Wednesday, December 13, 2006

आईटी का उपहारः विंकलागों के द्वार

शारीरि रूप से विकलांग लोग भले ही ईश्वर को यह कहकर कोस सकते हैं कि उसने उन्हें सामान्य जीवन से वंचित कर दिया पर मनुष्य की मेधा ने उसे सामान्य मनुष्य की तरह जीवन के सभी सुखों को महसूसने की तकनीक मुहैया कराने में कोई कोताही नहीं बरती है । आईटी में सक्रिय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने हाल के वर्षों में जिस तरह विकलांगों के लिए अपनी साधना और समर्पण को रेखांकित किया है उससे क्रांतिकारी परिणाम आने लगा है । आज वह कंप्यूटर आधारित सभी उपयोगों का लाभ उठा सकता है । सच्चे अर्थों में कंप्यूटर और उससे संबंधित तकनॉलाजी ने मिलकर उसके जीवन को आसान बना दिया है ।

यूँ तो भारत सहित कई देशों की सरकारों के अनेक विभाग सहित विभिन्न स्वयंसेवी सस्थाएं विकलागों की बुनियादी तालीम और उनके पुनर्वास हेतु कार्यरत हैं । किन्तु उन्हें सूचना तकनीक में व्यापक तौर पर दक्ष बनाया जाना शेष है । अब वह समय आ चुका है कि उन्हें पारंपरिक शिक्षा एवं रोजगार के साथ-साथ नये ज़माने की तकनीक से भी जोड़ा जाय । वर्तमान में नेत्रहीनों के लिए विभिन्न और विशेष प्रकार के कंप्यूटर स्क्रीन रीडर्स, ब्रेल आधारित आउटपुट डिवाइस है जिसके सहारे वे भी कंप्यूटर स्क्रीन या वेबपेज पर अंकित सामग्री पढ़ सकते हैं । ब्रेल लिपि युक्त बडे स्टीकर्स लगाकर कुंजी-पटल पर भी उनकी अंगुलियाँ खेल सकती हैं । शारीरिक रूप से विकलांग भी आन स्क्रीन कुंजी-पटल के माध्यम से आईटी का लाभ उठा सकते हैं । वैसे तो सामान्य तौर पर कई ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो विभिन्न तरह के विकलागों में सीखने की दक्षता को बढ़ा सकते हैं, कंप्यूटर साक्षरता के प्रारंभिक ज्ञान से लेकर उन्हें गणना, एकाउंटेंसी, टंकण कार्य आदि रोजगार मूलक कार्यों के लिए सक्षम बना सकते हैं । और सिर्फ इतना ही नहीं वे वेब-सर्फिंग, सर्चिंग, सहित, संगीत, का आनंद उठा सकते हैं । कंप्यूटर गेम का मजा भी उठा सकते हैं । पर हम विशेष कंप्यूटक उपकरणों के बारे में चर्चा करना चाहेंगे ।


विशेष कुंजीपटल

आम उपभोक्ता के लिए प्रयुक्त कुंजी-पटल विकलांगों के लिए उपयोगी नहीं हो सकते थे, इसलिए विशेष तकनीक से ऐसे कुंजीपटल विकसित किये गये हैं जिससे विकलांगों की शारीरिक अक्षमता बाधा न रहे और वे कंप्यूटर तकनीक का भलीभाँति उपयोग कर सकें। सीमेंस नामक कंपनी ने एप्लाइड साइबरनैटिक्स के सहयोग से एक विशेष कुंजीपटल तैयार किया है जिसमें कुंजी दबने में होने वाली देरी या 2 बार कुंजी दब जाने जैसी समस्या भी नहीं है । इसमें कुंजी भी अपेक्षाकृत बड़ी हैं जिससे ज्यादा नहीं हिल-डुल पाने वाले विकलांग को भी सरलता होती है । कुछ ऐसे कुंजी-पटल भी ईजाद किये गये हैं जो सिर्फ एक हाथ वालों के लिए कारगर साबित हो रहे हैं । केवल माउस स्टिक से ही कंप्यूटर चलाने वाले विकलांगों के लिए भी यह उपयोगी है । कुछ विकलांग ऐसे भी होते हैं जो चल-फिर ही नहीं सकते, के लिए मिनिएचर वर्सन उपलब्ध है । गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण जिनकी मांसपेशियाँ शिथिल हो चुकी हैं उन्हें भी निराश होने की कोई जरुरत नहीं है । ऐसे लोगों के लिए एक विशेष कुंजी-पटल विकसित हो चुका है जो काफी उपयोगी सिद्ध होने लगा है ।

दो हिस्सों में तैयार एक और छोटा कुंजी-पटल भी विकलांगो को आईटी में पांरगत बनाने के लिए विकसित किया गया है जो सामान्य कुंजी-पटल से 40 प्रतिशत छोटा है । इसमें सारी कुंजियाँ और नंबर ब्लॉक होते हैं । दोनों हिस्सों में ट्राइपॉड यानी कि स्टैंड लगा होता है जिससे इसे व्हीलचेयर में भी फिट किया जा सकता है ।

शारीरिक विकलांगता और आईटी
जो जन्म से, गंभीर बीमारी या हादसों के कारण विकलांगता या अक्षम हैं । खास तौर पर यदि वे पूरी तरह से बातचीत नहीं कर पाते तो उनके लिए यह मंगलमय ख़बर हो सकती है कि अब वे कंप्यूटर की मदद से बोल-बोल कर लिख सकते हैं । अल्टरनेटिव कंप्यूनिकेशन सिस्टम एक ऐसा ही डिवाइस है जिसके सहारे ब्रेन हेमरेज के कारण भी बोलने में अक्षम लोग बोल सकते हैं । इस डिवाइस में एक खास तरह का हार्डवेयर प्रयुक्त होता है जिसमें विशेष इलेक्ट्रोड मांसपेशियों के कारण उत्पन्न होने वाले छोटे-छोटे विद्युत संकेतों को ग्रहण करते हैं । इसके साथ ही इलेक्ट्रोड दूसरी डिवाइसों से जुड़ जाते हैं जो कंप्यूटर के इनपुट को नियंत्रित करती है।

दृष्टिहीनता के लिए भी हल
अब दृष्टिहीनता भी कंप्यूटर और अंतरजाल के उपयोग करने में बाधक नहीं रह गयी । अमेरिका निवासी 41 वर्षीय वेंडी मिलर की ही बात करते हैं जो बचपन से आठ साल से अंधी हैं । वेंडी दृष्टिहीन होने के बावजूद न्यूयार्क टाइम्स का आनलाइन संस्करण नियमित पढ़ती है जिसे विशेष रूप से नेत्रहीनों के लिए विंडो आधारित लिनेक्स ब्राउजर में प्रतिदिन तैयार किया जाता है । बात सिर्फ इतना ही नहीं है वह बताती हैं – वे कंप्यूटर में प्रयुक्त उस स्क्रीन रीड़र सॉफ्टवेयर का उपयोग करती हैं जिसकी गति प्रति मिनट 1000 शब्द है जो सामान्य व्यक्ति द्वारा प्रति मिनट पढे जाने की क्षमता से कहीं अधिक है ।

हाल में ही ऐसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस विकसित हुए हैं जिससे दृष्टिदोष के बावजूद भी कंप्यूटर का उपयोग सामान्य व्यक्ति की तरह किया जा सकता है । जर्मनी के हैम शहर में जर्मन एसोसिएशन फॉर इलेक्ट्रॉनिक एड फॉर द हैंडिकैप्ड ने इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य कर दिखाया है। संस्थान द्वारा एक ऐसी डिवाइस तैयार की गई है जिससे कमजोर दृष्टि वाले भी बड़ी सरलता से कंप्यूटर स्क्रीन में लिखा बाँच सकते हैं । इस डिवाइस में मैग्नीफाइंग ग्लास और वेब रीडर लगा होता है जिससे दृष्टिहीनता स्वयं पानी भरने लगती है।

दृष्टिहीनों की समस्या को दूर करने वाला एक और महत्वपूर्ण डिवाइस है जो ब्रेल लिपि वाले कुंजी-पटल युक्त होता है । इससे टैक्स्ट को कंपोज करने में आसानी होती है । प्रिंटर भी ऐसे बनाये जा चुके हैं जिनसे ब्रेल कॉपी या साधारण प्रिंट दोनों भी प्राप्त किया जा सकता है । जो ब्रेल लिपि नहीं जानते उनके लिए स्पीच सिंथेसाइजर अति विश्वसनीय यंत्र है जिसमें अक्षरों, शब्दों और वाक्यों को बोलकर कंप्यूटर में डाला जा सकता है । यह वर्ड प्रोसेसर, ई-मेल और इंटरनेट आधारित कार्यों में भी सफल है ।

इन दिनों अधिकतर दृष्टिहीन स्क्रीन रीडर इस्तेमाल करते हैं जो कि डॉस आपरेटिंग सिस्टम पर आधारित है । इस डिवाइस की कमजोरी मात्र इतनी ही है कि वह ग्राफिक यूजर इंटरफेस की सुविधा नहीं दे पाता किन्तु कई कंपनियों ने ग्राफिक इंट्रानेट व वेबसाइटों के उपयोग को आसान बनाने के लिए एप्लिकेशन भी देने लगी हैं । विंडोज एप्लिकेशन के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने एक्टिव एक्सेसबिलिटी डव्लपर्स किट प्रस्तुत किया है । हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट द्वारा इंटरनेट एक्सप्लोरर का जो नया संस्करण बाजार में उतारा गया है उसमें स्क्रीन रीड़र के लिए टैक्स्ट ओनली विकल्प भी है । नैटस्कैप ने भी बराबरी करते हुए ओएस/2 रैप 4 एप्लिकेशन प्रस्तुत किया है जिसमें स्पीच रेकॉगनेशन है जिसकी सहारे बहुत कम देख सकने वाले या पूरी दृष्टिहीन भी आईटी में दक्ष बन सकते हैं । एक कंपनी इससे भी एक कदम आगे सिद्ध होने वाली एप्लिकेशन विकसित कर रही है जिसमें स्पीकिंग वेब ब्राउजर भी होगा जिससे हाइपरटैक्स्ट मार्कअप लैग्वेज पेजों को भी समझा जा सकेगा ।

हैड माउस
हैड माउस ऐसा डिवाइस है जिसे स्मार्ट-नैव कैमरा कहा जाता है । इसके सहारे कोई भी विकलांग व्यक्ति मात्र अपने सिर को हिलाकर ही कंप्यूटर संचालित कर सकता है । इसमें रेजोल्यूशन इतना ज्यादा होता है कि सिर के हिलते ही कर्सर हिल जाता है । माना कि प्रयोक्ता का सिर आधा सेंटीमीटर भी घूम गया तो कर्सर पूरे स्क्रीन पर घूम जायेगा । यदि प्रयोक्ता कंप्यूटर स्क्रीन के बजाय अन्यत्र देख रहा होगा तो कर्सर या पार्टर गायब ही हो जायेगा । यह अलग बात है कि कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर भी तैयार कर लिये गये हैं जिससे कर्सर भी यथास्थान रखा जा सकता है । विकलांगों की अंगुली में रिफ्लेक्टिव छल्ला लगाकर उसे माउस की तरह कार्य लिया जा सकता है ।

आई माउस
आई ट्रैकिंग सिस्टम ऐसी पद्धति है जिसमें विकलांग व्यक्ति मात्र अपनी आँखों का उपयोग करके ही कंप्यूटर को उपयोग में लिया जा सकता है । इस डिवाइस में मॉनिटर पर एक कैमरा इस तरह लगा होता है जो प्रयोक्ता की आँखों पर फोकस करता है । हल्के से पलक झपकते ही माउस क्लिक होने लगता है । इसमें प्रयोक्ता स्पीच सिंथेसाइजर वाली विधि से टाइप कर सकता है । फोन कर सकता है । कंप्यूटर सॉफ्टवेयर चला सकता है । इतना ही नहीं वह इंटरनेट-सर्फिंग भी कर सकता है ।

फुट माउस
जैसा कि नाम से ज्ञात है यह पैरों से संचालित यंत्र है । इस माउस में दो पैडल होते हैं । उपयोगकर्ता एक पैर से माउस को क्लिक करता है और दूसरे पैर से कर्सर को नियंत्रित करता है । इस यंत्र की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि इसमें कार्यक्षमता लगभग 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है । साथ ही इसमें हाथ या कलाई पर पड़ने वाला तनाव भी घट जाता है क्योंकि इसमें माउस संचालित करने हेतु हाथ का उपयोग होता ही नहीं ।

बैकपैक
इसे जाइबरकिड्स पीसी भी कहा जाता है । इसका निर्माण जाइबरनॉट नामक कंपनी ने किया है । यह उन विकलांग बच्चों के लिए कारगर है जो पढ़ने-लिखने में कठिनाई महसूस करते हैं। बैकपैक में फ्लैट पैनल टच स्क्रीन डिस्पले, पोर्टेबल स्पीकर और छोटी-सी प्रोसेसिंग यूनिट होती है जिसकी सहायता से विकलांग बच्चे एक दूसरे से बात कर सकते हैं और कक्षा की सारी गतिविधियों में भाग सकते हैं । इस यंत्र की सहायता से वे आनलाइन खरीददारी भी कर सकते हैं ।


बधिरों के लिए भी सौगात
बधिरों के लिए कंप्यूटर अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कंप्यूटर का सबसे अहम पक्ष का दृश्य माध्यम या विजुअल होना है । बधिरों के लिए भी कई ऐसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकसित किये जा चुके हैं जिसके माध्यम से बधिर सांकेतिक भाषा, फिंगर स्पैलिंग और लिप रीडिंग का प्रशिक्षण दिया जा सकता है । इस पद्धति में केवल एक माइक्रोफोन की अतिरिक्त आश्यकता होती है । जैसे ही प्रयोक्ता द्वारा कोई शब्द चुना जाता है उसका सही उच्चारण स्क्रीन पर डिस्पले हो जाता है और ध्वनि भी जब माइक्रोफोन में पहुँचती है उसका भी डिसप्ले स्क्रीन पर होने लगता है । इस तरह से दोनों डिस्पले के अनुसार तुलना कर वास्तविक उच्चारण तक प्रयोक्ता पहुँच सकता है । बधिर आसानी से ई-मेल और चैटिंग भी कर सकते हैं । इस दिशा में ट्रायबल वॉयस द्वारा ईजाद की गई एप्लिकेशन-पॉवो का जिक्र प्रांसगिक होगा जिसमें बधिर और दृष्टिहीन भी चैटिंग कर सकते हैं । इस डिवायस की खासियत है- उसका टैक्स्ट-टू-स्पीच से लैस होना जिसके कारण सरलता से दृष्टिहीन स्क्रीन पर लिखा हुआ आसानी से सुन सकता है और ठीक दूसरी ओर बधिर स्क्रीन पर टैक्स्ट को देख सकता है ।इस सॉफ्टवेयर को ट्रायबल.कॉम से डाउनलोड की सुविधा भी है।

डिसएबल्डपर्सन.कॉम भी एक ऐसा वेबसाइट है जो मूलतः विकलागों के लिए उपयोगी सामग्री से भरा पड़ा है । यहाँ कुछ ऐसी सच्ची कहानियाँ भी प्रकाशित की गई हैं जो प्रत्येक विकलांग के लिए भावनात्मक रूप से भी प्रेरणास्पद है । विकलांगों के लिए दुनिया भर में रोजगार प्राप्त करने की अतिरिक्त जानकारी भी यहाँ प्राप्त की जा सकती हैं ।

इधर राष्ट्राय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (NIIT) ने भी विकलांगों के लिए आई-राइट नामक साफ्टवेयर विकसित की है जिसकी सहायता से विकलांग व्यक्ति कंप्यूटर द्वारा लिख सकता है । जो विकलांग अब तक की-बोर्ड का इस्तेमाल नहीं कर सकता था, वह अब सिंगल प्वाइंट इंट्री व्यवस्था के माध्यम से लिखने का काम कर सकेगा । यह टच पैड, प्रकाश, और आवाज़ से संचालित स्विच व्यवस्था से हो सकेगा । इससे उपयोगकर्ता स्क्रीन पर उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में अपने लायक माध्यम को चुन सकेगा ।
जयप्रकाश मानस
संपादक,
सृजनगाथा डॉट कॉम
रायपुर, छत्तीसगढ

आपके घर से आकाशवाणी !

