का मन बना चुके हैं । ऐसा लगता है उनके द्वारा सुझाये गये उसे नये उपाय को देखकर । उन्होंने प्रौद्योगिकी का सहारा लेते हुए एक नया रास्ता खोज निकाला है । संक्षेप में कहें तो ग्लोबल ऐंटी करप्शन वेबसाइट अब दुनिया भर के भ्रष्ट्राचार निवारण के लिए लांच हो चुका है ।

वॉशिंगटन के कुछ कंपनियों के एक समूह ने ऐसी वेबसाइट शुरू की है जो दुनिया भर के रिश्वतखोर अफसरों और सरकारों का ब्यौरा रखेगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के एक गैरलाभकारी समूह ट्रेस इंटरनैशनल ने कहा कि उनकी नई वेबसाइट ब्राइबलाइन डॉटओआरजी में लोग या संगठन अपना नाम जाहिर किए बिना ही रिश्वत मांगे जाने संबंधी शिकायत कर सकेंगे। अमेरिका स्थित ट्रेस इंटरनेशनल ने कहा कि उसका इरादा लोगों के नाम एकत्र करना नहीं बल्कि रिश्वत देने और लेने वालों को समझना, मामलों की जाँच करना और फिर कानूनी कार्रवाई करना होगा। लोग रिश्वत माँगे जाने की शिकायत एक ऑनलाइन फार्म के जरिए कर सकते हैं। ब्राइबलाइन साइट पर उपलब्ध इस फॉर्म में 10 सवाल होते हैं।

जो भी हो इससे भले ही रिश्वतखोरी पर प्रत्यक्षतः लगाम नहीं लगया जा सकता परंतु उसे विश्वव्यापी अपमान का भागीदार तो सिद्ध ज़रूर किया जा सकता है। प्रौद्योगिकी और विश्वग्राम की वर्तमान जीवनशैली में यह भी कम दंड़ नहीं है और हम जानते हैं ही हैं, समाजशास्त्रीय सच भी है कि अपमान बहुत बड़ा सामाजिक नियंत्रण है ।

Monday, October 15, 2007

दुनिया में हिंदी-रस घोलता रेडियो यानी सलाम नमस्ते

वेब-भूमि-8
लगता है सचमुच रेडियो की वापसी होने वाली है । भारत में भले ही यह अभी बहुत दूर है किन्तु पश्चिमी-दुनिया में रेडियो की वापसी तेजी से हो रही है । इंटरनेट के कारण रेडियो भी वैश्विक होने लगे हैं । सुखद तो यह कि इसमें भारतीय बढ़ चढकर योगदान दे रहे हैं । मैं बात कर रहा हूँ रेडियो सलाम नमस्ते की जो सारे विश्व को हिंदी के सातों रस में घोलने लगा है । अमेरिका की डलास शहर से इसे सच कर दिखाया है – चालीस वर्षीय युवा अहिंदीभाषी जयपाल रेड्डी ने । वैसे तो यह यू.एस.ए का पहला एफ एम (104.9)रेडियो स्टेशन है जो सातों दिन चौबीस घटों अपने प्रसारण के लिए चर्चित है किन्तु इंटरनेट के कारण यह समूचे विश्व में चर्चित होने लगा है । इसके सारे कार्यक्रम संपन्न भारतीय दृष्टि से प्रसारित किये जाते हैं । आखिर ऐसे रेडियो प्रसारण को दुनिया भर में प्रतिसाद न क्योंकर मिले ! प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् - चलिए और लॉग ऑन करके सुन लीजिए- www.radiosalaamnamaste.com/

रेडियो सलाम नमस्ते भाषायी विविधता को प्रोत्साहित करने वाला प्रतिष्टान है । इस मायने में वह पश्चिम की भाषायी वर्चस्ववाद का जबाब भी है । यहाँ हम हिंदी के अलावा तीन भाषाओं का आस्वाद ले सकते हैं । भविष्य में यहाँ से कई भाषाओं में प्रसारण की योजना बनायी जा रही है । कविताजंलि(प्रस्तोता- नंदलाल सिंह और आदित्यप्रकाश सिंह), गुलदस्ता, चलते-चलते(नीलम), एक गरम चाय की प्याली(अंबरीन), चाँदनी रातें(रोहित), ज़िंदगी का सफ़र (गिरीश कल्याणपुरी) आपकी सेहत(डॉ. हैदर) ऐसे लोकप्रिय कार्यक्रम हैं जिनकी प्रतीक्षा बड़ी बेसब्री से देश-विदेश के श्रोता करते हैं । शेष समय यह मनोरंजनात्मक हो जाता है । इसका भी एक कारण है - पश्चिम दुनिया में रहने वाली भारतीयों की नयी पीढ़ी हिंदी फिल्मों के बारे में जानने को अधिक उत्सुक रहता है । रेडियो सलाम नमस्ते में नये-पुराने गानों की बरसात होती रहती है । लगता है मनभावन फुहारें है मानसून की । प्रतिदिन मध्यान्ह 1.30 से 2 बजे तक समाचार प्रसारित किये जाते हैं । रेडियो सलाम नमस्ते को एक पूर्ण भारतीय रेडियो कहा जाना अनुचित नहीं होगा । क्योंकि विज्ञापन भी हिदीं में प्रसारित किया जाता है । यहाँ अन्य भारतीय भाषाओं से कोई टकराव या दुराव नहीं है बल्कि समय-समय पर पंजाबी, गुजराती आदि भाषा में भी प्रसारण किया जाता है। शायद यही कारण है कि अमेरिका का हर प्रवासी भारतीय इन रेडियो सलाम नमस्ते को दिल से सुनता है । यहाँ भारत में भी ऐसा कोई रेडियो नहीं है जो रात दिन इस तरह प्रसारण करता हो । और वह भी हिंदी में । रेडियो सलाम नमस्ते को आप लगातार सुनें तो निश्चित ही युवाओं पर संस्कृतिभ्रष्टता का आरोप लगाना भूल जायेंगे । इस रेडियो के लगभग सारी टीम सतर्क और समर्पित युवाओं की है । चाहे आप इसके दोनों वाइस प्रेजीडेंट्स को लें जिन्हें हम मोहम्मद अब्बास या अम्बरीन हसनात के नाम से जान सकते हैं । एक और प्रतिभा मोनिका शर्मा का नाम लिये बिना रेडियो सलाम नमस्ते की कहानी पूरी नहीं हो सकती । वे रेडियो पत्रिका का सम्पादन करती हैं । यह पत्रिका पूरी तरह मुफ़्त वितरित की जाती है । वे इसके साथ-साथ हैलो डलास कार्यक्रम का कुशल संचालन भी करतीं हैं । सीता की वापसी कराने वाली राम की सेना के सेनापति की तरह जुटे रहते हैं वे दोनों । सच तो ही है हिंदी की सीता इन दिनों रावण के राज्य में ही तो निर्वासित है ।

वैसे तो सारे के सारे कार्यक्रम एक आदर्श रेडियो श्रोता को बाँधे रखने में सफल हैं किन्तु जहाँ तक कवितांजलि नामक कार्यक्रम की बात है उसकी जितनी प्रशंसा की जाय उतनी कम है । यदि आप वास्तव में एक अच्छे कवि हैं तो मान कर चलिए आपके पास कभी भी हिंदीसेवी आदित्यप्रकाश सिंह का कभी भी डलास से सीधा फोन आ सकता है । उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप भारत के किसी गाँव में रहते हैं या फिर पाकिस्तान में रहते हैं । इस वैश्विक रेडियो से कविता प्रसारण होने का गौरव तो मिलेगा ही बतरस का आनंद अलग से उपलब्ध करायेगें सिंह साहब। पर आपमें यदि थोड़ा-सा भी उच्चारण दोष है तो आप बच नहीं पायेंगे उनकी पारखी नज़रों से । इतने सतर्क रहते हैं जैसा भाषाविज्ञानी रहता है । हो भी क्यों ना, उनका बचपन जो गोपाल सिंह नेपाली के सानिध्य में गुजरा है।
चलते-चलते-
माल्लपुरम् (केरल) भारत का पहला ई-जिला बन चुका है । केरल सरकार ने राज्य के एक पिछड़े जिले में विश्व के सबसे बड़े ग्रामीण वायरलेस ब्रॉडबैण्ड सेवा की स्थापना कर उसे भारत का पहला ई-साक्षर जिला में परिणत कर दिया है। इसके द्वारा लोग ई-मेल के माध्यम से अपना बिजली जमा कर सकते तथा जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह के बिल के ई-भुगतान के लिए भारतीय स्टेट बैंक को नियुक्त किया गया है। साथ ही, जिले में स्थित पुलिस केन्द्र तक अक्षय केन्द्र या सूचना कियोस्क से ई-मेल के माध्यम से अपनी शिकायत दर्ज़ करा सकते हैं।

Saturday, October 13, 2007

आया हवाई ऑपरेटिंग सिस्टम

वेब-भूमि-7

कंप्यूटर और इंटरनेट का गंभीर रूचि रखने वाले मेरे बेटे की जिज्ञासा थी – क्या बिना ऑपरेटिंग सिस्टम किसी एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर पर काम किया जा सकता है ? मैंने तब यूँ ही कहा था – यह तो नामुनकिन है । लगभग टाल-सा दिया था उसे । शायद मैं भी भारतीय टेक्नोक्रेट्स के कौशल का आंकलन नहीं कर सका था जिनके बदौलत हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि जी हाँ, अब बगैर ऑपरेटिंग सिस्टम अपने कम्प्यूटर या पीसी को हम कहीं से भी एक्सेस कर सकते हैं। और सिर्फ इतना ही नहीं किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम की फाइलों को किसी भी कंप्यूटर पर रीड़ कर सकते हैं, उनका उपयोग भी कर सकते हैं । हमारे पास इंटरनेट कनेक्शन मात्र हो । कहने का आशय तो यही कि अब हवा में होगा हमारा ऑपरेटिंग सिस्टम ।

एक कंप्यूटर उपयोगकर्ता इतना तो जानता ही है कि यदि पीसी के हार्ड डिस्क यानी कि बूटिंग डिस्क में ऑपरेटिंग सिस्टम ही न हो तो उसके सम्मुख कभी भी कमांड प्राम्ट नहीं आयेगा । कंमाड प्राम्ट नहीं आयेगा तो पीसी किसी भी उपयोग लायक नहीं रहेगा, तब वह खाली डिब्बे से ज़्यादा नज़र नहीं आयेगा । ऑपरेटिंग सिस्टम ही वह मंच है जो पीसी को काम करने योग्य बनाता है । यही कारण है कि पहले हार्ड डिस्क पर सबसे पहले ऑपरेटिंग सिस्टम (ओएस) इंस्टाल होता हैं जिसकी सहायता से किसी भी इंस्टाल किये एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर पर मनमाफ़िक कार्य किया जा सकता है । चाहे वह विडोंज हो या मैक या फिर लाइनेक्स या यूनिक्स ही क्यों न हो ।

आम पीसी उपभोक्ता यह भी जानता है कि एक आपरेटिंग सिस्टम में तैयार फाइल किसी अन्य आपरेटिंग सिस्टम वाले पीसी में कतई काम नहीं आता है । उदाहरण के तौर पर यदि विडोंज के एमएसवर्ड में तैयार डेटा या फाईल को मैकिंटोश या लिनक्स के वर्ड पर न खोला जा सकता है, न पढ़ा जा सकता है न ही उसमें संशोधन किया जा सकता है । यह सभी जानते हैं कि विभिन्न देशों में अलग-अलग तरह के ओएस(operating system) प्रचलित हैं । यहाँ तक कि एक ही देश के विभिन्न शहरों में भी समान ओएस प्रचलित नहीं है । यह भी कम अड़चन नहीं थी । इसे एक उदाहरण से समझते हैं - माना कि किसी भारतीय को किसी ऐसे देश में चाहे व्यापार के सिलसिले में हो या जॉब या किसी अन्य प्रसंग पर प्रस्तुतिकरण (Presentation) करना हो, और वहाँ के पीसी में विंडोज के स्थान पर लाइनेक्स या मैक ओएस वाली पीसी हो तो वह सीडी या पेन ड्राइव में डेटा रखने के बाद भी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह जायेगा । सब कुछ उसका धरा का धरा रह जायेगा । प्रौद्योगिकी की तेज रफ़्तार वाले इस युग में इस कंप्यूटरी बाधा को दूर करने में हो सकता है कि कई देश के टेक्नोक्रेट लगे हों पर सफलता जिसे सबसे पहले मिली है उनमें भारतीय भी हैं । इसका हल ढूँढ़ निकाला है मद्रास के सॉफ्टवेयर इंजीनियरों ने । नाम है निवियो । पता है –
www.nivio.com

यूँ तो वर्षों से ब्राउज़र के मार्फत ऑइस तरह के लिनक्स आधारित रिमोट ऑपरेटिंग सिस्टम का उपयोग की बात सुनाई देती है । कई ऐसे ऑनलाइन प्रयोग भी हो चुके हैं और कुछ तो सफल भी हो रहे हैं । (आज कम से कम 12 प्रकार के ऐसे ही ऑनलाइन ऑपरेटिंग सिस्टम प्रचलन में हैं । इसमें प्रमुख हैं -
1. Craythur (www.craythur.com) 2. Desktoptwo (www.desktoptwo.com) 3. EyeOS(www.eyeos.com) 4. Glide (www.glidedigital.com) 5. Goowy (www.goowy.com )6. Orca (www.orcaa.com)7. Purefect 8. SSOE 9. XinDESK 10. YouOS (www.youos.com) ) परंतु विंडोज़ एक्स-पी आधारित निवियो नामक यह वेब अनुप्रयोग अपने किस्म का अनोखा और अव्वल है ।

यदि आप इस ऑनलाइन आपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करने की ख्वाहिश रखते हैं तो चलिए हमारे साथ – पहले इंटरनेट से जुडिए । फिर
www.nivio.com पर लॉग आन होइये । कुछ ही क्षण मे ओएस आपके सम्मुख होगा । हो सकता है कि आपको कुछ ज्यादा इंतजार करना पडे । ओएस के आते ही स्वयं को रजिस्टर कीजिए । रजिस्टर्ड होते ही आप प्रयोगकर्ताओं की कतार में सम्मिलित हो जायेंगे । तब वह खुद ब खुद आपको आमंत्रित करेगा कि आइये मेरे आका ! मैं आपकी सेवा के लिए तैयार हूँ । जब एक बार डेस्कटॉप को एक्सेस कर लेंगे तो आप मुक्त और आराम से कई तरह के प्रोग्रामों पर कार्य कर सकते हैं जैसे – वर्ड, एक्सेल, पॉवरपाइंट आदि-आदि । शुरु में आपको इस आनलाइन आपरेटिंग सिस्टम पर कार्य करने के लिए एक माह का समय मिलेगा । इसके बाद आपको निवियो कंपनी को प्रत्येक माह 399 रुपया अदा करने होंगे जो सुविधा को देखते हुए कम ही है । विद्यार्थियों के लिए यह शुल्क मात्र 199.50 रुपये प्रति माह है । निवियो को अदा की गई राशि के एवज में आपको एक पैकेज मिलेगा जिसमें 5 जीगाबाइट आनलाइन स्टोरेज, संपूर्ण विंडोज डेस्कटाप, एडाब एक्रोबेट रीडर8, आइट्यून्स और फॉयरफॉक्स मिलेगा । इसी साइट पर माइक्रोसाफ्ट ऑफिस 2003 भी कुछ शुल्क के साथ उपयोग हेतु उपलब्ध है । यदि आप पैसा बचाना चाहते हैं तो वैकल्पिक तौर पर वहाँ ओपन ऑफिस सुइट पर काम कर सकते हैं ।

निवियो की विशेषता यह भी है कि वह सुरक्षा सेवा भी प्रदान करती है – यहाँ की सभी फाइलें वायरस और स्पैम मुक्त होती है । फिलहाल तो यह बीटा संस्करण(टेस्टिंग) की स्थिति में है । आम जन के इस्तेमाल के लिए जारी नहीं किया गया है । उपयोगिता की दृष्टि से यद्यपि यह हिंदी में काम करने वालों के लिए किसी खास काम का नहीं है किन्तु भविष्य में यहाँ वांछित एप्लीकेशनों को भी इंस्टाल करके उपयोग किया जा सकता है । खास कर उन लोगों के लिए जो लैपटाप का बोझ भी नहीं उठाना चाहते । या फिर लैपटाप भी खरीदना नहीं चाहते । यहाँ अपना बैकअप भी सुरक्षित रखा जा सकता है । यहाँ अतिमहत्वपूर्ण दस्तावेज भी सबकी नजर बचाकर रखा जा सकता है । फिलहाल और क्या चाहिए । आइये स्वागत करें इस विडोंज आधारित विश्व के प्रथम ऑनलाइन ऑपरेटिंग सिस्टम का ।




Thursday, October 11, 2007

तकनीक से तकदीर बदलने की सरकारी कोशिश

वेब-भूमि-6
यह समय कंप्यूटर और इंटरनेट से दूर भागने का नहीं है । इसमें अरुचि का मतलब सामाजिक सरोकारों से अरुचि भी है । यही कारण है कि ई-तकनीक के रूप में ई-शासन जनता के लिए कारगर नहीं बन पा रहा है और कुछ कालेमन वाले इसका भी इस्तेमाल अपने गंदे कॉलर को चमकाने के लिए सर्फ एक्सेल की तरह करने में तुले हुए हैं, आये दिन उन्हें फ़र्जी वैश्विक रिकार्ड बनाते देखा जा सकता है । और इसीलिए ई-शासन योजना का आदर्श लक्ष्य - “सभी सरकारी सुविधाएँ एवं सेवाओं को आम जनता के द्वार पर उपलब्ध कराना” के स्थान पर सभी सरकारी सुविधाओं को अपनी झोली में डाल लेना सिद्ध हो रहा है। यदि हम इधर भी ध्यान दें, उसकी व्यापक शक्ति को आजमायें, औरों को भी इससे जोड़ें तो निश्चय ही यह आम गरीब, पिछड़े और साधन संपन्नहीन नागरिकों के लिए भ्रष्ट्राचार से मुक्ति का कारगर साधन बन सकती है । ई-शासन के लंगड़ाने के पीछे फिलहाल जनता रुचि संवर्धन और तकनीकी ज्ञान का अभाव ही है परंतु ई-शासन की तकनीक तकदीर बदलने की कला बन सकती है ।
देश की सबसे उपेक्षित परिवार- “ग्रामीण जनता” को लाभान्वित कराने के उद्देश्य से कंप्यूटर आधारित ई-शासन परियोजना की शुरुआत की गई है ताकि सूचना-प्रौद्योगिकी को आम आदमी के लिए लाभप्रद बनाया जा सके । इसी दिशा में राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र(एनआईसी) काफी लंबे समय से सभी स्तरों पर तकनीक एवं नेटवर्किंग से संबंधित सरकारी ज़रूरतों को पूरा करने में सुविधाएँ प्रदान करने को प्रतिबद्ध है। नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेन्टर केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, केन्द्र शासित प्रदेशों, जिला एवं अन्य सरकारी निकायों को नेटवर्क आधार एवं ई-शासन सहायता प्रदान कर रहा है। यह सरकारी योजनाओं को लागू करने, सरकारी सेवाओं के स्तर में सुधार करने एवं राष्ट्रीय व स्थानीय सरकारों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए राष्ट्रव्यापी संचार नेटवर्क उपलब्ध कराने के साथ बहुत सारे संचार व सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएँ भी उपलब्ध करा रहा है। भारत में एनआईसी की प्रमुख उत्पाद एवं सेवाएँ -


1. एगमार्कनेट-
यह देश में विपणन सूचना के आदान-प्रदान के लिए कृषि उत्पाद के थोक बाज़ार को आपस में जोड़ने का कार्य करता है। यह पोर्टल कृषक विपणन से संबंधित सरकारी एवं गैर सरकारी संस्था, किसान, व्यापारी, निर्यातक, नीति निर्माता, शैक्षणिक संस्थान आदि को सशक्त बनाने वाली अभिकरण के रूप में उभरा है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://agmarknet.nic.in को लॉग करें।

2. भूईयान-
भू-अभिलेख कंप्यूटरीकरण-वेब आधारित यह सॉफ्टवेयर सुविधा भू-अभिलेख से संबंधित सूचनाएँ ऑनलाइन उपलब्ध कराती है। सामान्य रूप से भूमि से संबंधित ये सूचनाएँ किसानों द्वारा, बैंकों से ऋण प्राप्त करने के लिए, प्राप्त किया जाता है। और इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से ये सूचनाएँ वे राज्यभर में फैले कियोस्क के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। इस सॉफ्टवेयर की एक और विशेषता यह है कि प्रशासक (एडमिस्ट्रेटर) एक स्थान पर बैठे-बैठे भूमि की क्षेत्रवार स्थिति, किसानवार स्थिति एवं किसी खास भूमि की राजस्व संग्रह की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://eglrc.nic.in को लॉग करें।

3. ई-पोस्ट -
ई-पोस्ट सॉफ्टवेयर का प्रयोग कर पोस्ट ऑफिस के माध्यम से देशभर में कहीं भी सूचनाएँ भेजी या प्राप्त की जा सकती है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://indiapost.nic.in को लॉग करें।

