Sunday, January 24, 2010

छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर्स मित्रों के नाम

यह खुशी की बात है कि छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर रायपुर प्रेस क्लब में एकजूट हो रहे हैं । दुःख इस बात का है कि मैं शरीक नहीं हो पा रहा हूँ । ज़रा सा क्षोभ भी है कि चार आंगुल पेट की चिंता के लिए हम नौकरीपेशावालों को क्या क्या नहीं करना पड़ता है!

इस समय मेरा दिल वहाँ पहुँच गया है जब हम मैं या एकाध और कोई राज्य से पहले-पहल ब्लॉगिंग को समझ कर लिखना शुरू कर रहे थे । तब सोचा भी नहीं था कि छत्तीसगढ़ जैसे आधुनिक संचार की कम संसाधनवाले प्रदेश से एक समय यानी आज 70-80 नियमित ब्लॉगर्स देश-दुनिया को अपनी अभिव्यक्ति से परिचय करा रहे होंगे । मुझे याद आता है कि तब मैं और श्री शर्मा जी प्रेस से जुड़े लोगों, पत्रकारों, लेखकों, विद्यार्थियों को कैसे इस विधा और तकनीक से जोड़ा जाय, इसी उधेडबुन में लगे रहते थे । खुशी होती है कि आज बहुत सारे लोग जुड़ चुके हैं । यह दीगर बात है कि तब हमारी कार्यशालाओं को लोग बड़ी अजीब दृष्टि से देखते थे । तकनीक से डरनेवाले आज के पत्रकार भी बड़े सकारात्मक दृष्टि से नहीं देख रहे थे । ख़ैर... तब की बात का आज कोई मतलब नहीं...

कल अनिल पुसदकर भी बता रहे थे और मेरी भी उसमें सहमति है कि हम छत्तीसगढ़ के चिट्ठाकारों का एक संयुक्त ब्लॉग होना चाहिए, ताकि हम सब एकजुट हो सकें, एक साथ हमारे लेखन और हमारी आवाज़ को हम मज़बूत बना सके ।

जो इंटरनेट पर लंबे समय से हैं और जो अपनी बिना अंधराज्यवाद से ग्रसित होकर अपनी पवित्र अस्मिता के बारे में चिंतित होते हैं, ऐसे ब्लॉगर्स के लिए यह समय आ गया है कि वे उन पृष्ठों को भी खंगालें, जहाँ हमारे राज्य की चेतनहीनता, धीरता का मज़ाक़ उड़ाया गया है । मैं दावे और अनुभव के साथ यह बात दोहराना चाहूँगा कि देश ही नहीं सारी दुनिया में बस्तर की सुरते हाल, आदिवासी की पीड़ा को लेकर जिस तरह राजनीति की गई है वह हमारी काहिली का भी परिणाम है । ब्लॉगों में जो बस्तर के आदिवासियों के आंदोलन सलवा जुडूम को सारी दुनिया में आदिवासियों के विरूद्ध आदिवासियों को लड़ाने का मुहिम सिद्ध कर दिया गया है । जैसे बस्तर का आदिवासी प्रतिरोध करना जानता ही नहीं । आख़िर ये कौन लोग हैं ? और इनकी टिप्पणी से अंततः और आख़िर किसे फ़ायदा और किसे नुकसान हुआ या होगा, यह भी हमें समझना होगा । इसका मतलब नहीं कि हम राज्याश्रित होकर राज्य केंद्रित विचारों के अनुगामी बने । लेकिन सोचिए, कैसे बस्तर के आदिवासियों को लेकर देश-दुनिया के ब्लॉगरों ने टाका टिप्पणी की, किन्तु हम छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर्स लगभग चुप रहे । शायद इसलिए कि हम ऐसे मुद्दों से डायरेक्ट प्रभावित नहीं होते । कहने का आशय कि हम वास्तविकता के पक्ष में अपनी अभिव्यक्ति को कमजोर ही साबित करते रहे । मुद्दे तो बहुत हैं किन्तु उन पर चर्चा फिर कभी...

मित्रो, अब जबकि ब्लॉगिंग नागरिक पत्रकारिता का रूप धारण करता चला जा रहा है क्यों न हम राज्य की प्रभुता, अस्मिता, नागरिकता, स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा को धूमिल करनेवालों के ख़िलाफ़ भी एकजूट हों ।

मैं यहाँ पुनः अनिल जी की पहल की प्रशंसा करते हुए पुनः यह दोहराना चाहूँगा कि समाज को तोड़ने की हद तक जाने वाले हितनिष्ठ आपको दिग्भ्रमित करेंगे । आपको बरगलायें, जैसे कि कल प्रेस क्लब द्वारा आयोजित संगोष्ठी को कुछ लोग प्रायोजित करार देकर अपनी भड़ास मिटा रहे हैं । ऐसे लोगों को भी पहचानिए जो आज की ब्लॉगर्स बैठक को भी प्रायोजित बताकर आपकी दिशा मोड़ना चाह रहे हैं । इन सफ़ेद पोशी अपराधियों का मुखौटा उतार फेंकिए... ऐसे अंसतुष्ट लोगों को जो चाहते हैं कि वे ही राज्य का भाग्य लेखक हैं, वे ही चिंतक हैं, वे ही लेखक, पत्रकार, वकील, बुद्धिजीवी हैं और उनकी ही तूती बोलती रहेगी... क्या आप ऐसे विघ्नसंतोषियों से घबरायेंगे.... नहीं.... शायद नहीं.... ।


ब्लॉगर्स की यह बैठक न केवल राज्य की अस्मिता वरन् राज्य की नागरिक पत्रकारिता और हिन्दी की श्रीवृद्धि की दिशा में किये जा रहे तकनीकी प्रयासों को भी रेखांकित करेगी, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ...

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

छत्तीसगढ़ ब्लागर मिलन के लिए शुभकामनाएँ।

Sanjeet Tripathi said...

कमी आपकी खली, छत्तीसगढ़ के इस ब्लॉगर बैठक में,
उस समय तो और खली जब मेरा परिचय मौजूद सभी ब्लॉगर्स में सबसे वरिष्ठ ब्लॉगर कहकर करवाया गया। तब मैने सुधीर शर्मा जी से यह कहा भी कि मैं तो जयप्रकाश जी के " इंटरनेट के पृष्ठों पर राज करती हिंदी" शीर्षक वाले लेख को पढ़कर ब्लॉग से परिचित हुआ था फिर अगले कुछ दिन उसी लेख के दिए गए लिंक्स पर जा जा कर पढ़ते हुए ब्लॉग और इंटरनेट पर हिंदी से परिचित हुआ था

वाकई आपका आपके उस लेख का आज भी आभारी हूं।

शुक्रिया भाई साहब, कमी खली आपकी इस बैठक में।

रहा सवाल प्रायोजित कहने वाले लोगों का तो, डीजीपी साहब के करीबी पत्रकार जो कि संपादक और उससे भी उच्च स्तर के पत्रकार हैं, उनका ही फोन मुझे रविवार सुबह 7 बजे से आने लगे थे कि आज की तुम लोगों की बैठक प्रायोजित है और ऐसा-वैसा………एक नहीं 7 लोगों के फोन आए मुझे, सभी इतने इतने सीनियर कि क्या कहूं