हो सकता है आपको मेरी बातों पर सहसा विश्वास न हो । शायद आपके मन में यह विचार भी आ जाये कि मैं किसी आध्यात्मिक प्रसंग पर कहना चाहता हूँ पर जिन्हें इंटरनेट प्रौद्योगिकी की क्रांतिकारी शक्तियों की जानकारी हो वे बखूबी समझ सकते हैं कि मैं किसी ढोंगी तांत्रिक की भाँति कोई अंधविश्वास नहीं फैलाना चाहता बल्कि इंटरनेट रेडियो या ऑनलाइन रेडियो प्रसारण की बात करना चाहता हूँ । जी हाँ! यदि आप ऐसा सोचते हैं, तो ठीक सोचते हैं और संभव है कि आपका कोई निजी रेडियो स्टेशन भी हो ।

प्रसारण की दुनिया में यह जादू कर दिखाया है अंतरजाल यानी इंटरनेट ने । दरअसल इस सफलता के पीछे है मल्टीमीडिया को इंटरनेट की सौगात-वर्ल्ड वाइड वेब, कहने का आशय विश्वव्यापी जाल । कदाचित् इन्हीं कारणों से इंटरनेट को हिंदी के भाषाशास्त्री ‘विश्वजाल’ कहते हैं । जो भी हो.... अब आप जब चाहें अपना निजी आकाशवाणी (रेडियो स्टेशन) घर से संचालित कर सकते हैं । यह क्षमता आपके नज़दीक पहुँच चुकी है । इसके लिए आपको प्रसारण मंत्रालय के नियमों-कायदों का भी पालन करने की कोई जरुरत नहीं । भारी-भरकम अमला खड़ा करने के लिए लाखों-करोडों की भी जरूरत नहीं । बस आप तय कर लें कि आपके रेडियो स्टेशन से प्रसारण किन विषयों पर केंद्रित रहेगा? आप गाने सुनायेंगे या समाचार या दोनों ही? कारोबारी दुनिया पर प्रसारण करेंगे या घर-द्वार पर? प्रसारण की भाषा भी आपको ही तय करनी होगी । बशर्ते कि आपके पास हो एक कंप्यूटर, मॉडम, लाइड स्पीकर और इंटरनेट का कनेक्शन । सच मानिए, इससे आप अपने आसपास तक ही नहीं अपितु विश्व के किसी भी कोने तक प्रसारण कर सकते हैं । यानी आपके रेडियो प्रसारण की कोई सीमा नहीं । वह भी चौबीसों घंटे । ठीक वैसे ही जैसे चौबीसों घंटे Live365.com प्रसारित करता है ।

इसे आईटी के विशेषज्ञों का कमाल ही कहिए कि अब तकनीकी दुनिया में ऐसे सॉफ्टवेयर ईजाद किये जा चुके हैं जिनसे डिजिटल रिकार्डिंग को किसी भी कंप्यूटर के मेमोरी या भंडार में रखा जा सकता है । इसे इंटरनेट पर प्रसारित कर दिया जाता है जिसे श्रोता का कंप्यूटर तुरंत ग्रहण कर सकता है और लगातार ऑनलाइन सुन सकता है । यह तकनीक को MBONE (IP Multicast Backbone on the Internet) कहलाता है ।

जबसे टेलीफोन लाइन पर डिजिटल सामग्री के प्रसारण की शुरुआत हुई है, रिकार्ड की गई आवाज़ को दुनिया में कहीं भी भेजना संभव हो गया लेकिन इस आवाज़ को तभी सुना जा सकता था, जब संपूर्ण डिजीटल रिकार्डिंग को पहले श्रोता का कंप्यूटर ग्रहण न कर ले और अपने पीसी में संग्रहित न कर ले । इसके पश्चात ही वह इस ध्वनि फाइल को साउंड सॉफ्टवेयर पर चला कर सुन सकता था । तब इस प्रसारण को तत्क्षण सुनने की क्षमता नहीं होने के काण उस प्राप्त रिकार्डिंग को सुनना रेडियो सुनने जैसा नहीं था । वह किसी सीडी या कैसेट को सुनने जैसा था । लेकिन वर्ल्ड वाइड वेब के मार्फत अब प्रसारण को तत्क्षण व निरंतर सुनने की क्षमता विकसित हो चुकी है और इसने संपूर्णतः रेडियो का रूप ग्रहण कर लिया है । है न ताजुब्ब की बात!


ऐसे रेडियो स्टेशन की संपूर्ण दुनिया तक पहुँच शक्ति के पीछे है इनका अपने संकेतों को टेलीफोन लाइनों के जरिए भेजा जाना जबकि पुराने ढंग के रेडियो स्टेशनों में संकेत वायुतंरगों के द्वारा भेजा जाता था । इस तथ्य में सबसे खास बात है इन रेडियो स्टेशनों को स्थापित करने के लिए मंहगे ट्रांसमीटरों और प्रसारण केंद्रों की भी अब आवश्यकता नहीं रह गई है । सच तो यह भी है कि इसके लिए कोई लाइसेंस लेने की भी दरकार नहीं ।


आवश्यक सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर

अब शायद आप यह जरूर पूछना चाहेंगे कि रेडियो केंद्र को संचालित करने के लिए क्या-क्या आवश्यक है । लीजिए, वह भी बताये देते हैं- पहला- ऐसा सॉफ्टवेयर जिससे आप वेब रेडियो स्टेशनों से प्रसारित ध्वनि अर्थात् गीत-संगीत, बातचीत आदि को सुना सकें । इन सॉफ्टवेयरों में वैसे तो प्रोग्रेसिव नेटवर्क का रियल आडियो (Real Adio) सबसे पसंदीदा है तथापि अब तो कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनमें विंडो मीडिया प्लेयर, विनएम्प, झिंग प्लेयर्स, क्विक टाइम, आई ट्यून्श प्रमुख हैं । विंडो मीडिया प्लेयर्स तो Windows xp आदि ऑपरेटिंग सिस्टम में बाय डिफाल्ट है । अर्थात् इसके लिए अतिरिक्त खर्च भी नहीं । उपर्युक्त सभी ध्वनि केंद्रित सॉफ्टवेयर्स मुफ्त में डाउनलोडेबल हैं । आप चाहे तो इनमें से कोई भी मनपंसद सॉफ्टवेयर www.downlod.com से मुफ़्त में डाउनलोड करके इंस्टाल कर सकते हैं । वैसे इन सॉफ्टवेयरों को उनके नाम के वेबसाइट से भी डाउनलोड किया जाना अति सरल है । इन दिनों इंटरनेट पर संचालित अधिकांश ऑनलाइन रेडियो स्टेशनों में इन्हीं सॉफ्टवेयरों का उपयोग किया जा रहा है । इनमें भी रियल आडियो का लेटेस्ट वर्जन लेना अधिक फायदेमंद होगा क्योंकि इससे अच्छी स्टीरियो जैसी आवाज़ पायी जा सकती है । इसके अलावा शिंग टेक्नोलॉजी के स्ट्रीमवर्क्स और लिक्विड आडियो के लिक्विड म्युजिक प्लेयर सॉफ्टवेयर को भी आजमाया जा सकता हैं ।

दूसरा – कोई पंसदीदा वेब खोजक (ब्राउजर) । जैसे नेटस्केप नेवीगेटर या फॉयरफॉक्स । यहाँ हम माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर का जिक्र जानबुझकर नहीं कर रहे हैं क्योंकि यह भी विंडो में बायडिफाल्ट होता है और अधिकांश भारतीय विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम ही काम में ला रहे हैं । ब्राउजर की उपयोगिता इसलिए भी है कि इससे मनमाफिक भाषा या विषय का रेडियो चैनल सर्च किया जा सके । तब तो और जरुरी है जब आप केवल इंटरनेट सुनना चाहते हैं ।

जैसा कि हम इंटरनेट कनेक्शन के बारे में पहले ही बता चुके हैं यह वेब रेडियो की रीढ़ है । सामान्य घरेलू कनेक्शन में देखा गया है कि रेडियो का प्रसारण ठीक से नहीं हो सकता क्योंकि इसमें डेटा ट्रांसफर रेट कम होता है । उचित होगा कि आप कोई ब्रॉडबैंड या और उन्नत नेट सर्विस की सेवा ले लें । ऐसा करने से आपके रेडियो स्टेशन का प्रसारण विश्व के किसी भी कोने तक पहुँचना सरल हो सकेगा । कुल मिलाकर ये अग्रांकित न्यूनतम किन्तु अपरिहार्य चीजें भी आपके पीसी में हों –विंडो 98, 2000, मिलेनियम या एक्सपी वर्सन का ऑपरेटिंग सिस्टम । 128 एमबी रैम, पैंटियम, 600 मैगाडर्टज् या अधिक उन्नत प्रोसेसर, न्युनतम 128 केवीएस स्पीड वाला इंटरनेट कनेक्शन, जावास्क्रीप्ट सहित इंटरनेट एक्सप्लोरर । पॉपअप निरोधक फायरवॉल । एक एमपी-3 प्लेयर ।

कितने ही रेडियो स्टेशन

इतनी चीजों की व्यवस्था हो जाने पर आप किसी भी रेडियो नेटवर्क की जानकारी के लिए इंटरनेट पर सर्च कर सकते हैं । वैसे इन दिनों कई ऐसे वेबसाइट हैं जो रेडियो नेटवर्क की सूची उपलब्ध करा रहे हैं । उदाहरण के लिए प्रोग्रेसिव नेटवर्क की जानकारी के लिए www.timecast.com पर लॉग ऑन करें । यहाँ 400-500 वेब-रेडियो के पते हैं । या फिर मुफ़्त इंटरनेट रेडियो स्टेशनों की जानकारी के लिए रेडियो फ्री वर्ल्ड पर जायें । इसका पता है www.radiofreeworld.com । यहाँ दुनिया भर के वेबरेडियो केंद्रों की विस्तृत जानकारी और लिंक उपलब्ध है । उदाहरण बतौर www.ktru.org टेक्सास के राइस युनिवर्सिटी के छात्र द्वारा संचालित ऑनलाइन रेडियो है जहाँ आप शैक्षणिक जानकारी ले सकते हैं । इनमें से कुछ ऐसे हैं जो आपको अपना रेडियो स्टेशन केंद्र स्थापित करने का मुफ़त आमंत्रण देते हैं और कुछ नाममात्र का रजिस्ट्रेशन शुल्क लेकर सेवा उपलब्ध कराते हैं । live365.com एक ऐसा रेडियो केंद्र है जहाँ विश्व भर के कई देशों की साइटों की डायरेक्टरियाँ हैं । उदाहरण स्वरूप अनुराग के रेडियो स्टेशन (www.live365.com/stations/anupam2005)पर आप भारतीय शास्त्रीय संगीत सुन सकते हैं । यह साइट आपको कुछ शर्तों के साथ अपना इंटरनेट रेडियो स्थापित करने की सुविधा दे सकता है । वैसे आपकी आवाज़ मधुर है । दो-चार मित्र आपके साथ इस काम में नाम और दाम दोनों कमाना चाहते हैं तो कुछ ही रुपया खर्च कर अपना स्वतंत्र वेबसाइट बनाकर भी ऑनलाइन रेडियो प्रसारण कर सकते हैं ।

हिंदी के इंटरनेट रेडियो

ऑनलाइन संगीत स्टेसन (24x7)
Haagstad Radio, The Hague

रिकार्डेड समाचार स्टेशन

आंशिक हिंदी प्रसारण स्थानीय केंद्र
अब तो जाने कितनी तरह की वेब रेडियो इंटरनेट पर सक्रिय हैं । कोई पश्चिमी धुन सुनाता है तो कोई पूर्वी दुनिया का कोई राग । कोई शास्त्रीय संगीत सुनाने के लिए चल रहा है तो कोई मात्र आधुनिक संगीत । शुरु-शुरु में आपको भी इन्हें इंटरनेट पर तलाशना पडेगा । ठीक जैसे मैंने तलाश की । हुआ क्या कि मैं एक दिन यूँ ही इंटरनेट पर ऐसे रेडियो स्टेशनों के बारे में जानने के लिए बेताब था जहाँ कविताएँ सुनी जा सकें और जिन्हें सुनने में कोई बाधा न हो यानी कि कि ऐसा इंटरनेट रेडियो जहाँ पॉप-अप विज्ञापन न हों या कम हों, और नए पुराने गाने भी बीच-बीच में चलते रहें।

इस तलाश के दौरान मिली किसी माइक भाई की वेब-साइट – माईक्स रेडियोवर्ल्स यानी कि www.mikesworld.com । माइक ने बकायदा सूची बना रखी है दुनिया भर के ऐसे रेडियो स्टेशनों की जो इंटरनेट पर प्रसारण करते हैं। इनकी संख्या 3000 से कम कहीं अधिक है । दक्षिण और पूर्व एशिया की सूची में भारत का कहीं नाम नहीं है। हाँ वीएसएनएल (www.internet.vsnl.com )ने दो स्टेशन प्रारंभ किया है जो 24*7 प्रसारण करता है । इसमें से एक है हिंदी भजन चैनल और दूसरा तमिल चैनल । ऐसा कुछ अब आकाशवाणी से तो उम्मीद कर नहीं सकते कि लगातार अपने कार्यक्रम वेबकास्ट करे। सिंगापोर का एक स्टेशन है, जो ठीक से चलता नहीं है। मध्य-पूर्व के स्टेशनों में संयुक्त अरब अमीरात का सिटी १०१.६ (http://asx.abacast.com) है, जो अच्छा है। यहाँ हिंदी भाषियों के लिए काफी कुछ प्रसारित होता रहता है । इसके अलावा यूरोप, अमरीका और अफ्रीका की सूचियों में भी कई स्टेशन हैं जो भारतीय संगीत बजाते हैं। वैसे यहाँ 3000 सभी इंटरनेट रेडियो की सूची को उनके प्रसारण चरित्र और प्रसारण स्थल के आधार पर सूचीबद्ध किया गया है । इसलिए ढूँढने वालों के लिए कोई कठिनाई कि वे किस देश की किस भाषा में संगीत सुनना चाहते हैं । पर गूगल से खोजने पर एक और इंटरनेट रेडियो स्टेशन मिला जिस का नाम तो बकवास(www.rediobakwaas.com) है, पर काम बढ़िया करता है। बस एक बार साइन-अप करना पड़ता है। वैसे यह अब लगता है बंद हो चुका है । पर देशीहिट नामक एकसाइट(www.desihitsradio.com) अपना काम शुरु कर चुका है जहाँ आप हिंदी फिल्मी गाने सुन सकते हैं । वैसे आकाशवाणी(Air) का पुराना यूआरएल भी वहीं ले जाता है। सुना है वह जल्दी ही ऑनलाइन रेडियो की सुविधा जल्दी ही देश के सभी क्षेत्रों पहुँचाने वाली है । मस्त रेडियो और रेडियो तराना नामक दो अच्छे रेडियो स्टेशन के लिंक यहाँ भी हैं - www.hindilink.com/hindi_radio.html

गूगल, एमएसएन आदि सर्च इंजिनों की सहायता से 10 हजार से अधिक रेडियो स्टेशनों की सूची देखते ही देखते संग्रहित की जा सकती है और जिसके माध्यम से विश्व के किसी भी संस्कृति के बारे में घर वैठे जाना जा सकता है । जब मैं ऐसे किसी पसंदीदा रेडियो स्टेशन पर कुछ खास सुनता रहता हूँ तो मन ही मन उस वैज्ञानिक का धन्यवाद ज्ञापित करता रहता हूँ जिसे Carl Malumud के नाम से सारे विश्व में जाना जाता है और जिसने 1993 में दुनिया का पहला इंटरनेट रेडियो स्टेशन विकसित किया था ।

इंटरनेट रेडियो या वेब रेडियो बड़ी काम की चीज है । दुनिया में इसका उपयोग सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं अपितु शिक्षा, सूचना और संचार सहित वैकासिक कार्यकमों के लिए भी हो रहा है । इसी तकनीक का फायदा उठाकर युनेस्को ने भी श्रीलंका के डाक, तार एवं दूरसंचार मंत्रालय मंत्रालय तथा श्रीलंका ब्रॉडकॉस्टिंग कार्पोरेशन, कोलम्बो विश्वविद्यालय के सहयोग से इंटरनेट रेडियो संचालित किया जा रहा है जिसकी सहायता से सेंट्रल श्रीलंका के कुछ हिस्सों जैसे काटमले, गम्पोला, नवलपिटिया, और दिसपाने आदि ग्रामीण क्षेत्रों में ई-लर्निंग का काम साधा जा रहा है । इस इंटरनेट रेडियो संचालन में स्थानीय लोग प्रवीण हो चुके हैं जिसमें 50 प्रतिशत यूजर्स महिला हैं । अधिकांश 15 से 20 आयु वर्ग हैं । इसमें से 70 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के पास कंप्यूटर भी है ।

जो लोग यह सोचते हैं कि लेटे-लेटे रेडियो सुनना और कंप्यूटर पर बैठे-बैठे इंटरनेट रेडियो में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है । सच है कंप्यूटर पर रेडियो सुनना कठिन काम है पर सच खुश होइए कि इसका भी निदान किया जा चुका है । 'इनट्यून' नामक एक छोटा-सा रेडियो है जो किसी भी कंप्यूटर से वायरलैस यानी बेतार तकनीक से जुड़ सकता है । ब्रिटेन के मैनचेस्टर स्थित कंपनी पीडीटी पोर्टेबल प्लेयर तैयार करनेवाली कंपनी, पीडीटी के प्रबंध निदेशक डेविड होल्डर का कहना है कि " इंटरनेट रेडियो एक उपलब्धि है क्योंकि कंप्यटूर के पास बैठ कर कोई भी संगीत नहीं सुनना चाहता था, इनट्यून की मदद से अब कोई भी कंप्यटूर के निकट बैठे बिना रेडियो सुन सकेगा।" आप कुछ भी कहें, पर रेडियो तरंगे ऐसी तकनीक है जिससे यह संभव है ।

तो आप अपना इंटरनेट रेडियो लांच करने के लिए तैयार हैं ना ! एक बार प्रयास करके तो देखिए । वैसे आपको पूरी छूट है कि समाचार, विचार, फिल्म, संगीत, कृषि, राजनीति, संस्कृति, साहित्य, कला, वाणिज्य, व्यापार, वैंक, विज्ञान, परिवार, समाज, समस्या चाहे किसी भी विषय पर अपना प्रसारण कर सकते हैं । है ना प्रौद्योगिकी में सकारात्मक और प्रजातांत्रिक स्वतंत्रता की पहल। मनोरंजन का मनोरंजन और मेहनती हों तो विज्ञापन से कमाई भी । नाम भी होगा और पुरस्कार भी मिलेगा जैसे अपनी स्थापना के कुछ ही दिनों के भीतर सिएटल के समाचार प्रसारक Kiro को उसके निजी इंटरनेट रेडियो www.kiro710.com में समाचार रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कार मिलने शुरु हो गये थे । कहा जाता है अब तो उन्हें कितने ही पुरस्कार मिल चुके हैं । जाते-जाते हम आपको एक और वेबसाइट का यूआरएल दिये जाते हैं चाहें तो आप यहाँ मुफ्त में केवल पंजीकृत होकर अपना इंटरनेट रेडियो घर से संचालित कर सकते हैं । सचमुच तैयार हैं तो यह लीजिए - www.shoutcast.com
जयप्रकाश मानस
संपादक
www.srijangatha.com
E-mail:srijangatha@gmail.com

लोक को स्पर्श करती वेबमीड़िया

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था - “लोक-संग्रहमेवापि संपश्यन् कर्त्तुमर्हसि ।”

