Friday, June 06, 2008

कामचोर इसे ना पढ़ें..

कर्मण्यता वाले मुद्दे मे कुछ अन्य प्रसंगों पर लावण्या दीदी सहमत नहीं है । वैसे उनकी असहमति से भी सहमत हुआ जा सकता है और माना भी जा सकता है कि अमरीका एक ऐसा देश है जहाँ के लोगों कार्यक्षमता, सफलता, इच्छाओँ को पूरा करने, ज़िंदगी को अपने तरीके से जीने की कोई सीमा ही नहीँ । वे अमेरिकन शादी के अन्य पहलूओं पर भी जैसे समलैंगिक विवाह पर भी ध्यान बंटाना चाहती हैं । मैं उस पर भी चर्चा करना चाह रहा था । खासकर भारतीय मूल के परिवारों में युवक-युवतियों की मानसिकता पर..


इस बीच यानी पिछले दो तीन दिनों में चाहकर भी उनसे इस मुद्दे पर विमर्श नहीं कर सका । पर करूँगा ज़रूर । फ़िलहाल तो सुधीर नारायण शास्त्री जी को बधाई देने का मन कर रहा है । सुनेंगे तो आप भी उन्हें तहेदिल से बधाई दिये बिना नहीं रहेंगे । हाँ, बहानेबोजों, कामचोरों, सुस्त लोगों को इससे ज़रूर अरुचि हो सकती है । हो भी क्यों नहीं –

अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम
दास मलूका कह गये सबके दाता राम ।

..... पर शास्त्रीजी ने इसे पलटकर रख दिया है । वे कभी भी दाता राम के भरोसे नहीं रहे जबकि वे स्थायी रोजगार पर थे । रोज काम किया । पूरे समय काम किया । हरदम काम किया । बिना थके, बिना रुके । ऐसे ही लोगों के लिए गीता में ‘कर्मयोगी’ प्रयुक्त हुआ है । कृष्ण भी यही चाहते थे कि हर मनुष्य कर्मयोगी बने । जिसे जो भूमिका मिली है उसी को संपूर्णतः जीना ही कर्मयोग है । इस कर्मयोग को शास्त्रीजी ने अपनी कठिन साधना और अटूट विश्वास से साबित कर दिखाया है ।


अलाल सरकारी कर्मियों, नौकरशाहों, अंधे राजनेताओं पर खिसियाते-खिसियाते थक जाने वाले समय में मेरे लिए यह ठीक उसी तरह है जैसे भरी दोपहरी वाली यात्रा में कोई झरना दिख गया हो । शांत, स्निग्ध जल से आपुरित ।

ऐसे किसी कर्मयोगी के बारे में मैंने आज तक नहीं सुना जो जीवन भर नौकरी करता रहे और एक भी दिन अवकाश पर भी न देखा जाय । इस नेक ख़बर के अनुसार बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग [बेस्ट] की समिति के पूर्व सचिव सुधीर नारायण शास्त्री ऐसे ही एक सरकारी कर्मचारी रहे हैं, जिनका नाम छुट्टियाँ न लेने के लिए गिनीज बुक आफ व‌र्ल्ड रिका‌र्ड्स के लिए प्रस्तावित किया जा रहा है।


हो सकता है कि इस समाचार से बहुत सारे भारतीय सहमत न हों और वे यह कहते हुए देखे जायँ कि हूँह – यह तो रिकार्ड के नाम पर किया गया काम है । परंतु इसे मात्र रिकार्ड बनाने की गरज़ से देखा जाना कर्मयोग की तौहीनी होगी । यह कर्मनिष्ठा है जिसकी आज भारत को महती ज़रूरत है । इसके बग़ैर उन्नति के शिखरों को स्पर्श करना कठिन होगा । हर स्तर पर ।

शास्त्री 1977 से बेस्ट की सेवा में आये । एक नवंबर, 1990 को बेस्ट समिति के सचिव का पदभार ग्रहण करने के बाद से अपने अवकाश ग्रहण की तारीख के बीच उन्होंने रविवार के अलावा सिर्फ़ एक अवकाश लिया। वह भी तब जब वे बीमारी के कारण वह चलने-फिरने की स्थिति में भी नहीं थे।

अपने संपूर्ण कार्यकाल के दौरान वह प्रतिदिन 12 से 14 घंटे काम करने के लिए जाने जाते हैं। बधाई और प्रणाम उनकी पत्नी शैलजाजी को भी जिन्होंने काम के प्रति अपनी पति की प्रतिबद्धता को देखते हुए उन्हें छुट्टी लेने के लिए कभी अपने किसी दबाव के घेरे में नहीं लिया ।


शायद ही कोई कामकाजी पति इतना भाग्यशाली होगा जिसकी पत्नि शैलजाजी की तरह नाज़ नखरा न करती हो । गलती से ऐसे जोड़े यदि अपने गाँव शहर से दूर किसी सेवा या नौकरी में हों तो पूछिए मत । ऐसे परिवारों में आये दिन किसी न किसी नये जगह की सैर के लिए विवाद होता रहता है । छुट्टी के दिन बाज़ार की सैर । पार्क की सैर । मीनाबाज़ार की घुमाई । पति की कर्मठता जाये भाड़ में । कार्यालय का काम जाये भाड़ में । आम आदमी जाये भाड़ में ।
जो भी हो यह कामचोर लोगों के लिए पढ़ने योग्य नहीं है ।
शास्त्री जी आपको मैं नमन करता हूँ । शत्-शत् नमन ।

4 comments:

हरिमोहन सिंह said...

साबित हो गया कि हम कामचोर नहीं है

Prabhakar Pandey said...

यथार्थ। सटीक बात।

Admin said...

ठीक है

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट अंडरटेकिंग [बेस्ट] की समिति के पूर्व सचिव सुधीर नारायण शास्त्री बड़े कर्मठ व्यक्ति हैं -- उनकी सराहना में शब्द कम हो रहे हैं !
अब ये लिंक भी देखियेगा ---

http://www.lavanyashah.com/2008/06/paradox.html

कृपया ये लिंक देखें ..और कोई बात आगे भी इस विषय पे चर्चा में रखना चाहते हों तब अवश्य पूछियेगा -- अवश्य कहियेगा --
अमरीका आना,यहाँ काम करना भी एक नया अनुभव ही रहेगा!
- इस दिशा में भी प्रयास करना चाहिए --

अमरीका हो या भारत, एक ही बात हम किसी भी विषय के बारे में नही कह सकते !
हर विषय के अपवाद हमेशा ही रहते हैं --
यही ख़ास तौर पे कहना चाहती थी --

सादर,
स - स्नेह,


-- लावण्या

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ॐ Nameste
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