4. परीक्षा परिणाम पोर्टल -
वेबसाइट पर परीक्षा परिणाम प्राप्त करने का यह प्रथम स्रोत है। यह वेबसाइट विभिन्न सरकारी अभिकरणों द्वारा संचालित शैक्षणिक, प्रवेश परीक्षा एवं भर्त्ती परीक्षा से संबंधित परिणाम ऑनलाइन उपलब्ध कराता है। इस वेबसाइट पर प्रकाशित प्रमुख परीक्षा परिणाम हैं- केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की 10 वीं व 12 वीं का परीक्षा परिणाम, राज्य स्कूल बोर्ड, विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग, मेडिकल, एमबीए, सीए आदि हैं। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://results.nic.in को लॉग करें।

5. ज्यूडिस
ज्यूडिस विभिन्न न्यायालयों में दायर मुकदमों एवं उसपर आये निर्णयों का एक विस्तृत ऑनलाइन पुस्तकालय की तरह कार्य करता है। इस पर आप भारत के सर्वोंच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा सुनाये गये निर्णयों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://www.judis.nic.in को लॉग करें।

6. रूरल मार्केट -
इस सॉफ्टवेयर का उपयोग ग्रामीण लोगों एवं कलाकारों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन प्रयास एवं प्रदर्शन को सशक्त करने के लिए किया जाता है। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://ruralbazar.nic.in को लॉग करें।

एनआईसी द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे अन्य विभिन्न उत्पाद एवं सेवाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://offerings.nic.in/products or http://offerings.nic.in/egovsearchres.asp को लॉग करें।

7निर्णय सूचना तंत्र (ज्यूडिस) -
ज्यूडिस विभिन्न न्यायालयों में दायर मुकदमों एवं उसपर आये निर्णयों का एक विस्तृत ऑनलाइन पुस्तकालय की तरह कार्य करता है। इस पर आप भारत के सर्वोंच्च न्यायालय एवं विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा सुनाये गये निर्णयों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए-
http://www.judis.nic.in को लॉग करें।

चलते-चलते -
केन्द्र सरकार द्वारा विगत दिनों ई-तैयारी के क्षेत्र में अग्रणी राज्य का मान्यता देने के बाद अब केन्द्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ को ई-शासन के क्षेत्र में उत्कृष्ट पहल के लिए के लिए कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया से सर्वश्रेष्ठ ई-शासन राज्य का पुरस्कार मिला है। पुरस्कार समिति ने राज्य में चलाये जा रहे ई-सम्पर्क परियोजना (भारत सरकार द्वारा गोल्डेन आइकॉन अवार्ड से सम्मानित) एवं जन सम्पर्क परियोजना (समाज के लिए सूचना-प्रौद्योगिकी) की भी सराहना की।

Wednesday, October 10, 2007

अमेरिका में पाणिनी –ब्रिटेन में लेखनी

वेबभूमि -5


चौंकिए नहीं । अमेरिका अब धीरे-धीरे हिंदी की ताकत को स्वीकारने लगा है। वहाँ आये दिन हिंदी भाषा के माध्यम से भारत को समझने के नये-नये तरीके तलाशे जा रहे हैं । यदि ऐसा न होता तो वहाँ के एक कुलाधिपति शास्त्री जे सी फिलिप इस दिशा में नहीं आ झँपाते । वैसे वे भारतीय मूल के ही हैं । उन्होंने हाल ही में हिन्दी चिट्ठों एवं जालस्थलों में उप्लब्ध सामग्री की खोज हिन्दी में करने के लिये सारथी का वृहद खोज-यंत्र "नाचिकेत" (
www.Sarathi.info) की शुरूआत की है ।

नाचिकेत में हिन्दी के 1000 से अधिक जाल-स्थल इसमें शामिल कर दिये गये हैं, एवं अगले कुछ दिनों में सारे ज्ञात हिन्दी जालस्थल इसमें जोड दिये जायेंगे । जाल-स्थल सारथी/नाचिकेत के सम्पादकों के द्वारा चुने/जोडे जाते हैं एवं इन चुने हुवे जाल-स्थलों की खोज गूगल द्वारा होती है । अत: खोजियों को सही जानकारी तुरंत उपलब्ध हो जाती है व प्राप्त फल में अनावश्यक जानकरी आपका समय भी नष्ट नहीं करती । हिन्दी खोज एवं अनुसंधान के लिये अब कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है ।

चलिए जानते हैं ये शास्त्री जे सी फिलिप के बारे में कि ये करते क्या हैं ? एक समर्पित लेखक, अनुसंधानकर्ता, एवं हिन्दी-सेवी हैं. उन्होंने भौतिकी, देशीय औषधिशास्त्र, और ईसा के दर्शन शास्त्र में अलग अलग विश्व्वविद्यालयो से डाक्टरेट किया है । आजकल वे पुरातत्व के वैज्ञानिक पहलुओं पर अपने अगले डाक्टरेट के लिये गहन अनुसंधान कर रहे हैं । शास्त्रीजी बताते हैं - उनका बचपन मध्य प्रदेश के ग्वालियर मे बीता है, जहां उन्होंने कई स्वतंत्रता सेनानियों से शिक्षा एवं प्रेरणा पाई थी । इस कारण उन्होंने अपने जीवन में राजभाषा हिन्दी की साधना और सेवा करने का प्रण बचपन में ही कर लिया था। उनका मानना है कि यदि हम भारतीय संगठित हो जायें तो सन २०२५ से पहले हिन्दुस्तान एक विश्व-शक्ति बन जायगा। फिर से एक सोने की चिडिया भी बन जायगा। इस चिट्‍ठे में वे इस विषय से संबंधित लेख प्रस्तुत करेंगे।

वैज्ञानिक विषयों के अतिरिक्त उन्होंने जाने-माने अध्यापकों की देखरेख में दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों का भी अध्ययन किया है। वे इन सभी विषयों पर आप के प्रश्नों का स्वागत करेंगे, और उनका जवाब इस चिट्‍ठे मे देंगे। प्रश्न पूछने के लिये या तो उनको ईमेल भेजें (जिसका पता मुख्य पेज पर दहिनी ओर दिया गया है), या इस चिट्‍ठे मे हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणी के साथ अपना प्रश्न भी जोड दें।
फिलिप साहब ने हिंदी की मानकता के लिए कमर कस ली है – पाणिनि बनाकर । पाणिनि हिन्दी में मानक एवं सरल/सहज शब्दों की कोई कमी नहीं है। पाणिनि का लक्ष्य है हर कार्य के लिये सरल/सहज मानक शब्द सुझाना जिससे कि हिन्दी बोलते/लिखते समय अंग्रेजी शब्दों पर हमारा आश्रय कम हो। यदि आप में से कोई हिंदी प्रेमी चाहता है कि तो अपने सुझाव पाणिनी को भेज सकता है उनका पता है
-Panini@iicet.com

हस्तलिखित पाठ्य को पढ़ेगा कम्प्यूटर

कंप्यूटर क्या-क्या नहीं कर सकता । कोई भी वास्तविक मूल्याँकन नहीं कर सकता । भविष्यवाणी नहीं कर सकता । आप ही जान लीजिए ना । अब वह हस्तलिखित और मुद्रित सामग्री को भी बाँच सकता है । ऍच पी ने एक टूलकिट - यानी लाइब्रेरी निकाली है जो कि भारतीय भाषाओं के हस्तलिखित और छपे हुए पाठ्य को पढ़ने में कम्पयूटर को मदद करेगा। यह मुक्तस्रोत है - जीपीऍल और ऍमआईटी अनुमतिपत्र के तहत उपलब्ध है। क्योंकि यह मुक्तस्रोत है, और साथ ही एक बड़ी कम्पनी का इसमें हाथ भी है, अतः सम्भवतः देवनागरी और अन्य लिपियों का ओसीआर - ऑप्टिकल कॅरॅक्टर रीडर - बनाने में काफ़ी मदद करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि आप छपी हुई पुस्तकों को - जैसे कि रामायण, गोदान आदि - बिना टङ्कित किए, केवल स्कॅनर की मदद से अपने कम्प्यूटर पर यूनिकोडित रूप में पा सकेंगे - इस टूलकिट का इस्तेमाल करके बने तन्त्रांशों की मदद से, और वे मुफ़्त भी होंगे।

चलते-चलते –
भारत में भले ही कोई हिंदी सेवी या प्रौद्योगिकी को हिंदी की श्रीवृद्धि के लिए उपयोग में लाने में विश्वास करने वाले बुद्धिजीवी कोई साहित्यिक साइट विगत एक दो वर्ष में भले ही शुरू न कर सके हों पर ब्रिटेन में प्रवासी साहित्यकार शैल अग्रवाल ने एक हिंदी पत्रिका ऑनलाइन निकाल कर अपने देश राग की तीव्रता का परिचय दिया है । हाल ही में उन्होंने एक साहित्यिक पत्रिका प्रांरभ की है –
http://www.lekhni.net । इस पत्रिका का लोगो है - सोच और संस्कारों की साँझी धरोहर । आखिर क्यों न हो । लेखिका जो हैं । यहाँ आप कहानी, कविता, व्यंग्य, ग़ज़ल कई विधा की सामग्री पढ़ भी सकते हैं और छपने को भेज भी सकते हैं । वैसे यह द्विभाषी पत्रिका है । हिंदी के अलावा यहाँ कुछ सामग्री अँग्रेजी में भी रखी जा रही है । कई पृष्ठों में टायपिंग की त्रुटियाँ हैं जो हिंदी पत्रिकाओं की कमजोरी को ही रेखांकित करती है । हड़बड़ी में प्रकाशन लगता है हिंदीवालों का स्थायी चरित्र बन चुका है । कई पत्रिका के संपादकों को, खासकर अंतरजालीय पत्रिकाओं में, विधा तक की परख नहीं है, वहाँ लेखनी में विभिन्न विधाओं के साथ अब तक तो न्याय हुआ है । वैसे तो अंतरजाल की कई पत्रिकाओं में संपादकीय इस तरह से गायब है जैसे गधे के सिर से सिंग, पर लेखनी के संपादक को बधाई दी जानी चाहिए कि वह लगातार लेखनी को अपने संपादकीय के साथ प्रस्तुत कर रही हैं । संपादकीय के बगैर संपादन या पत्रिका रचनाओं का कलेक्शन मात्र बन जाती है और आज के तकनीकी सुविधाओं के दौर में रचनाओं का कलेक्शन साधारण काम हो चुका है । लेखनी के हर अंक में संपादकीय का जाना संपादक की दृष्टि, गंभीरता और विचारवान् होने का प्रमाण भी है । अक्टूबर-07 के अंक में गाँधी जी की महत्ता पर लिखा गया संपादकीय पठनीय है ।

Tuesday, October 09, 2007

इंटरनेट पर मूल्य आधारित पत्रकारिता यानी लोकमंच डॉट कॉम

वेब-भूमि-4
इंटरनेट को कभी भारतीय संस्कृति में विपक्षी भूमिका के रूप में देखा जा रहा था । कुछ विचारक और समाजशास्त्री इसे भारतीयता की मूल आत्मा के विरूद्ध वैश्वीकरण के हथकंडों के रूप में बताते नहीं थकते थे । पर लगता है ऐसे लोगों को इंटरनेट अब जीवन का जरूरी चीज जैसा नज़र आने लगा है । शायद यही कारण है कि देश के प्रमुख संस्कृति विशेषज्ञ और कवि अशोक बाजपेयी ने इंटरनेट के लिए अंतरजाल शब्द भी गढ़ा जो अब सर्वमान्य भी हो चुका है । अंतरजाल अब राष्ट्रीयता के पुरोधाओं के लिए भी अवांछवीय नहीं रहा । सच तो यह है कि उन्हें राष्ट्रीयता को बचाने के कारगर उपायों में अंतरजाल की भूमिका भी दिखाई देने लगी है । वे बकायदा उसे एक अस्त्र के रूप में लेने हैं या फिर अंतरजाल को हम भारतीयों के लिए एक सकारात्मक दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं । जो भी हो, वे मीडिया के प्रक्षेत्र में इसे आजमाते हुए वैकल्पिक मीडिया करार दे रहे हैं । भारत में ऐसे ही वैकल्पिक मीडिया की शुरूआत की है – लोक मंच (www.lokmanch.com)नामक वेबसाइट ने । वैसे यह ऐसे विचारधारा के उन हिमायती लोगों के लिए अचरज का विषय भी हो सकता है कि आखिर कॉम(.com) जिसका मतलब कामर्शियल होता है, ही क्यों चुना गया जबकि ओआरजी (.org) लेने का विकल्प तो बचा ही था और जिसका मतलब संगठन होता है । खैर....

यद्यपि पत्रकारिता पर आधारित इस वेबजाल से राष्ट्रीय विचारधारा के कुशल वक्ता के.एन. गोविन्दाचार्य प्रत्यक्षः नहीं जुड़े हैं तथापि उनका प्रभाव इस वेबजाल पर प्रतिबिंबित होता है । क्योंकर भी न हो । नई दिल्ली से प्रकाशित ‘भारतीय पक्ष’ नामक पत्रिका भी तो यही कर रही है जो मूल रूप में वैश्वीकरण के वैकल्पिक चिन्तन को मान्यता प्रदान करती है। ज्ञातव्य हो कि भारतीय पक्ष प्रसिद्ध विचारक के.एन. गोविन्दाचार्य के कुशल मार्गदर्शन में संचालित पत्रिका है । इसके सम्पादक विमल कुमार सिंह और उप-सम्पादक हर्षित जैन हैं। भारत की सज्जन शक्ति को संगठित करते हुये विभिन्न श्रेत्रों में असंगठित रूप में चलने वाली स्वदेशी पद्धतियों और कलाओं को संगठित करने के उद्देश्य से श्री गोविन्दाचार्य के नेतृत्व में चलने वाला राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन और भारत विकास संगम इस पत्रिका के माध्यम से वैचारिक पुष्टता प्राप्त कर रहा है। भारतीय पक्ष’ के अलावा लोकमंच नेटवर्क से डेनियल पाइप्स , संस्कृति सरगम तथा हिन्दू विश्व आदि भी संबंद्ध हैं । ज्ञातव्य हो कि डेनियल पाइप्स मध्य-पूर्व एवं राजनीति के विशेषज्ञ अमेरिका के निवासी हैं और विश्व के अग्रणी विद्वानों में अपना स्थान रखते हैं। इस्लामी राजनीति और मध्य-पूर्व पर पिछले दो दशकों से लगातार लिखते आ रहे डेनियल पाइप्स सम्प्रति मिडिल ईस्ट फोरम संस्था के निदेशक भी हैं। उनके लेखों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है। संस्कृति सरगम नई दिल्ली से प्रकाशित व मूल रूप में देश के भाषाई समाचार पत्रों को गुणवत्तापरक सामग्री प्रदान करने का माध्यम है। इस पाक्षिक पत्रिका के सम्पादक अमिताभ त्रिपाठी हैं। यह पाक्षिक पत्रिका देश के 1,000 से अधिक भाषाई समाचार पत्रों को प्रति पक्ष सामग्री प्रदान करती है। विश्व हिन्दू परिषद की प्रमुख पत्रिका हिन्दू विश्व पाक्षिक पत्रिका है। इसके सम्पादक ओंकार भावे हैं। इस पत्रिका का प्रसार मुख्य रूप से विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं और धर्मप्रिय लोगों के मध्य है।

जो राष्ट्रीयता यानी भारतीयता के आग्रही हैं और फ्रीलांसिग करना चाहते हैं । पत्रकारिता जिनके लिए जनता के सुख-दुःख का मिशन है वे लोकमंच से किसी भी क्षण जुड़कर अपनी अभिव्यक्ति को वैश्विक कर सकते हैं । कदाचित् यह हिंदी की मूल संस्कृति को भी समूची दुनिया के लिए अभिव्यक्त करने जैसा होगा । लोकमंच से जुड़ने में तकनीकी दृष्टि से भी कोई खास कठिनाई नहीं दिखाई देती । जो युनिकोड़ फोंट में लिखना –पढ़ना जानते हैं वे किसी भी क्षण यहाँ अपने निजी मेल के सहारे मुफ्त पंजीकृत हो कर लिख सकते हैं । लिखने के लिए यहाँ कई स्तंभ तय किये गये हैं इनमें
स्वदेश, परदेश, बहस, ब्लॉगर्स पार्क, आस्था, गिल्ली-डंडा, राशन-पानी, ज्ञान विज्ञान, विविधा, चिट्ठी-चोखा आदि प्रमुख हैं । स्वदेश और परदेश स्तम्भ के अंतर्गत देश एवं विदेश के किसी कोने में रहकर भी वहाँ से संबधित प्रमुख समाचार भेज कर प्रकाशित कराया जा सकता है । लोकमंच में प्रारंभ से ही इस्लामाबाद, लदन, न्यूयार्क, काठमांडू, पयुरटो रिको आदि विदेशी शहरों के समाचार वहाँ के फ्रीलांसरों द्वारा भेजे जा रहे हैं और वे बाकायदा प्रकाशित भी हो रहे हैं । प्रिंट मीडिया में किसी समाचार, विचार या संपादकीय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए अलग से पत्र लिखना होता है जबकि वेबमीडिया में यह तत्क्षण संभव है । जाहिर हैं लोकमंच में भी उसी क्षण समाचार या विचार या आलेखों को पढ़कर प्रतिक्रिया लिखी जा सकती है जो स्थायी रूप से प्रकाशित रहता है ।

ओपन सोर्स से उपलब्ध जुमला नामक सॉफ्टवेयर में निर्मित यह जाल स्थल केवल पत्रकारों के लिए ही नहीं अपितु साहित्यिक पत्रकारिता से संबंद्ध तथा साहित्यकारों के लिए भी उपयोगी नज़र आता है । यहाँ किताबघर नामक स्तम्भ के अंतर्गत 8 विविध उप स्तम्भों में रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को वैश्विक बना सकते हैं । ये 8 विषय है – कविता, कहानी, नाटक, संस्मरण, समीक्षा, हास्य-व्यंग्य, साहित्य विविधा, साहित्य समाचार हैं ।

इस जाल स्थल की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के डैनियल पाइप्स जैसे प्रमुख स्तम्भकार भी एक नियमित लेखक के रूप में संबंद्ध हैं । अपूर्व कुलश्रेष्ठ भी इस जाल स्थल के नियमित लेखक हैं ।

ऐसे समय में जब मीडिया अब मिशन नहीं अपितु कमीशन केंद्रित होता जा रहा है, लोकमंच जैसे वेब मीडिया मंचों की स्थापना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है । इसे मात्र हिंन्दूत्व के प्रचार-प्रसार का माध्यम नहीं माना जा सकता है । आज जबकि मीडिया जनता के घर की चिंता नहीं अपने बाजार की चिंता में व्याकुल है । जाहिर है बाजार मूलक वैश्वीकरण की शक्तियाँ अधिकतम मुनाफे के लिये विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित समाचार पत्रों को खरीदकर या उनमें अपनी पूँजी बढ़ाकर देश में हर क्षेत्र में व्याप्त होने की व्यापक योजना पर कार्यरत हैं । यदि यह योजना सफल हुई तो संस्कृति, भाषा, मूल्य व परम्पराओं को सहेज पाना किसी के लिये संभव न हो सकेगा । वैश्वीकरण के इस प्रवाह को रोकने का एकमात्र मार्ग है । मूल्य आधारित पत्रकारिता को जीवित रखना । ऐसे में आवश्यक है कि वैकल्पिक राष्ट्रवादी पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करते हुये वैश्वीकरण की बाजार मूलक शक्तियों से प्रेरित तथाकथित मुख्यधारा की पत्रकारिता को अप्रासंगिक बनाया जाये ।

जैसा कि लोकमंच के उद्देश्यों में भी कहा गया है कि वर्तमान समय में जबकि वैश्वीकरण में अन्तर्निहित बाजार मूलक शक्ति ने मूल्यों को नये सिरे से परिभाषित कर उसे मुनाफे से जोड़ दिया है और संस्कृति, भाषा, परम्परा को क्षीण कर उसे विकृत और क्षत-विक्षत करने का प्रयास आरम्भ कर दिया है, ऐसे में पत्रकारिता में भारतीय तासीर, संस्कृति, भाषा, परम्परा और मूल्यों को सहेज कर रखने वाले पत्रकारों को राष्ट्रीय क्षितिज पर लाने का समय आ गया है ।

यह अब एक सच की तरह व्याख्यातित और प्रमाणित हो चुका है कि वैश्वीकरण केवल आर्थिक चिन्तन नहीं है यह एक जीवन दर्शन है जो मुनाफे को ही जीवन मूल्य मानता है. ऐसे में इस बात का संकट उत्पन्न हो गया है कि समाज को दिशा देने वाली पत्रकारिता को अब बाजार में एक वस्तु बनाकर प्रस्तुत कर दिया जायेगा और उसका दायित्व जनशिक्षण और संस्कार निर्माण के स्थान पर स्वयं को बेचना हो जायेगा । ऐसे कठिन दौर में लोकमंच जैसे वेब मीडिया के साथ जुड़ना मूल्य आधारित पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना होगा । पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह देश का तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया राष्ट्रीय भावना का प्रकटीकरण करने में असमर्थ रहा है उसे देखते हुए लोकमंच वालों पर विश्वास करने में कोई सांपदायिकता नज़र नहीं आती ।