(और कुछ नहीं जानते-मानते तो, कम से कम, लोक-संग्रह को ध्यान में रखते हुए- संपश्यन् – तुम्हें कर्म से नहीं भागना चाहिये । )

अंतरजाल(इंटरनेट) की रंग-बिरंगी दुनिया की सैर करते वक्त गीता की यह पंक्ति बार-बार सुनाई देती है । संवेदनाहीनता के इस भयानक दौर और हर क्षण अत्याधुनिकता के लिए लपलपाती जीव्हा वाले युग के बीच छटपटाते हुए मन में धुंधली ही सही पर कुछ किरनें विश्वास जगाती हैं कि मनुष्य चाहे कितना भी उत्तरआधुनिक हो जाये वह लोक के प्रति अपने नैतिक दायित्वों को संपूर्णतः नहीं टाल सकता है ।

इसे लोक-चेतना का तकाज़ा ही कहें कि वैश्वीकरण के तमाम दबाबों के बावजूद मनुष्य अपने पुरावैभव को भूला नहीं पाया है । वह क्यों कर भी भूलाये ! वह एकदम से नैतिकताशून्य हो नहीं सकता । शायद उसे यह भी पता है कि लोक-चेतना वेद-शास्त्रों से भी पुरानी है । इस भूमिका की ज़मीन पर खड़े होकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि वेबमीडिया यानी इंटरनेट की थाल पर सूचना तकनीक के नाम से जो भी परोसा जा रहा है वह मात्र कूड़ा-कर्कट नहीं है, उसे नीर-क्षीर विवेक के साथ देखने की गुंजायश है । उसे हम नागर और अति-नागर बोध की विकृति मान लेंगे तो शायद अन्याय होगा । वहाँ लोक की हरियाली भी यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है । कहीं पनघट पर पनिहारिनों की चुडियों की लय में लोकगीत की मद्धिम धून है तो कहीं चौपाल पर बुजुर्गवारों की बतकही के बीच-बीच में उभरती लोककथायें भी । कहीं शोख और चटक परिधानों में सजे-सँवरे ग्राम्यबालाओं को गिद्धा या करमा की नृत्यमुद्रा में भी आत्मविभोर होकर देख सकते हैं और कहीं उस कलाकार की जीवटता को भी जो निहायत अनुपयोगी चीजों को एक जीवंत रूप दे देता है । आइये आप भी जऱा सैर करलें :

वेबपोर्टल में समृद्ध लोक-रंग

भारतीय लोक की दुनिया अति समृद्ध रही है । सच तो यह है कि भारतीत जीवन जितना नागर रूप में है उतना ही लोक रूप में । यानी कि आधुनिकता और परंपरा से समन्वित जीवन शैली । सच यह भी है कि कोई भी देश या उस भू-भाग का कोई समाज केवल आधुनिक समय में नहीं जीता, उसमें लोक-परंपराओं की साँसे भी होती हैं । समृद्ध भारतीय लोक-रूपों का समृद्ध लोक-संग्रहण किया है - डिजटल सांस्कृतिक संपदा पुस्तकालय, इंदिरा गाँधी सेंटर कला एवं सस्कृति केंद्र ने । इन्होंने जाल स्थल का नाम रखा है- http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCAपारम्परिक साहित्य वर्ग में जातक की कहानियाँ सहित, हितोपदेश, पंचतंत्र, सिंहासन बत्तीसी जैसे अनिवार्य लोकसाहित्य का भंडार है । यहाँ मौखिक महाकाव्य, ब्रज-वैभव, वैदह वैभव - मिथिला- वैभव , और मगध का रसपान किया जा सकता है । वेब-पृष्ठ ‘ब्रज-वैभव’ अपने नामकरण को सच्चे अर्थों में चरितार्थ करता है । यहाँ आप ब्रज को जिस किसी कोण से जानना-पढ़ना चाहते हैं, मिल जायेगा । बस्स, आप शीर्षकों पर अपना माउस क्लिक करते जाइये । यह एक तरह से ब्रज पर केंद्रित एवं सारगर्भित विशालतम वेब-स्थल है । एक मायने में ब्रज का इनसायक्लोपीडिया । यहाँ ब्रज की झीलें, सरोवरें, कुंड, ताल, पोखर, बावड़ी, कूप से लेकर रास नृत्य, सूखे रंगों की चित्रकला, सांझी कला, कलाकृतियों में प्रस्तुत कथा दृश्य, भाषा, संगीत को संपूर्ण आत्मीयता के साथ संजोया गया है । संगीत ब्रज-संस्कृति का अविभाज्य अंग रहा है । भारतीय संगीत को ब्रज की देन के रूप में हम आज भी जिस तरह ध्रुवपद- धमार, वृंदगानी विद्या, ग्वारिया बाबा, हरिदासजी, वल्लभाचार्य, संगीत शिरोमणि सूरदास आदि को जिस तरह याद करते हैं वह हमारे लोक जीवन को उज्जवल और मन को शांति प्रदान करने में सर्वोपरि है । ब्रज वैभव अध्याय में ही राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी की महत्वपूर्ण लोक ग्रंथ धरती और बीज को समूची प्रतिष्ठित किया गया है जो नये ज़माने की तकनीक इंटरनेट के माध्यम से लोक साहित्य के वैश्वीकरण का ईमानदार प्रयास है । ज्ञातव्य हो कि यह कृति हजारों पृष्ठों की हैं एवं बहुमूल्य है । इसके अलावा बुंदेलखण्ड की लोक संस्कृति का इतिहास नामक पूरी किताब को भी रखा गया है जिसके लेखक है नर्मदा प्रसाद गुप्त । अन्य किताबों में बुन्देलखण्ड की लोक संस्कृति का इतिहास, परिव्राजक की डायरी, हजारी प्रसाद द्विवेदी के पत्र, युगान्तर (अन्तरंग-वार्त्ता), अक्षर-अक्षर अमृत (अन्तरंग-वार्ता) भी लोक के बहाने पठनीय हैं । इस तरह से यहाँ हजारों पृष्ठ की लोक-सामग्री संग्रहित है ।

इतना ही नहीं यहाँ भारत के प्रतिष्ठित लोकविशेषज्ञों के शोधपूर्ण आलेख भी यहाँ हिंदी में समादृत हैं । इसमें 1. कला वह वस्तु है जो जीवन को परिपूर्ण बनाती है (अटल बिहारी बाजपेयी), 2. अतीत का अद्यतन अस्तित्व –मथुरा (वीरेन्द्र बंगरु) 3. ॠग्वेद में सामाजिक जीवन (विजय शंकर शुक्ल) 4. जनपद सम्पदा – (प्रोफेसर बैद्यनाथ सरस्वती) 5. राक पेंटिग पर केंद्रित शिलाओं पर कला (हिमानी पाण्डे) तथा ‘भारतीय परम्परा में भाषा संस्कृति एवं लोक की अवधारणा तथा उनका परस्पर अन्त:सम्बन्ध’ और ‘प्रक्रिया रूप में भाषा, संस्कृति और लोकः एक सतत् प्रक्रिया’ नामक महत्वपूर्ण लेख भी हैं जो लोकअध्येताओं के लिए किसी संदर्भ सामग्री से कम नहीं ।
छत्तीसगढ़ जैसे लोक प्रदेश को व्यापक रूप से समझने के लिए भी इसी वेब-स्थल का भ्रमण किया जा सकता है । यहाँ
छत्तीसगढ़ का लोकगीत, लोकनृत्य, लोक कथाएँ, लोकगाथा, लोकोक्तियों (हाना), छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के पहलुओं के कलाकार, लोक आभूषण, लोक खेल, लोक- वाद्य लोक-संस्कृति से जुड़ी हुई गतिविधियाँ आदि सभी लोक अवयवों को समाहित किया गया है । यहाँ कुछ बातें खटकने वाली भी हैं । उदाहरण के लिए- दिल्ली की पढ़ी-लिखी एक महिला को, जो सामजिक संस्था चलाती है, छत्तीसगढी संस्कृति का विशेषज्ञ बताने का प्रकारांतर से किया गया प्रयास । इतना ही नहीं, लोकसंस्कृति के क्षेत्र में अज्ञात संस्था को प्रमुख लोक आयोजक बताया गया है । यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति के मर्मज्ञों के लिए आपत्ति जनक भी हो सकती है फिर भी भारत सरकार और इंदिरा कला केंद्र को साधूवाद, जिसके कारण छत्तीसगढ़ जैसे नवोदित प्रदेश और उसके लोकवैभव को कम से कम इतना तवज्जो मिला है । अन्यथा राज्य के इस लोक-संपन्नता को विश्वव्यापी बनाने की दिशा में किये जा रहे वादे और घोषणायें के बल पर तो कुछ भी संभव न हो पाता । बहरहाल यहाँ नारी मनोविज्ञान की प्रिय कला गोदना पर भी सामग्री दी गयी है जो और कहीं देखने को नहीं मिलती । कुछ लोकगीतों को आडियो फार्मेट में रखा गया है । सुआ, पंडवानी, भरथरी जैसे लोकगीत को इंटरनेट पर देखकर कोई भी प्रवासी छत्तीसगढिया आनंदित हुए बिना नहीं रह सकता जो विश्व में इस जनपद की पहचान हैं । यहाँ छत्तीसगढ़ी साहित्य का भी विहंगावलोकन किया जा सकता है । जिसे वेब संपादक ने गाथा युग , भक्ति युग-मध्य काल, आधुनिक युग में बाँटकर प्रस्तुत किया है । यह बात अलग है कि छत्तीसगढ़ी साहित्य को बाँटने का क्या आधार है नहीं बताया गया है ।

इसी तरह मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराचंल आदि प्रदेशों की लोक-संपन्नता का आंकलन इसी जाल-स्थल से संभव है । उत्तराचंल को ‘मेलों का अंचल ’ कहें तो अतिशयोक्ति न होगी । शायद इस तथ्य का खयाल रखते हुए राज्य के सभी मेलों की विस्तृत और सम्यक जानकारी भी यहाँ रखी गयी है । इसमें राजस्थान में सूर्य प्रतिमाओं का रुपांकन , राजस्थानी गाथाओं में वेश-भूषा वर्णन व लोक विश्वास, कुमाऊँ की आलेखन परम्परा, कुमाऊँ हिमालय की पारम्परिक प्रौद्यौगिकी-पद्धतियाँ, मृतक-कर्म की रीतियाँ आलेख आदि अत्यंत रोचक और संग्रहणीय बन पड़ी हैं । राजस्थान की लोक संस्कृति को उसके जनपदों के आधार पर प्रतिष्ठित किया गया है जिसमें मेवाड़(उदयपुर),मारवाड़, झालावाड़,कोटा क्षेत्र, अलवर, भरतपुर आदि प्रमुख हैं । राजस्थानी चित्रकला के शोधार्थियों के लिए यह वेबपृष्ठ आँखों को चमक प्रदान कर सकती है । राजस्थानी चित्रकला की विशेषताएँ ,राजस्थानी चित्रकला का आरम्भ सहित मारवाड़ी शैली, किशनगढ़, बीकानेर, हाड़ौती शैली/बूंदी व कोटा, ढूंढ़ार / जयपुर, अलवर, आमेर, उणियारा, सहित डूंगरपूर, देवगढ़ उपशैली पर विशद् सामग्री यहाँ रखी गयी हैं । मेवाड़ और मारवाड़ समाज पर जितनी सामग्री है उसे देखकर कोई भी समाजशास्त्री अचम्भे में पड़ सकता है । इसी तरह मध्यप्रदेश के ग्वालियर के चितेरे एवं उनके बनाए भित्ति चित्र, ग्वालियर के अनुष्ठानिक भित्ति चित्र भी महत्वपूर्ण हैं जो पारंपरिक चित्रकलाओं की किसी ख़ास किताबों में भी कई बार नहीं दिखाई पड़ते ।

भारत सरकार को धन्यवाद देते हुए आइये ऐसे ही एक और व्यापक वेबपोर्टल की ओर जो केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडॉक (सेंटर फॉर डवलपमेंट आफ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका के रूप में संचालित की जा रही है । विश्वप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री गिजूभाई की दर्जनों लोककथाएँ आनलाइन पढ़ने और डाउनलोड करके अपने कंप्यूटर में स्थायी रूप से संजोकर रखने की ख़्वाईश इस वेबघर(mobilelibrary.cdacnoida.com/Books/KahaniKahunBhaiya.doc) में आकर की जा सकती है ।

संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा संचालित राष्ट्रीय संग्रहालय में लोक का अद्भूत संग्रह है उसे (www.nationalmuseumindia.gov.in) नामक वेबसाइट में प्रचारित करने का प्रयास किया जा रहा है । यद्यपि राष्ट्रीय संग्रहालय में चित्रकला प्रभाग के अंतर्गत प्राचीनतम ज्ञात लघुचित्र, पूर्वी भारत में 10वीं और 12वी शताब्दियों में ताड़-पत्र के वृंतों पर बनाए गये थे, की व्यापक जानकारी मिलती है । पाण्डुलिपियाँ नामक प्रभाग में विभिन्न भाषाओं और लिपियों में लिखित लगभग 14,000 पांडुलिपियों का अर्जन किया गया है ये प्राचीन काल की इतिहास, साहित्य, सुलेखन कला, चिकित्सा शास्त्र, जीवनियों आदि से संबंधित हैं, जिसके बारे में भी यह वेबपृष्ठ बखान करता है । मुद्रा एवं अभिलेख एक तरह से सिक्कों का वेब पर राष्ट्रीय संग्रहालय जैसा है । यहाँ भारतीय सिक्कों का समूचा इतिहास (6वीं शताब्दी ई.पू. से 19वीं शती ई. का समापन काल)भी निर्देशित है । इसके अलावा आभूषण वीथिका, नृविज्ञान, अस्त्र-शस्त्र और कवच, सुसज्जा कलाएं आदि खंड़ों में भी लोक आधारित प्रचुर सामग्रियों कें संदर्भ हैं ।


‘लोक’ को चाहे विद्वान कितना भी जटिल मानते रहें और उत्तरआधुनिकवादी उसे अस्पृश्यभाव से देखते रहें, यह शब्द जब मस्तिष्क में घुलता है, सबसे पहले उसके अर्थ का जो रस मिलता है उसमें नानी-नाना की कहानी बरबस याद आने लगती हैं । हम लोककथा की दुनिया में पहुँच जाते हैं । ऐसे ही लोककथाओं की सुंदर-सी फुलवारी है चीन का जाल-स्थल- चाइना रेडियो इन्टरनेशनल का हिंदी सेवा (http://in.chinabroadcost.cn/) ।

यूँ तो यह चीन के समृद्ध लोक को प्रतिबिंबित करता हुआ वेबजाल है किन्तु यहाँ चीन की जितनी लोककथायें संजोयी गयी हैं उतनी संख्या में शायद ही किसी देश की लोककथाएँ अन्यत्र किसी वेबजाल पर होगीं । कम से कम हिंदी अनुवाद के रूप में तो यह बात सौ आने खरी उतरती है । यहाँ बाकायदा लोक कथाओं को कई भागों में बाँट कर रखी गयी हैं, इनमें कहावत से जुड़ी कथाएं, पौराणिक कथाएं, नीति कथाएं, दर्शनीय स्थलों से जुड़ी कथाएं, बुद्धि से जुड़ी कथाएं, सैनिक कहानी आदि विभेदों में अर्धशतक से अधिक लोककथायें संग्रहित है । इन कथाओं का बस आप बाँचते जाइये और देखिए आपका मन चीन के समृद्ध अतीत में कैसे विचरण करने लगता है । वही नदी, वही पर्वत, वही पशु-पक्षी वही लोग-बाग और उनसे जुडे मार्मिक और रोचक कथा संसार । कुछ लोककथायें तो वहाँ ऐसी है जिनमें पात्र का भारतीय नामकरण कर दें तो धीरे-धीरे हमारी अपनी लोककथायें स्मृति में उभरने लगती हैं । इससे पता चलता है कि भले ही चीन-भारत का वर्तमान सौहार्दपूर्ण न बन सके पर दोनों का अतीत मानवता के मूल्यों के मामले में कहीं न कहीं एक बराबर सोचते-विचारते थे ।

यह जाल स्थल उन्हें खास तौर पर अपने घेरे में ले सकता है जो चीन के लोक साहित्य के बारे में शोध करना चाहते हैं । प्राचीन काव्य में
प्रतिभाशाली कवि सू शी , महाकवि तु फू , महाकवित ली पाई, चीन के थांग राजकाल की शानदार कविताएं , ग्रामीण जीवन पर लिखने में मशहूर महाकवि थो य्वान मिंग , छ्यु य्वान और उन की कविताएं , चीन का पहला काव्य ग्रंथ यहाँ बडे मजे से संग्रहित किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त नाटककार ली यू और मशहूर नाटककार क्वान हान छिंग का प्राचीन अपेरा साहित्य और फु सुंग लिंग और उन की भूत आत्माओं की कथाएं , पश्चिम की तीर्थयात्रा ,त्रिराज्य की कहानी, लाल भवन सपना जैसे प्राचीन उपन्यास और राजा कसार की जीवनी, चांगर तथा मनास जैसे महाकाव्य भी यहाँ पाठकों को लिये आनलाइन रखे गये हैं । चीन की लोककला, मूर्ति, काष्ठ, तंत्र-मंत्र केंद्रित नृत्यों पर भी रोचक जानकारी यहाँ सहेजी गयी हैं । चीन में परंपरागत कठपुतलियों की प्रदर्शन में छुएनचोउ की कठपुतलियाँ काफी मशहूर हैं और इस की इतिहास लगभग 2,000 वर्ष पुराना है। यहाँ पर कठपुतलियाँ मानव और भगवान के एक दूसरे से मिलते-जुलते रूप जैसी रही है। इस वजह से वे शुरु से ही स्थानीय लोगों के धार्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग रही है।

