Friday, January 22, 2010

तालिबान



कोई दलील नहीं
कोई अपील नहीं
कोई गवाह नहीं
कोई वक़ील नहीं
वहाँ सिर्फ़ मौत है

कोई इंसान नहीं
कोई ईमान नहीं
कोई पहचान नहीं
कोई विहान नहीं
वहाँ सिर्फ़ मौत है

वहाँ सिर्फ़ मौत है
वहाँ सिर्फ़ धर्म है
धर्म को मानिए
या फिर
बेमौत मरिए

1 comment:

राजीव रंजन प्रसाद said...

मानस जी तालिबान भी शरमा जाये ये नक्सली एसे हैं और इनका वाद-विचार और धर्म केवल बरबरता और हत्या ही है। आपकी कविता ने सिहरा दिया। माओवाद शब्द से ही अब घृणा हो गयी है मुझे।