Monday, October 08, 2007

किसानों का नया सखा है इंटरनेट

वेब-भूमि-3

इस वक्त मैं अपने शहर के एकाकी कक्ष में कंप्यूटर के सम्मुख बैठे-बैठे इंटरनेट पर जूझ रहा हूँ पर खिड़की से साफ-साफ दिखाई देती मानसून की पहली फूहार से मुझे धरती पुत्र याद आने लगा है। शहर निवासी स्वयंभू धरतीपुत्र नहीं । प्रायोजित विज्ञप्तियों वाला धरतीपुत्र भी नहीं बल्कि वह माटी का बेटा जो सारे हिन्दुस्तान के लिए अन्न उपजाता है । गरीब के घर जनमता है, गरीबी की गोद पलता है और गरीब लोगों के कांधे में सवार होकर एक दिन चुपचाप श्मशान की ओर चल देता है – लहलहाते खेतों को अकेले छोड़कर । खिलखिलाते खलिहान को उदास छोड़कर ।

मेरे मन में एकाएक प्रश्न उभरता है – आखिर यह नई प्रौद्योगिकी किसानों के जीवन में कितनी खुशियाँ ला सकता है ? कंप्यूटर और इंटरनेट की क्षमता का आंकलन करने पर बुद्धि से जबाब मिलता है तो प्रसन्नता से भर उठता हूँ । राहत महसूसता हूँ कि सिर्फ शहरी लोगों के लिए नहीं अपितु गाँवो की ज़िंदगी में भी क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में ये दोनों चीजें कारगर हैं। मित्रवत् हैं । सखाभाव है इनमें । बशर्ते कि उन्हें किसानों तक पहुँचाया जाय । किसानों को उस स्तर पर शिक्षित किया जाय।

यदि गाँव के चौपालों तक कंप्यूटर और इंटरनेट पहुँच गया तो समझिए कि वह कृषि की सारी उन्नत तकनीक को जान सकता है । विकसित तौर-तरीकों को आत्मसात कर सकता है । इसके लिए वह घर वैठे भारतीय किसान का सूचना केंद्र यानी कि http://www.krishisewa.com/ पहुँच सकता है । भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र के जाल स्थल (www.icar.org.in/hindi)में जाने की देरी है । वहां वह मौसम वार फसल, बीजोपचार, रोग एवं निदान, मंडी भाव की जानकारी और ज्ञान मुफ्त में प्राप्त कर सकता है । यह धान, गेहूँ, आलू प्याज से लेकर मशरूम, सर्पगंधा, बायोडीजल आदि के उत्पादन, विपणन, बिक्रय की वांछित पाठ पढ़ाने वाली नियमित पाठशाला है । यहाँ हर किसान फसल विज्ञान, बागवानी, प्राणी विज्ञान, कृषि अभियांत्रिकी, प्राकृतिक संसाधन, मछली पालन आदि की व्यापक जानकारी हासिल कर सकता है । देश-विदेश के कृषि समाचार का अतिरिक्त आनंद । उसके अपने सांसद लोकसभा में लफ्फाजी करते हैं या उसकी आवाज़ उठाते हैं यह की चुगली भी यह साइट बकायदा करता है । विधायक महोदय विधान सभा में सोते रहते हैं या कुछ उसके हित पर बहस करते हैं या नही । यह भी किसान यहाँ से जान सकता है । किसानों के जीवन से जुड़े सारे समाचार के लिए नेट पर चर्चित साइट है – किसान समाचार डॉट कॉम ।

हमारे कुछ कृषक खासकर उन्नत किसान जो अंग्रेजी पढ़ना-लिखना जानते हैं वे राष्ट्रीय बायोडायवर्सिटी अथारिटी (www.nbaindia.org)और अनेक प्रांसगिक और महत्वपूर्ण साइट में जाकर अपनी जानकारी को दूरुस्त कर सकते हैं । कृषक आयोग, भारत सरकार भी हिंदी में साइट चलाता है। जहाँ (www.krishakayog.gov.in)कृषि नीति से लेकर अन्य शासकीय कल्याणकारी योजनाओं के बारे में जान सकते हैं ।

नवोदित राज्य झारखंड के कृषि प्रशासकों की प्रशंसा की जानी चाहिए कि वे केंद्रीय सहयोग से अपने राज्य के किसानों को प्रौद्योगिकी से जोड़कर विकसित करने में ईमानदार दिखाई देते हैं । www.bitmesra.net में आगे बढ़ने से बहुत सारी नयी और वैज्ञानिक जानकारी कृषकों को मिलने लगती है जैसे- भूमि संरक्षण, शुष्क भूमि तकनीक, मिट्टी एवं नमी परीक्षण, मानसून देर से आने से फसल प्रवंधन, बोआई की तैयारी आदि।

जो किसान जड़ी-बूटी यानी कि औषधीय फसल अपनाना चाहते हैं उनके लिए महत्वपूर्ण गुरु हो सकता है -www.hrdiua.org । उत्तरांचल का यह साइट भी हिंदी भाषा में है । हर्बल राज्य बनाने का सपना देखने वाले राज्य सरकारों के लिए यह वेबसाइट एक ई-पाठ की तरह है । शैक्षणिक एवं अन्य संस्थानों की पारस्परिक क्रिया के लिए रक्षा कृषि शोध प्रयोगशाला की भी शैक्षिक साइट(www.drdo.org) कम महत्वपूर्ण नहीं जहाँ अंतर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय संस्थान तथा कृषि विश्वविद्यालयों की सम्यक जानकारी उपलब्ध है । हरियाणा सोनीपत के जिला प्रशासन और कृषि विभाग भी इंटरनेट पर इन दिनों कृषकों का ध्यान आकृष्ट कर रहा है । sonipat.nic.in कृषकों के लिए मार्गदर्शिका की तरह है । बिहार के राजेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, वैशाली अर्थात् kvkvaishali.bih.nic.in का भ्रमण कम फायदेमंद नहीं जहाँ फलों के उत्पादन के बारे में आवश्यक सूचनाएं और जानकारियाँ उपलब्ध हैं । हाल ही मैं इंडिया डेव्हलपमेंट गेटवे नामक संस्था ने कृषि पर एक समृद्द जास स्थल विकसित की है यहाँ कृषि ऋण, किसान क्रेडिट कार्ड, रेशम, भेड़, बकरी, खरगोश, सुअर पालन, आदि की से संबंधित जिज्ञासाओं का शमन किया जा सकता है । यहाँ ग्रामीण ऊर्जा विषयक काफी पठनीय सामग्री भी है । इस जाल स्थल का पता है - www.indg.in/agriculture । जो घर बैठे पर्यावरण के बारे में नियमित पत्रिका बाँचना चाहते हैं उनके लिए पर्यावरण डाइजेस्ट नामक पत्रिका ऑनलाइन मौजूद है – www.paryavaran-digest.blogspot । वैसे तो यह ब्लॉग तकनीक पर है पर सामग्री को सुचारूपूर्वक रखा गया है ।

भारतीय लोक में भी कृषि संबंधी प्रणालियों, संकेतों और उपचारों का दर्शन होता है । इस प्रसंग में हम घाघ को नहीं बिसार सकते । घाघ की कृषि कहावतों को भारत सरकार ने सजाकर रखा है और http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/dharti.htm में धऱती और बीज नामक एक महत्वपूर्ण किताब भी आनलाइन है जो जाने माने लेखक राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी द्वारा लिखी गयी है जो अपनी कोटि की हिंदी में पहली पुस्तक है। कहने को कृषकों के लिए कई जगह है नेट में पर वे या तो अंग्रेजी में हैं या फिर अपठनीय फोंट में हैं ।

ज़मीन का नक्शा कंप्यूटर में
कंप्यूटर और इंटरनेट किसानों के अर्थशास्त्र को भी बदलने वाला है । ये दोनों जटिल जमीन विवाद हल करने की दिशा में भी कारगर हो सकते हैं जिसकी शुरुआत उत्तरप्रदेश के राजस्व परिषद ने जमीनों के कई दशक पुराने नक्शे डिजिटल करने की प्रक्रिया के रूप में कर चुकी है । लखनऊ, गौतमबुद्ध नगर और गाजियाबाद में यह काम पूरा हो चुका है और इस साल सत्रह अन्य जिलों में योजना लागू हो जायेगी। इसके बाद इन बीस जिलों के लोग अपनी दशकों पुरानी मिल्कियत न सिर्फ देख सकेंगे बल्कि तहसील दफ्तर से जमीन के नक्शे का कंप्यूटर प्रिंट साधारण फीस पर खरीद भी सकेंगे। अब वहाँ लोगों को नक्शों के लिए तहसीलों के चक्कर लगाने नहीं पड़ते हैं। भूमि विवाद हल करने में सहुलियत हो रही है । बताया जा रहा है कि वहाँ डेढ़ करोड़ खतौनी कंप्यूटर से तैयार हो चुके हैं । लेखपाल की खुशामद करने से छुटकारा दिलाने में प्रौद्योगिकी का यह चमत्कार कम नहीं है । किसान हितैषी होने का दंभ भरने वालों को सोचना चाहिए कि कैसे प्रौद्योगिकी का सहारा लेकर उन्हें भ्रष्टाचार से मुक्त किया जा सकता है ? कलेक्टर और तहसीलदार साहब के घर दुध पहुँचाने की आड़ में किसानों से हजारों रुपये डकारने वाले पटवारियों और आरआई से गरीब आदिवासी कृषकों को कब मुक्ति मिल सकेगी ? लालफीता शाही और रिश्वतखोरी के पंजे से भूमिपुत्र को कैसे बचाया जा सकता है और इसमें कंप्यूटर और इंटरनेट कैसे उपयोगी साबित हो सकता है इस दिशा में कौन-कौन से कारगर कदम उठाये जा सकते हैं ? किसानों के नाम पर करोड़ों का कंप्यूटर खरीद लेने मात्र से सरकार कुछ नहीं कर सकती है सिर्फ कमीशनबाजी के अलावा । बाँते भी बहुत है कंप्यूटर और इंटरनेट पर विकसित तकनीक को लेकर जो किसानों को कई कोणों से उन्नत और खुशहाल बना सकते है । इसकी चर्चा फिर कभी ।

चलते-चलते –
इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन-पूजन करना अब आसान हो जाएगा। वे घर बैठे-बैठे एक क्लिक कर इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकेंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में एक वेबसाइट विकसित करने जा रहा है। वेबसाइट बनने के बाद शिवभक्त काशी विश्वनाथ मंदिर की वेबसाइट पर जाकर प्रार्थना कर सकेंगे।तिरुपति बालाजी मंदिर, सिद्धि विनायक मंदिर और वैष्णव देवी तीर्थ के सफल ई-दर्शन से प्रेरित होकर ट्रस्ट ने भी मंदिर के दर्शन के लिए वेबसाइट विकसित करने का निर्णय लिया है ।

Saturday, October 06, 2007

घर बैठे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर

वेब-भूमि-2

वैसे तो मैं प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर आपको न्यायालय जाने से बचाये । वकील साहब का मुँह भी देखना न पड़े । घर-घाट न बिके । मन का सुकून सलामत रहे, पर ख़ुदा न खास्ता; कहीं से आपको न्याय न मिले और आप न्यायालय के शरण लेने बाध्य हैं । और इतना ही नहीं आपको सर्वोच्च न्यायालय तक का द्वार खटखटाना पड़ रहा हो । इस पर आपका कंप्यूटर यदि कहे कि मेरे आका, चिंता की कोई बात नहीं, मैं हूँ ना ! तो समझिए वह सच कह रहा है । यह अब बायें हाथ का खेल हो चुका है कि आप अपने किसी मामले को सुप्रीम कोर्ट में घर बैठे दायर कर सकते हैं । आपको पता होना चाहिए कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अक्तूबर, 2006 से सर्वोच्च न्यायालय में ई-फाइलिंग की शुरुआत हो चुकी है ।
ई-फाइलिंग का मतलब है किसी भी नागरिक द्वारा इंटरनेट के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा दायर करने की सौगात । इस कार्य के लिए वकील से मदद की कोई आवश्यकता नहीं । ई-फाइलिंग के इच्छुक व्यक्ति को मात्र इंटरनेट पर जाकर सर्वोच्च न्यायालय के वेबसाइट- http://tempweb97.nic.in/sc-efiling/login.jsp को लॉगइन कर अपना पंजीकरण कराना होगा। चलिए हम ही दोहराये देते हैं कि पंजीकरण कराने के लिए आपको क्या-क्या करना होगा-

1. सर्वोच्च न्यायालय के ई-फाइलिंग सेवा का पहली बार उपयोग करने वाले को उसमें दिए गए साईन-अप विकल्प के माध्यम से अपने नाम का पंजीकरण कराना होगा। इंटरनेट पर यह पंजीकरण मुफ्त है और कोई भी अपने नाम का पंजीकरण करा सकता है।

2. पंजीकरण कराने के लिए इंटरनेट पर दो विकल्प आपको दिखेंगे- (1) यूजर नेम अर्थात् उपयोगकर्त्ता का नाम व (2) पासवर्ड।

3. ई-फाइलिंग के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में पीड़ित व्यक्ति अर्थात् मुकदमा दायर करने के इच्छुक व्यक्ति स्वयं और अनुबंधित वकील ही मुकदमा दायर कर सकता है।

4. पंजीकरण के लिए वहाँ पर दो विकल्प उपलब्ध होंगे –(1) एडवोकेट ऑन पर्सन अर्थात् आप वकील के रूप में अपना नाम पंजीकृत कराना चाहते हैं या (2) पेटिशनर इन पर्सन अर्थात् आप साधारण व्यक्ति के रूप में अपने को पंजीकृत कराना चाहते हैं। यदि आप कोई साधारण जनता है और मुकदमा दायर कराना चाहते हैं तो आपको पेटिशनर इन पर्सन के रूप में पंजीकृत करानी चाहिए। वकील एडवोकेट ऑन रिकार्ड के रूप में अपना नाम पंजीकृत करायें। दोनों के पहले खाली स्थान बना होता है और अपने उपयोग के अनुसार उसमें माऊस की सहायता से क्लिक कर दें।

5. एडवोकेट ऑन रिकार्ड के लिए “लॉग इन कोड” उनका एडवोकेट ऑन रिकार्ड कोड होगा जबकि साधारण व्यक्ति को साइन-अप विकल्प के द्वारा अपना लॉग-इन आईडी बनानी होगी। उसके बाद पासवर्ड डालनी जरूरी होगी। एक बार लॉग-इन आईडी बन जाने के बाद भविष्य में ई-फाइलिंग के लिए उसका उपयोग अनिवार्य होगा। सफलतापूर्वक लॉग-इन करने के बाद आप अपना मुकदमा इंटरनेट के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से दायर कर सकते हैं।

6. यहाँ पर आपके सामने फिर दो विकल्प होंगे- (1) नया मुकदमा व (2) संशोधित (यह मुख्य रूप से ई-फाइलिंग के तहत पहले से ही दायर की गई मुकदमा से संबंधित है)। नया मुकदमा वाले विकल्प पर क्लिक करके आप कोई नया मुकदमा दायर कर सकते हैं। संशोधित वाले विकल्प चुनने पर आपके द्वारा पहले से दायर किसी मुकदमे में सुधार करने का मौका दिया जाएगा।

7. सर्वोच्च न्यायालय में ई-फाइलिंग के लिए शुल्क केवल क्रेडिट या डेबिट कार्ड के माध्यम से ही जमा किया जा सकता है।

भारत सरकार को धन्यवाद देना होगा कि यह फीस भी ज्यादा नहीं है । यानी कि फोलियो प्रतिपेज 1 रुपया, सर्टिफिकेशन चार्ज 10 रुपये, शीघ्रता शुल्क 5 रुपये, रजिस्ट्री हेतु डॉक शुल्क 22 रुपये, थर्ड पार्टी शुक्ल 5 रुपये मात्र पर । इसकी भी सूचना बकायदा आपको ई-मेल से भेजी जायेगी । यदि आप अपने केश की स्थिति का जायजा लेना चाहते हैं तो उसकी भी व्यवस्था दुरुस्त है । http://causelists.nic.in/sccause/index1.html पर जाकर आप कॉजलिस्ट देख सकते हैं ।

चलते-चलते-
देश के किसी भी शहर में आपका तबादला हो गया और आपको वहाँ किराये का मकान चाहिए या आप वहाँ स्थायी रूप से प्रापर्टी खरीदना चाहते हैं तो आपके लिए ही कुछ खास साइटें हैं– www.Indiaproperty.com, www.99acres.com, www. Magicbricks.com, Indiaproperties.com । ये साइटें ब्रम्हास्त्र हैं – चाहें तो आप पसंदीदा फ्लैट, बंगला आदि का चित्र भी देख सकते हैं । यहाँ आपको त्वरित ऋण सुविधा भी मिल जायेगी ।

Friday, October 05, 2007

रोजगार के द्वार तक पहुँचाता माऊस

वेब-विमर्श-01
यूँ तो कंप्यूटर रोजगार के सशक्त साधन के रूप में सर्वविदित हो चुका है पर अब उसका माऊस आपको सैकड़ों तरह के सरकारी नौकरियों और प्रायव्हेट कंपनियों मे इच्छित कैरियर्स तक पहुँचाने के लिए कटिबद्ध हो चुका है । चाहे आप किसी भी तरह के रोजगार के फ़िराक में क्यों न हों, वह भी अपनी मातृभाषा हिंदी में । यानी कि बिना अंग्रेज़ी जाने भी आप कैफे या घरेलु इंटरनेट की सहायता से दुनिया भर में रोजगार के अवसरों, परीक्षा और चयन पद्धतियों, तैयारी हेतु वांछित प्रयास और अन्य तरह की उपयोगी जानकारी पलक झपकते ही हासिल कर सकते हैं । इसे सच कर दिखाया है – श्री संजय सुमन ने और वहाँ तक पहुंचने के लिए सिर्फ आपको एक्सप्लोरर के एड्रेस बार पर सिर्फ www.careersalah.com लिखना है । कैरियर्स सलाह इंटरनेट पर रोजगार पर पहली हिंदी वेबसाइट है ।

आज का यथार्थ यही है कि रोजगार के ढेरों अवसर उपलब्ध होने के बाद भी हमारे युवा समुचित मार्गदर्शन के अभाव में तदर्थवाद के शिकार होकर अपनी योग्यता से कम स्थिति वाला रोजगार भी स्वीकार लेते हैं । कुछ तो ऐसे होते हैं कि योग्यता के बावजूद भी वांछित सफलता हस्तगत नहीं कर पाते । हमारी शैक्षणिक संस्थायें भी इतनी कारगर नहीं है कि वे अध्ययन के दौरान ही सभी छात्रों को एक समुचित रोजगार के द्वार तक पहुँचाने में मदद कर सकें । कैरियर्स सलाह नामक यह साइट ऐसी विकट परिस्थितियों से गुजरने वाले खासकर ग्रामीण प्रतिभाओं के लिए अत्यंत लाभप्रद सिद्ध हो रहा है । इस जाल-स्थल इन्हीं उद्देश्यों को लेकर संचालित है जहाँ कोई भी छात्र किसी भी कैरियर्स के बारे में निःशुल्क सलाह प्राप्त कर सकता है ।

कैरियर्स चयन से पहले नामक स्तम्भ पर जाकर सरलता से तृतीय श्रेणी से लेकर आईएएस जैसे उच्चस्तरीय शासकीय पदों पर नियुक्ति होने के विषय में सारी संभावनाओं को स्वयं आंका जा सकता है । छात्रोपयोगी स्तम्भ - असीमित रोजगार विकल्प, आगामी प्रतियोगिता परीक्षाएं, रोजगार रिक्तियाँ एवं पाठ्यक्रम, विश्वविद्यालय एवं संस्थान, विदेशों में अध्ययन, कोचिंग संस्थान का चयन, कैरियर्स पत्र-पत्रिकाएं कैरियर्स पुस्तकें आदि के सहारे विद्यार्थी या एक पढ़ा लिखा नौजवान सभी तरह की अद्यतन जानकारियों और सूचनाओं से स्वयं की तैयारी बड़े बेहत्तरीन ढंग से कर सकता है । यहाँ टाइम पास नामक कुछ खास कॉलम भी दिये गये हैं जिसमें स्वस्थ कैसे रहें, महत्वपूर्ण शब्दकोश, विश्वकोश, पत्र लेखन प्रारूप, ज्ञान गंगा, क्विज आदि रोचक और ज्ञानवर्धक हैं । इनके बारे में इतना ही कहा जाना पर्याप्त होगा कि यह जाल स्थल एक संपूर्ण कैरियर्स पत्रिका है । इस साइट की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहाँ हिंदी की जानी-मानी कैरियर्स पत्रिका ‘प्रतियोगिता दर्पण’ के संपादकीय विभाग में प्रमुख, दैनिक आर्यावर्त के पूर्व रोजगार मंच सलाहकार व 1989 से कैरियर्स सलाहकार के रूप में सक्रिय और सफल संजय सुमन नियमित रूप से परामर्श देते हैं ।

इस जाल स्थल(website) पर जो भी छात्र एक बार पहुँचेगा, वह बार-बार पहुंचना चाहेगा । इसका कारण यहाँ रोजगार से संबंधित सभी प्रकार के साइटों तक जाकर अपने ज्ञान और जानकारी को अधिक कारगर बनाने के लिंक दिया जाना है । इस साइट की सहायता से अब तक दस हजार से अधिक शिक्षित नौजवान दुनिया भर के रोजगार अवसरों, रिक्तियों, चयन-प्रक्रिया, आवश्यक तैयारिया घर बैठे कर चुके हैं । हजारों वांछित रोजगार भी प्राप्त कर चुके हैं । अक्सर हम ऊँची डिग्री लेने के नाम पर फर्जी संस्थानों के शिकार हो जाते हैं ऐसे लोगों के लिए भी यह जाल स्थल एक मार्गदर्शक की तरह है । सच कहें तो जो नियमित रूप से पत्र-पत्रिका नहीं खरीद सकते उनके लिए बिना किसी शुल्क पर सम्यक और समस्त जानकारी देना कम चुनौती भरा नहीं पर इस जाल-स्थल के संचालन टीम इस चुनौती में खरे हैं । उस पर भी यह साइट बिना किसी विज्ञापन (कार्टून - रोजगार को छोड़कर)के संचालित है।