मात्र इतना ही नहीं यहाँ चीन की समृद्ध चीनी परम्परागत खिलौड़ियों की कला, चीनी परम्परागत परिवारिक वास्तुओं की कला, सजावट की कला, वेशभूषा की कला, आदि की व्यापक और संदर्भ सामग्री बिखरी पड़ी है । जिन्हें परंपरागत चिकित्सा पद्धति, परंपरागत औषधियां और विशेषकर एक्यूपंक्चर का विशद् जानकारी हासिल करनी हो उनके लिए यह अपरिहार्य कोष सा है । इन में
अल्पसंख्यक, तिब्बती, मंगोलियाई, वेवूर जाति, कोरियाई ज्वांग जाति, ह्वेई जाति और म्याऔ जाति की परंपरागत चिकित्सा पद्धति विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।

विकिपीडिया(http://hi.wikipedia.org/wiki/) अंतरजाल पर सबसे बड़ा इनसायक्लोपीडिया है । यह विकि तकनीक पर आधारित एक खुली परियोजना है । यहाँ विश्व की कई भाषाओं में निरंतर विकसित हो रही है । हिंदी विकिपीडिया यद्यपि प्रांरभिक दौर में है । विकि तकनीक में पारंगत तथा कंप्यूटर व इंटरनेट कोई भी विशेषज्ञ उपयोगकर्ता हिंदी सहित कई भाषाओं में ज्ञान और जानकारी का आदान-प्रदान कर सकता है । ऐसे ही किसी जानकार और इंटरनेट पर हिंदी लोक को प्रतिष्ठित करने की ललक रखने वाले किसी लोकानुयायी ने महात्मा गांधी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल महात्मा गाँधी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल प्रभृति लोकविशेषज्ञों द्वारा लोकगीतों की टिप्पणियों का समाविष्ट करना शुरू किया है । आशा की जाती है यहाँ जल्द ही व्यापक पृष्ठ जुड़ सकेंगे । संस्कृत का लोकगीत सौंदर्य पर शास्त्री नित्यगोपाल कटारे (http://hindikonpal.blogspot.com/) कहते हैं-

वैभवं कामये न धनं कामये
केवलं कामिनी दर्शनं कामये ।

भारतीय जनपद में हिंदी की विभिन्न बोलियाँ प्रचलित हैं जिनमें अथाह लोकसाहित्य है इनमें से कुछ में अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य भी रचा जा रहा है। लोक साहित्य सहित शिष्ट साहित्य को विकिपीडिया में स्थापित करने का महती कार्य शुरू हो चुका है । यहाँ हिंदीतर प्रदेशों की हिंदी बोलियाँ यथा - बंबइया हिंदी कलकतिया हिंदी, दक्खिनी सहित विदेशों में बोली जाने वाली हिंदी बोलियां खासकर उजबेकिस्तान, मारिशस, फिजी, सूरीनाम, मध्यपूर्व, त्रीनीदाद और टोबैगो, दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित हिंदी प्रयोगों के परिप्रेक्ष्य में कार्य होने लगा है ।

- खडिया(www.kharia.org) हिन्दी और अंग्रेजी में एक साथ प्रकाशित भारत की पहली एवं एकमात्र वेबसाइट है । तेलंगा खडिया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र प्यारा केरकेट्टा फाउन्डेशन की इकाई है जो झारखंड की देशज एवं आदिवासी संस्कृति तथा भाषाओं के संरक्षण व संवर्द्धन और विकास के लिये प्रयासरत है। सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और सामाजिक पुनर्गठन का सवाल झारखंड के देशज लोगों की मूल चिन्ता है। ग्रेटर झारखंड की लगभग २ करोड देशज एवं आदिवासी आबादी १५ से अधिक भाषाओं क इस्तेमाल करती है। फाउन्डेशन ने भाषा और संस्कृति के सवाल को गंभीरता से लिया है तेजी से विनष्ट होती देशज भाषा संस्कृति के संरक्षण एवं विकास के लिये तेलंगा खडिया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र की शुरुआत की है।, सातोःड पत्रिका यहाँ विशेष रूप से पठनीय है । किताबें और आडियों भी यहाँ उपलब्ध है । अखडा झारखंड़ी भाषा की त्रैमासिक पत्रिका है । पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं - वन्दना टेटे ।

भोजपत्र (http://www.bhojpatra.net) देवनागरी प्रयुक्त भारतीय भाषाऑं का एक वेब आधारित साहित्य संग्रह तन्त्र है। यह वेब आधारित विषय-वस्तु प्रबन्धन के लिये विकसित किया गया है इसे देवनागरी प्रयुक्त किसी भी भारतीय भाषाऑं के लिये क्रियान्वयन में लाया जा सकता है। भोजपत्र को भोजपुरी भाषा के लिये यहाँ प्रयोग किया गया है। जल्दी ही इसे हिन्दी के साहित्य संग्रह तन्त्र के रूप में भी क्रियान्वयित किया जाएगा । यह हिंदी के अलावा यह अंगरेज़ी और भोजपुरी भाषा में भी उपलब्ध है । यूनिकोड देवनागरी आधारित भोजपुरी विषय-वस्तु प्रबन्धन तन्त्र भोजपत्र पर गुणवत्ता परक गद्य व पद्य में लोकप्रिय पारम्परिक लोकोक्तियाँ, उपदेशपरक दोहा व चौपाई,विधा में रचना जमा किया जा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में यह लोक केंद्रित लेखन से संबंद्ध लोगों, संगठन के लिए भी आकर्षण और प्रेरणास्पद है । काश, छत्तीसगढ़ी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने वालों भी समझ में आती कि ऐसे जाल स्थलों के द्वारा विश्व के छत्तीसगढी भाषियों को एक मंच पर जोड़ा जा सकता है ।

ख़जाना (www.khazana.com/et/) में भारत, इंडोनेशिया, नेपाल, थाइलैंड के लोककला की ढे़र सारी सामग्रियों का बेचने के लिए सजाया गया है । जिन्होंने गोपीचंद का इकतारा और मीरा का इकतारा जीवन में न देखा हो वे यहाँ चित्र ही देखकर बिना उसे अपने लिए सेव किये नहीं रह सकते हैं । कंपनी को साधूवाद दीजिए कि उसके लोक कलात्मक वस्तुओं का विस्तृत जानकारी भी यहाँ जुटा रखी है । और हाँ खरीदने के लिए जेब में क्रेडिट कार्ड हो तो क्या कहने । ऑनलाईन आदेश दिया और पैकट आपके घर के पते पर । ऐसा ही एक वेबजाल है – सालिनीक्रॉफ्ट जहाँ लोक कलात्मक चीजों का संग्रह है ।

हिंदी की पहली वेबसाइट होने के वाबजूद पोर्टल
वेबदुनिया(www.webdunia.com) में लोक सामग्री के प्रति खास लगाव अभी तक नहीं झलक सका है । वहाँ साहित्य खंड के अंतर्गत ‘लोक-साहित्य’ के नाम पर कुल 12 सामग्री हैं- सुग्गा और अमृत फल (लोककथा- मिथिलेश्वर), घोड़िया बोली के लोकगीत (उत्तम एल. पटेल), बुंदेली वैवाहिक पंरपराएँ (आलेख- सुधा रावत), भारतीय लोक जीवन-दर्शनः सैद्धांतिकी की तलाश(आलेख- ब्रदीनारायण), स्वाधीनता आंदोलन में भीलों का योगदान (आलेख- रमेश चंद्र बडेरा), संथाली प्रेम गीत (अनुवाद- रमणिका गुप्ता), भाषा, लोक और काव्य (आलेख- शैलेन्द्र चौहान), हो जाति के लोक गीत (आलेख- डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद), आदिवासियों के लोकगीत (आलेख- आत्माराम जाधव) आदि।


यूँ तो प्रभासाक्षी, क्षितिज (उत्तरी अमेरिका की हिंदी पत्रिका), शब्दांजलि, भारत दर्शन(न्यूजीलैंड़), अभिव्यक्ति(यू.ए.ई.) सहित कई वेबपोर्टलों में कुछ न कुछ ऐसी सामग्री जरूर मिल जायेगी जिसे हम लोक-केंद्रित कह सकते हैं पर लोक पर आधारित ऐसी कोई पोर्टल अब तक हिंदी में नसीब नहीं हो सका है। पर सृजनगाथा में लोकआलोक स्तम्भ में नियमित स्तरीय सामग्री दी जा रही है जिसमें अनेक शोध पूर्ण लेखों के अलावा पद्मा सचदेव का आलेख सहित प्रसिद्ध लोकशास्त्री डॉ. श्यामसुंदर दुबे का साक्षात्कार आदि को भी महत्वपूर्ण मान सकते हैं । इतना ही नहीं इसमें नियमित रूप से छत्तीसगढ़ी सहित अन्य लोकभाषाओं की कविताएँ भी विश्व के पाठकों को उपलब्ध करायी जा रही है । बिलकुल हाल में ही छत्तीसगढ़ से पत्रकार सुनील कुमार ने अपनी “इतवारी अख़बार” (www.itwariakhbar.com)नामक साप्ताहिक पत्रिका का वेबजीन संस्करण भी प्रांरभ किया है । यहाँ लोककथाओं को भी स्थान दिया जा रहा है ।


भोजपुरिया डॉट कॉम का जिक्र करना यहाँ समीचीन होगा पूर्णतः लोकभाषा - भोजपुरी साहित्य, कला, गीत, संगीत, तीज-त्यौहार, परंपराओं के लिए चर्चित है । भोजपुरी के अनुयायियों की एक बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए वे भोजपुरी आधारित वेबसाइटों की संख्या बढ़ाने में समस्त भारतीय लोकभाषाओं को कब से पीछे छोड़ चुके हैं । वे जिस हालत में हैं, जिस देश हैं, लगातार अपनी मातृभाषा की समृद्धि के लिए कटिबद्ध नज़र आते हैं । इसी कटिबद्धता का परिणाम है- भोजपुरी.कॉम , अँजोरिया.कॉम , भोजपुरिआ.कॉम , लिट्टीचोखा.कॉम , भोजपत्र.नेट आदि वेबसाइट, जो देवनागरी लिपि में हैं ।भोजपुरिया.कॉम, भोजपुरीसिनेमा.कॉम, भोजपुरीशादी.कॉम, भोजपुरीफिल्म.कॉम, भोजपुरीदुनिया.कॉम, भोजपुरीफिल्मएवार्ड्स.कॉम, भोजपत्र.कॉम, भोजपुरिहा.कॉम, भोजपुरी.इन , भोजपुरिआ.इन , भोजपुरिआ.इन्फो, भोजपुरीवर्ल्ड.कॉम लिट्टी-चोखा.कॉम, भोजपुरीपत्रिका.कॉम , भोजपुरिहाफिलिम.कॉम , भोजपुरीसिनेमा.को.इन आदि रोमन लिपि में हैं । ये साइट उन प्रवासियों के लिए वही आस्वाद जगाती है जो देवनागरी लिपि में लिख-पढ़ नहीं सकते हैं

व्यक्तिगत प्रयासों की क्षीण रेखा

कंप्यूटिंग और इंटरनेट पर अंगरेज़ी भाषा की अनिवार्यता के छद्म प्रेरित सबसे बड़ी हानि है वेबजाल लेखन पर शहर-नगर निवासियों का ही आकर्षित हो पाना । फलतः दो-
चार जो भी हिंदी लेखन से जुड़े उन्होंने स्वयं को लोककथा तक ही सीमित कर लिया । निजी वेबजालों में एक भी ऐसा नहीं है जहाँ लोककथाओं के अलावा कोई सार्थक सामग्री हो । बहरहाल रचनाकार वेबतकनीक के चर्चित-पुरस्कृत विशेषज्ञ और तकनीक विषयों के लेखक रवि श्रीवास्तव का निजी ब्लॉग है जो पत्रिका के रूप में संचालित होता है । यहाँ भी लोककथाओं को बानगी के तौर पर रखा गया है । रतलाम के ही निवासी हितेंद्र सिंह ने अपने
ब्लॉग (एचएसआनलाइन) में विभिन्न प्रांतों की लोककथाओं को संग्रहित करने का उद्यम शुरू किया है । फिलहाल तो यहाँ शिवसहाय चतुर्वेदी, लक्ष्मीनिवास बिडला, श्यामाचरण दुबे, चंद्रशेखर, और भगीरथ कानोडिया जैसे नामी लोगों की संग्रहित लोककथायें रखी जा सकी है जिसमें बुंदेलखंडी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवा की क्रमशः बुद्धि बड़ी या भैंस, चोर और राजा, भाग्य की बात, सवा मन कंचन, आदि लोककथायें प्रमुख हैं । संस्कृत का एक लोकगीत का जिक्र किये बिना रहा नहीं जाता । इसके लिए ब्लॉग हिंदीकोणपल (http://hindikonpal.blogspot.com) पर खंगालना पडेगा । उधर काव्यकला (http://kavyakala.blogspot.com/-) में भी दो लघुकथायें हैं ।


मासिक वागर्थ डॉट कॉम में भी दो-चार लोककथायें पढी जा सकती हैं किन्तु यह पत्रिका प्रिंट में ज्यादा लोकप्रिय है । इस साइट के साथ अड़चन है कि भारतीय भाषा परिषद कोलकाता के जमे-जमाये सांगठनिक ढाँचा के बावजूद यह नियमित नहीं नज़र नहीं आता । सृजन-सम्मान नामक छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक संस्था ने छत्तीसगढ़ी भाषा के एक संपूर्ण उपन्यास ‘पछतावा’ (http://sonijr.blogspot.com/2006/08/blog-post.html)
को आनलाईन स्थापित किया है । यह किसी भी भारतीय लोकभाषाओं में अंतरजाल पर स्थापित पहला उपन्यास है ।


अंगिका भारतवर्ष के अंग-देश की भाषा रही है । आज भी तीन राज्यों- बिहार (भागलपुर, मुंगेर, बाँका, लखीसराय, शेखपुरा, कटिहार, पुर्णिया, खगङिया, बेगूसराय, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, किसनगंज और सुपौल जिले ), झारखंड ( साहेबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुङ, गिरीडीह और जमुई जिले ) और पश्चिम बंगाल ( मालदह जिला ) तथा नेपाल, कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया और अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के 5 करोड़ आबादी की मातृभाषा है जिसमें से 3 करोड़ सिर्फ भारत में ही रहते हैं । दुखद यह कि 5करोड़ मातृभाषियों की प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र वेबसाइट है –
अंगिका (http://www.angindia.com/)। इस वेब-साइट के पृष्ठ पटलों पर अंग और अंगिका के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से चर्चा की गई है इसमें अंगिका लोक साहित्य के व्यापक संदर्भों के अलावा खेती-बारी, भैंसा संबंधी बातों को भी समोया गया है जो काफी रोचक और अनूठा बन पड़ा है ।

यह सिद्ध है कि वेबमीडिया में लोक की दुनिया लगातार समृद्ध होती जा रही है । मैं यह भी मानता हूँ कि संपूर्ण को खंगाल पाना दुष्कर-कार्य भी है अतः यह मात्र एक बानगी ही है । जो भी हो, इंटरनेट मीडिया में लोक से जुड़ी सभी विधाओं - गीत, संगीत, साहित्य- लोक गीत, गाथा, कहावत, हाना, मुहावरा, किवंदती, साक्षात्कार, लोकद्रव्य, लोकचित्र, फिल्म, आदि निरंतर प्रतिष्ठित होते जा रहे हैं । और वेबमीडिया में लोक की प्रतिष्ठा का प्रश्न लोकआश्रितों अर्थात् कलाकारों के रातों-रात हीरो बन जाने से भी जुड़ सकता है । शोध, अध्ययन, और लोक संरक्षण से इसका मतलब तो है ही । सबसे बड़ी बात कि वैश्वीकरण के लाख बुराईयों के बाद भी हिंदी का मन लोक विहीन नहीं हो सकता है । हिंदी जहाँ तक और जब बची रहेगी लोक की दुनिया भी जुगुर-जागर करती रहेगी ।
जयप्रकाश मानस
संपादक, सृजनगाथा डॉट कॉम
रायपुर, छत्तीसगढ़
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Wednesday, August 30, 2006

इंटरनेट के पृष्ठों पर राज करती हिंदी

एक शोध आलेखः-

वे दिन अब लद चुके हैं, जब हम किसी सायबर कैफे में बैठे-बैठे मातृभाषा हिंदी की कोई बेबसाइट ढ़ूंढते रह जाते थे; और तब कोई साइट तो दूर जगत्-जाल यानी इंटरनेट पर हिंदी की दो-चार पंक्तियाँ पढ़ पाने की साध भी पूरी नहीं हो पाती थी । अब जगत्-जाल पर हिंदी की दुनिया दिन-प्रतिदिन समृद्ध होती जा रही है । हिंदीप्रेमियों की लगभग शिकायतें अब दूर हो चुकी हैं - वह घर में बैठे-बैठे हिंदी में ई-मेल कर सकता है, दूर देश में बस गये किसी आत्मीय-जन से घंटों हिंदी में वार्तालाप (चैटिंग) कर सकता है, रोज़ हिंदी के दैनिक समाचार पत्र बाँच सकता है, अपने प्रिय विधा की रचनाओं का आनंद आनलाईन साहित्यिक पत्रिका से ले सकता है, नियमित और पेशेवर स्तम्भ लेखक की तरह इंटरनेट पर मुफ़्त जगह (स्पेस) और मुफ़्त के औजारों का फायदा उठाकर हिंदी में स्वयं को अभिव्यक्त कर सकता है, लघुपत्रिका संचालित कर सारे विश्व में बतौर संपादक नाम कमा सकता है। चाहे तो अपनी संपूर्ण किताब या सर्जना को विश्वजाल पर प्रतिष्ठित कर सकता है । इतना ही नहीं रोजगार, शिक्षा, कैरियर, चिकित्सा, योग, इतिहास आदि किसी भी विषय की जानकारी पलक झपकते ही ले और दे सकता है । और यही नहीं, कभी भी समान रुचि वाले सैकड़ों मित्रों के साथ किसी प्रासंगिक मुद्दे पर एक दूसरे को लाईव देख-सुन सकता है यानी विचार-विमर्श कर सकता है । उदाहरण बतौर एक साथ कई देश के कवि अपनी-अपनी कविताओं के सस्वर पाठ का लुत्फ़ उठा सकते हैं, वह भी एक दूसरे को देखते-निहारते हुए । सुखद सत्य तो यह है कि हिंदी ने कंप्यूटर के क्षेत्र में अंग्रेजी क़ा वर्चस्व तोड ड़ाला है और हिंदीभाषी कंप्यूटर का (इंटरनेट का भी) प्रयोग अपनी भाषा में कर सकता हैं, वह भी अंगरेज़ी भाषा में दक्ष हुए बगैर। बावजूद इसके भारत में हिंदी कम्प्यूटिंग और इंटरनेट की दुनिया का एक सच यह भी है इन उपलब्धियों का लोकव्यापीकरण भारत में अभी प्रतीक्षित है ।

