कोई दलील नहीं
कोई अपील नहीं
कोई गवाह नहीं
कोई वक़ील नहीं
वहाँ सिर्फ़ मौत है
कोई इंसान नहीं
कोई ईमान नहीं
कोई पहचान नहीं
कोई विहान नहीं
वहाँ सिर्फ़ मौत है
वहाँ सिर्फ़ मौत है
वहाँ सिर्फ़ धर्म है
धर्म को मानिए
या फिर
बेमौत मरिए
अपने बारे में :- हिन्दी के प्रजातंत्र का एक अदना-सा सिपाही । हिन्दी से लेता है। हिन्दी को हिन्दी में लौटाता है । उसका अपना क्या है ? जो भी है, हिन्दी का है ।
1 comment:
मानस जी तालिबान भी शरमा जाये ये नक्सली एसे हैं और इनका वाद-विचार और धर्म केवल बरबरता और हत्या ही है। आपकी कविता ने सिहरा दिया। माओवाद शब्द से ही अब घृणा हो गयी है मुझे।
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