कुल मिलाकर यह हजारों तरह के रोजगार और शैक्षिक पाठ्यक्रम की ए टू जेड तक की जानकारी देने में सफल साइट है और इस रूप में संजय सुमन के परिश्रम की प्रशंसा की जा सकती है, मागर्दशन के नाम पर हजारों-लाखों रूपये खर्च करने वाले सरकारी संगठनों के लिए भी यह साइट एक पाठ की तरह है जिसे कम से कम हिंदी भाषी राज्य सरकारों को अपनाना चाहिए ।

चलते-चलते –
रफ़्तार (www.raftaar.com)पर कभी जाकर देखा क्या ? नहीं ना, आज ही उसे आजमा कर देखिए । यह एक महत्वपूर्ण हिंदी सर्च इंजन है । इतना ही नहीं इस जाल स्थल पर हिंदी की-बोर्ड की भी सुविधा है जिससे आप बिना हिंदी टाइप जाने मात्र देखकर मैन्युअली शब्द टाइप कर सकते हैं और वांछित जानकारी की वेब-स्थल तक क्षण भर में पहुँच सकते हैं । हिंदी में लिखने की तकनीक भी यहाँ मुफ़्त में सिखायी जाती है ।

Sunday, July 08, 2007

न्यूयार्क में ताली बजाने की क़ीमतः डेढ़ लाख रुपये


हिंदी का 8 विश्वकुंभ अमेरिका के न्यूयार्क में 13 से 15 जुलाई तक होने जा रहा है । हिंदीसेवी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने अपने डेरों से प्रस्थान भी करने लगे हैं । बताया जा रहा है कि विश्व के 128 देशों से हिंदी सेवी शरीक होने वाले हैं पर पिछले दिनों जिस तरह की गतिविधियाँ नज़र आयी हैं उससे सम्मेलन की सफलताएं संदेहास्पद और संदिग्ध जान पड़ती हैं ।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस आयोजन को तौलें तो यह शहर एवं महानगर निवासी तथाकथित रचनाकारों का जमावड़ा मात्र सिद्ध होने वाला है । शायद ही दूरदराज के उन हिदीं सेवियों को इसमें जोड़ा गया है या उसे जोड़े जाने का वास्तविक उद्यम किया गया है जो अपनी मौन साधना से हिंदी को समृद्ध कर रहे हैं । विडम्बना कहिए कि किसी भी राज्य सरकारों ने हिंदी-प्रियता का परिचय देते हुए अपने स्तर पर इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया जिससे सम्मेलन की बात गाँव-कस्बों के मौन साधकों तक पहुँच पाती । बात सिर्फ इतनी भी नहीं है, आयोजकों ने हिंदी के वरिष्ठ रचनाकारों, तकनीकी विशेषज्ञों, भाषाशास्त्रियों, फिल्मकारों, गायको, प्रकाशकों को जोड़ना उचित नहीं समझा जिनकी बदौलत हिंदी भारत से अन्यत्र पुष्पित-पल्लवित हो रही है ।

इस वैश्विक आयोजन में तलवे चाटने वाले हिंदी के भांड कवियों और मंच में मसखरी करने वालों को खास तवज्जो दिया है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा कि न्यूयार्क में सम्मेलन के दौरान दैनिक कार्यवृति की रिपोर्टिंग चुटकुलेबाज कवि करने वाले हैं। हमने तो यही सुना है । होगा क्या हम नहीं कह सकते । क्या पत्रकारिता जगत के रिपोर्टरविहीन हो गया यह महादेश ? कितनी शर्म की बात है कि एक तथाकथित अखिल भारतीय मंचीय कवि के युवती पीए को सिर्फ इसलिए खर्च करके आयोजक ले जा रहे हैं कि वह डीटीपी कार्य जानती है और वह वहाँ अपने बॉस का हाथ बटायेगी । (ऐसा कार्य आपमें से और कोई जानते हों कृपया दुखी न होवें ।)आयोजकों के शायद इसी और ऐसी गैर गंभीर क्रियाकलापों और हरकतों के कारण नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, केदारनाथ सिंह और मंगलेश डबराल जैसे दिग्गज लेखकों ने विरोध स्वरूप सम्मेलन में हिस्सा लेने से साफ मना कर दिया है। हरीश नवल, प्रेम जनमेजय, कमल कुमार जैसे बड़े रचनाकारों ने भी इसी तर्ज में स्वयं को अलग कर लिये हैं, जो लगातार कई सम्मेलनों में शरीक होते रहे हैं और जिन्होंने विदेशों में हिंदी का परचम फहराया है । इनमें हिन्दी के प्रख्यात कवि केदारनाथ सिंह का नाम भी है, जिन्होंने सम्मेलन को व्यर्थ बताते हुए इसमें भाग लेने से मना कर दिया है। केदारनाथ सिंह ने तो कहा है कि यह सम्मेलन व्यर्थ है और इसका कोई प्रयोजन नहीं है।

यह प्रमाणित तथ्य है कि विदेश मंत्रालय और अमेरिकन एंबेसी के मध्य कोई तालमेल नहीं रहा है । सच तो यह है कि भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से ऐसे कोई प्रयास ही किये ही नहीं गये जिससे पंजीकृत प्रतिभागियों को वांछित वीजा बनाने में सरलता और सुविधा होती । इससे सबसे बड़ी हानि यह हुई कि प्रख्यात लोग सम्मेलन में शरीक होने से वंचित हो गये हैं और पंचम-षष्ठम श्रेणी के उन शौकिया लेखकों को 10-10 साल तक का वीजा मिल गया है जिन्हें हिदीं से कोई खास लेना देना नहीं और जो सम्मेलन के बहाने न्यूयार्क मात्र घूमने-फिरने जा रहे हैं। ऐसे लोग अमेरिका के गुन गा रहे हैं – क्यों भी न गायें। इसी बहाने ‘अमेरिका रिटर्न’ कहलाने का मौका जो मिलेगा उन्हें । आयोजकों में अदूरदर्शिता और आयोजकीय व्यवस्था के अभाव के कारण आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मुम्बई से जाने वाले प्रतिनिधिमंडल के 12 सदस्यों वीजा प्राप्त करने से वंचित रह गये हैं । उन्हें इस आधार पर वीजा देने से इनकार कर दिया है कि उन्होंने अमेरिका के बाहर सामाजिक,आर्थिक और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में पर्याप्त कार्य नहीं किया है। क्या यह मुंबई के साहित्यकारों और हिंदी सेवियों के लिए अपमानजनक नहीं है। इतना ही नहीं विश्वप्रसिद्ध टेक्नोक्रेट और युवा वैज्ञानिक जगदीप डांगी को भी अमेरिकन वीजा से वंचित कर दिया गया है जिसके द्वारा विकसित साफ्टवेयर खरीदने कभी अमेरिकन कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी स्वयं उनके दरवाजे तक जा पहुँची थी ।

विश्व हिदी सम्मेलन को अर्थशास्त्रीय दृष्टि से देखें तो आयोजकों अर्थात् भारत सरकार ने जिस तरह से प्रतिभागिता का मापदंड़ निर्धारित किया है वह हिंदी के वास्तविक आराधकों और सेवकों के लिए दुष्कर है । एक से डेढ़ लाख खर्च किये बिना वहाँ जाने की कल्पना नहीं की सकती । यह अलग बात है कि आप पहुँच भी गये तो आपको केवल ताली ही बजानी है। क्योंकि विमर्श सत्र में आपको कुछ कहने की कोई अनुमति तो मिली नहीं है - आयोजकों की ओर से । इस बीच भारत सरकार ने राज्य सरकारों को लेखकों को सहयोग करने हेतु लिखकर छुट्टी कर ली है । अब राज्य सरकार की मर्जी कि वे अपने राज्य के हिंदी सेवियों को वहाँ हिंदी की आवाज़ बुलंद करने भेजें या नहीं । आप उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। कुछ राज्य सरकारें बकायदा अपने राज्य से प्रतिनिधि मंडल भेज रही हैं जिसमें सिर्फ उनके विचारधाराओं के पांप्लेट्स लिखने वाले ही सम्मिलित हैं । कुछ राज्य सरकारों में वहाँ के अधिकारियों की मूर्खता, तानाशाही और स्वयं अमेरिका यात्रा करने के अति लालच के कारण वहाँ साहित्यकार विश्व हिंदी सम्मेलन में जाने से वंचित रह गये हैं, उन्हें फूटी-कौड़ी तक नसीब नहीं हो सका है । इस वैश्विक आयोजन से कुछ राज्यों को तो कुछ भी नहीं लेना देना - हिदीं चाहे जहाँ जाये (भाड़ तो नहीं कह सकता ना) । अब आयोजकीय धर्म के निर्वहनकर्ताओं को कौन समझाये कि सच्चे और ईमानदार हिंदी सेवी और साहित्यकारों का अफसरानों या नेता-मंत्रियों से चोली-दामन का साथ तो होता नहीं जो ऐन-केन प्रकारेण विज्ञापन आदि से राशि जुटा ही लें । बात छोटी-सी है पर यही इस आयोजन के उद्देश्यों की विश्वसनीयता का संकट है । पर आयोजकों को इस बात के लिए दाद देनी होगी कि उन्होंने विश्व हिदीं सम्मेलन का दरवाजा सबके लिए खोल दिया । चाहे टेटकू राम जाये या फिर टेकचंद या फिर टी. रामाराम । इसे ही तो प्रजातांत्रिक मूल्य के लिए खुलापन कहते हैं ।

इन दिनों विश्व हिंदी सम्मेलन की जो सूचनात्मक वेबसाइट विश्व भर में दिखायी जा रही है उसमें सारी जानकारी है पर वहाँ इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि वहाँ किन महान हिंदी सेवकों(?) का सारा खर्च आयोजक (विशेषतः भारत सरकार या विदेश मंत्रालय)वहन कर रहे हैं जिन 60 रचनाकारों का न्यूयार्क के वैश्विक मंच में उनकी उल्लेखनीय सेवा के लिए प्रतीकात्मक सम्मान होने जा रहा है वे कौन लोग हैं ? उनका चयन किसने किया ? किस आधार पर चयन किया गया ? और तो और वहाँ कौन-कौन किस विषय पर आलेख पढ़ेगा? इसकी भी जानकारी अब तक नहीं दी जा सकी है । वैसे इन चीजों को वेबसाइट में भी अवश्य दिया जाना चाहिए ताकि आयोजन में खुलापन आ सके । नये लोग जान सकें कि आखिर वे पैरामीटर क्या होते जिनके बल पर रचनाकार को विश्वस्तर पर सम्मानित किया जाता है । तब जब हम भारतीय बड़े जोर-जोर से सूचना का अधिकार का डंका पीट रहे हैं इन सब बातों का उल्लेख अवश्य विश्व को बताया जाना था । ठीक उसी तरह जैसे अन्य सभी बातों को वेबसाइट में दिया गया है । जो भी हो, इस मौके पर बालेंदू दाधीच की तारीफ की जा सकती है कि उनके कारण कम से कम ब्लॉगरों जैसे दो कोड़ी के लेखकों को कम से कम भारत सरकार के वेबसाइट में तवज्जो तो दिया गया। उनमें से कोई न्यूयार्क सम्मेलन में नहीं बुलाये गये तो क्या !

जैसे कि सूचना मिल रही है ऐसे मौकों पर ग़ज़ल गायन और सितार वादन तो हो पर कबीर, तुलसी, रहीम, मीरा के पदों को गा-गाकर हिंदी का साम्राज्य विस्तार करने वाले कलाकारों की सुधि ही न रखी जाय। यह कहाँ का न्याय है ? जबकि आज भी सारे विश्व में यही हिंदी के नाम पर सर्वमान्य और प्रसिद्ध हैं । हिंदी को वैश्विक सिर्फ शाब्दिक ही नहीं बना रहे हैं या नहीं बना सकते, इसमें लोकगायकों, लोकनर्तकों, तकनीक सृजनकर्ताओं, शोधकर्ताओं आदि को भी याद किया जाना चाहिए जो अनेक माध्यमों से हिंदी को संसार भर में पहुँचा रहे हैं । हाँ, यह बात अलग है कि इसका जिक्र इस वेबसाइट में नहीं किया गया है और सभी बातों को जिक्र किया जाना वहाँ सम्भव भी नहीं है ।

यूँ तो इस वेबसाइट की सारी बातें पारदर्शी हैं पर जो नहीं हैं उसे लेकर विश्व भर में फैले हिंदी सेवियों के मन में कोई प्रश्न उठे तो उसका कोई जबाब यहाँ नहीं है । माना कि हिंदी को विश्व भाषा का दर्जा दिलाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर हिंदी सेवी भी उत्तरदायी हैं और उनका विमर्श-सम्मेलन में स्वतःस्फूर्त होकर पहुँचना भी लाजिमी हो सकता है किन्तु क्या ऐसे लोगों तक ऐसी सूचना पहुँचाने का कोई व्यवहारिक प्रयास किया गया ? शायद नहीं। खासकर उन दूरदराज के हिंदी सेवियों, साहित्यकारों को इस आयोजन की कोई सूचना नहीं है जो संसाधन से लैश शहर से दूर किसी गाँव-कस्बों में बसते हैं और हिंदी के विकास में तिकड़मी साहित्यकारों से कहीं अधिक योगदान भी दे रहे हैं । कुल मिलाकर यह महानगरों के हिंदी विशेषज्ञों(?) और लखपति हिंदी सेवियों को न्यूयार्क में अधकचरा विमर्श करने या फिर बिना अवसर जाने करतल ध्वनि करने का त्यौहार जैसा लगता है ।

भारत सरकार को यदि छोड़ भी दें तो अमेरिका के आयोजकों, हिंदी सेवी संगठनों, हिंदी प्रेमी धनबली-प्रवासी भारतीयों में से किसी को भी हिंदी संस्कृति का मुख्य लक्षण यानी अतिथि देवो भवः का मूलमंत्र याद नहीं आ सका । यदि ऐसा होता तो वे कम से कम घर फूँक कर न्यूयार्क पहुँचने वाले दीवाने साहित्यकारों के सिर छुपाने के लिए कोई निःशुल्क छत जरूर ढूँढ लेते । तीन दिनों के दाना-पानी का पैसा भी पंजीयन के नाम पर पहले नहीं मांग लिया जाता । यानी कि प्रतिभागियों से भोजन पानी का पैसा भी वे बटोर चुके हैं । ऐसे में आम हिंदीभाषी कैसे विश्वास कर लें कि विदेशों में हिंदी के प्रति दीवानगी है, वहाँ हिंदी शिक्षण के प्रति आग्रह है, वे भी संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा के रूप में हिंदी को देखने में उत्सुक हैं ? हम मानते हैं कि वे भी हमसे पूछ सकते हैं कि क्या उन्होंने विश्व हिंदी सम्मेलन का सारा खर्च करने का ठेका ले रखा है तो फिर प्रश्न उठता है कि आखिर क्यों हिदीं के वास्तविक सेवक जो मूलतः मध्यम वित्तीय वाले होते हैं वहाँ गिरवी रखकर जायें । तर्क तो यह भी दिया जा सकता है कि आखिर किसने कहा कि ये वहाँ जायें ? तो भी साफ-साफ यह अर्थ निकलता है कि वहाँ विमर्श या चिंतन नहीं होना है । केवल मेला लगना है और मेले में वही घूमने जाता है जिसके पास पेट-पाट के बाद कुछ बच जाता है ।

ऐसे मौकों पर हिंदी सेवी मन सशंकित हो तो क्या यह अतिरिक्त है या एकतरफा ही है कि क्या ऐसे आयोजनों या आयोजकों के बल पर विश्व मानव परिवार की भावना सुदृढ़ हो सकेगी ? राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की उपलब्धि पर सार्थक चर्चा संभव है ? विश्व हिंदी विद्यापीठ की स्थापना कब तक हो सकेगी ? विश्व भाषा हिदीं के उत्थान हेतु सचिवालय की स्थापना कैसे होगी ? विभिन्न देशों में हिंदी पीठों की स्थापना कौन करेगा ? विश्वव्यापी भारतवंशियों से हिंदी को संपर्क भाषा बनाने का अनुरोध कौन करेगा और उसे कौन मानेगा ? विभिन्न स्तरों पर हिंदी पठन-पाठन की व्यवस्था किसके बल पर होगी ? हिंदी के वैश्विक प्रचार-प्रसार, अनुप्रयोग तथा प्रयोजनों पर अनुसंधान करने कौन आगे आयेगा ? आदि-आदि। जो भी हो, यह सम्मेलन कोई विश्व उत्सव न बन जाये इस पर निगरानी जरुरी है। व्यक्तिगत तौर पर और आयोजकीय नैतिकता से भी ।

क्या इस 8 वे विश्व हिंदी सम्मेलन से उसके मूल उद्देश्यों यानी कि - अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी की भूमिका को उजागर करना,विभिन्न देशों में विदेशी भाषा के रूप में हिंदी के शिक्षण की स्थिति का आकलन करना और सुधार लाने के तौर-तरीकों का सुझाव देना, हिंदी भाषा और साहित्य में विदेशी विद्वानों के योगदान को मान्यता प्रदान करना, प्रवासी भारतीयों के बीच अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिंदी का विकास करना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास और संचार के क्षेत्रों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिंदी का विकास आदि की लेकर हो रहे वैश्विक आयोजन की सफलता संदिग्ध नहीं हो गई है ?


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Monday, June 04, 2007

नक्सलवाद का विकृत चेहरा


क्सलवाद भटका हुआ आंदोलन है । यह अधैर्य की उपज है । इसकी बस्ती में मानवता की कोई बयार नहीं बहती । यह पशुयुग की वापसी का उपक्रम है जिसके मूल में है हिंसा और सिर्फ हिंसा। यह जन के लुटे हुए सत्व के लिए नहीं अपितु हितनिष्ट ताकतों की राजनैतिक सत्ता के लिए संघर्ष मात्र है, जिन्हें वस्तुतः जनता के कल्याण से कोई वास्ता नहीं है । तथाकथित समाजवादी मूल लक्ष्यों की साधना से न अब किसी कमांडर को लेना देना है न वैचारिक सूत्रधारों को । वह पथभ्रष्ट और सिरफिरे लोगों की राक्षसी प्रवृत्तियों और हिंसक गतिविधियों का दूसरा नाम है । रहे होंगे उसके अनुयायी कभी सताये हुए लोगों के देवता, अब तो उनका दामन आदिवासियों, गरीब और अहसाय लोगों के खून से रंग चुका है । उसके मेनोफेस्टो में अब दीन-दुखी, पीडित-दलित, मारे-सताये हुए पारंपरिक रूप से शोषित समाज के प्रति न हमदर्दी की इबारत है, न ही समानता मूलक मूल्यों की स्थापना और विषमतावादी प्रवृतियों की समाप्ति के लिए लेशमात्र संकल्प शेष बचा है । वह स्वयं में शोषण का भयानकतम् और नया संस्करण बन चुका है । वह अभावग्रस्त एवं सहज, सरल लोगों के मन-शोषण नहीं बल्कि तन-शोषण का भी जंगली अंधेरा है । एक मतलब में नक्सलवाद शोषितों के खिलाफ हिंसक शोषकों का नहीं दिखाई देने वाला शोषण है । कम से कम छत्तीसगढ़ के दर्पण में नक्सलवाद का तो यही विकृत चेहरा नज़र आता है।

नक्सलवाद के बौद्धिक हिमायती वाग्जाल गढ़ते हैं – यह समाजवाद की क्रांतिकारी और अंतिम विधि है और मानववाद का संरक्षण ही उनका चरम ध्येय है। यदि समाजवादी आंदोलन की बुनियाद में मानव प्राण के प्रति सम्मान था तो फिर निरीह, निर्दोष लोगों को खुलेआम कत्ल करने की वैचारिक वैधता नक्सलियों ने कहाँ से ढूँढ़ निकाली। यह भी प्रकारांतर से सत्तावादी मानसिकता का परिणाम हैं । इतिहास में गवाहियाँ है कि भारतीय परंपरा में समाज के सभी वर्गों में समानता की स्थापना के लिए संचालित हर वैचारिक आंदोलन को अंततः जनता का भरपूर साथ मिलता रहा है । पर सलवा जुडूम जैसा जन आंदोलन साबित करता है कि नक्सलवाद मनुष्य का विरोधी है । जैसा कि नक्सली मानते हैं कि वे जनता के अधिकारों के पहरुए हैं और उन्हें शोषण से मुक्त करना ही उनका लक्ष्य है तो वे उसी शोषित जनता की हत्या की राजनीति क्यों चलाते हैं । यहाँ उनकी यह करतूत क्या उन्हें दक्षिणपंथी फासिज्म से नहीं जोड़ देती है? नक्सली जिस रास्ते पर चल रहे हैं उससे अंतत: लाभकारी होगा वॉर इंडस्ट्री को। खास कर उन्हें जो हथियारों की चोरी-छिपे भारत में अस्त्र-शस्त्र की आपूर्ति को निरंतर बनाये रखना चाहते हैं । इनकी घोर क्रांतिकारिता जैसे शब्दावली ही बकवास है। उसे मानवीय गरिमा की स्थापना की लड़ाई कहना नक्सलवाद का सबसे बड़ा झूठ है । अदृश्य किंतु सबसे बड़ा सत्य तो यही है कि वह सत्ता प्राप्ति का गैर प्रजातांत्रिक और तानाशाही (अ)वैचारिकी का हिंसक संघर्ष है ।