जन-जन को जोड़ती भारतीय भाषा प्रौद्योगिकी-

यह सच है कि कुछ ही वर्ष पहले तक आम हिंदीभाषी भी इस जुमले को दोहराता फिरता था कि हिंदी सहित स्थानीय भाषाओं में काम करने के लिए सॉफ्टवेयर का अभाव है । पर पिछले कई सालों के सतत् प्रौद्योगिक विकास से आजकल किसी भी साक्षर को कंप्यूटर में हिंदी में अपना काम निपटाते देखा जा सकता है । माइक्रोसॉफ्ट और रैडहैट जैसी सॉफ्टवेयर कंपनियों ने अंगरेज़ी की अनिवार्यता को निरस्त करने का पर्याप्त अवसर मुहैया करा दिया है । हिंदी कंप्यूटिंग अब किसी अंगरेज़ी जैसी विदेशी भाषा की दासी नहीं रही । माइक्रोसॉप्ट के एम.एस. ऑफिस के बारे में अब हर कोई जानता है । विंडोज तथा लिनक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम का इंटरफेस भी हिंदी में बन चुका है । केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडॉक (सेंटर फॉर डवलपमेंट आफ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका निभायी जाती रही है । भाषा तकनीक में विकसित उपकरणों को जनसामान्य तक पहुँचाने हेतु बकायदा www.ildc.gov.in तथा www.ildc.in वेबसाइटों के द्वारा व्यवस्था की गई है जिसके द्वारा टू टाइप हिंदी फ़ॉन्ट(ड्रायवर सहित), ट्रू टाइप फॉन्ट के लिए बहुफॉन्ट की-बोर्ड इंजन, यूनिकोड समर्थित ओपन टाइप फॉन्ट, यूनिकोड समर्थित की-बोर्ड फॉन्ट, कोड परिवर्तक, वर्तनी संशोधक, भारतीय ओपन ऑफिस का हिन्दी भाषा संस्करण, मल्टी प्रोटोकॉल हिंदी मैसेंजर, कोलम्बा - हिन्दी में ई-मेल क्लायंट, हिंदी ओसीआर, अंग्रेजी-हिन्दी शब्दकोश, फायर- फॉक्स ब्राउजर, ट्रांसलिटरेशन, हिन्दी एवं अंग्रेजी के लिए आसान टंकण प्रशिक्षक, एकीकृत शब्द-संसाधक, वर्तनी संशोधक और हिंदी पाठ कॉर्पोरा जेसे महत्वपूर्ण उपकरण एवं सेवा मुफ़्त उपलब्ध करायी जा रही है । जहाँ मंत्रालय के वेबसाइट पर लाग आन करके सीडी मुफ़्त में बुलवाई जा सकती है वहाँ इन में से वांछित एप्लीकेशन या सॉफ्टवेयर डाउनलोड भी की जा सकती है ।

20 जून 2005 से विभिन्न भाषा-भाषियों को सूचना प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल में मदद के लिए सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सी-डैक, भारत सरकार द्वारा मुफ्त वितरित हो रही इस सीडी और आन लाइन वितरण पैक में हिन्दी भाषा में वेबसाइट बनाने के सभी औजार शामिल हैं। फिर भी मंत्रालय द्वारा यदि इन विविध फ़ॉन्ट्स को उपयोगकर्ताओं में मुफ्त वितरित कराने के साथ-साथ सीधे कंप्यूटर निर्माताओं को भी उपलब्ध करा दिया जाय, और उसे अनिवार्यतः निर्माताओं द्वारा कंप्यूटरों में डलवाया जाय तो कम समय में सारे देश में हिंदी (सहित अन्य स्थानीय भाषाओं के भी) के फ़ॉन्ट पहले से ही हर पीसी में उपलब्ध हो सकता है । अर्थात् हर भाषा का एक फ़ॉन्ट ऐसा हो जो सभी कंप्यूटरों में अनिवार्यतः उपलब्ध हो । तकनीकि भाषा में इस फ़ॉन्ट को यूनिकोड पर ढ़ला होना भी चाहिए, ताकि समय की माँग के अनुसार सारे के सारे उस वांछित भाषा में काम कर सकें । ठीक उसी तरह जिस तरह दुनिया के सभी कंप्यूटरों में अंगरेज़ी का यूनिकोड पैमाना है ।

अंगरेज़ी का एक मानक की-बोर्ड है । भारतीय भाषाओं में यह अराजकता के स्तर पर है । फ़ॉन्ट की मानकीकरण के साथ-साथ हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं के की-बोर्ड का भी मानकीकरण किया जा सकता है । इस संदर्भ में यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा - 1999 में करुणानिधि सरकार ने तमिल भाषा के की-बोर्ड का मानकीकरण किया था । हिंदी के लिए ऐसा कर गुजरना असंभव नही होगा । आखिर इससे पहले टाइपराइटर के की-बोर्ड का मानकीकरण तो हो ही चुका है । आखिर कंप्यूटर उसी का तो विस्तार है । अखिल भारतीय स्तर पर ऐसा हो सका तो भारत में आई टी का फैलाव कई गुना बढ़ सकता है ।

इन दिनों हिंदी सहित भारतीय भाषाओं में फ़ॉन्ट की समस्या से निजात पाने की दिशा में सरकारी महकमें के साथ-साथ निजी क्षेत्र, दोनों स्तर पर तेज गति से प्रयास हो रहा हैं । माइक्रोसॉफ्ट यूनिकोड आधारित नये फ़ॉन्ट मंगल को विंडोज़-एक्स.पी. आपरेटिंग सिस्टम के साथ उपलब्ध करा रहा है, जो एम.एस. आफिस में सफल है तथा जिसमें विश्व के कई देश के हिंदी साइट बन रहे हैं । हिंदी के अधिकांश बेवसाइट संचालनकर्ताओं और चिट्ठेकारों द्वारा इसी यूनिकोड फ़ॉन्ट का उपयोग किया जा रहा है । माइक्रोसॉफ्ट ने भाषा इंडिया नामक एक विशेष परियोजना भी शुरू की है जिससे हिंदी समेत सभी भारतीय भाषाओं की लगभग तमाम समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जा रहा है तथा हिंदी के माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के लिए व्यक्तिगत प्रयासों और अनुप्रयोगकर्ताओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है ।

हाल ही में व्यक्तिगत प्रयासों से वर्तनी जांच की क्षमता युक्त ‘मुफ्त हिंदी लेखक’ हमारे सामने आया है जो आफिस एक्सपी में भी सफल है । यह विंडोज़ के किसी भी संस्करण में सीधे ही फ़ॉनेटिक हिंदी में टाइप की सुविधा से लैश है । यद्यपि इस हिंदी लेखक की वर्तनी जांच क्षमता (हिंदी के 60 हजार शब्द शामिल) हिंदी की व्यापकता को देखते हुए अत्यल्प है । तथापि जनसाधारण या आम उपभोक्ता को इससे लाभ और सुविधा ही होगी । वैसे भी माइक्रोसॉफ्ट हिंदी ऑफ़िस हिंदी में संयुक्ताक्षरों या बहुवचनों में वर्तनी जांच के समय सही वर्तनी वाले शब्दों को भी यह ग़लत बताता है ।

इंटरनेट/कम्प्यूटर को हिन्दीकृत करने के कुछ सार्थक व्यक्तिगत प्रयास-

इंटरनेट ने तमाम विश्व की सीमाएँ तोड़ दी हैं. अगर आपके पास इंटरनेट से जुड़ा कम्प्यूटर है तो आपको इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप किसी गांव देहात के कस्बे में हैं या किसी महानगर में. मध्य प्रदेश के एक छोटे से कस्बे, गंज बसौदा के रहने वाले
जगदीप सिंग डांगी ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों से हिन्दी भाषा में ब्राउज़र ही बना डाला जिसमें हिन्दी अंग्रेजी शब्दकोश भी है और हिन्दी वर्तनी जाँचक भी. रतलाम के रहने वाले रविशंकर श्रीवास्तव ने लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के तमाम, एक हजार से अधिक अनुप्रयोगों के हिन्दी अनुवाद कर डाले जिसके फलस्वरूप रेडहैट जैसी कंपनियों के द्वारा संपूर्ण लिनक्स ऑपरेटिंग सिस्टम हिन्दी भाषा में जारी किया जा चुका है. जामनगर में रहते हुए ही स्व. श्री धनंजय शर्मा ने मेनड्रेक लिनक्स की नियंत्रक फ़ाइलों के अलावा ऑपेरा ब्राउज़र, पो-एडिट, डब्ल्यूएक्स-विंडोज़, हेलिक्सप्लेयर, रीयल प्लेयर, एक्सएमएमएस इत्यादि अनुप्रयोगों के हिन्दी स्थानीयकरण का कार्य किया था. आज तो स्थिति यह है कि हिन्दी का प्रत्येक कम्प्यूटर जानकार अपने स्तर पर हिन्दी के लिए कुछ न कुछ कर गुजरना चाहता है । बैंगलोर के आलोक, अमरीका के पंकज नरूला व रमण कौल, पूना के देबाशीश चक्रवर्ती, दुबई के जीतेन्द्र चौधरी इत्यादि अपने-अपने स्तरों पर इंटरनेट पर हिन्दी को समृद्ध बनाने में अनवरत् लगे हुए हैं । उधर छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक संगठन सृजन-सम्मान द्वारा अंतरजाल पर हिंदी की प्रतिष्ठा के लिए एक अभियान छेड़ा गया है जिसमें विद्यार्थी, बुद्धिजीवी, साहित्यकार को इंटरनेट पर हिंदी के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है । संगठन द्वारा साहित्यकारों की किताबों को इंटरनेट पर प्रतिष्ठित करने का जनव्यापी कार्य भी अपने हाथों में लिया गया है ।

हिंदी टाइप करने के कुछ अच्छे ऑनलाइन औज़ार -

अब तक यूनिकोड हिंदी में टाइप करने के लिए सिर्फ़ इनस्क्रिप्ट कुंजीपट ही मौजूद था¸ जो विंडोज़ एक्सपी या लिनक्स के नये संस्करणों में संस्थापित करने के बाद प्रयोग में लाया जा सकता था। वैकल्पिक तौर पर इन दिनों बहुत से ऑफलाइन तथा ऑनलाइन औज़ारों की रचना विविध स्तरों पर की गई। आज अंतरजाल पर यूनिकोड हिंदी में टाइप करने के कई अच्छे ऑनलाइन उपकरण उपलब्ध हो चुके हैं। हिंदिनी के नये हग-2 औज़ार में टाइनी-एमसीई का इम्प्लीमेंटेशन इसके हिंदी अनुवाद के साथ किया गया है जिससे हिंदी पाठ को एचटीएमएल में सजाया-संवारा भी जा सकता है। इसमें .फोनेटिक हिंदी कुंजीपट विकल्प है। इस श्रृंखला में ऑनलाइन कुंजीपट सोर्सफ़ोर्ज, गेट2होम साइट पर आप हिंदी समेत विश्व की तमाम लोकप्रिय भाषाओं में ऑनलाइन टाइप कर सकते हैं।

हिंदी में मेल करना हुआ आसान
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एमएसएन के हॉट मेल, बेबदुनिया के
ई-पत्र और गूगल के जी-मेल में हिंदी भाषा में टाइप कर के संदेश भेजना बिलकुल सरल है । इसमें हॉटमेंल 25 एमबी एवं गूगल 2 जीबी का मुफ्त स्पेस उपलब्ध कराता है । इसमें से गूगल के जी-मेल का रजिस्ट्रेशन बिना किसी की अनुशंसा से संभव नहीं है । इसके अलावा रसिक मेल – जहाँ रोमन लिपि में लिखा जा सकता है, और देवनागरी में विपत्र भेजा जा सकता है। सब विकल्प अंगरेज़ी में हैं लेकिन हिन्दी में विपत्र लिखे जा सकते हैं। इसके अलावा लंगू.कॉम के माध्यम से हिन्दी में विपत्र (ईमेल), भेजा जा सकता है । यहाँ किसी विशेष मुद्रलिपि की ज़रूरत भी नहीं है। इसके अलावा भी कई ऐसे मेल सर्विस है जिसके माध्यम से हिंदी में लिखकर ई-मेल भेजे और पढे जा सकते हैं ।

इंटरनेट भारतीय भाषाओं की फ़ॉन्ट की समस्या से मुक्त
जी हाँ, इंटरनेट के नियमित उपयोगकर्ताओं के लिए यह खुशखबरी है कि अब उन्हें हिंदी सहित भारतीय परिवार की अन्य मुख्य भाषाओं को पढ़ने के लिए फ़ॉन्ट विशेष के चक्कर में निराश नहीं होना पड़ेगा । अब भिन्न-भिन्न जाति के फ़ॉन्ट को अपने कंप्यूटर में इंस्टाल करने की बाध्यता समाप्त ही समझिए । भाषा विशेष की कोई भी एक यूनिकोड फ़ोंट अपने पीसी में संधारित कीजिए और सर्फिंग पर सर्फिंग करते चले जाइये। कहने का मतलब यह कि एक यूनिकोड हिंदी फ़ॉन्ट मंगल या रघु के सहारे आप बीबीसीहिंदी, बेवदुनिया¸ नई दुनिया¸ आदि इत्यादि सभी हिंदी साइटों का रस ले सकते हैं। इस हेतु बहु प्रचलित ब्राउज़र मॉज़िल्ला फ़ॉयरफ़ॉक्स को उसके पद्मा एक्सटेंशन सहित इस्तेमाल करना होगा.

हिंदी में खुलते चर्चा-परिचर्चा के द्वार

अब तक हिंदीभाषी नेट उपभोक्ता याहू, एमएसएन,नेटस्केप आदि द्वारा उपलब्ध करायी जा रही सुविधा का फायदा उठाकर किसी समूह की सदस्यता मात्र ई-मेल के सहारे ग्रहण कर संबंधित या वांछित विषय पर आनलाइन चर्चा, गपशप (रोमन में टंकित)कर सकते थे ।
याहू गुट : विश्वभाषा - हिन्दी भाषा, साहित्य और फ़िल्मों के विषय में चर्चा करने के लिये मञ्च। इसी तरह एक अन्य फोरम याहू गुट : हिन्दी फ़ोरम के नाम से अधिक प्रसिद्ध है । किन्तु यहाँ चर्चा के लिये रोमन लिपि का प्रयोग होता है। गूगल टॉक के आगमन से रोमन की बाध्यता जाती रही और हिंदी में लिखकर बातचीत करने का सुनहरा दौर प्रारंभ हो चुका है । यथा(जैसे चिट्ठाकार समूह) । अब हाल ही में हिंदी फोरम ‘परिचर्चा’ की शुभ शुरुआत से हिंदी में किसी खास मुद्दे पर आनलाइन बाचतीत करके जानकारी संग्रहण, विचार-विमर्श का नया द्वार खुला है । जिसमें कोई भी व्यक्ति जाति, लिंग, वर्ण, स्थान के शर्त के बगैर सम्मिलित हो सकता है । इसका उपयोग सकारात्मक दृष्टि से करें तो आनलाइन देशी-विदेशी भाषा शिक्षण जैसे अनेक गंभीर विषयो में भी किया जा सकता है।


आनलाइन हिंदी साहित्य की सौगात-

इंटरनेट एक ऐसा स्थान है, जहां किसी भी विषय से संबंधित विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है, इस दृष्टिकोण से हिंदी भाषा में इंटरनेट पर बहुत कम सामग्री उपलब्ध हैं पर आनलाइन हिंदी के रूप में अब तक काफी सामग्री जगत्-जाल पर उपलब्ध हो चुकी है । जो भारतीय कला, साहित्य एवं संस्कृति, धर्म आदि पर अभिकेंद्रित किताबें पढ़ना चाहते हैं उनके लिए भारत की बेबसाइट साइट (http://vrhad.com)महत्वपूर्ण जाल स्थल है जहाँ हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं की प्रसिद्ध किताबों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है । क्रयादेश देकर किताबें घर बैठे भी मंगवाई जा सकती हैं । यहाँ तुलसी दास रचित दोहावली, कवितावली एवं श्रीभद्भगवतगीता सहित कुछ अन्य किताबें मुफ्त में पढ़ी एवं डाउनलोड़ भी की जा सकती है । आजकल अपने देश में भी, इन्टरनेट पर बहुत सारे पुस्तकों के स्टोर खुल गये हैं। जो अच्छे हैं और भरोसे मन्द भी। मैं इनमे से एक http://www.firstandsecond.com/ से किताबें मंगवाता हूं। आप कहीं भी हों किताबें अपने देश के किसी इन्टरनेट बुक स्टोर से मंगवा सकते हैं। यहां भी आप मेनू पर ढ़ूढ़ सकते हैं।


