Friday, June 06, 2008

अमेरिका में सामाजिकता निश्चित नहीं ?

फिलहाल अमेरिकन समाज में सामाजिक संबंधों की हालात पर अंतिम निष्कर्ष निकालना कठिन हो गया है । ख़ासकर स्त्री-पुरुष संबंधों पर मुझे दो-दो राय और दो तरह की राय मिली हैं । यह दीगर बात है कि दोनों एक दूसरे को तीर्यक रेखा पर नही काटती पर कहीं न कहीं दोनों की राय से मुझे लगता है अब विवेक का सहारा लेना पड़ेगा । अमेरिका में प्रवासी जीवन बिताना बहुत कठिन लगता है । सामाजिक भविष्य वहाँ कितना सुरक्षित है, कहा नहीं जा सकता । उत्तरआधुनिकता वहाँ से कब की गुज़र चुकी है । अब लोग उससे आगे के जीवन-दर्शन पर केंद्रित हैं या उसकी तलाश में हैं । मैं ठहरा भारतीय जिसे अभी-अभी चार-छः साल हुए उत्तरआधुनिकता के बारे में पढ़ने-सुनने को मिल रहा है । वह भी मात्र साहित्य में । मैं समझ नहीं पाता कि उत्तरआधुनिकता के बाद कौन सा समय आयेगा ? क्या उत्तर-उत्तर आधुनिक समय आयेगा !

मेरे आसपास तो ठीक तरह से आधुनिक समय भी नहीं आ सका है तब कब वहाँ उत्तर आधुनिक समय आयेगा । आज भी लोग और समाज सामाजिक मूल्यों पर जीते हैं । केवल आधुनिक कहलाने की गरज़ से ही कुछ पारिवारिक संबंधों और दैहिक संबंधों के बारे में उन्मुक्त जीवन को तरजीह देते हैं । वैसे उन्हें भी इसका सच्चा अनुयायी नहीं माना जा सकता है । क्योंकि वे अपने एकांत क्षण में एक माता-पिता के रूप में अपराध-बोध से गुज़रते हैं । प्रेम-विवाह मूलतः शहर का रोग है । अइसमे सहशिक्षा का भी योगदान है । समलैंगिकता अभी बहुत दूर है भारत से । जबकि अमेरिका में यह कानूनी रूप धारण करता जा रहा है । दैहिक सुख के पीछे विपर्यय आकर्षण है । इसमें पुरुष और स्त्री की अनिवार्यता है । किसी भी दर्शन के नाम पर उसे हम भारतीय शायद ही समर्थन दें । विवाह को हम एक संस्कार मानते हैं । प्रेम विवाह को भी हम भले ही असामाजिक दृष्टि से लेते हैं पर वैदिक काल और उसके बाद भी ऋषि पंरपरा में उसके चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते हैं ।

आदित्यजी ने लिखा है-
जय प्रकाश,
चलिए मन के अवकाश मे अच्छी बातें कर लेते हैं, आख़िर ब्लॉग का सदुपयोग तो हो रहा
लावण्या जी मुझसे ज़्यादा अनुभवी हैं अत: उनकी हर बात का स्वागत है वैसे अमेरिका कि या किसी देश कि बातें तो हरि अनंत ,हरि कथा अनंता .... जैसी है ?

मैं जब नया-नया अमेरिका मे अपनी पुत्री का स्कूल मे नामांकन कराने गया था तो ऑफ़िस में
पूछा गया कि - आप किस तरह के पिता है ? प्रश्न मेरे लिए अटपटा था । फिर उन्होंने पूछा कि -
१.आप नैचुरल पिता है या
२.सौतेले या
३.गोद लिए हुए ?
एक भारतीय के लिए आप स्वयं सोचें क्या मन :स्थिति होती होगी

यहाँ अमेरिकन मित्रों को एक बार भारतीय शादी की विडियो दिखाई थी, लड़की को फूलों से सजे बिस्तर पर शरमाई-सी बैठी देख सभी ने पूछा कि -क्या लड़की इस शादी से खुश नही ? क्यों चुप सी बैठी है ?
इसे क्यों फूलों के पिंजरे मे बंद कर रखा है ? कौन समझाए इन्हें शर्म-लज्जा कि बात ।

चलिए बातें बहुत है, क्रमश: .......... मंगल कामनाओं के साथ
आदित्य प्रकाश
डैलास

और उधर लावण्याजी का अभिमत है -
अमरीका हो या भारत, एक ही बात हम किसी भी विषय के बारे में नहीं कह सकते ! हर विषय के अपवाद हमेशा ही रहते हैं --अमरीका मेँ कई तरह की विडम्बनाएँ, विषमताएँ, कठिनाइयाँ, यहाँ के रोज के जीवन का हिस्सा हैं – सुख-सुविधा, आधुनिकता के साथ-साथ एकाकीपन, विलुप्त होते पारिवारिक रिश्ते, एक खालीपन, हिंसा, अत्याधिक खुलेपन से उत्पन्न होते टकराव्, व्याभिचार, समलैंगिक संबंध, शराब्, नशीले पदार्थों का सेवन, समाज के लिये, भविष्य के लिये क्या लायें गेये सोचनेवाली बात है"....

यहाँ सामाजिक विषमताएँ ऐसी हो चलीं हैं जिनसे ये एक डर लग रहा है की तथाकथित सामाजिक व साँस्कृतिक मूल्यों का क्या होगा ?
लावण्या जी से विस्तार से पूछना ही पड़ेगा कि वे निजी तौर पर क्या परिवर्तन देख चुकी हैं ? आगे किस तरह का समाज वहाँ विकसित हो रहा है ? क्या इस अनिश्चितता की आँधी में सब कुछ उड़ जायेगा ? भारतीयता भी ? जो अभी वहाँ गर्व से कह पाते है कि वे अमेरिका में भी रहकर मन और आत्मा से भारतीय बने हुए हैं.....

1 comment:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

जयप्रकाश जी,
" तेहि होई सो राम रचि राखा "
अमरीकी समाज का उत्त्तर आधुनिकता से आगे के समय मेँ क्या हश्र होगा
ये अनुमान लगायेँ तब भी होगा वही जो मँजूरे खुदा होगा !
यहाँ समाज तेजी से बदलता है, पर इस समय,यहाम हर क्षेत्र मेँ मँदी फैली हुई है -
घरोँ की कीमत घट रहीँ हैँ तो खनिज तैल दिनोन्दिन महँगा हो रहा है ..
आदित्य भाई साहब ने भी सही बातेँ बतलायीँ हैँ ..
- लावण्या