नक्सलवाद की धूर्तता के सामने समाजविज्ञानियों और विचारकों का शास्त्र भी अब पूर्णतः फेल हो चुका है जहाँ कभी यह माना जाता रहा कि नक्सलवाद की उत्पत्ति में लोकतांत्रिक सत्ता की लुच्चाई और टुच्चाई भी रही है । उनकी ओर से कभी तर्क गढ़ा जाता रहा कि देश में 92 प्रतिशत मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। मजदूरों के खिलाफ ठेकेदार,मालिक या जमींदार की तरफ से हिंसा की जाती है। जिन उत्पादक रिश्तों में हिंसा एक दैनिक कर्म हो, वहां नक्सलवाद जैसी प्रतिरोधी गतिविधियों का होना स्वाभाविक है। यह भी भूल साबित हो चुका है । और इस भूल के शिकार होकर सैकड़ों हजारों असंतुष्ट युवा, बुद्धिजीवी और बेरोजगार इस आंदोलन में अपना जीवन व्यर्थ गवाँ चुके हैं । वे भारी भूल में थे जो यह समझते रहे कि वे मानवीय हित के लिए लड़ रहे हैं या वे समाज के लिए शहीद हो रहे हैं । न उनके आँगन का अंधेरा छंटा न ही गाँव-समाज-देश का । वास्तविकता तो यही है कि जाने कितने गरीब माँओं का आँचल सूना हो चुका है । सैकड़ों असमय वैधव्य झेल रही हैं। हजारों बच्चे आज सामाजिक विस्थापन झेल रहे हैं । एक ओर उन्हें हिंसावादी की संतान मान कर असामाजिक दृष्टि को झेलना पड़ रहा है दूसरी ओर वे असमय आसराविहीन हो रहे हैं । हाँ कभी-कभी उनके पिताओं के नाम पर बने किसी स्मृति पत्थर पर जरूर दो-चार जंगली फूल जरूर सजा दिये जाते हैं । वह भी इसलिए कि भावुक और आक्रोशित युवा नक्सलियों को शहीद होने का भ्रम बना रहे । यह सिर्फ ढोंग और नक्सलवाद की कुटिल चालें हैं, और कुछ नहीं । बस्तर और सरगुजा का भी युवजन नक्सलवाद के इसी ढोंग का शिकार हो चुका है ।

नक्सलवाद से जुझती सरकारों की हालत भी पतली हो रही है । विकास के लिए आरक्षित धनराशि का एक बड़ा हिस्सा पुलिस और सैन्य व्यवस्था के नाम पर व्यय हो रहा है जो अनुत्पादक है । इससे तरह-तरह की नया भ्रष्ट्राचार भी पनप रहा है । यदि खबरों पर विश्वास करें तो नक्सल प्रभावित लोगों के लिए प्रायोजित राहत के नाम पर फिर से बाजारवादी और लूट-घसोट में विश्वास रखने वाले ठेकेंदारों को नई उर्जा मिल रही है ।

नक्सलवाद मानती है कि भारत अर्ध सामंती, अर्ध औपनिवेशिक राज व्यवस्था वाला समाज है। हथियारों के माध्यम से वे यहां पीपल्स डेमोक्रेसी यानी सर्वहारा की सत्ता स्थापित की जा सकती है । इस मुद्दे पर उग्र वामपंथी (नक्सली) और उदार वामपंथी के देखने का नजरिया भिन्न-भिन्न है। उदार वामपंथी यानी सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई (माले) जैसी राजनीतिक पार्टियां संवैधानिक संस्थाओं में आस्था जताकर लोकतांत्रिक तरीके से राजसत्ता हासिल करना चाहती है जबकि इसके ठीक विपरीत नक्सली इन्हें झूठ मानते हैं। उनकी गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य है पीपल्स आर्मी गठित करना। यह एक तरह का वामपंथी सैन्यवाद है। उग्र वामपंथियों और उदार वामपंथियों के बीच विभाजन की मुख्य वजह ही है हिंसा। आखिर ये नक्सली छद्म मांग को त्यागकर लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष के लिए तैयार क्यों नहीं होते? निर्दोष लोगों की हत्या के पीछे आखिर उनका कौन-सा अदृश्य एजेंडा है ? क्या यह एक नैतिक अपराध नही है ? सबसे बड़ी बात है कि यह प्रजातांत्रिक मूल्यों का संपूर्ण प्रतिरोध है जिसे कतई सामाजिक मान्यता नहीं मिल सकती । आखिर बातचीत हो तो भी कैसे ?

अतिवादियों का यह दर्शन भी भटकाव है, मिथ्यात्मक है कि माओत्सेतुंग की मृत्यु के बाद यह सब हुआ । सच्चाई तो यही है कि माओत्से तुंग अति राष्ट्रवादी थे। माओ ने लिन प्याओ को अपना उत्तराधिकारी बनाया। वह हमेशा राज्य के हित में और कौमी राज्य के हित में संलग्न रहता था । फिर ये नक्सली किन एजेंडों पर काम कर रहे हैं और किस तरह की नैशनलिज्म की राह पर चल रहे हैं, किसी से छुपा नहीं है अब । नक्सली या माओवादी यदि खून खराबा और हिंसा त्याग दें और बाकी मांगें रखें तो ज्यादा संभव है कि उनका यह संघर्ष समाज और देश के लिए बेहतर साबित हो । लेकिन खेद है कि यह उनका लक्ष्य कम से कम अब तो वह कतई नहीं रहा । यदि ऐसा होता तो वे भी समाज की, देश की अन्य बुराईयों और दासतावादी मानसिकता के विरूद्ध लड़ते । यदि ऐसा होता तो वे न्याय व्यवस्था में सुधार, न्यूनतम मजदूरी या वेतन, मादा भ्रूण हत्या, सांप्रदायिकता, धर्मांधता और अशिक्षा के विपरीत भी एकजूट होते । यदि ऐसा होता तो ये भ्रष्ट्राचार के विरूद्ध सबसे बड़ी लड़ाई लड़ते जो आज वनांचलों की ही नहीं समूचे भारत की सबसे बड़ी समस्य़ा है । और ऐसी सभी विद्रपताओं का खात्मा समान उद्देश्यों की सूची में होती । तब कदाचित् देश का अधिसंख्यक समाज भी जो आजादी के इतनी लबीं अवधि के बाद भी बुनियादी स्वप्नों और आंकाक्षाओं को फलित होते नहीं देख सका है, उनके वैचारिक लड़ाई में साथ होता । दरअसल आत्मा से ये वामपंथी हैं और शरीर से दक्षिण पंथ । सहज ही यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि नक्सली आम आदमी के हितैषी होते तो उन लोगों को क्यों नहीं धमकाते जो आम लोगों के जो बड़े-बड़े दुश्मन है । जो राजनैतिक तंत्र में घूस कर जनता का लहू पी रहे हैं और जो सभी के शिनाख्तगी में हैं । जो खूंखार फासिस्ट हैं, जो देश में सांप्रदायिकता के खिलाफ है उन्हें सजा दिलाने में ये क्यों नहीं खड़े हुए? जाहिर है कि इनका लक्ष्य समाज की शुचिता नहीं अपितु राजनैतिक महत्वाकांक्षा ही है जो गैर प्रजातांत्रिक भी है और इस नाते किसी एक्टिविस्ट का क्रियाकलाप नहीं ।

नक्सलवाद विचार और चिंतन शून्य हरकत है । यह देश के बहुसंख्यक सर्वहारा जन के अमन-चैन, समृद्धि और सुख विरोधी विचारधारा है । यदि यह सच है कि इनके असली सूत्रधार वैचारिक रूप से भी समृद्ध लोग हैं तो उनकी मनीषा में यह कैसे ठूँसा जाय और वे अपनी अंतरात्मा में झांकने के लिए तैयार हों कि उनका तथाकथित समाजवादी आंदोलन तब कहां था और आज कहां है। उन्हें कौन समझाये कि आखिर ज्ञान का आधार क्या है और क्या है उसकी वैधता का मानदंड? वे यदि इस वर्तमान सिस्टम को अवैध मानते हैं और माना कि वे दिशाहीन भी नहीं है तो बंदूक की नोक पर टिकी उनकी प्रणाली परिणाममूलक होगी, इसकी क्या गारंटी है? दरअसल नक्सलियों की राजनीतिक वैधता का कोई आधार नहीं है। बंदूकधारी व्यक्तियों से क्या बातचीत होगी ? लगता है कि नक्सलियों के बीच अब कोई दिलवाला नहीं रहा, बुद्धिजीवी नहीं रहा । समूचा वैचारिक फोरम ही अब मारकाट को चरम सीमा तक पहुँचाना चाहता है ।

नक्सलवाद को लेकर सरकारें जिस तरह राजनैतिक रोटी सेंकती रही हैं वह आम जनता की समझ से बाहर कतई नहीं है । नौकरशाह यानी वास्तविक नीति नियंताओं के बीच जनता के कितने हितैषी हैं, ऐसे चेहरों को भी आज जनता पहचानती है । उन्हें समय पर सबक सिखाना भी जानती है पर नक्सलवाद का सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि उसके परिणाम में केवल गरीब, निर्दोष, आदिवासी और कमजोर व्यक्ति ही मारा जा रहा है । इसमें राजनैतिक हत्याओं को भी नकारा नहीं जा सकता जिन्हें कई बार इनकाउंटर घोषित कर दिया जाता है।

इन दिनों देश के कथित जन अधिकारवादी संगठन और प्रखर बुद्धिजीवी प्रमाणित और असंदिग्ध गिरफ्तारियों को मानव अधिकार का हनन साबित करने के लिए जिस तरह हो हल्ला मचा रहे हैं उसे या तो मानसिक रुग्णता कहा जा सकता है या फिर प्रतिभा संपन्न लोगों की विपन्नता भी जो भाड़े में अपनी आवाज भी बेचा करते हैं । इससे प्रत्यक्षतः भले ही नक्सलियों या वाममार्गी चरमपंथियों के हौसले बुलंद नहीं होते हों पर इससे भारतीय मनीषा पर गंभीर शक तो जरूर होता है कि कहीं वे ही तो समाज और देश को फासीवाद की ओर धकेलना नहीं चाह रहे हैं ? वातानुकूलित विमानों पर लादे उन्हें कौन देश भर में घुमा रहा है ? आलीशान होटलों में व्हिस्की और चिकन चिल्ली की सुविधा के साथ उन्हें ठहराने वाला किस गरीब का हिमायती है और वे किसी एक व्यक्ति, जो अपनी अनैतिक और अप्रजातांत्रिक गतिविधियों से संदेहास्पद हो चुका हो, के लिए ही क्यों चिल्लपों मचा रहे हैं ? समाज और जनता को दिग्भ्रम करने का यह कौन सा बौद्धिक अनुशासन है ? और जिससे शांतिप्रिय समाज के समक्ष कानून एवं व्यवस्था का प्रश्न खड़ा कर रहे हैं।

वे कैसे यह भूलने की मूर्खता कर रहे हैं कि मानव अधिकार उनके भी हैं जो इन नक्सवादियों के क्रूरतम आक्रोश का शिकार हो रहे हैं । जो बमौत मारे जा रहे हैं क्या उनका कोई मानव अधिकार नहीं है ? जो इन नक्सलियों के बलात्कार और लूट-घसोट के स्थायी शिकार होने को बाध्य हैं क्या उनके भी मानव अधिकार निरस्त कर दिये गये हैं ? पुलिस के उपरले नहीं किन्तु निचले स्तर के जो अकारण सिपाही मारे जा रहे हैं उनके अनाथ बच्चों का कोई मानव अधिकार नहीं ? बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों के नक्सली क्षेत्र के दौरों के बहाने वन की सैर-सपाटे और शानो-शौकत में मातहत कर्मचारियों अपने छोटे-छोटे बच्चों के पेट काट कर जो चंदा दे रहे हैं उसमें मानव अधिकार हनन की कोई दुर्गंध नहीं आती ? शायद इसीलिए कि वे शासकीय वेतनधारक हैं । जो समाज से सबसे अशिक्षित और सीधे लोग अर्थात् आदिवासियों को अपने षडयंत्र का मोहरा बना रहे हैं वे कौन से मानव अधिकार की रक्षा कर रहे हैं ? नक्सलियों को कौन-सा ऐसा विशिष्ट मानव अधिकार मिल गया है जो नौनिहालों को पाठशाला से जो वंचित कर रहे हैं ? नक्सलवादी भूगोल की संभावित गरिमा जो छीन रहे हैं वे क्या मानव अधिकार का हनन नहीं कर रहे हैं । आखिर आदिवासी ग्रामों को सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियादी सुविधा से वंचित करके रखने वाले ये नक्सली कौन सा मानव अधिकार का पाठ पढ़ा रहे हैं । इसका विरोध कौन करेगा? आखिर कब बाहर निकलेंगे हमारे बुद्धिजीवी रेत से अपना सिर निकाल कर?


(जयप्रकाश मानस)

Saturday, May 19, 2007

जगदीप डांगी के नाम एक पाती





सबसे पहले मेरी ईश्वर से अगर वो कहीं है तो यही शुभकामना है कि जगदीप में निहित दीप जलता रहे । और इस जहान को रोशन करता रहे ।

मित्र
दुर्गेश गुप्त से कल ही बातचीत हो रही थी । हिदीं के बढ़ते हुए कदमों को लेकर अपना-अपना अनुभव हम दोनों बखाने जा रहे थे । इस बखान में चिंताओं की लकीरें भी हम दोनों परस्पर देख रहे थे । जगदीप ड़ांगी का नाम उनकी जुबान पर आया तो मेरी जिज्ञासा एकबारगी बढ़ गयी । मैं उनके योगदान पर कुछ कहूँ गर्वोन्नत होकर, इससे पहले ही उन्होंने बड़े ही निराश स्वर में कहा – मानस, इन दिनों वे बड़ी हताशा और उपेक्षा-भाव से गुजर रहे हैं और हमें भी उनका वाकया सुनकर ऐसा लगना चाहिए। और सचमुच यह भाव बरबस अंतसः में तैरने लगता है - यह दुनिया जाने क्यों प्रतिभा का वास्तविक हक नहीं दिलाना चाहती । जाने क्यों रचयिता केवल धूलें फांकता है । गर्दिश में जन्मता है, गर्दिश के मध्य पलता है और गर्दिशों की पोटरी लादे चला जाता है ।

मैंने बहुत सुना था कि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी को विकसित करने वालों को भारत सरकार और राज्य सरकारें जी खोलकर प्रोत्साहित कर रही हैं और इसी के बल पर वे दुनिया भर में अपनी साख बढ़ाना चाहती हैं । शायद मैंने बहुत ही गलत सुना था । आज मुझे ऐसा ही लगने लगा था । मन बड़ा ही खिन्न हो लगा । लगा कि आखिर क्योंकर जगदीप ने ऐसा अनुसंधान किया और अपने ईजाद से हिंदी-दुनिया के साथ-साथ प्रौद्योगिकी वालों को आश्चर्यचकित करने पर विवश कर दिया । क्या जरूरत थी भला उसे । आम हिंदुस्तानी युवाओं की तरह करता रहता मटरगश्ती, मोटर साइकिल में सवार, आंखों में रंगीन गॉगल चढ़ाये, एक हाथ में मोबाइल थामें, दूसरे में सिगरेट पकडे, इस गली से उस गली में । कभी सीटी बजाता । कभी किसी चिकनी गोरी को देखकर गुनगुनाने लगता – सुन, सुना, आती क्या खंड़ाला । चलती है क्या नौ से ग्यारह ।

ड़ांगी भैया, आप इस दुनिया को नहीं समझ सके, बस्स, आपसे यही और यहीं चुक हो गई । यह दुनिया आम को ही पंसद करती है । जहाँ कोई खास बना तो उसे भुलाने की कोशिश शुरू हो होती है । वह देखते ही देखते ईर्ष्या का पात्र बन जाता है। दुनिया को, पास-पड़ौस को आम आदमी चाहिए । खासकर राजनीतिक समाज में प्रभामंडल वाले लोग आम आदमी को प्यार करते हैं(दिखावा में सही), वह चाहते हैं कि वह मात्र आम आदमी बना रहे । आम आदमी की तरह जिये और आम आदमी की तरह गुजर जाये और वे खास बने रहें पीढ़ी-दर-पीढ़ी । आम आदमी ऐसे राज्यों में सिर्फ एक मतदाता होता है जिसे पांच साल में एक बार जहरीली शराब, एकाध साड़ी, कुछ रूपये देकर खरीद लिया जाये । यह आम आदमी यदि प्रतिभा के बल पर खास हो जायेगा तो उस समाज को परिवर्तित करना नहीं चाहेगा । अवश्य चाहेगा । और यही उनके भय का कारण है । हाँ, यदि किसी दल के झंडाबरदार रहते और संयोग से मक्खी भी मार लेते तो आपके राज्य की सरकार आपको शेरमार की उपाधि से विभूषित करती । आपको वज़ीफा मिलता । आपके बच्चों की परवरिश की चिंता की जाती । दवाई-दारू मुफ़्त में मिलता। अभी जिस हालात में आप हैं, वह दिन देखना ही नहीं पड़ता आपको । आपने अच्छा नहीं किया । करते रहते खेतों में निंदाई-गुड़ाई । जोतते रहते खेत । उगाते रहते घास । गाते-रहते मेड़ पर बैठे-बैठे कोई लोकगीत । देहाती क्यों नहीं बने रहे आप ? आपको क्यों ऐसा लगा कि ये सरकारें देहाती दुनिया के लोगों के किये-धरे पर विश्वास करते हैं । आपको जानना चाहिए कि उन्हें आधुनिक मूल्यों वाले लोग दुश्मन नज़र आते हैं । प्रगतिशील लोग कंम्युनिस्ट नज़र आते हैं । नवाचारी लोगों से उन्हें भय सताता है । वे उसकी लोकप्रियता से घबराते हैं । कहीं उनका साम्राज्य न ढह जाये । कहीं उनकी पदवी न झिन जाये । इस समाज की भाषा कैसे क्यों नहीं समझ सके आप.....

डांगी भैया, आप तो दुनिया की किसी भी परंपरा के बारे में नहीं जानते ना, काश, आप घुटने टेक कर मिमियाना जानते । घर-घर थैली पकड़कर जाते, जोर-जोर से चिल्लाते – दे दे बाबा, हिंदी के नाम पर,,,,,,,, हिंदी माता आपके बाल-बच्चों को खुश रखे । और ज़रा सी चालाकी आती तो किसी धन्ने सेठ की गद्दी के सामने दंडवत मुद्रा में लेट जाते और अनुमति पर अपने चीज़ों की नुमाइश करते । पर वाह, रे सरस्वती आपने इतनी भी बुद्दि नहीं दी सृजनकारों को...........।

मैं सुनकर भौचक रह गया हूँ कि आप इन दिनों गंभीर बीमारी के शिकार होकर अस्पताल की शरण जाने के लिए विवश हैं । शायद आपको मृत्यु का डर भी सता रहा हो । आपके सामने अंधेरा छाने लगा हो । आपके आँखों में आपके बच्चे अनाथ नजर आने लगे हों । बूढे माँ-बाप का उदास चेहरा आपके आँखों में बार-बार आँसू उडेल रहा हो । छूटता हुआ संसार आपको याद आ रहा हो । आपके मित्र आपको बुला रहे हों । बुला रहे हों वे झरने जहाँ आप घंटों बैठकर उसकी धारा को अपलक निहारा करते थे । वे नदियाँ जहाँ आप कभी सीपी ढूँढते फिरते थे और कभी कागज की नाव बनाकर बहाते रहते थे । आपको उस चिडिया का गीत भी सुनाई देता हो जो बड़े भोर से माँ को जगाने आ जाती थी कि जागो अम्मा, अपने लाड़ले जगदीप को जगाओ, उसे अभी बहुत काम करना है । वह सोता रहेगा तो दुनिया को नई चीज़ कौन देगा !