सी-डैकचलपुस्तकालय (mobilelibrary.cdacnoida.com)सीडॅक नॉयडा का अधिकारिक स्थल हैं। यहाँ पर कुछ वेदों के अलावा गिजुभाई बधेका, चौधरी शिवनाथ सिंह शाण्डिल्य, प्रेमचन्द, यशपाल जैन, शिवानन्द तथा अन्य लेखकों की लिखी कई साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक आदि विषयों की मुफ्त पुस्तकें हिन्दी व अंग्रेज़ी में उपलब्ध हैं। इंडिया एन इंडियन डॉट कॉम में आप यूनिकोड फ़ॉन्ट में मुंशी प्रेमचंद, अमीर खुसरो, कबीर, तुलसीदास, साहिर लुधियानवी अ‍ादि की रचनाओं का आनंद ले सकते हैं। विवेकानंद के व्‍याख्‍यान, श्रीमद् भागवत गीता, हनुमान चालीसा, आरती और भजन संग्रह आदि भी इंटरनेट पर हैं।आचार्य नागार्जुनकृत सुहृल्लेख ग्रन्थ का भोट देश में बहुत अधिक प्रचलन है। विशेषकर शास्त्रों का अध्ययन न करने वाले गृहस्थ एवं सरकारी अधिकारियों में यह काफी लोकप्रिय रहा है। इसी कारण तिब्बत में इस ग्रन्थ के ऊपर अनेकों भोट आचार्यों ने टीका-टिप्पणियाँ लिखी हैं। फलस्वरूप आजकल भारत में समस्त केन्द्रीय तिब्बती स्कूलों के पाठ्यक्रम में इस ग्रंथ का अध्यापन हो रहा है। केन्द्रीय बौद्ध विद्या संस्थान, लदाख के पाठ्यक्रम में भी इस ग्रन्थ को रखा गया है। साहित्य संग्रह में मीरा, कबीर, प्रेमचन्द, जैसे भारतीय साहित्य के कई शलाका पुरुषो की हिंदी रचनाए हैं। वेबदुनिया साहित्य - हिन्दी साहित्य का महा जालस्थल है। मल्हार में हिन्दी और उर्दू लेखों, कहानियों (प्रेमचन्द की) और ग़ज़लों का अद्भूत संग्रह है । कविताएँ और उपन्यास वह जालस्थल है जहाँ- अश्विनी कपूर, सफ़दर हाशिमी और स्वर्गीय सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताओं, लेखों, उपन्यासों इत्यादि का संग्रह हैं। भारतीय और अमेरिका-वासी मित्रों द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित आधुनिक हिन्दी साहित्य को प्रेषित करने के प्रयास का नाम है- अन्यथा । यहाँ समकालीन कविता, सहित्य, कहानियों और आलोचना का आनंद उठाया जा सकता है। संपूर्ण जगत्-जाल पर ललित निबंधों का एक मात्र संग्रह स्थल है- http://jayprakashmanas.info, यहाँ हिन्दी के सभी महत्वपूर्ण ललित निबंधकारों यथा- हजारी प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, कुबेरनाथ राय, पद्मश्री रमेशचंद्र शाह, डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ.श्यामसुंदर दुबे, रमेश दत्त दुबे, श्रीकृष्णकुमार त्रिवेदी, डा.बल्देव, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय, महेश अनघ, अष्टभुजा शुक्ल, डॉ.शोभाकांत झा सहित युवा ललित निबंधकार श्री जयप्रकाश मानस के ललित निबंधों को आनलाईन पढा जा सकता है । जिन्हें हाइकु का आस्वाद लेना है उन्हें हिंदी गगन डॉट कॉम से जुड़ना होगा । जगत्-जाल पर मात्र प्रौढ़ साहित्य ही नहीं यहाँ बाल साहित्य और दादा नानी की कहानियों का भी भंडार बिखरा पड़ा है । पिटारा और 4 to 40 आदि ऐसे ही जाल स्थलों के नाम हैं । बच्चों के मनोरंजन और कहानियों, कविताओं द्वारा उनका ज्ञान बढ़ाने के लिए जालस्थल बब्लू बनाया गया है। पॉपप झरोखे में हिन्दी की कड़ी है। न्यूयार्क विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने भी कहानियों, पत्रिका और विडियो को संग्रहित किया है इसे हम (www.nyu.edu/gsas/dept/mideast/hindi/) पर देख सकते हैं । यह सामाजिक व तकनीकि मुद्दों पर लेखों का संकलन है जो स्थल सुषा मुद्रलिपि में है। जो सामाजिक व तकनीकी मुद्दों पर लेखों को संकलित करना चाहते हैं, वे सराय का भ्रमण कर सकते हैं। यह स्थल सुषा मुद्रलिपि में है।


इस बीच इंटरनेट पर उपलब्ध हिंदी साहित्य के पठन-पाठन के प्रति लगातार वरिष्ठ और समकालीन दौर के महत्वपूर्ण रचनाकार जागरुक दिखाई देने लगे हैं । प्रिंट मीडिया यानी किताब और मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के साथ वहाँ उनकी महत्वपूर्ण रचनाएं भी देखी जा सकती हैं । यद्यपि जालपृष्ठों के प्रति प्रिंट मीडिया में सक्रिय औसतन लेखकों का रुझान अभी स्पष्ट नहीं हो सका है जो अंतरजाल पर हिंदी के विकास की दृष्टि से आवश्यक और भाषायी वैश्वीकरण के लिए भी आवश्यक है । रचनाकारों को इस दिशा में जागरुक होना चाहिए कि यह अपने पाठक बढ़ाने या नए पाठक बनाने का एक नया ज़रिया भी है। जहाँ उनकी रचनाएं और इस बहाने वे देश और काल की जटिल सीमाओं से भी परे जा सकते हैं । हिंदी की समकालीन लेखकों का वेबपेजों पर अपनी सक्रियता को रेखांकित करना इसलिए वाछिंत नज़र आता है क्योंकि इससे समूचे विश्व को हिंदी लेखन का सर्वश्रेष्ठ भी इंटरनेट के माध्यम से हस्तगत हो सकेगा और स्तरहीनता का प्रश्न भी खडा नहीं हो सकेगा । इसका आशय यह नहीं कि अंतरजाल पर उपलब्ध हिंदी साहित्य की पूरी सामग्री को ही स्तरहीनता का शिकार मान लिया जाए । यह अलग मुद्दा हो सकता है कि शौकिया वेबसाइट के कई संपादक ऐसे हैं जिन्हें हिंदी की विधागत चरित्र का भी बुनियादी ज्ञान नहीं है। इस प्रसंग में एक निजी अनुभव का जिक्र करना अप्रासंगिक नहीं होगा - हिंदी साहित्य के एक लोकप्रिय और खास वेबसाइट (भारतीय नहीं) के संपादक मेरे आग्रह और आपत्ति जताने के बाद भी एक बहुश्रूत एवं संपूर्ण भारतीय लोककथा को लोककथा न मानते हुए उसे संबंधित लेखक की निजी रचना और प्रेरक प्रसंग ही मानते रहे । वेबपृष्ठों पर रचे जा रहे समकालीन साहित्य का मूल्याँकन अभी होना शेष है क्योंकि वहाँ किसी खास और समर्थ समीक्षक की पहुँच अब तक सुलभ नहीं हो सकी है । वेबसाइट के स्ट्रक्चर के ज्ञाता तो यहाँ बहुतायत में है पर वहाँ स्थापित होती सामग्री के टेक्सचर के वैयाकरण नहीं के बरोबर । वेब पर निरंतर स्थापित हिंदी की भाषा में यद्यपि अभी नयी प्रौद्योगिकी का वह दुष्प्रभाव दृष्टिगत नहीं हुआ है जो इन दिनों मोबाईल के एसएमएस से गुजरने से पढ़ने को मिलता है । सबसे महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि यदि संख्यात्मक दृष्टिकोण से परखें तो इंटरनेट पर विदेशियों या प्रवासी लेखकों द्वारा रचे जा रहे साहित्य के नये आयामों, अनुभवो, प्रतीको, समकालीन प्रवृति और दशा के मूल्याँकन का समय अब आ चुका है । अभी हिंदी के नामवर आलोचक समीक्षा कर्म के दौरान इंटरनेट पर हो रहे लेखन को बिलकुल बिसार देते हैं । कहीं यह अदेखे और महत्वपूर्ण साहित्य लेखन के प्रति अन्याय और उपेक्षा-भाव तो सिद्ध नहीं हो रहा ? यह भी विचारणीय मुद्दा हो सकता है । क्योंकि वहाँ रचे जा रहे साहित्य और हिंदी का बहुलांश ऐसे रचनाकारों की रचनात्मकता का प्रतिफल है जो हिंदी की वरिष्ठ पीढ़ी की सानिध्यता या समीप-भाव से वंचित हैं या विलग हैं । खासकर विदेशी ज़मीन पर रहने के बावजूद मातृभाषा हिंदी के प्रति श्रद्धाभाव रखने वाले सृजनात्मकता को सतत् बनाये रखने वाले सृजनधर्मी ।
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जगत्-जाल पर हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का फैलता साम्राज्य-

इंटरनेट में हिंदी साहित्य के हजारों पृष्ठ ही नहीं अपितु अनेक नियतकालीन पत्र-पत्रिकाएँ भी सुव्यवस्थित ढ़ंग से प्रकाशित हो रही है । सच तो यह है कि इन्हीं पत्र-पत्रिकाओं के सहारे विदेशों में बसे भारतीय पाठकों को लगातार भारतीय साहित्य मिल पा रहा है । इसमें सबसे महत्वपूर्ण है –
अभिव्यक्ति एवं अनुभूति। इंटरनेट पर हिंदी साहित्य की सबसे बड़ी और एकमात्र इस साप्ताहिक पत्रिका का संचालन पूर्णिमा वर्मन के दिशाबोध में चार विभिन्न देशों के चार तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है । बेबदुनिया(हिंदी की प्रथम जालस्थल)उद्गम, तद्भव पत्रिका, ताप्तिलोक, भारत दर्शन (न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित), वागार्थ, हंस, अट्टहास, शब्दांजलि, साहित्य कुञ्ज, हिन्दी नेस्ट,हिन्दीसेवा.कॉम, कलायन पत्रिका, छाया, मधुमती, साहित्य अमृत, हिन्दी इलेक्ट्रौनिक साहित्य मैगज़ीन , रचनाकार , कृत्या (कविता की मासिक पत्रिका)आदि वे अन्य आनलाइन पत्रिका हैं जिसमें हिंदी पाठकों के लिए हिंदी साह्त्यि की विभिन्न विधाओं की सामग्री नियमित रूप से परोसी जा रही है । इसमें से कई साइटों के प्रबंधन द्वारा प्रकाशन हेतु पर्याप्त आमंत्रण के बावजूद तथाकथित हिंदी के चर्चित एवं महत्वपूर्ण साहित्यकारों की रचनाओं का टोटा है । सृजनगाथा छत्तीसगढ़ की एकमात्र आनलाइन साहित्यिक पत्रिका है, जो कुछ ही महीनों में 20 से अधिक देशों में लोकप्रिय हो चुका है । इस साइट की सबसे बड़ी विशेषता है दुनिया के सबसे कम उम्र (13 वर्ष)के बालक प्रशांत रथ द्वारा डिजायन किया जाना । इस साइट में देश विदेश के रचनाकारों की सभी विधाओं की रचनाएँ प्रकाशित की जा रही है । विश्व की पहली हिन्दी ब्लॉगज़ीन , निरंतर है जहाँ साहित्यिक एवं समसामयिक विषयों की रचनाए प्रकाशित की जाती हैं ।

साहित्यिक गलियारों में इसे हिंदी की विडंबना निरुपित की जाती रही है कि हिंदी के वरिष्ठ से वरिष्ठ साहित्यकार विदेश में नहीं पढ़े जाते । इन्हें प्रवासी भारतीय और वहाँ के हिंदी सेवी या साहित्यकार भी ठीक से नहीं जानते । प्रिंट मीड़िया की सर्वसुलभता, डाक की व्यापकता के बावजूद कोई भी हिंदी का लेखक अपने समय में दुनिया भर में नहीं पढ़ा जा सकता । हिंदी पट्टी का यह मिथक भी अब टूटता नज़र आ रहा है । सच्चे अर्थों में इंटरनेट और वहाँ संचालित ई-पत्रिकाओं के कारण रचनाकारों की अभिव्यक्ति को वैश्विक मंच मिलने लगा है । इंटरनेट ने व्यक्तिगत तौर पर भी हिंदी के साहित्यकारों को विश्वव्यापी बना दिया है । कल तक जिस रचनाकार के पाठक उसके पास-पड़ोस या एक सीमित क्षेत्र में पाये जाते थे अब उसे विश्व के कई देशों के जागरुक और गंभीर पाठकों से नियमित प्रतिक्रिया भी मिलती है । इस विश्वव्यापी माध्यम की व्यापकताओं को समझकर अब कई साहित्यकार नेट पर निजी बेबसाइट या आई.टी.बेस्ड बड़ी कंपनियों द्वारा मुफ्त उपलब्ध स्पेस (ब्लाग)पर स्वयं को अभिव्यक्त करने लगे हैं । इस कार्य में एम.एस.एन के माय स्पेस, याहू के जियोसिटीज, गुगल के ब्लागर डॉट कॉम तथा वर्डप्रेस आदि ने हिंदी के नये एवं पुराने लेखकों को भी काफी प्रोत्साहित किया है । इस अनुक्रम में हम हिंदी के प्रख्यात रचनाकारों सहित उन नये पुराने साहित्यकारों की व्यक्तिगत साइट का भी उल्लेख कर सकते हैं जिनमें से कुछ फ्री-स्पेस के जालडायरी पर स्थापित हैं । इनमें नरेन्द्र कोहली,
अशोक चक्रधर, आलोक की शायरी , आसान रास्ते (विक्रम मुरारका की कविता), उज्ज्वल भट्टाचार्य, एक अदहन हमारे अंदर और भग्न नीड़ के आर-पार (दोनों कवि अभिज्ञात की कविताओं का एक संग्रह), एस के भण्डारी, काव्य मंजूषा (स्वप्न मंजूषा शैल की हिन्दी काव्य रचनाओं का संग्रह), कैफ़ी आज़मी , तरकश, ( जावेद अख्तर की ग़ज़लों का संग्रह), धर्मवीर भारती , प्रधानमंत्री की रचनाएँ (श्री अटल बिहारी वाजपेयी की, मधुशाला (श्री हरिवंश राय बच्चन की यह प्रसिद्ध कविता ) मेरी कविताएँ (पूर्णिमा वर्मन् की व्यक्तिगत हिन्दी रचनाएँ।), मोहन राणा की कविताएँ ( हिन्दी कविता की नई पीढ़ी में मोहन राणा की कविता) रविशंकर श्रीवास्तव की हिन्दी ग़ज़लें , राज की कवितायें , शज़र बोलता है (शज़र द्वारा कविताओं का संग्रह), सहस्र धारा (दुष्यन्त कुमार, अज्ञेय, मुक्तिबोध, नेमीचन्द्र, भवानीप्रसाद मिश्र, हरिनारायण व्यास, रघुवीर सहाय, शकुन्त माथुर व शमशेर बहादुर सिंह की कुछ कविताओं का रोमन लिपिबद्ध संग्रह), हिन्दी की कविताएँ (सत्येश भंडारी), अनकही बातें सारिका सक्सेना अशोक आधुनिक कविताएँ (हरिवंशराय बच्चन, राकेश कौषिक, महादेवी वर्मा द्वारा लिखी कविताएँ।"HINDI" नामक कड़ी के नीचे इनकी कड़ियाँ उपलब्ध हैं), नर्मदाप्रसाद मालवीय , भास्कर तैलंग , जयप्रकाश मानस, सुकेश साहनी(स्वंय एवं अन्य नामचीन लघुकथाकारों की रचनाओं का संग्रह स्थल) रोशन कामथ की उर्दू रचनाएँ ,आदि साइट या ब्लाग प्रमुख हैं । इसके अमीर ख़ुसरो के हिन्दी दोहे ख़ुसरो के दोहों का संग्रह। गीता अमृत (सुदर्शन कुमार गोयल द्वारा हिन्दी में कविता रूप में अनुदित गीता के कुछ श्लोक), टैगोर की रचनाएँ मीरा , वन्दे मातरम् बंकिम चंद्र चटर्जी का लिखा देशभक्ति का गीत। शायरी (उर्दू शायरी और हिन्दी कविताओं का संग्रह। हिन्दी में श्रीरामचरितमानस भी उपलब्ध है)विनय का हिन्दी उर्दू काव्य पृष्ठ , ईबज़्म (हिन्दी व उर्दू काव्य,यह जालस्थल सुषा मुद्रलिपि का प्रयोग करता है) दक्षिण एशियायी महिला गोष्ठी (इस अंतरजाल गोष्ठी में अपनी हिन्दी काव्य रचनाओं को प्रस्तुत किया जा सकता है और औरों की रचनाएँ पढ़ी जा सकती हैं) का भी जिक्र समीचीन होगा ।

