वसुधैव कुटुम्बकम् की पुरातन उक्ति को यदि सर्वाधिक सार्थकता किसी क्षेत्र में मिली है तो वह है साहित्य का गाँव, जहाँ से ज्ञान की सर-सरिताएं विश्व चेतना में जाने-अनजाने समाहित होती रहती हैं । 19 सदी में प्रख्यात ब्रिटिश लेखिका का सर्वाधिक चर्चित उपन्यास “द सोल आफ लिलिथ ” इसका एक जीवन्त उदाहरण है । यह उपन्यास हमें पारभौतिक जगत के रहस्यों से अवगत कराता हुआ, एक ओर गीता के कर्म-सिद्धांत तो दूसरी ओर आदि शंकर के अद्वैत की कुंजी पकडाता प्रतीत होता है ।
“द सोल आफ लिलिथ ” (The soul of lilith)का हिन्दी रुपांतरण किया है –रायपुर, छत्तीसगढ, भारत के कवि एवं केन्द्रीय सेवा के वरिष्ठ अधिकारी संतोष रंजन ने । वे अंग्रेजी, संस्कृत एवं हिन्दी के निष्णात रचनाकार हैं । अब तक दो गीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं उनके । देश में अपनी सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए चर्चित राज्य स्तरीय लेखकों के संगठन “सृजन-सम्मान ” के प्रांतीय संयोजक भी हैं वे । उन्होंने अपने अनुवाद का शीर्षक रखा है स्वर्ग से आया गुलाब । खुशखबरी है यह हिन्दी के उन रसिक पाठकों के लिए जो ईमानदार अनुवाद की तलाश में भटकते रहते हैं । मैं मित्र होने के नाते एवं हिन्दी की दुनिया में रमे रहने वाले होने के नाते भी कह सकता हूँ कि द सोल आफ लिलिथ पूर्व और पश्चिम के सेतु का पुनरावलोकन करने की एक ऐतिहासिक कदम भी है । अब देखते हैं कि हिन्दी का पाठक समुदाय इस किताब को कैसे लेता है । क्या इस किताब को समूचे रुप में अंतरजाल में रखना चाहिए । जो भी हो मैं तो उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जब प्रकाशक की कृपा दृष्टि की सीमा में वह भी समादृत हो जायेगा ।बात तो बहुत सी की जा सकती हैं किन्तु मुझे सबसे महत्वपूर्ण बात जो कहनी है वह है क्या आत्मा का पुनरावतरण होता है । क्या ईश्वर का अस्तित्व है । यदि हाँ तो पश्चिम की दुनिया मैं ईश्वर के प्रति इनता दुराग्रह क्यों है । खास कर भारतीय जीवन दर्शन को लेकर, जो आदिकाल से ही ईश्वरवाद, आत्मा की अवधारणा का संपोषक रहा है । मुझे नहीं पता आप क्या सोचते हैं ।
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