भैया जगदीप, आप मन ही मन अपनी शिक्षक को कोस रहे हों कि उसने आखिर क्यों ऐसी शिक्षा दी आपको । क्यों समाज के लिए कुछ करने की ईबारत आपने पढ़ी । अच्छा होता कि आप सिर्फ हस्ताक्षर करना ही सीख जाते । मूरख बने रहते ।

मुझे यह लिखते हुए बहुत ही क्षोभ हो रहा है कि मैं क्यों आपके लिए कुछ नहीं कर सकता । क्या करूँ, मैं भी तो तुम्हारी तरह फटेहाल हूँ । तुम तो जानते ही हो कि लेखक के पास कुछ भी नहीं होता । कुछ शब्द, कुछ पन्ने, कुछ विचार और एक कलम के अलावा । तुम बुद्धि से गढ़ते रहे और मैं मन से । पर दोनों का उद्देश्य एक ही है – भाषा की पूजा । भाषा की अर्चना । भाषा की अभ्यर्थना । दोंनो की दुनिया एक ही है । दुनिया के लोग एक जैसे हैं । तुम्हारा और मेरा समाज एक ही है, बड़ी बेमुरौव्वत दुनिया है यह !यहाँ किसे मतलब है भाषा से, भाषासेवियों से ?भाषा भी किस काम की चीज़ होती है ।

तुमने अच्छा नहीं किया अपनी नुमाइश करके, राजदरबार में । तुम कैसे भूल गये यह- वहाँ वही होता है जिसे उनके चाटूकार सलाहकार कहें । कौन-सी फाइल चलेगी, कौन-सी रेंगेगी और कौन-सी दौडेगी इन सबकी गति राजा थोड़े ना तय करता है । यह सब तो उनके कारिंदे करते हैं, जिनके दिल नहीं हुआ करता ।
हाँ, उनका उदर जरूर इतना बड़ा होता है कि जहाँ समूची दुनिया समा जाये । वहाँ कोट-टाई लगाये कुछ भारतीय अंगेज़ भी होते हैं । क्या इन ब्युरोक्रेस्ट के बारे में तुम्हें किसी ने नहीं बताया था, तुम भूलकर चले गये । क्यों राह देख रहे हो तुम उनके उत्तर का ? वे क्या तुम्हारे रिश्तेदार हैं । तुम तो उनकी भाषा पर ही आक्रमण करने वाली चीज़ बना कर बेचना चाहते हो । भाई कैसे वे इसे बिकने देंगे । वे क्यों चाहेंगे कि उनकी भाषा का साम्राज्य ही ढह जाये तुम्हारी खोज से । मुझे तुम्हारे पत्र को निहारने का मौका भी मिला, जो तुमने भाई दुर्गेश को लिखा है –

“नमस्कार, ई-मेल के लिये और बधाई भेजने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । ३ सेप्टेम्बर २००६ को मुख्यमन्त्री जी ने मुझे मुख्यमन्त्री निवास पर बुलाया था. श्री चौहान साहब मुझसे मिले और मुझे अपने कार्य के लिये बधाई दी। उस समय वहाँ पर मुख्यमन्त्री के सचिव श्री इकबाल सिंह वैश, श्री अनुराग जैन, श्री नीरज वशिष्ट आदि सहित और भी अधिकारी थे, मुख्यमन्त्री जी ने इन सभी को मेरा कार्य देख्नने को कहा और कहा की जो भी कुछ हो सके जगदीप के लिये करो। तभी मैंने सभी के समक्ष अपने सोफ़्ट्वेयर का प्रदर्शन किया सभी ने मेरे कार्य की तारीफ़ की और तभी श्री अनुराग जैन ने मुझे मुख्यमन्त्री फ़ेलोशिप देने की विधिवत घोषणा की और कागजी कार्यवाही भी की. फ़िर मुझे विज्ञान भवन लाया गया. जहाँ पर मैपकोस्ट (MAPCOST)के निदेशक डा. महेश शर्माजी से मुझे मिलाया गया। श्री शर्माजी ने मेरे सोफ़्ट्वेयर के परीक्षण के लिये एक चार सदसिय टीम गठित की इस टीम मैं चार कम्पूटर वैज्ञानिक थे. सभी ने मेरे सोफ़्टवेयर का परीक्षण किया और इस की रिपोर्ट ४ दिन के अन्दर मुख्यमन्त्री जी के सचिव श्री इकबाल सिंह वैश के नाम जारी की. यह रिपोर्ट मेरे और अपने प्रदेश के हित मैं थी जिसमे इन सोफ़्ट्वेयर्स की उपयोगिता को प्रदेश के स्कूलों, किसानों, और विभिन्न विभागों के उपयोग मैं आने से संबंधित थी. उस रिपोर्ट को मैंने भी देखा है. फिर हमारे जिला में सांसद का चुनाव आ गया और मुझसे कहा अभी आपके यहां आचार संहिता लगी है. इस लिये आपका काम बाद में होगा. काफी इंतजार के बाद फिर हमने जानना चाहा की हमारी फेलोशिप का क्या हुआ तो मुझे बताया गया की फेलोशिप देने की नीति पूर्व मुख्यमन्त्री श्री दिगविजय सिंह जी बन्द कर गये और इस गलत कथन से हम ह्तप्रभ रह गये। और आगे आजतक कुछ नहीं मिला।

तकदीर न हमारे साथ बहुत ही बेहूदा मजाक किया मेरा बचपन तो अस्पताल में ही गुजर गया और आज मैं बहुत ही खराब स्थिति में हूँ मेरी तवियत ठीक नहीं है मेरा इलाज भोपाल मेमोरियल में चल रहा है मेरी दोनो किडनी खराब बताई हैं मुझे क्रोनिक रीनल फ़ैलर बताया है अब पता नहीं मैं रहूँगा या नहीं । आप लोगों ने मुझे बहुत लाड प्यार मान सम्मान दिया इसके लिये सरकारी तंत्र से ज्यादा आपका आभारी हूँ । धन्यवाद



जगदीप


मैं उस पत्र को बार-बार बांच रहा हूँ जिसके हर शब्द नियति, नियत और नीतियों का पोल खोलती हैं । इसमें दुर्गेश जी की चिंता साफ-साफ झलकती है । जाने क्यों, पर मुझे लगता है इसमें मेरी चिंताएं भी समादृत हैं ।

प्रिय जगदीप जी,
बधाई । शीघ्र ही आपके समाचार को अपने जाल-स्थल पर जारी करूंगा । आपका म.प्र.शासन की स्कालर शिप का क्या रहा ?



-दुर्गेश गुप्त "राज"



Dear Sir,
नमस्कार, मेरे द्वारा निर्मित हिन्दी सोफ़्टवेयर अनुवादक और शब्दकोश के विन्डोज (९५/९८/एक्स-पी) आधारित परीक्षण संस्करण को डिजिट पत्रिका ने अपने अप्रैल-२००७ संस्करण की सी.डी. के साथ जारी कर दिये हैं। इस सूचना को अपने जाल-स्थल पर जारी करने की कृपा करें। धन्यवाद।



जगदीप दाँगी





अब कहने को मध्यप्रदेश या भारत सरकार भी कह सकती है कि उसने ना नहीं कहा है डांगी को । वह परीक्षण करवा रही है । भई वाह । क्या कहना इस प्रजातंत्र का । क्या कहना हमारे राजनीतिज्ञों का । बलिहारी जाना चाहते हैं हम हिदीं सेवी लोग उन नौकरशाहों पर जिनकी फाइलें चलती रहती है । भले ही आदमी उधर देह त्याग दे । उसे सम्मानित करने का औचित्य ही समाप्त हो जाये । मैं बीबीसी में छपे उस समाचार की ओर भी जनसंपर्क विभाग का ध्यान दिलाना चाहता हूँ आज से लगभग 2 साल पहले इशारा किया गया था कि डांगी ने बकायदा सरकारों से संपर्क किया है किन्तु कोई शुभ संकेत उधर से नहीं है । अब इसे राजकाज के लोग ही न पढ़े तो भला क्या किया जा सकता है ।
हे नेताओ ज़रा पढा करो ऐसे समाचारों को । हे अलालों, कुर्सीतोडू मोटें तोंद वाले बांचा करो कि क्या जनता चाह रही है । क्या छवि बन रही है आपकी इस देश में । बल्कि समूचे विश्व में । क्या डांगी के बहाने आप अपने को सुधार पायेंगे । अपनी गलती को सुधार पायेंगे । अभी भी देर नही हुआ है । या फिर वही जुमला उछालते रहेंगे कि लाखों आते रहते हैं ऐसे में तो हो गया राजकाज........। मैं हिदीं के नाम पर लाखों-करोड़ो डकार जाने वाले उन मठाधीशों को भी याद कराना चाहता हूँ कि आपको क्या हो गया है अब तक जो जगदीप डांगी जैसी प्रतिभा के पक्ष में दो लब्ज भी कहीं रख सकते ? कैसे भी रखो, दारू-मुर्गी उडाने से फुर्सत जो नहीं मिलती ।
हे शिविरबाज भाषासेवियों आपको क्या हुआ ? आप तो अपने भाषणों में खूब चीखते-चिल्लाते रहे हो । कि ये कर देंगे । वो कर देंगे ........
जगदीप शायद, देखना ये दुनिया वाले तुम्हारी बहुत बड़ाई करेंगे । 13-15 जुलाई को अमेरिका में 8 वे विश्व हिंदी सम्मेलन में तुम्हारी तारीफ़ में बड़े-बड़े कशीदे गढ़े जायेगें । पर तुम्हें इस वक्त याद करने वाला कोई नहीं होगा । और तो और तुम्हारे राज्य की सरकार भी कुछ हिंदी सेवियों (?) को अमेरिका भेजने पर लाखों लुटायेगी पर तुम्हारे सॉफ्टवेयर को रिकमंड नहीं करेगी । तुम इस पर भी आँसू कतई मत बहाना । आँसूओं को पी जाओ मेरे भाई । यही हमारी नियति है - इस महादेश में । यह तुम्हारे साथ ही नहीं हो रहा है । यह तो हिंदी के हर सेवक के साथ होता आ रहा है ।

जगदीप जी, मैं आपसे कभी नहीं मिला । नहीं देखा कभी सामने । फिर भी लगता है कि आप हमारे भीतर मौजूद हैं,मैं आपकी पीड़ा को पढ़ पा रहा हूँ । मेरी बैचेनी लगातार बढ़ती जा रही है । मन बड़ा व्याकुल है । कभी-कभी करता है नोंच डालूं नियति को । कभी मन करता है कि उन नीतियों के पन्ने ही जला डालूँ जो हमारे कल्याण के संबंध में होती ही नहीं है । और उस नीयत को दफन कर दूँ जो प्रजातांत्रिक देश में हमारे कर्णधारों को ले डु
बाने में कारण बना हुआ है जिससे हम प्रजाओं ने कभी भी अपने नाम खुशियाली का लिफाफा ही नहीं देख सके ।

मैं जानता हूँ कि हिंदी वाले भी ठीक वैसे हैं जैसे उनकी सरकारें, जैसे उनका समाज भी । पर उनमें अभी संवेदना शेष है । कोई न कोई हिंदी वाला हममें से आगे आयेगा और आपकी-हमारी आवाज़ सही लोगों तक
तक पहुँचायेगा । कोई ब्लॉगर भी हो सकता है और कोई पत्रकार भी । देखते हैं.... क्या करते हैं ये दुनिया वाले ......
यह ईमानदार प्रतिभा को ख़ारिज करने का दौर है । खासकर, वैसी प्रतिभा जिनपर किसी ख़ुदा की इनायत नहीं रही । जिन्होंने अपने बलबुते पर अपनी जगह बनायी । अपनी प्रतिभा को निखारा । फिर वो चाहे साहित्य कला के क्षेत्र में हो या फिर नई तकनॉलाजी के क्षेत्र में हो । हमारे समाज का तथाकथित प्रभूवर्ग उस व़क्त तिलमिला जाता है जब वो देखता है कि आम सा दिखने वाला व्यक्ति यकायक खास कैसे हो गया । गोया प्रतिभा का ठेका प्रभूवर्ग ने ही ले रखा है । इन विसंगतियों के बावजूद समाज में प्रतिभा को समादृत करने वाले बहुत से लोग हैं जो हम जैसे चोट खाये लोगों पर मरहम की तरह लग जाते हैं । यह लड़ाई लम्बी है । शायद अंतहीन भी हो । लेकिन हमें मौर्चे पर डटे रहना है । हथियार के नाम पर हमारे पास हौसला है । सहनशक्ति है । मनुष्यता है । अहिंसा है । शब्द हैं जो अपनी धार बनाते रहते हैं । अरूण कमल की कविता है –

अपना क्या है इस दुनिया में
जो कुछ मिला उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार



तो हम लोग विचारों की धार लेकर के निर्मम प्रवृतियों को काटने की कोशिश कर रहे हैं । पता नहीं सफलता कब मिलेगी । फिलहाल युद्ध तो जारी है । मैं अपनी बात प्रख्यात कवि और व्यंगकार श्री गिरीश पंकज की ग़ज़लों के साथ शुरू करना चाहता हूँ क्योंकि यह हमारे वैचारिक संघर्ष का प्रस्थान बिन्दू है –

हो मुसीबत लाख पर यह ध्यान रखना तुम
मन को भीतर से बहुत बलवान रखना तुम

ज़िंदगी में कब कहाँ ये थम जाये
अधर पर बस हर घड़ी मुस्कान रखना तुम ।

मैं तो उन्हीं के शब्दों में यही कहना चाहता हूँ कि -

आपकी शुभकामनायें साथ है
क्या हुआ गर कुछ बलायें साथ हैं ।

हारने का अर्थ यह भी जानिये
जीत की संभावनाएं साथ हैं ।

इस अंधेरे को फ़तह कर लेंगे हम
रोशनी की कुछ कथाएं साथ हैं ।

तो यह जो विसंगतियों का, निर्ममता का, अमानवीय अंधेरा दीख रहा है उसके विरूद्ध हम विचारों की, सद्भावों की मशाल लेकर चल रहे हैं । देखना यह है कि मंज़िल हमें मिलती है या नहीं ....... । इस बेहद कठिन समय में हम एक दूसरे के दर्द को बाँट रहे हैं । मतलब यह है कि पीड़ा के पर्वत को हँसते हुए काट रहे हैं । शायद यही जीवन हैं । और अब तो लगता है हम सृजनशील लोगों के हिस्से में यह दर्द, यह पीड़ा विरासत में मिली है । इसे ढ़ोना है । लेकिन बिना किसी दुर्भावना के । क्योंकि फिर एक शायर की पंक्तियाँ –

उनका जो काम है वो अहलेसियासत जाने
मेरा पैगाम मोहब्ब्त है जहाँ तक पहुँचे ।


(जगदीप डांगी के बारे में और भी बहुत कुछ जानने के लिए लॉगआन करें wwww.srijangatha.com )


Thursday, April 26, 2007

भारत में वेब पत्रकारिताः अतीत, आगत और अनंत




वेब- पत्रकारिता का आशय
वेब पत्रकारिता को हम इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, सायबर पत्रकारिता आदि नाम से जानते हैं । जैसा कि वेब पत्रकारिता नाम से स्पष्ट है यह कंप्यूटर और इंटरनेट के सहारे संचालित ऐसी पत्रकारिता है जिसकी पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखंड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं बल्कि समूचा विश्व है और जो डिजिटल तंरगों के माध्यम से प्रदर्शित होती है । प्रिंट मीडिया से यह इस रूप में भी भिन्न है क्योंकि इसके पाठकों की संख्या को परिसीमित नहीं किया जा सकता । इसकी उपलब्धता भी सार्वत्रिक है । इसके लिए मात्र इंटरनेट और कंप्यूटर, लैपटाप, पॉमटाप या अब मोबाईल की ही जरूरत होती है । इंटरनेट के ऐसा माध्यम से वेब-मीडिया सर्वव्यापकता को भी चरितार्थ करती है जिसमें ख़बरें दिन के चौबीसों घंटे और हफ़्ते के सातों दिन उपलब्ध रहती हैं । वेब पत्रकारिता की सबसे खासियत है उसका वेब यानी तंरगों पर घर होना । अर्थात् इसमें उपलब्ध किसी दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिका को सुरक्षित रखने के लिए किसी किसी आलमीरा या लायब्रेरी की जरूरत नहीं होती । समाचार पत्रों और टेलिविज़न की तुलना में इंटरनेट पत्रकारिता की उम्र बहुत कम है लेकिन उसका विस्तार तेज़ी से हुआ है । वाले दिनों में इसका विस्तार बेतार पत्रकारिता यानी वायरलेस पत्रकारिता में होगा जिसकी पहल कुछ मोबाइल कंपनियों द्वारा शुरू भी की जा चुकी है । वेब मीडिया या ऑनलाइन जर्नलिज्म परंपरागत पत्रकारिता से इन अर्थों में भिन्न है उसका सारा कारोबार ऑनलाइन यानी रियल टाइम होता है । ऑनलाइन पत्रकारिता में समय की भारी बचत होती है क्योंकि इसमें समाचार या पाठ्य सामग्री निरंतर अपडेट होती रहती है । इसमें एक साथ टेलिग्राफ, टेलिविजन, टेलिटाइप और रेडियो आदि की तकनीकी दक्षता का उपयोग सम्भव होता है । आर्काइव में पुरानी चीजें यथा मुद्रण सामग्री, फिल्म, आडियो जमा होती रहती हैं जिसे जब कभी सुविधानुसार पढ़ा जा सकता है । ऑनलाइन पत्रकारिता में मल्टीमीडिया का प्रयोग होता है जिसमें, टैक्स्ट, ग्राफिक्स, ध्वनि, संगीत, गतिमान वीडियो, थ्री-डी एनीमेशन, रेडियो ब्रोडकास्टिंग, टीव्ही टेलीकास्टिंग प्रमुख हैं । और यह सब ऑनलाइन होता है, यहाँ तक कि पाठकीय प्रतिक्रिया भी । कहने का वेब मीडिया में मतलब प्रस्तुतिकरण और प्रतिक्रियात्मक गतिविधि एवं सब कुछ ऑनलाइन (एट ए टाइम) होता है । परंपरागत प्रिंट मीडिया एट ए टाइम संपूर्ण संदर्भ पाठकों को उपलब्ध नहीं करा सकता किन्तु ऑनलाइन पत्रकारिता में वह भी संभव है – मात्र एक हाइपरलिंक के द्वारा ।


इंटरनेट पत्रकारिता के टूल्स
वेब पत्रकारिता प्रिंट और इलेक्ट्रानिक माध्यम की पत्रकारिता से भिन्न है । वेब पत्रकारिता के लिए लेखन की समस्त दक्षता के साथ-साथ कंप्यूटर और इंटरनेट की बुनियादी ज्ञान के अलावा कुछ आवश्यक सॉफ्टवेयरों के संचालन में प्रवीणता भी आवश्यक होता है जैसेः-


1. प्रिंटिग एवं पब्लिशिंग टूल्स - पेजमेकर, क्वार्क एक्सप्रेस, एमएमऑफिस आदि ।
2. ग्राफिक टूल्स - कोरल ड्रा, एनिमेशन, फ्लैश, एडोब फोटोशॉप आदि ।
3. सामग्री प्रबंधन टूल्स – एचटीएमएल, फ्रंटपेज, ड्रीमवीवर, जूमला, द्रुपल, लेन्या, मेम्बू, प्लोन, सिल्वा, स्लेस, ब्लॉग, पोडकॉस्ट, यू ट्यूब आदि।
4. मल्टीमीडिया टूल्स- विंडो मीडिया प्लेयर, रियल प्लेयर, आदि ।
5. अन्य टूल्स- ई-मेलिंग, सर्च इंजन, आरएसएस फीड, विकि टेकनीक, मैसेन्जर, विडियो कांफ्रेसिंग, चेंटिंग, डिस्कशन फोरम ।


वेब पत्रकारिता में सामग्री
भारत के इंटरनेट समाचार पत्र मुख्यतः अपने मुद्रित संस्करणों की सामग्री यथा लिखित सामग्री और फोटो ही उपयोग लाते हैं । ये समाचार पत्र एक्सक्लूसिव समाचार और फीचर की तैयारी इंटरनेट संस्करण के लिए बहुधा नहीं किया करते हैं । ऑनलाइन संस्करणों में मुद्रित संस्करणों के सभी समाचार, फीचर एवं फोटोग्राफ भी उपयोग नहीं किये जा रहे हैं । लगभग 60 प्रतिशत समाचार और दर्जन भर फोटोग्राफ के साथ प्रतिदिन का इंटरनेट संस्करण क्रियाशील बनाये रखने की प्रवृति भी देखने को मिल रही है ।


ऑनलाइन समाचार पत्रों का ले आउट मुद्रित संस्करणों की तरह नहीं होता है जबकि मुद्रित संस्करणों की सामग्री 8 कॉलमों में होती हैं । ऑनलाइन पत्र की सामग्री कई रूपो में होती हैं । इसमें एक मुख्य पृष्ठ होता है जो कंप्यूटर के मॉनीटर में प्रदर्शित होता है जहाँ विविध खंडों में सामग्री के मुख्य शीर्षक हुआ करते हैं । इसके अलावा खास समाचारों और मुख्य विज्ञापनों को भी मुख्य पृष्ठ में रखा जाता है जिन्हें क्लिक करने पर उस समाचार, फोटो, फीचर, ध्वनि या दृश्य का लिंक किया हुआ पृष्ठ खुलता है और तब पाठक उसे विस्तृत रूप में पढ़, देख या सुन सकता है । समाचार सामग्री को वर्गीकृत करने वाले मुख्य शीर्षकों का समूह अधिकांशतः हर पृष्ठों में हुआ करते हैं । ये शीर्षक समाचारों की स्थानिकता, प्रकृति आदि के आधार पर हुआ करते हैं जैसे विश्व, देश, क्षेत्रीय, शहर । या फिर राजनीति, समाज, खेल, स्वास्थ्य, मनोरंजन, लोकरूचि, प्रौद्योगिकी आदि । ये सभी अन्य पृष्ठ या वेबसाइट से लिंक्ड रहते हैं । इस तरह से एक पाठक केवल अपनी इच्छानुसार ही संबंधित सामग्री का उपयोग कर सकता है । पाठक एक ई-मेल या संबंधित साइट में ही उपलब्ध प्रतिक्रिया देने की तकनीकी सुविधा का उपयोग कर सकता है । वांछित विज्ञापन के बारे में विस्तृत जानकारी भी पाठक उसी समय जान सकता है जबकि एक मुद्रित संस्करण में यह असंभव होता है । इस तरह से ऑनलाइन संस्करणों में ऑनलाइन शापिंग का भी रास्ता है । मुद्रित संस्करणों में पृष्ठों की संख्या नियत और सीमित हुआ करती है जबकि ऑनलाइन संस्करणों में लेखन सामग्री और ग्राफिक्स की सीमा नहीं हुआ करती । ऑनलाइन पत्रों की एक विशेषता है कि वहाँ उसके पाठकों की सख्या यानी रीड़रशीप उसी क्षण जानी जा सकती है ।