अखबार अब नेट की ओर-

नई सूचना प्रौद्योगिकी और वेब तकनीक को देश के बड़े अखबार वालों ने जल्दी अपनाया। आज हम देश-विदेश की कई हिंदी दैनिकों को घर बैठे पढ़ सकते हैं । इनमें अमर उजाला , अमेरिका की आवाज़ (वायस औफ़ अमेरिका) आगरा न्यूज़ , आज, आज तक , इरान समाचार , ई ऍम ऍस इण्डिया (समाचारपत्रों को बहुभाषीय समाचार सेवा प्रदान करने वाला स्थल), उत्तराँचल टाइम्स, एक्सप्रेस न्यूज़, ख़ास ख़बर, जन समाचार(भारतीय व भारतीय ग्रामीण मुद्दों से सम्बन्धित समाचार पत्र), डियूश वेल्ल (जर्मन रेडियो द्वारा प्रसारित हिन्दी कार्यक्रम) पाञ्चजन्य, इंडिया टुडे, डेली हिन्दी मिलाप, द गुजरात, दैनिक जागरण , दैनिक जागरण ई-पेपर , दैनिक भास्कर , नई दुनिया - नव भारत अखबार, नवभारत टाइम्स, पंजाब केसरी, प्रभा साक्षी, प्रभात खबर, बी.बी.सी. हिन्दी खबरें - यूनीवार्ता, राजस्थान पत्रिका, राष्ट्रीय सहारा, रीडिफ़.कॉम, रेडियो चाइना ऑन्लाइन, लोकतेज , लोकवार्ता समाचार, वाह मीडिया(सनसनी पैदा करने वाले भारतीय मीडिया पर चुटकी लेने के लिए बनाया गया हल्का-फुल्का जालस्थल), विजय द्वार, वेबदुनिया, समाचार ब्यूरो, सरस्वती पत्र (कनाडा का हिन्दी समाचार)सहारा समय, सिफ़ी हिन्दी, एम.एस.एन हिंदी, सुमनसा ( कई स्रोतों से एकत्रित हिन्दी समाचारों के शीर्षक) हरिभूमि आदि प्रमुख हैं । इन अखबारों को पढ़ने के लिए यद्यपि हिंदी के पाठक को अलग-अलग फ़ॉन्ट की आवश्यकता होती है परंतु संबंधित अखबार के साइट से उस फ़ॉन्ट विशेष को चंद मिनटों में ही मुफ्त डाउनलोड़ और इंस्टाल करने की भी सुविधा दी गई है । हिंदी फ़ॉन्ट की जटिल समस्या से हिंदी पाठकों को मुक्त करने के लिए शुरूआती समाधान के रूप में डायनामिक फ़ॉन्ट का भी प्रयोग किया जा रहा है । डायनामिक फ़ॉन्ट ऐसा फ़ॉन्ट है जिसे उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि संबंधित जाल-स्थल पर उपयोगकर्ता के पहुँचने से फ़ॉन्ट स्वयंमेव उसके कंप्यूटर में डाउनलोड हो जाता है । यह दीगर बात है कि उपयोगकर्ता उस फ़ॉन्ट में वहाँ टाइप नहीं कर सकता । जो भी हो, इसमें से कई ऐसे अखबार हैं जिससे जुड़कर हिंदी कंप्यूटिंग में दक्ष एवं सक्रिय पत्रकार और फोटोग्राफर मान और मानदेय दोनों अर्जित कर सकता है । वह देश एवं विदेश के बड़े ख्यातिनाम पत्रकारों से नियमित संपर्क कर अपने कौशल को भी बढ़ा सकता है । एक ऐसा ही बेवसाइट है - श्वूंग । यहाँ निःशुल्क, किसी सारांश, समीक्षा, सार, पुस्तक की चर्चा को 34 भाषाओं में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया जाता हैं। श्वूंग साहित्य (हर प्रकार की पुस्तकें), समाचारपत्र, वेबसाइट और अकादमिक प्रसंग से कोई: दर्शनशास्त्र, इतिहास, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, नृतत्वविज्ञान, भाषा-विज्ञान, आयुर्विज्ञान, गणित, भौतिक विज्ञान, खगोलीय भौतिकी खगोलशास्त्र, जीवविज्ञान, रसायनशास्त्र, जैव-रसायनशास्‍त्र, जैव-प्रौद्योगिकी, इं‍जीनियरी, पर्यावरण, कानून, अर्थशास्त्र, व्यापार प्रबंधन और अन्य का सार प्रदान करता है। होमर और आर्कमेडिज़ से लेकर शेक्सपियर और न्यूटन से आइंस्टीन और जे के रोलिंग तक। यहाँ से अनुवाद कर पैसा कमाया जा सकता है ।

धर्म-अध्यात्म की पावनधारा-

यह कई लोगों के लिए आश्चर्य का विषय हो सकता है कि अंगरेज़ी में संचालित चर्चा समूहों (डिस्कसन ग्रुप्स)में सर्वाधिक लोग धर्म-कर्म और अध्यात्म पर चर्चा करते पाये जाते हैं । और उस पर भी अजीब यह कि उनमें से अधिकांश भारतीय अध्यात्म के महत्वपूर्ण पहलू पुनर्जन्म जैसे जटिल विषय पर विमर्श हेतु ज्यादा सतर्क और इच्छुक होते हैं। एक आश्चर्य यह भी कि औसतन हिंदीभाषी भारतीय इंटरनेट पर इन विषयों के प्रति लापरवाह नज़र आता है । फिर भी विभिन्न धर्मों, पंथों, मतो से संबंधित हिंदी साइट जगत्-जाल पर आये दिन उद्धाटित हो रहे हैं । यहाँ हिंदू धर्म के विभिन्न घटकों की साइट भी उनके अनुयायियों द्वारा सरलता से देखी जा सकती है । इन जाल स्थलों में
आर्य समाज, आर्य समाज जामनगर, (आर्य समाज के नियम, संस्थापक और ग्रन्थ जैसे ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, सत्यार्थ प्रकाश, वेदों के भाष्य, वेदांग तथा अन्य वैदिक साहित्य भी चित्र प्रारूप में यहाँ उपलब्ध है), उपासक का आन्तरिक जीवन, (श्री राम शरणम के स्वामी सत्यानन्द की रचनाएँ), ऋषि प्रसाद (संत श्री आसाराम आश्रम द्वारा प्रकाशित यह पत्रिका अब इस जालस्थल पर भी पढ़ी जा सकती है), एकादशी व्रत , (एकादशी व्रत की कथा), ओशो अनुभव (ओशो वैबसाइट जहां आप ध्यान का अनुभव कर सकते हैं, मैडिटेशन रिज़ॉर्ट में जायें, ऑन-लाइन टैरो कार्ड का अध्ययन करें, ऑन-लाइन पत्रिका का मज़ा लें ,पुस्तकें खरीदें, ऑडियो और वीडियो खरीदें ताकि आप अपनी जीवन शैली में जागरूकता ला सकें। स्ट्रीमिंग ऑडियो और वीडियो भी यहाँ उपलब्ध हैं), ओशो पत्रिका (श्री ओशो रजनीश के प्रवचनों की पत्रिका), करवा चौथ व्रत, कल्याण आश्रम(श्री नारायण साईं जी के जीवन, संगठन, विचार, चित्रों का घर), गायत्री परिवार वाटिका,चिन्मय मिशन का हिन्दी जालस्थल(मिशन द्वारा वेदान्त ज्ञान हिन्दी भाषा में प्राप्त करने का महास्थल), चिरायु काल सर्प(फलित ज्योतिष से सम्बन्धित जानकारी) नारद भक्ति सूत्र ( स्वामी शिवोम् तीर्थ की पुस्तक परम प्रेमालोक पर आधारित), भनोट भजन संग्रह - इस पृष्ठ पर हिन्दी और अंग्रेज़ी में भजन संकलित किये गये, महादेव शिव शंकर पूजा श्लोक मंत्र - शिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम्ज्योतिर्लिंग व लघुरुद्राभिषेक, विश्व हिन्दू परिषद (विश्व हिन्दू परिषद का जालस्थल), वेदान्त सोसाइटी ऑफ़ न्यूयार्क (स्वामी विवेकानन्द द्वारा 1894 में न्यू यार्क, अमेरिका में स्थापित वेदान्त सोसाइटी का जालस्थल), श्री गीता चालीसा (श्रीमद् भगवद् गीता, हिन्दी व्याख्या सहित), श्री चैतन्य सारस्वत मठ(नवदीप धाम में स्थित श्री चैतन्य सारस्वत मठ का जालस्थल), श्री शनि धाम (श्री सिद्ध शक्ति पीठ शनि धाम का जालस्थल), श्रीराम शरणम (श्रीराम शरणम सतसंग संबंधी प्रवचन और संस्थापक के बारे में जानकारी), साईलीला – (साई बाबा पर एक हिन्दी पत्रिका), सिद्ध समुदाय(शैव पन्थ के बारे में कई भाषाओं में जानकारी), हिन्दी आरती (आरतियों का संकलन) विश्व हिंदू समाज, प्रमुख हैं, जिसे नियमित रुप से सारे विश्व में पढ़ा जा रहा है । अखिल विश्व गायत्री परिवार एक महत्वपूर्ण साइट हैं जहाँ अखण्ड ज्योतिप्रज्ञा अभियान जैसी अध्यात्म की लोकप्रिय मासिक पत्रिका सहित महापुरुषों के जीवन प्रसंग, पूज्य गुरुदेव की अमृत वाणी, इक्कीसवीं सदी-क्रान्तिधर्मी साहित्य, साधना, व्यक्ति निर्माण, युग निर्माण, आयुर्वेद, चिकित्सा, तथा स्वर्ण जयन्ती पुस्तक माला की कई किताबें को बिना किसी शुल्क के डाउनलोड कर संग्रहित किया जा सकता है ।

हिंदी गीत संगीत की महफ़िल जगह-जगह
हिंदी कंप्यूटिंग और इंटरनेट के औसतन उपयोगकर्ता जिन साइटों को बहुधा खंगालते हैं उसमें फिल्मी-संगीत का विषय कहीं आगे है । और ऐसे जाल-स्थलों की फेहरिस्त कम लंबी नहीं । हम यहाँ ऐसे जाल-स्थलों का उल्लेख समयाभाव के कारण नहीं कर रहे हैं । फिर भी आप में से कोई गीत-संगीत का विशेष दीवाना है तो उसके लिए भी कुछ विशिष्ट जाल-स्थलों का नाम बताये दे रहे हैं ।
अक्षरमाला -फ़िल्मी गाने में तीन हज़ार हिन्दी फ़िल्मी गानों का संग्रह है। गीतायन गीत के अद्याक्षर के अनुसार हिन्दी फ़िल्मी गीतों को खोजने की सुविधा देती है । यह अन्त्याक्षरी जैसे खेलों में काम आ सकता है। चलचित्र में हिन्दी फ़िल्म अमर प्रेम के बारे में जानकारी विद्यमान है । पर यह स्थल रोमन लिपि में है। फ़िल्मी गीत - लगान, कभी ख़ुशी कभी ग़म, कल हो न हो फ़िल्मों के गीतों के बोल हिन्दी और जर्मन में उपलब्ध हैं। पी डी ऍफ़ प्रारूप में। फ़िल्मी गीतों के बोल में हिन्दुस्तानी फ़िल्मी गीतों के बोल उपलब्ध है। बोल रोमन लिपि में हैं। बॉलीवुड में हिन्दी फ़िल्मों, गानों और सितारों के बारे में जानने के लिए, इस महा जालस्थल में प्रवेश कर सकते हैं । भारतीय शास्त्रीय संगीत - भारतीय शास्त्रीय संगीत के बारे में जानकारी देता है यहाँ आप थाट, राग, इत्यादि के बारे में व्यापक जानकारी प्राप्त कर सकत हैं । राग पर हिंदी में क्लासिकल, फिल्मी गीत, भजन आदि निःशुल्क व आनलाईन सुनकर भावविभोर हुआ जा सकता है ।

अंतरजाल पर हिंदी पृष्ठों को समृद्ध करते ब्लागर
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लेखन की नई तकनीक ‘ब्लाग’ का आगमन इंटरनेट पर लेखन की दिशा में क्रांतिकारी सिद्ध होने लगा है । वेब-लॉग का शॉर्ट फॉर्म है ब्लॉग, यानी एक ऑनलाइन निजी डायरी। अब इस डायरी पर आप कविता लिखें या कहानी । उपन्यास रखें या ललित निबंध । या फिर समाचार टंकित करें । खास बात यह है कि ब्लॉग पर लिखने के लिए यह जरूरी नहीं कि आप बहुत बड़े लेखक, पत्रकार, कवि या विचारक हों ही। जरूरत है तो ब्लॉग पर क्लिक करने की और बस लग जाएंगे आपके विचारों को पंख। ब्लॉग आपको अपने विचारों को पंख लगाने का मुफ्त स्पेस देते हैं। कुछ भी लिखेंगे, फीडबैक मिनटों में मिल जाता है। यानी किताब लिखने से ज्यादा फास्ट और फायदेमंद। फायदेमंद इसलिए क्योंकि यहां लिखने के लिए न तो आपको किसी पब्लिशर के चक्कर काटने पड़ेंगे और न ही किसी संपादक की कैंची का मोहताज होना पड़ेगा। अपनी पहचान को पूरी तरह छिपाते हुए आप साइबर कम्युनिटी का हिस्सा यानी ब्लॉगर बन सकते हैं । कुछ ही समय पहले हिंदी के 2-4 लेखक ही ब्लाग तकनीक का फायदा उठाकर अपनी रचनात्मकता को इंटरनेट पर प्रदर्शित कर रहे थे पर खुशी की बात है कि देखते ही देखते विगत 5-6 माह की भीतर इनकी संख्या 284 तक पहुँच चुकी है,शायद इससे भी और ज्यादा, क्योंकि प्रतिदिन कोई न कोई हिंदी प्रेमी यहाँ अपनी अभिव्यक्ति के लिए पधार रहा हैं। यानी कि हिंदी वाले भी इस दिशा में पीछे नहीं हैं ।

साहित्य, तथा हिंदी के साहित्येतर वाङमय (कला, विज्ञान, चिकित्सा, प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, खेल, सामयिक मद्दों, राजनीति, परिवार, शिक्षा पेंटिग जैसे कई विषयों) से इंटरनेट को समृद्ध करने वाले कुछ महत्वपूर्ण ब्लाग हैं-
A Journey , An Inner Voice , anandpur satsang , anoobhuti , apnidhapli , archnaakhyan , arvind das , ♥ अभिव्यक्ति ♥, अँखियों के झरोखों से , अंतरजाल पर पहला छत्तीसगढ़ी उपन्यास , अंतर्मन ,अंदाज़-ए-बयाँ और , अक्षरग्राम, अनकही बातें , अनुभूति कलश , अपनी बात, अबे कस्बाई मन! , अभिरंजन कुमार का ब्लॉग, अभिरुचि ,अभिव्यक्ति ,अरूण उवाच, अर्ज किया है ! , अल्प विराम , आइए हाथ उठाएं हम भी , आईना , आओ सीखें संस्कृत भाषा , आज का सवाल Today's Question, आलेख , इधर उधर की, इन्‍द्रधनुष , , ई-स्वामी, उडन तश्तरी, उत्तरा, उत्तरांचल, एक अनोखी दास्तान, एक और नज़रिया ..:: Anderer Standpunkt , एक दीवाना , एक मनोविचार , एक मुलाकात, एक शाम मेरे नाम , कचराघर Recycle Bin, कटिंग चाय , कतरनें (snippets), कथाओं का सिलसिला, कथक के साथ!! , कल्‍पवृक्ष , कल्पतरु , कविता सागर , कहकशां , कही अनकही , काम : एक कला, काव्यगगन( kavyagagan) , की-बोर्ड का रिटायर्ड सिपाही, कीबोर्ड के सिपाही , कुछ बतकही , कुछ बातें , कुछ मेरी भी , कुछ सच्चे मोती , कुछ सच्चे मोती , कुछ हमरी भी , कुत्ते की पूँछ , कुलबुलाहट , क्या? क्यों? कैसे? , खाली-पीली , खुशबू , गजल की दुनिया में , गपशप , गप्प-सड़ाका , गाना बजाना , गीत कलश , गुरु गोविंद , गूगल हिन्दी में , घूमते फ़िरते , चिट्ठा-ए-डिप्पी , चिठ्ठा चर्चा , चित्र कथा , चिन्तन , चुटकलों की बहार , छत्तीसगढ़ - छत्तीसगढ़ी - छत्तीसगढ़िया, छाया, छाया (shadow), छींटे और बौछारें , छुट-पुट , जयप्रकाश मानस , जर्मन सीखो , जलते हुए मुद्दे , जलेबीBurger , , जी हाँ , जीतू की कलम से , जीवन के रंग , जुगलबन्दी.. , जुगाड़ी लिंकCool Links , जो देखा भूलने से पहले : मोहन राणा : Mohan Rana , जो न कह सके , जोगलिखी , ज्ञान-विज्ञान , झरोखा , टेकनोलोजी का तत्वज्ञान , टोने टोटके , ठलुआ , ठेले पे हिमालय , डॉ॰ जगदीश व्योम , , तत्वज्ञानी के हथौडे , तिरछी नजरिया , तिरछी नजरिया , दरिया , दर्पण।The Mirror , दस्तक , दिल की बात … दिल से . .(Hindi Blog) ,दिल्ली ब्लॉग , देखले भाई Look it , देश-दुनिया , दैनन्दिनी , धीरु भाई , नई हवा-अनुभूति-हिन्दी गुट , नारद उवाच , निठल्ला चिन्तन , निठल्ला चिन्तन , निनाद गाथा , निशांत उवाच , नुक्ताचीनी , नून तेल लकडी , नेपालसे एक चिट्ठा , नौ दो ग्यारह , पंखुड़ी , पठार-ए-सैकता , पहला पन्ना , पहेली , पाकचेष्टा , पाठक साहित्य , पाठशाला :: My Class , पिटारा भानुमती का , प्रतिबिम्ब , प्रतिभास ,प्रतिमांजली , प्रत्यक्षा, प्रपंचतन्त्र, प्रारंभ, फ़ुरसतिया , बनारसी , बस यूँ ही ! , बाकी सब ठीक है , बीच-बजार , बीबीसी से मेरी बात , ब्रज से दूर ब्रजवासी की चिट्‌ठियाँ , ब्लागिया कहीं का , भारत यात्रा , भाव-विचार , भाषा राजनीति , भोजपुरिया , मंतव्य, मन की बात , मसिजीवी , महानदी , महावीर , मानसी , मालव संदेश, मिर्ची सेठ , मुक्त जनपद , मुन्ने के बापू , मुम्बई ब्लॉग , मेरा चिट्ठा , मेरा पन्ना , मेरा राजस्थान My Rajasthan , मेरा हिन्दी ब्लॉग , , मेरी कविताएँ , मेरी कविताएँ , मेरी कविताएं , मेरी कृति , मेरी डायरी : पद्मनाभ मिश्र , मेरी रियासत , मेरे अपने अहसास , मेरे कैमरे से : Through My Lenses , मेरे विचार में , मेरे सपनों का भारत , रचनाकार , रजनीगन्धा , रणवीर का चिट्ठा , रतीना , रत्ना की रसोई , राग- हिन्दी में , रामलाल और भारत , रोजनामचा , लखनवी , लाईफ इन ए एचओवी, लेन , वाह मीडिया! हिंदी ब्लॉग by Balendu Sharma Dadhich , विनीत हिन्दी में … , विमर्श , विवेक , शंख सीपी रेत पानी , शब्‍दशिल्‍प , शब्दायन , शर्मा होम - Sharma Home , श्रीमद्भगवद्गीता , संगीत , संवदिया , सरल चेतना , साहित्य-संसार , सिने गॉसिप , सुगम संगीत , सुमीर शर्मा हिन्‍दी में , सुरभित रचना , सुराज , सुलेखा-साहित्य , सृजन-गाथा , सेहर , हमारी आवाज़ सुनो , हिंदिनी , हिन्दी , हिन्दी और मैं , हिन्दी देवलोक , हिन्दी साहित्य , हिन्दी साहित्य , हिन्दी सेमिनार , हिमांशु का ब्लॉग , हिरण्यगर्भ , हृदयगाथा , हैलॊ उज्‍जैन , हैलो उज्‍जैन , होम्योपैथी-नई सोच/नई दिशायें , जिं द गी , ख़ुशबू , फ़लसफ़े , Bhaat baaji , BIGGEST STORE OF HINDI LYRICS , CHANDAN'S DIARY, Chayachitrakar - छायाचित्रकार , Cheeku , DAAYRA , DAAYRA , e.chhatisgarh , Escaping the Death , Gaurav verma , GREETINGS , Hindi , Hindi Bhashi , HIndi Blog: हिन्दी ब्लाग , Hindi Poetry Collection , Hindi Urdu Poetry , Hindi, und Deutsch (German) Lernen (हिन्दी और जर्मन सीखीये) , HindiWalla , Hindu , hindu , Imagination World :: कल्पना कक्ष , INDIA GATE , JHAROKHA , , kuch yun hee… , Latest entries from ashoka.blog-city.com , magic-I, mahashakti , mantavya , mari bhi suno , My Blog , My Hindi Blog: मेरा हिन्दी चिट्ठा , My Images , my page , Naren's Hindi Blog , Optimastize , Page-1,2,3: First Online Hindi Novel , poetry , Random Expressions, sapnersansaar , shuaib's hindi blog , Shunya hi rss feed , Srijan Shilpi - your friend, philosopher & guide , Stilling Still Dreaming , Tere Hamsafar Geet Hain Tere (THGHT) The Hindi Blog , The Hindi Web , Timepass: समय नष्ट करने का एक श्रेष्ठ साधन , wah kya baat hai…Yeh Bhi Khoob Rahi!!! , world from my eyes - दुनिया मेरी नज़र से!! , Ye Meri Life Hai , YogBlog , yogeshdamle.com , ~ प्रेमपीयूष ~ मेरे कवि मित्र