वेब-पत्रकारिता का सामान्य वर्गीकरण
इंटरनेट अब दूरस्थ पाठकों के लिए समाचार प्राप्ति का सबसे खास माध्यम बन चुका है । इधर इंटरनेट आधारित पत्र-पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है । इसमें दैनिक, साप्ताहिक, मासिक, त्रैमासिक सभी तरह की आवृत्तियों वाले समाचार पत्र और पत्रिकायें शामिल हैं । विषय वस्तु की दृष्टि से इन्हें हम समाचार प्रधान, शैक्षिक, राजनैतिक, आर्थिक आदि केंद्रित मान सकते हैं । यद्यपि इंटरनेट पर ऑनलाइन सुविधा के कारण स्थानीयता का कोई मतलब नहीं रहा है किन्तु समाचारों की महत्ता और प्रांसगिकता के आधार पर वर्गीकरण करें तो ऑनलाइन पत्रकारिता को भी हम स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर देख सकते हैं । जैसे भोपाल की www. Com को स्थानीय, नई दुनिया डॉट कॉम, या दैनिक छत्तीसगढ़ डॉट कॉम को प्रादेशिक, नवभारत टाइम्स डॉट कॉम को राष्ट्रीय और बीबीसी डॉट कॉम, डॉट काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन समाचार पत्र मान सकते हैं ।
ऑनलाइन पत्रकारिता को सामग्री के आधार पर हम 3 तरह से देख सकते हैः-


1. ऐसे समाचार जिनके प्रिंट संस्करण की आंशिक सामग्री ही ऑनलाइन हो । इस श्रेणी में हम नई दुनिया, दैनिक भास्कर, नवभारत, हिंदुस्तान टाइम्स आदि को रख सकते हैं ।


2. ऐसे समाचार पत्र जिनके प्रिंट और इंटरनेट संस्करण दोनों की सामग्रियों में काफी समान हो ।


3. ऐसे समाचार जिनका इंटरनेट संस्करण प्रिंट संस्करण से भिन्न हो । इसका उदाहरण टाइम्स ऑफ इंडिया है । इस समाचार पत्र के इंटरनेट संस्करण में पृथक समाचार होते हैं जो एक ई-पेपर के माध्यम से ऑनलाइन होता है ।


4. ऐसे पोर्टल या न्यूज साइट जो केवल इंटरनेट पर ही संचालित हैं । इनमें प्रभासाक्षी डॉट कॉम आदि को गिना सकते हैं ।

वेब-पत्रकारिता का आदिका
दुनिया जिस तरह से प्रौद्योगिकी केंद्रित होती जा रही है और जिस तरह से विश्वमानव का रूझान साफ झलक रहा है उसे देखकर कहा जा सकता है कि भविष्य में उसकी दिनचर्चा को कंप्यूटर और इंटरनेट जीवन-साथी की तरह संचालित करेंगे, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि सूचना और संचार प्रिय दुनिया भविष्य में इंटरनेट आधारित पत्रकारिता पर अधिक निर्भर और विश्वास करेगी । पश्चिमी देश के परिदृश्य यही सिद्ध करते हैं जहाँ प्रिंट मीडिया का स्थान धीरे-धीरे इलेक्ट्रानिक मीडिया ने ले लिया और अब वहाँ वेब-मीडिया या ऑनलाइन मीडिया का बोलबाला है । 1970 – 1980 के दशक में जब कंप्यूटर का व्यापक प्रयोग होने लगा तब समाचार पत्र के उत्पादन विधि में परिवर्तन आने लगा । तब यह किसे पता था कि यही कंप्यूटर एक दिन ऑनलाइन समाचार पत्र का जगह ले लेगा । 1980 में अमेरिका के न्यूयार्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जनरल, डाव जोन्स ने अपने-अपने प्रिंट संस्करणों के साथ-साथ समाचारों का ऑनलाइन डेटाबेस रखना भी प्रारंभ किया । वेब-पत्रकारिता या ऑनलाइन पत्रकारिता को तब और गति मिली जब 1981 में टेंडी द्वारा लैटटाप कंप्यूटर का विकास हुआ । इससे किसी एक जगह से ही समाचार संपादन, प्रेषण करने की समस्या जाती रही ।


ऑनलाइन समाचार पत्रों के प्रचलन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया 1983 में जब अमेरिका के Knight-Ridder newspaper group ने AT&T के साथ मिलकर लोगों की माँग पर प्रायोगिक तौर पर उनके कंप्यूटर और टेलिविजन पर समाचार उपलब्ध कराने लगे । 90 के दशक आते-आते संवाददाता कंप्यूटर, मोडेम, इंटरनेट या सैटेलाइट का प्रयोग कर विश्व से कहीं भी तत्क्षण समाचार भेजने और प्रकाशित करने में सक्षम हो गये । 1998 में विश्व के लगभग 50 मिलियन लोग 40,000 नेटवर्क के माध्यम प्रतिदिन इंटरनेट का उपयोग किया करते थे । उनमें एक बड़ी संख्या में लोग समाचार, समाचार पत्र, समाचार एजेंसी और पत्रिकाएं विश्व को जानने समझने के लिए इंटरनेट पर तलाशते थे । एकमात्र अमेरिका की टाइम मैग्जीन ही ऐसी थी जिसने 1994 में इंटरनेट पर पैर रखा । उसके बाद 450 पत्रिकाओं और समाचार पत्र प्रकाशनों ने इंटरनेट में स्वयं को प्रतिष्ठित किया । तब भी इंटरनेट पर कोई समाचार एंजेसी कार्यरत नहीं थी किन्तु एक अनुमान के अनुसार दिसम्बर 1998 के अंत तक 4700 मुद्रित समाचार पत्र इंटरनेट पर थे ।


भारत में वेब-पत्रकारिता का विकास
जहाँ तक भारत में वेब-पत्रकारिता का सवाल है उसे मात्र 10 वर्ष हुए हैं । ये 10 वर्ष कहने भर को है दरअसल भारती की वेब-पत्रकारिता अभी शिशु अवस्था में है और इसके पीछे दरअसल भारत इंटरनेट की उपलब्धता, तकनीकी ज्ञान और रूझान का अभाव, अंगरेज़ी की अनिवार्यता, नेट संस्करणों के प्रति पाठकों में संस्कार और रूचि का विकसित न होना तथा आम पाठकों की क्रय शक्ति भी है । भारत में इंटरनेट की सुविधा 1990 के मध्य में मिलने लगी । भारत में वेब-पत्रकारिता के चैन्नई का ‘द हिन्दू’ पहला भारतीय अख़बार है जिसका इंटरनेट संस्करण 1995 को जारी हुआ । इसके तीन साल के भीतर अर्थात् 1998 तक लगभग 48 समाचार पत्र ऑनलाइन हो चुके थे । ये समाचार पत्र केवल अंगरेज़ी में नहीं अपितु अन्य भारतीय भाषा जैसे हिंदी, मराठी, मलयालम, तमिल, गुजराती भाषा में थे । इस अनुक्रम में ब्लिट्ज, इंडिया टूडे, आउटलुक और द वीक भी इंटरनेट पर ऑनलाइन हो चुकी थीं । ऑनलाइन भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की पाठकीयता भारत से कहीं अधिक अमेरिका सहित अन्य देशों में है जहाँ भारतीय मूल के प्रवासी लोग रहते हैं या अस्थायी तौर पर रोजगार में संलग्न हैं ।


एक शोध के अनुसार (किरण ठाकुर, पुणे विश्वविद्यालय के रिसर्च पेपर ‘भारत में इंटरनेट पत्रकारिता’ के अनुसार) दिसम्बर 1997 तक कुल पंजीकृत 4719 समाचार पत्रों के 1 प्रतिशत से कम ऑनलाइन भी हो चुके थे । भाषागत आधार पर ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या इस प्रकार थी –
भाषा वार कुल पंजीकृत और ऑनलाइन पत्रों की संख्या का विवरण


01. अंगरेज़ी - 338 -19

02 हिंदी -2118 - 05

03. मलयालम -209 - 05

04. गुजराती -99 - 04

05. बंगाली -93 - 03

06. कन्नड - 279 - 03

07. तेलुगु - 126 - 03

08 ऊर्दू -495 - 02

09. मराठी -283 - 01


इसका मतलब है कि शुरूआती दौर में अन्य भाषाओं यथा असमिया, मणिपुरी, पंजाबी, उडिया, संस्कृत, सिन्धी आदि भाषा के कोई भी ऑनलाइन संस्करण नहीं थे । आकाशवाणी ने 2 मई 1996 को ऑनलाइन सूचना सेवा का अपना प्रायोगिक संस्करण को अंतरजाल पर उतारा था । अब 2006 के अतिंम दिनों में हम देखते हैं कि देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं टिलीविजन चैनलों के पास उनका अपना अंतरजाल संस्करण भी हैं जिसके माध्यम से वे पाठकों को ऑनलाइन समाचार उपलब्ध करा रहे हैं । एक उपलब्ध आंकडा के अनुसार वर्तमान में 14 ई-जीन, 85 न्यूज पेपर, 73 ऑनलाइन न्यूज, 92 पत्रिकाएं, 9 जनरल, 10 टीव्ही न्यूज एवं 8 न्यूज एजेंसी इंटरनेट पर सक्रिय हैं ।


यदि हम हिंदी भाषा पर केंद्रित हो कर सोचें तो ऑनलाइन पत्र और पत्रकारिता की स्थिति दयनीय दिख सकती है और इस दयनीयता की जड़ में हिंदी आधारित इंटरनेट और वेब तकनीक ज्ञान, तंत्र व शिक्षा का विलम्ब से विकास रहा है ।



- हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य –



नेट पर हिंदी अखबार
नई सूचना प्रौद्योगिकी और वेब तकनीक को देश के बड़े अखबार वालों ने जल्दी अपनाया। आज हम देश-विदेश की कई हिंदी दैनिकों को घर बैठे पढ़ सकते हैं। इनमें
अमर उजाला, अमेरिका की आवाज़ (वायस औफ़ अमेरिका) आगरा न्यूज़ , आज, आज तक , इरान समाचार, उत्तराँचल टाइम्स, एक्सप्रेस न्यूज़, ख़ास ख़बर, जन समाचार(भारतीय व भारतीय ग्रामीण मुद्दों से सम्बन्धित समाचार पत्र), डियूश वेल्ल (जर्मन रेडियो द्वारा प्रसारित हिन्दी कार्यक्रम) पाञ्चजन्य, इंडिया टुडे, डेली हिन्दी मिलाप, द गुजरात, दैनिक जागरण , दैनिक जागरण ई-पेपर , दैनिक भास्कर , नई दुनिया - नव भारत अखबार, नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी, प्रभा साक्षी, प्रभात खबर, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रीय सहारा, रेडियो चाइना ऑन्लाइन, लोकतेज, ताप्तिलोक, प्रभासाक्षी, लोकवार्ता समाचार, विजय द्वार, वेबदुनिया, समाचार ब्यूरो, सरस्वती पत्र (कनाडा का हिन्दी समाचार)सहारा समय, सिफ़ी हिन्दी, सुमनसा ( कई स्रोतों से एकत्रित हिन्दी समाचारों के शीर्षक) हरिभूमि , ग्वालियर टाइम्स, दैनिक मध्यराज, राजमंगल आदि प्रमुख हैं । इस सूची में समाचार एजेंसियों को भी समादृत किया जा सकता है जिनमें प्रमुख है - यूनीवार्ता, पीटीआई भाषा,ई ऍम ऍस इण्डिया (समाचारपत्रों को बहुभाषीय समाचार सेवा प्रदान करने वाला स्थल), आरएनआई (छत्तीसगढ़ से सचांलित समाचार सेवा) आदि ।

विश्व की प्रमुखतम आईटी कंपनियाँ भी भाषाई महत्ता के अर्थशास्त्र को भाँपते हुए अब लगातार हिंदी में समाचार पोर्टल का संचालन करने लगे हैं जैसे -
याहू, गूगल हिंदी, एमएसएन, रीडिफ़.कॉम, आदि ।

जहाँ तक सरकारी समाचार पोर्टल का प्रश्न है उसमें लगभग हिंदी भाषी राज्य सरकारों का एक-एक समाचार केंद्रित साइट संचालित हो रहा है । शासकीय विज्ञप्तियों, योजनाओं, समाचारों वाले इन साइटों का उपयोग भी संदर्भ की तरह किया जाने लगा है । इसमें नवोदित राज्य छत्तीसगढ, उत्तराखंड़, झारखंड भी सम्मिलित हो चुके हैं । यहाँ उन ऑनलाइन समाचार पत्रों जाल स्थलों को जिक्र भी समीचीन होगा जो केंद्र शासन के विभिन्न उपक्रमों द्वारा संचालित हैं । इस रूप में ऑल इंडिया रेडियो की वेबसाइट
समाचार भारती, व ऑल इंडिया रेडियो, पत्र सूचना कार्यालय, डी.डी.न्यूजविदेश मंत्रालय के साइट को देख सकते हैं ।
हिंदी के ये ऑनलाइन समाचार पत्र केवल भारतीय महाद्वीप से ही संचालित नहीं होते बल्कि विदेशी ज़मीन से भी ये भारत, भारतवंशियों तथा वैश्विक समचारों से लगातार समूची दुनिया को अपडेट बनाये रखे हुए हैं । इस श्रेणी में प्रमुखतम वेब पोर्टल हैं – लंदन की
बी.बी.सी. हिन्दी खबरें

ब्लॉग और ऑनलाइन पत्रकारिता की नई दिशा
इंटरनेट पर ब्लॉग तकनीक के विकास और हिंदी भाषा में काम करने सुविधा से ऑनलाइन पत्रकारिता के नये द्वार खुलते दिखाई दे रहे हैं । अभी उसका स्वरूप निजी लेखन तक सीमित है । यूँ तो ब्लॉग निजी लेखन (अच्छाईयों और बुराईयाँ के साथ भी) का साधन है तथापि जिस तरह से वहाँ पत्रकारिता से जुड़े व्यक्तित्वों और उसके आकांक्षियों का आगमन हो रहा है, एक शुभ संकेत है । हिंदी अंतरजाल को खंगालने से यह बात उभर कर आ रही है कि ब्लॉग स्वतंत्र पत्रकारिता का भी मंच और माध्यम हो सकता है । अंग्रेजी ब्लॉग का इतिहास बताता है कि उस भाषा के महत्वपूर्ण पत्रकार व्यक्तिगत (और सामूहिक तौर पर) पत्रकारिता के लिए ब्लॉग की ओर लगातार उन्मुख होते गये हैं, जा रहे हैं । एक तरह से हिंदी ब्लॉग वैकल्पिक पत्रकारिता का भी जरिया हो सकता है । हिंदी इंटरनेटिंग की दुनिया में इसके चिह्न दिखाई देने लगे हैं । इस संदर्भ में मध्यप्रदेश के उन दो पत्रकारों का प्रयास स्तुत्य है जो 2005 से राजपुत इंडिया (
http://rajputaindia.spaces.live.com/)और चंबल की आवाज (http://chambal.spaces.live.com/) नामक समाचार पत्र (आंचलिक) नियमित प्रकाशित कर रहे हैं । इस संभावना को नहीं नकारा जा सकता कि भविष्य में सामुहिक बोध वाले पत्रकार इस सस्ती और विश्वसनीय तकनीक का फायदा उठाकर ऑनलाइन पत्रकारिता का सशक्त माध्यम अवश्य बनाना चाहेंगे। खास तौर पर यह इंटरनेट पर आंचलिक पत्रकारिता का कारगर दिव्य और रोचक प्रकल्प हो सकता है । (देखिए लेखक का शोध आलेख – वेब-पत्रकारिता, ब्लॉग और पत्रकार)


ई-मेल केवल औपचारिक पत्र प्रेषण का माध्यम नहीं हैं, वेबसाइट पर उपलब्ध समूह अनौपचारिक चर्चा-परिचर्चा का साधन नहीं, इन दोनों का योग नियमित समाचार प्रेषण या सीमित पत्रकारिता का भी साधन है। इस तकनीक युग्म से (भले ही सीमित क्षेत्र और संख्या में) सूचनात्मक पत्रकारिता का रोचक अनुप्रयोग भी होने लगा है । लगे हाथ मैं उदाहरण स्वरूप उस समूह का जिक्र करना चाहता हूँ जिसमें 97 लोग आपस में समाचारों के आदान-प्रदान के लिए सक्रिय हैं । गुगल समूह में पंजीकृत इस दल में अधिकांशतः ग्वालियर संभाग (मध्यप्रदेश) से जुड़े समाचार संप्रेषित होते हैं ।


हिन्दी दुनिया की तीसरी सर्वाधिक बोली-समझी जाने वाली भाषा है। विश्व में लगभग 80 करोड़ लोग हिन्दी समझते हैं, 50 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं और लगभग 35 करोड़ लोग हिन्दी लिख सकते हैं। उसके हिसाब से हिंदी में पत्रकारितोन्मुख ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं की संख्या अत्यल्प है । इस तरह से वर्तमान में अंगरेज़ी की प्रभूता के कारण हिंदी में ऑनलाइन पत्रकारिता शिशु अवस्था पर है आने वाले दिनों में वेब पत्रकारिता में अंग्रेज़ी का प्रभुत्व बहुत दिन नहीं रहने वाला है । क्षेत्रीय और स्थानीय भाषा में बन रहे वेब पोर्टलों और वेबसाइटों का प्रभाव बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है और इनका भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है ।


पारंपरिक मीडिया और ऑनलाइन पत्रकारिता के बीच की दूरियाँ अब ज्यादा दिन नहीं रहने वाली हैं । डायनामिक फोंट के कारण अब किसी भी ऑनलाइन हिंदी समाचार पत्र को किसी भी कंप्यूटर से पढ़ा जा सकता है । इसके अलावा युनिकोड़ की उपलब्धता से फोंट की समस्या का हल एक तरह से निकाला जा चुका है ।


छत्तीसगढ़ और सायबर पत्रकारिता
छत्तीसगढ़ पत्रकारिता की आदि-भूमि की तरह प्रतिबिंबित होता रहा है । यह वही धरती है जहाँ आज से ----- वर्ष पहले माधवराव सप्रे ने पेंड्रा जैसी छोटी-सी जगह से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक अखबार की शुरूआत की थी । वह भी आधुनिक सुविधाओं के अभाव के बीच ट्रेडल मशीन के ज़माने में । कहने को छत्तीसगढ़ से भी प्रकाशित नवभारत, दैनिक भास्कर, और हरिभूमि जैसे बहुमान्य एवं बड़े अखबारों के अंतरजाल संस्करण काफी पहले से थे पर न वे समग्र थे, न उन्हें इंटरनेट पर अधिक पाठक पढ़ते-बांचते थे । इसके पीछे फोंट डाउनलोड़ करने की समस्या और शहरों-कस्बों में इंटरनेट की सुविधा का अभाव भी रहा है । वैसे नेट संस्करण वाले ये अखबार अब भी प्रतिदिन के कुछ ही समाचार(प्रिंट संस्करण में से) पाठकों को उपलब्ध कराते हैं । नेट संस्करणों की लोकप्रियता में वृद्धि नहीं होने में इनका अद्यतन नहीं रहना भी हो सकता है । यद्यपि ऑनलाइन पत्रकारिता में स्थान या भूगोल का कोई महत्व नहीं है तथापि इन्हें राज्य की ऑनलाइन पत्रकारिता में शुमार इसलिए भी नहीं किया जा सकता क्योंकि अन्यत्र से संचालित और नियंत्रित होते रहे हैं । इसी तरह एक साप्ताहिक अखबार डिसेन्ट भी अनियमित रूप से अतंरजाल पर दिखाई देती है जो राज्य का पहला ऑनलाइन समाचार पत्र है । छत्तीसगढ़ में नियमित रूप से वेब-पत्रकारिता का प्रारंभ यदि हम सृजन-सम्मान संस्था की सृजन-गाथा नामक मासिक पत्र से माने तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, जो मई 2007 में पहला जन्म दिवस मनाने जा रही है और जिसके अभियान से छत्तीसगढ़ की 20 से अधिक महत्वपूर्ण कृतियाँ भी अब ऑनलाइन हैं । यद्यपि यह पूर्णतः साहित्यिक एवं सांस्कृतिक पत्र है तथापि वह अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों की रिपोर्टिंग के लिए विश्व के कई देशों में जानी पहचानी जाने लगी है । अब छत्तीसगढ़ से प्रकाशित होने वाले दो अख़बार देशबन्धु और छत्तीसगढ़ (इतवारी अखबार सहित) भी आनलाइन हो चुके हैं, वैसे छत्तीसगढ़ के इन अखबारों को बाँचने के लिए कंप्यूटर में एक्रोब्रेट रीडर होना जरूरी है क्योंकि यहाँ पठनीय सामग्री पीडीएफ में रखी जाती हैं । इसके पहले समाचार एंजेसी राष्ट्रीय न्यूज सर्विस(www.rnsindia.org) ने भी अपना ऑनलाइन कारोबार छत्तीसगढ से प्रारंभ कर दिया है जो घर-बैठे छत्तीसगढ़ सहित देश-विदेश के समाचार सदस्यता शुल्क के साथ उपलब्ध करा रहा है । यहाँ इसी क्रम में सुश्री भूमिका द्विवेदी द्वारा संपादित मीडिया विमर्श(www.mediavimarsh.com) नामक वेबसाइट का उल्लेख करना जरूरी है जो पत्रकारिता के अंदरूनी पहलुओं गंभीर विमर्श करने वाली समूची दुनिया के लिए अंतरजाल पर एकमात्र हिंदी वेबजीन के रूप में समादृत होने लगी है । वैसे तो राज्य के एकमात्र पत्रकारिता विश्वविद्यालय के जाल स्थल में प्रतीकात्मक रूप से कुछ निजी गतिविधियों को भी दिखाया जा रहा है तथापि भविष्य में ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान की अनुप्रेरणा से (भले ही अकादमिक रूप से ) प्रयोगात्मक समाचार साइट की अपेक्षा शायद वेब पत्रकारिता को कैरियर बनाने का सपना संजोने वाली भावी पीढ़ी कर रही होगी ।


ऑनलाइन पत्रकारिता में क्रियाशील पत्रकार
अब देश के बड़े-बड़े पत्रकार प्रिंट माध्यम के साथ-साथ वेब-मीडिया में भी सक्रिय होते नज़र आने लगे हैं इनमें प्रसिध्द लेखक-पत्रकार खुशवंत सिंह, मशहूर संपादक व मानवाधिकारवादी कुलदीप नायर, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण नेहरू, पूर्व सांसद व संपादक दीनानाथ मिश्र आदि को गिना सकते हैं जो प्रभासाक्षी में नियमित रूप से कॉलम लिखते हैं । विख्यात हिंदी कार्टूनिस्ट काक भी सतत् रूप से नज़र आते है । इधर जाने माने पत्रकार व नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव भी सृजनगाथा डॉट कॉम (जो रायपुर से प्रकाशित होती है) पर नियमित स्तंभ लिखने जा रहे हैं । इस सूची में मुंबई के प्रोफेशनल्स कमल शर्मा से नवोदित राज्य के जागरूक संपादक संजय द्विवेदी को भी जुड़ते देखा जा सकता है । जाने माने दक्षिणपंथी गोविन्दाचार्य जैसे विचारक भी इस मीडिया के प्रभाव से मुक्त नहीं है शायद यही कारण है कि मूल्य आधारित पत्रकारिता के लिए कटिबद्ध उनकी चर्चित पत्रिका भारतीय पक्ष (
www.bhartiyapaksha.com) भी पूर्णतः ऑनलाइन पत्रिका बन चुकी है । इतना ही नहीं उसी गोत्र की अन्य महत्वपूर्ण पत्रिकाएं यथा – लोकमंच से संबंद्ध पत्रकार – अभिताभ त्रिपाठी, शशिसिंह भी स्वयं को निरतंर ऑनलाइन उपस्थित किये हुए हैं । इधर छत्तीसगढ़ के पत्रकार एवं व्यंग्यकार गिरीश पंकज ‘बेताल कथा’ स्तम्भ के माध्यम से लगातार हस्तक्षेप कर रहे हैं । इसी क्रम में संजय द्विवेदी का कॉलम ‘मीडिया विमर्श’ भी काबिल-ए-तारीफ़ बनता जा रहा है । प्रख्यात पत्रकार ओम थानवी की लेखनी भी कल्पना नामक एक साइट में लगातार देखने को मिल रही है यह बात अलग है कि उनकी सक्रियता वेब मीडिया में उतनी नहीं है जितनी की प्रिंट मीडिया में । सुदूर एशिया से जीतेन्द्र चौधरी ऑनलाइन पत्रकारिता की लौ लगातार बनाये हुए हैं अपने ब्लॉग – मेरा पन्ना – नाम से । बालेन्दु शर्मा दधीच ऑनलाइन मीडिया और तकनालाजी के क्षेत्र का जाने-माने हस्ताक्षर हैं जिन्हें प्रभासाक्षी के अलावा वाह मीडिया नामक निजी ब्लॉग में सतत् सक्रिय और मार्गदर्शक रूप में देखा जा सकता है । यह समय की माँग और हिंदी को वैश्विक बनाने की स्वस्थ प्रतियोगिता दबाब ही है जो ऑनलाइन साहित्यिक पत्रकारिता भी अपनी पहचान बनाने लगी है । इस परिप्रेक्ष्य में हम राजेन्द्र अवस्थी, रवीन्द्र कालिया जैसे ख्यातनाम संपादकों को भी शुमार कर सकते हैं जो क्रमशः हंस एवं ज्ञानोदय (एवं सहकारी ब्लॉग लेखन भी) के ऑनलाइन संस्करण में समूचे विश्व में पढ़े जा रहे हैं । यहाँ हम उन पत्रकारों का उल्लेख स्थानाभाव के कारण नहीं कर पा रहे हैं जो किसी न किसी ऐसे ऑनलाइन समाचार पत्र से संबंद्ध है जिसका अपना प्रिंट संस्करण भी बाजार में ज्यादा कारगर रूप में उपलब्ध है ।


युनिकोड़ ने बदला वेब-मीडिया का परिदृश्य
वेब मीडिया की लोकप्रियता-ग्राफ में गुणात्मक वृद्धि नहीं होने के पीछे अन्य कारणों के साथ फोंट की समस्य़ा भी रही है । शुरूआती दौर में इन अखबारों को पढ़ने के लिए यद्यपि हिंदी के पाठकों को अलग-अलग फ़ॉन्ट की आवश्यकता होती थी जिसे संबंधित अखबार के साइट से उस फ़ॉन्ट विशेष को चंद मिनटों में ही मुफ्त डाउनलोड़ और इंस्टाल करने की भी सुविधा दी जाती थी (गई है) । हिंदी फ़ॉन्ट की जटिल समस्या से हिंदी पाठकों को मुक्त करने के लिए शुरूआती समाधान के रूप में डायनामिक फ़ॉन्ट का भी प्रयोग किया जाता रहा है । डायनामिक फ़ॉन्ट ऐसा फ़ॉन्ट है जिसे उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि संबंधित जाल-स्थल पर उपयोगकर्ता के पहुँचने से फ़ॉन्ट स्वयंमेव उसके कंप्यूटर में डाउनलोड हो जाता है । यह दीगर बात है कि उपयोगकर्ता उस फ़ॉन्ट में वहाँ टाइप नहीं कर सकता । अब युनिकोड़ित फोंट के विकास से वेब मीडिया में फोंट डाउनलोड़ करने की समस्य़ा लगभग समाप्त हो चुकी है । बड़े वेब पोर्टलों के साथ-साथ सभी वेबसाइट अपनी-अपनी सामग्री युनिकोड़ित हिंदी फोंट में परोसने लगे हैं किन्तु अभी भी अनेक ऐसे साइट हैं जो समय के साथ कदम मिलाकर चलने को तैयार नहीं दिखाई देतीं । दिन प्रतिदिन गतिशील हो रही वेबमीडिया की पाठकीयता (वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी के शब्दों में दर्शनीयता ही सही) को बनाये रखने के लिए पाठक को फोंट डाउनलोड़ करने के लिए अब विवश नहीं किया जा सकता । क्योंकि अब वह विकल्पहीनता का शिकार नहीं रहा । पीड़ीएफ में सामग्री उपलब्ध कराना फोंट की समस्या से निजात पाने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प या साधन नहीं है । भाषायी ऑनलाइन पत्रकारिता वास्तविक हल तकनीकी विकास से संभव हुआ युनिकोड़ित फोंट ही है जो अब सर्वत्र उपलब्ध है।

हिंदी में तकनीक उपलब्ध
वेब-मीडिया खासकर हिंदी में पत्रकारिता के विकास में मुख्य बाधा हिंदी में तकनीक का अभाव रहा है पर वह भी लगभग अब हल की ओर है । विंडोज तथा लिनक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम का इंटरफेस भी हिंदी में बन चुका है । केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडॉक (सेंटर फॉर डवलपमेंट आफ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका निभायी जाती रही है । भाषा तकनीक में विकसित उपकरणों को जनसामान्य तक पहुँचाने हेतु बकायदा
www.ildc.gov.in तथा www.ildc.in वेबसाइटों के द्वारा व्यवस्था की गई है जिसके द्वारा टू टाइप हिंदी फ़ॉन्ट(ड्रायवर सहित), ट्रू टाइप फॉन्ट के लिए बहुफॉन्ट की-बोर्ड इंजन, यूनिकोड समर्थित ओपन टाइप फॉन्ट, यूनिकोड समर्थित की-बोर्ड फॉन्ट, कोड परिवर्तक, वर्तनी संशोधक, भारतीय ओपन ऑफिस का हिन्दी भाषा संस्करण, मल्टी प्रोटोकॉल हिंदी मैसेंजर, कोलम्बा - हिन्दी में ई-मेल क्लायंट, हिंदी ओसीआर, अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश, फायर- फॉक्स ब्राउजर, ट्रांसलिटरेशन, हिन्दी एवं अंग्रेजी के लिए आसान टंकण प्रशिक्षक, एकीकृत शब्द-संसाधक, वर्तनी संशोधक और हिंदी पाठ कॉर्पोरा जेसे महत्वपूर्ण उपकरण एवं सेवा मुफ़्त उपलब्ध करायी जा रही है । जहाँ मंत्रालय के वेबसाइट पर लाग आन करके सीडी मुफ़्त में बुलवाई जा सकती है वहाँ इन में से वांछित एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर डाउनलोड भी की जा सकती है ।

वेब-पत्रकारिता को अधिमान्यता
वेब-पत्रकारिता के प्रति आम पत्रकारों में रूझान की कमी के पीछे इसमें कार्यरत पत्रकारों को भारत सरकार व राज्य शासनों द्वारा मिलने वाली सुविधाएं एवं मान्यता का अभाव भी था जो अब दूर हो चुका है । अब वेब पत्रकार बाकायदा होंगें अधिमान्य पत्रकार, अनुभवी और लम्बी सेवा देने वालों को भी मिलेगी भारत सरकार की मान्यता । यहाँ मध्यप्रदेश शासन को खासतौर पर साधुवाद दिया जा सकता है जिसने भारत सरकार से कहीं पहले वेब पत्रकारिता को अधिमान्यता की श्रेणी में रख कर मिसाल कायम किया है । भारत सरकार भी अब वेब-पत्रकारिता को मान्यता देने वालों देशों में सम्मिलित हो चुका है । देश में वेब-पत्रकारिता को विकसित बनाने के लिए भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय में इसके लिए पिछले वर्ष (यानी 12 सितम्बर 2006) आवश्यक संशोधन हो चुका है । अब वेब-पत्रकारिता को भी एक्रीडेशन या मान्यता मिल चुका है अर्थात् भारत सरकार द्वारा नियमों के संशोधन के बाद अपनी साधना में लगे वेब पत्रकारों को उनके कार्य में आसानी के साथ ही वह सभी सुविधायें मिलने लगेंगीं जो अन्य मीडिया के राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पत्रकारों को मिला करतीं थीं ! इस नये संशोधन से वेब पत्रकारिता को एक जिम्मेवारी और शक्ति दोंनों का इकजाया सयोग मिलेगा और अब इण्टरनेट पर अनेक वरिष्ठ व अनुभवी पत्रकार स्वत: ही जगह बनाने का प्रयास करेगें, साथ ही अब उन नौजवानों के लिये भी प्रशस्ति व उल्लेखनीय कार्यों के लिये दरवाजे खुल गये हैं जो पत्रकारिता को कैरियर के रूप में अपनाना चाहते हैं ! सच्चे मायने में भारत उन विशेष देशों में शामिल हो गया है जो वेब पत्रकारों को प्रत्यायन प्रदान करते हैं। भारत सरकार द्वारा वेब पत्रकारों को निम्नांकित शर्तों के आधार पर अधिमान्यता प्रदान किया जा रहा है-

वार्षिक राजस्व के आधार पर अधिमान्य पत्रकारों के कोटा का विवरण

1. 20 लाख से 1 करोड या संपूर्ण वेबसाइट से 2.5 से 5 करोड़ कुल आय - 3 संवाददाता 1 कैमरामैंन

2. 1 करोड़ से 2.5 करोड़ या संपूर्ण वेबसाइट से 5 करोड़ से 7.5 करोड़ कुल आय - 6 संवाददाता 1 कैमरामैंन

3. 2.5 करोड़ से 5 करोड या संपूर्ण वेबसाइट से 7.5 करोड़ से 10 करोड़ कुल आय 12 संवाददाता 4 कैमरामैन

4. 5 करोड़ से ऊपर या संपूर्ण वेबसाइट से 1 0 करोड़ या उससे अधिक कुल आय - 15 संवाददाता 5 कैमरामैन


मध्यप्रदेश सरकार द्वारा सन् 17 मार्च 2001 से ही जिला, संभाग, राज्य तीनों स्तर पर वेब मीडिया के पत्रकारों को अधिमान्यता प्रदान जा रही है । इसे विडम्बना ही कहा जाना चाहिए कि छत्तीसगढ सहित अन्य सभी राज्यों की अधिमान्यता नीति में वेब पत्रकारिता और पत्रकार के लिए अब तक स्पष्ट प्रावधान नहीं बनाया जा सका है । यह दीगर बात है कि ऐसे राज्य के राजनैतिक आकाओं के इशारे पर अन्य राज्यों के मुख्यालयों से संचालित वेब पत्रकारों और वेबसाइटों को भरपूर विज्ञापन लूटा रहे हैं । भले ही ये राज्य आईटी आधारित नयी वैकासिक नीति का खूब ढिढोरा पीटे जा रहे हो पर ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए वहाँ आवश्यक सहयोग संस्कृति विकसित होना अभी शेष है । इसी तारतम्य में एक वाकया का जिक्र (शासन और जनसंपर्क विभाग से क्षमा याचना सहित) करना अराजकता नहीं होगा । छत्तीसगढ राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय वेबसाइटो में से एक और ऑनलाइन पत्रकारिता की शुरूआती दौर की पत्र
www.srijangatha.com के एक कार्यक्रम में माननीय स्वास्थ्य मंत्री ने 5000 रुपयों की घोषणा कर दी किन्तु इस घोषणा के 8 माह बाद भी उस विज्ञापन के दर्शन नहीं हुए हैं । इतना ही नहीं वांछित अभ्यावेदन पर माननीय मुख्यमंत्री की आवश्यक अनुशंसात्मक टीप व जनसंपर्क प्रमुख की अनापत्ति के बावजूद 14 वर्षीय किशोर द्वारा संचालित इस साइट के लिए राजकीय प्रोत्साहन मिलना अब तक शेष है।

बढ़ रहें हैं नेट उपयोगकर्ता

- अभी इंटरनेट की पहुँच बहुत कम है । ऑनलाइन जगत में हिन्दी के पिछड़ने का प्रमुख कारण यह है कि इंटरनेट से जुड़े भारतीय अपने ऑनलाइन कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग करते रहे हैं। हालाँकि भारत में इंटरनेट से जुड़े लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है और ‘
इंटरनेट विश्व सांख्यिकी’ के ताजा आँकड़े बताते हैं कि भारत में जून, 2006 तक 5 करोड़ 60 लाख इंटरनेट प्रयोक्ता हो चुके हैं और भारत अब अमरीका, चीन और जापान के बाद इंटरनेट से जुड़ी आबादी के मामले में चौथा स्थान हासिल कर चुका है। ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या भारत में 15 लाख हो चुकी है। भारत में अब हर दो कंप्यूटर प्रयोक्ताओं में से एक इंटरनेट से जुड़ चुका है। इंटरनेट पर हिन्दी के जालस्थलों और चिट्ठों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और ‘जक्स्ट कंसल्ट’ द्वारा जुलाई, 2006 में जारी ऑनलाइन इंडिया के आँकड़ों से पता चलता है कि ऑनलाइन भारतीयों में से 60% अंग्रेजी पाठकों की तुलना में 42% पाठक गैर-अंग्रेजी भारतीय भाषाओं में और 17% पाठक हिन्दी में पढ़ना पसंद करते हैं। हालाँकि पाठकों का यह रुझान ज्यादातर जागरण, बी.बी.सी. हिन्दी और वेबदुनिया जैसे लोकप्रिय हिन्दी वेबसाइटों की तरफ ही है, जिन्हें रोजाना लाखों हिट्स मिलते हैं।

कंप्यूटर और लैपटाप के दाम अभी आम आदमी की पहुँच से काफ़ी अधिक हैं पर वह निरंतर गिरावट की ओर है जो इंटरनेट जर्नलिज्म के मार्ग में आने वाली बाधा का एक हल भी है ।


अधिकांश समाचार पोर्टल, समाचार समूह एवं तथा एम.एस.एन, याहू, गूगल जैसी इंटरनेट कंपनियाँ से संबद्ध होती जा रही हैं । भारत का रूझान बताता है कि जैसे-जैसे देश में इंटरनेट कनेक्शन तथा ब्राडबैंड़ तथा वायरलैस कनेक्शन की सुविधा और कंप्यूटर आधारित तकनीकी ज्ञान प्रवीणों की संख्या बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे ऑनलाइन समाचार पत्र-पत्रिका की उपलब्धता और पाठकों की संख्या भी बढ़ती जा रही है । यह प्रभासाक्षी जैसी हिंदी के प्रमुख समाचार-विचार पोर्टल प्रभासाक्षी.कॉम पर होने वाले दैनिक हिट्स की संख्या से भी पता चलता है जो प्रतिदिन तीन लाख से अधिक हो गई है। दो जनवरी 2006 को इस पोर्टल पर तीन लाख एक हजार हिट दर्ज किए गए जो अब लगभग एक करोड़ हिट्स प्रतिमाह की दर जैसे ऐतिहासिक आंकड़ा पार को स्पर्श करने लगी है ।


वेब मीडिया का सकारात्मक भविष्य
हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता का विकास और भविष्य जिन बहुत सारी बातों पर निर्भर करता है उनमें इंटरनेट की पहुँच, बिजली की निरंतरता और सर्वव्यापकता, सॉफ्टवेयर केंद्रित तकनीकी ज्ञान और सुविधा । यूँ तो Windows XP के आ जाने से हिंदी सहित 9 भारतीय भाषाओं में काम करने की समस्या समाप्त प्रायः है तथापि रूढ़गत प्रवृति एवं क्रयशक्ति पतली होने के कारण अभी भी अधिकांश कंप्यूटर उपभोक्ता Window 98 से अपना पिंड नहीं छूड़ा पा रहे हैं जो हिंदी भाषा सहित प्रकारांतर से ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए भी एक बड़ी बाधा है । जो भी हो निम्नांकित प्रयासों को इस दिशा में कारगर और उन्नत भविष्य का संकेत माना जा सकता है-


एडोब और माइक्रोसाफ्ट द्वारा टू टाइफ फोंट विकसित किया है जो मुफ़्त उपलब्ध है। माइक्रोसॉफ्ट द्वारा विकसित युनिकोड़ित फोंट मंगल से फोंट की समस्या लगभग हल चुकी है । स्पैलिंग चेक करने वाला सॉफ्टवेयर, शब्दकोश एवं थिसॉरस, आदि की उपलब्धता के लिए सी डैक, आईआईटी मुम्बई और मैसुर लगातार सक्रिय है जो भविष्य में उपलब्ध होने लगेगी । गूगल, एमसएन लाइव, याहू, और रेडिफ सहित गुरू, रफ्तार आदि के सर्च इंजन हिंदी में विकसित हो जाने से हिंदी खोजने की समस्या हलशुदा है । वेब आधारित कंपनियाँ जैसे दृष्टि, ताराहाथ, आईटीसी ई-चौपाल लगातार ग्राणीण क्षेत्रों में पृथक इंटरनेट सुविधा उपलब्ध कराने हेतु कटिबद्ध है । विकिपीडिया का हिंदी वर्जन भी हिंदी सहित हिंदी पत्रकारिता को गति देने लगी है। हाल ही में ग्रामीण क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड सेवा की उपलब्धता बढ़ाने के लिए केंद्र शासन द्वारा जो सब्सड़ी योजना की घोषणा भी की गई है वह ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन पत्रों के लिए कारगर सिद्ध होने वाला है । आईटी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा मुफ्त वितरित सीड़ी से भी हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा बढ़ रही है । विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा ई-गवर्नैंस और माध्यमिक स्तर से सूचना तकनीक केंद्रित पाठ्यक्रमों के सचांलन से भविष्य की दिशायें धवल दिखाई देती हैं । फ्रंटपेज आदि वेब-डिजायनिंग सॉफ्टवेयरों के मंहगे होने के कारण साधारण आय वाले पत्रकारों को वेबसाइट संचालन जरूर मँहगा पड़ रहा है किन्तु ओपर सोर्स के खुलते द्वार कुछ राहत नज़र आने लगा है । ज्ञातव्य हो कि जुमला ओपन सोर्स दुनिया का ऐसा मुफ्त सॉफ्टवेयर है जिस पर निर्मित पोर्टल या वेबसाइट अधिक रोचक और कारगर होने लगा है । इसी तरह कई ऐसे सॉफ्टवेयर ओपन सोर्सिंग से डाउनलोड किया जा सकता है ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए आवश्यक या वांछित हैं । वेब डियाजनरों की बढ़ती संख्या को भी हम वेब मीडिया के लिए सकारात्मक मान सकते हैं । इसके अलावा भारत के कई विश्वविद्यालयों और शिक्षा प्रतिष्टानों में ऑनलाइन पत्रकारिता पाठ्यक्रमों का जिस गति से विकास हो रहा है उसे देखकर वेब मीडिया का भविष्य संतोषप्रद कहा जा सकता है ।


(लक्ष्मीनारायण महाविद्यालय रायपुर में पत्रकारिता विभाग में दिया गया व्याख्यान)02.02.07

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