इंटरनेट पर हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं के प्रचार प्रसार के लिए हाल ही में विश्व की सबसे बड़ी सॉफ़्टवेयर निर्माता माइक्रोसॉफ़्ट की भारतीय इकाई – भाषाइंडिया द्वारा भारत के 9 भारतीय भाषाओं के ब्लॉगों को विविध वर्गों के पुरस्कार दिए गए. हिन्दी भाषा के ब्लॉगों को विभिन्न श्रेणियों में पाँच पुरस्कार प्राप्त हुए – जो यह दर्शाते हैं कि हिन्दी में ब्लॉग लेखन स्तरीय हो रहा है.

हिंदी में उपलब्ध है ई-प्रौद्योगिकी का पाठ-

कंप्यूटिंग और इंटरनेट के प्रारंभिक चरण के दरमियान हिंदीभाषियों के पिछड़ने के पीछे इस विद्या का सारा का सारा पाठ अंगरेज़ी में होना रहा है । पर अब ऐसी स्थिति नहीं है । वाछिंत जानकारी और ज्ञान हिंदी में प्रस्तुत हो रहा है। स्वयं हिंदी के साइट इस दिशा में लगातार आगे आ रहे हैं । प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् । यदि आप 1. अपने कम्प्यूटर पर हिन्दी देखना चाहते हैं? 2. हिन्दी में काम करना चाहते हैं? 3. कोई जानकारी हिन्दी में चाहते हैं? 4. हिन्दी के बारे में जानना चाहते हैं? 5. हिन्दी की दूसरी बसाइटों के बारे में जानकारी चाहते हैं? तो
वेबहिन्‍दी डॉट कॉम को खंगाल सकते हैं । ऐसे लोग जो हिंदी में कंप्यूटिंग खासकर ऑपरेटिंग सिस्टम, उसके प्रकार, कार्य, एवं विशेषताओं, मोड़, मैमोरी मैनेजमेंट, फाइल मैनेजमेंट, प्रोसेस मैनेजमेंट, डिस्क आपरेटिंग सिस्टम, कमांड्स, विंडोस आपरेटिंग सिस्टम, विंडोज बेसिक आदि के बारे में हिंदी में जानकारी प्राप्त कर हिंदी कंप्यूटिंग में पारंगत होना चाहते हैं उनके लिए सबसे बढिया जालघर है- ई-पुस्तक । ‘इलेक्ट्रॉनिकीआपके लिये’ पत्रिका जो हिन्दी में कम्प्यूटर, विज्ञान एवं नई तकनीक जैसे विषयों पर प्रकाशित होने वाली देश की प्रथम पत्रिका है, भी आनलाइन उपलब्ध है । इसके सहारे कंप्यूंटिंग से संबंधित जानकारी हिंदी में आनलाइन प्राप्त की जा सकती है । इसके अलावा भी इन कार्यों हेतु कई ऐसे वेबसाइट इंटरनेट पर हैं जहाँ पर सरल और बोधगम्य हिंदी में ई-प्रौद्योगिकी की बारीक से बारीक जानकारियाँ संग्रहित की जा सकती हैं ।

इसके अलावा यदि कोई किसी खास जानकारी, संदर्भ को खोजना चाहता है या फिर अपने ज्ञान, जानकारी, संदर्भ-सूचना को संपूर्ण दुनिया के वांछित लोगों के मध्य बाँटना चाहता हैं तो विकिपीडिया और
सर्वज्ञ (ज्ञान का सहकारी कोष)उसका रास्ता देख रहे हैं । इसमें से विकिपीडिया तो विश्व के सबसे बड़े इनसायक्लोपीडिया में से एक है । यहाँ कोई भी निःशुल्क पंजीकृत होकर किसी भी विषय की सामग्री हिंदी में लिख सकता है । उसे प्रतिष्ठित कर सकता है । विकिपीडिया मूलतः हिंदी में ओपेन एनसायक्लोपीडिया है जहाँ हिंदी सहित कई भारतीय भाषाओं की व्यापक संदर्भ और प्रमाणित जानकारी उपलब्ध है और जिसे नियमित अद्यतन किया जा सकता है । कोई भी नवोदित या प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार, या आम आदमी इंटरनेट पर अपनी अभिव्यक्ति सहित हिंदी कंप्यूटिंग की लगभग समस्त जानकारी मुफ्त में इन साइटों से निःशुल्क प्राप्त कर सकता है । ऐसे कार्यों की संभावनाओं पर ही इंटरनेट को कभी ज्ञान और सूचना का विस्फोट कहा गया था ।

हिंदी में शोध एवं किसी खास शोध परियोजना से संबद्ध स्कालर को पहले काफी मशक्कत करनी पड़ती थी । अब एमएसएन, तथा गूगल, हिंदी में अपना-अपना सर्च इंजन ला चुके हैं जिससे किसी खास विषय या सामग्री को हिंदी में टाइप करके ढूँढ़ने की सौगात हिंदी प्रेमियों को मिलने लगी है ।

हिंदी के कुछ नये ऑनलाइन शब्दकोश व शब्दसंग्रह—

हिंदी के लिए देखते ही देखते कोई दर्जन भर ऑनलाइन अंगरेज़ी-शब्दकोश उपलब्ध हो चुके हैं और नये–नये ऑनलाइन शब्दकोश आना जारी हैं। अब हिंदी–हिंदी शब्दकोश व शब्दसंग्रह (थिसॉरस) भी जारी किया जा चुका है जो साहित्यकारों के लिए अत्यंत उपयोगी है। ऑनलाइन अंग्रेजी–हिंदी शब्दकोशों की सूची में एक और नाम जुडा है शब्दनिधि। इसे देबाशीष ने अंतरजाल की नवीनतम तकनॉलाजी एजेक्स का इस्तेमाल कर बनाया है और इसमें काफ़ी विस्तार की गुंजाइशें भी हैं। एक अन्य¸आइट्रांस आधारित हिंदी–अंग्रेजी–हिंदी ऑनलाइन शब्दकोश भी है हिंदी या अंग्रेज़ी किसी भी भाषा में शब्दों के अर्थ ढूंढने की सुविधा देता है। हिंदी में मिलते–जुलते शब्दों को ढूंढने का यह बढ़िया स्थल है। आपको अपने रदीफ़–काफ़िये के लिए उचित शब्दों की खोज यहीं करनी चाहिए।



इंटरनेट में हिंदी का भविष्य-

कहने को इंटरनेट की आयु अभी 10 साल की है । इस मायने में वह शैशवकाल की परिधि लाँधकर एक स्वस्थ बच्चा बन चुका है । पर अल्पायु में ही उसने विखरते हुए दौर में भी समाज को जोड़ने में जिस तरह महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है, वह कम महत्वपूर्ण नहीं । पांरपरिकता विश्वासी और नई प्रौद्योगिकी को शिथिल मति से स्वीकारने वाले भारतीय समाज की जीवन पद्धति से भी वह जुड़ता चला जा रहा है । भारत में जैसे-जैसे टेलिफोन लाइन और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइड़रों (अंतरजाल सेवा प्रदाता) की पहुँच बढ़ती जा रही है लोग इंटरनेट की व्यापक क्षमता और उसकी उपयोगिता को आत्मसात करने लगे हैं । महानगरों एवं खास कर बड़े नगरों में, जहाँ इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स में प्रतियोगिता के कारण अब मध्यम वर्ग के पढे-लिखे लोग भी साइबर कैफे का दरवाजा ताके बिना अपने घरों में ही निजी कनेक्शन लेने लगे हैं । परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी उसकी दस्तकें ब़ाकी है । हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में उसके सरल विस्तार के कारण समान गति से गाँव और शहरों में उसकी लोकप्रियता सिद्ध नहीं हो सकी है ।

वर्तमान में(दिसंबर,2005) भारत में इंटरनेट के लगभग 50,600,000 उपभोक्ता हैं। जबकि भारत की आबादी 1,112,225,812 है । इसका आशय है कि मात्र 4.5 प्रतिशत आबादी ही इंटरनेट का उपयोग कर रही है । जबकि विश्व की 15.7 एवं एशिया महाद्वीप की 9.9 प्रतिशत आबादी इंटरनेट की उपभोक्ता है । भारत में वर्ष 1998 में कुल आबादी का 0.1 ही इंटरनेट के उपभोक्ता थे । इस तरह से देखें तो प्रतिवर्ष उपभोक्ताओं का दर आबादी के अनुपात में भी नहीं बढ़ रहा है । यदि यह दर स्थिर रहा तो भारत में इंटरनेट ठहराव के संकट से गुजरने लगेगी । लेकिन यदि गूगल कंपनी के मुखिया द्वारा लंदन के कांफ्रेस में की कई भविष्यवाणी पर विश्वास पर करें तो अगले पाँच से दस साल में भारत जितने अन्तर्जाल प्रयोक्ता और कहीं नहीं होंगे और अङ्ग्रेज़ी,
चीनीहिन्दी अन्तर्जाल की प्रमुख भाषाएँ होंगी। जहाँ तक इंटरनेट पर राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास का प्रश्न है उसके पीछे स्वयं हिंदीभाषियों में जागरुकता की धीमी गति, तकनीकी अड़चने और उसे निपटने के उपायों के लोकव्यापीकरण की अनियोजित प्रयास हैं । जहाँ तक इंटरनेट पर हिंदी के प्रसार के लिए भारत में 2000-2001 से प्रयास किये जा रहे हैं । इस दौर में इंफ्रास्ट्रक्चर ही कमजोर था । न ब्राडबैंड का व्यापक नेटवर्क था न ही केबल कनेक्शन (आलवेज ऑन कनेक्शन) की सुविधा । इस दौर में वस्तुतः इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर भारतीय बाजार को ही नहीं समझ सके जहाँ आम उपभोक्ता सबसे पहले मुफ्त एवं उपहार में सेवाएं पाने का आदी हो चुका है ।

इधर आईटीसी द्वारा ई-चौपाल के माध्यम से छह राज्यों में फिलहाल ५,६०० ई-चौपालें हैं जो ३५,००० गांवों के ३५ लाख किसानों को सेवा मुहैया करा रही हैं। यह कंपनी २०१० तक १५ राज्यों में ई-चौपालों की संख्या बढ़ाकर २०,००० करना चाहती है। इसी कोण से सोचते हुए समाज के नये-नये क्षेत्रों में संलग्न मानव संसाधन को विशेष कर ग्रामीण भारत में ई-प्रौद्योगिकी को चरणबद्ध ढ़ंग से पहुँचाना होगा । वनस्थली विद्यापीठ द्वारा राजस्थान में सूचना प्रोद्योगिकी लोकीकरण के लिए कायल नेट , ज्ञानोदय एवं ज्ञानजोत जैसी त्रिवर्षीय परियोजना संचालित कर ई-स्वास्थ्य, ई पर्यटन, ई-प्रशासन, ई-व्यवसाय एवं दूरस्थ शिक्षा के समाधान एवं प्रशिक्षण जैसे कारगर कार्य किये जा रहा है जहाँ ग्राणीण ई-शिविरों के माध्यम अल्पशिक्षित लोगों को इस तकनीकी में काम करने की आदत विकसित की जा रही है । ऐसी कारगर परियोजना का अनुसरण अन्य हिंदी राज्यों में भी किया जाना चाहिए ।

हिंदी में स्कैनिंग की त्रुटिरहित तकनीक ''ओ सी आर'' विकसित कर ली जाए तो इंटरनेट पर हिंदी में उपलब्ध अथाह सामग्री और भविष्य में लिखे जाने वाले वाङमय को लाने की गति तेज हो सकती है। ओ सी आर वह तकनीक है जिसमें प्रकाशित साहित्य स्कैनर से अपने आप कंप्यूटर पर टाइप होने लगता है यानी कि टेक्स्ट में तब्दील हो जाता है । इसी तरह से त्रुटिरहित फ़ॉन्ट परिवर्तकों को जनव्यापी बनाया जाना समय की माँग है । इंटरनेट के हिंदी युजर्स बढ़े, इसके लिए आवश्यक है कि हिंदी का मानक की बोर्ड भी देश में लागू हो ।
हिंदी का मुख्य संकट सामग्री का अभाव भी रहा है । एक आँकडे के अनुसार इंटरनेट पर अँगरेज़ी के 20 अरब से अधिक वेबपृष्ठ है जबकि हिंदी में एक करोड़ के आसपास । क्या यह अंतरजाल पर हिंदी की दरिद्रता का प्रश्न नहीं है ? क्या यह बात का सबूत नहीं कि हिंदीभाषियों की पुरानी एवं समकालीन पीढ़ी इस मामले में जागरुक नहीं है ? जहाँ तक पुरानी पीढ़ी की तादात्मयता का प्रश्न है उसके पीछे उम्र का अंतराज एवं अरुचि भी शामिल है । इसके लिए आवश्यक है कि हिंदी कंप्यूटिंग और इंटरनेट की जानकार (तथा युवापीढ़ी भी) ऐसे सयाने रचनाकारों की रचनाओं को वेब पर प्रतिष्ठित करने तथा उसके उपरांत उस रचनाकार की वैश्विक अनुभूतियों के सहारे धीरे-धीरे उन्हें इस प्रविधि से जोड़ता चला जाय । जैसा कि हिंदी के स्वनामधन्य गीतकार स्व.नरेन्द्र शर्मा की 65 वर्षीय पुत्री लावण्या शाह अमेरिका में रहने के वाबजूद अपने स्वर्गीय पिता की रचनाओं की वैश्विक प्रसिद्धि के लिए हिंदी कंप्यूटिंग और इंटरनेट सीखा और आज लगातार इंटरनेट पर अपने पिता के साथ-साथ स्वयं भी लिख रही हैं । जैसा कि वे बताती हैं कि उन्होंने यह ज्ञान अपने इंजीनियर पुत्र से कुछ ही सप्ताह में सीख लिया ।

राजभाषा, हिंदी, शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति जैसे खास मुद्दों से संबंद्ध शासकीय एवं निजी, स्वयंसेवी उपक्रमों की चुप्पी को तोड़े बिना इंटरनेट पर हिन्दी की खस्ताहालत को सुधारा नहीं जा सकता है । कॉपीराइट के शर्तों से मुक्त रचनाओं को इन उपक्रमों द्वारा समस्त विश्व के लिए इंटरनेट पर आसानी से रखा जा सकता है । कई राज्यों की माध्यमिक एवं उच्च कक्षाओं के हिंदी तथा सामान्य कंप्यूटर शिक्षा के पाठ्यक्रमों में वेबडिजायन एवं नयी व अद्यतन तकनीक की जानकारी एवं प्रायोगिक प्रशिक्षण को अनिवार्यतः जोडें जाने से न केवल हिंदी का विकास होगा अपितु हिंदी में अनेक विषयों का सम्यक ज्ञान भी प्रसारित हो सकेगा । अनछुए तथा साहित्येत्तर विषयों का जो अभाव हिंदी इंटरनेट पर है अब उस पर ज्यादा जोर हर स्तर पर दिया जाना लाजिमी है । ताकि इंटरनेट पर हिंदी की उपस्थिति प्रभावकारी सिद्ध हो सके ।

इंटरनेट में हिंदी का विकास का प्रश्न हिंदी समाज के ज्ञान व सूचना तकनीक में पांरगत होने का प्रश्न भी है । इसका सीधा संबंध ई-गवर्नेंस से है जहाँ आनेवाले समय में कामकाज की सारी पद्धतियाँ कंप्यूटर आधारित होने वाली है । यदि ऐसा नहीं हो सका तो भविष्य में लोगों नई-नई चुनौतियों से जुझना पड़ेगा ।

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0जयप्रकाश मानस