Wednesday, October 10, 2007

अमेरिका में पाणिनी –ब्रिटेन में लेखनी

वेबभूमि -5


चौंकिए नहीं । अमेरिका अब धीरे-धीरे हिंदी की ताकत को स्वीकारने लगा है। वहाँ आये दिन हिंदी भाषा के माध्यम से भारत को समझने के नये-नये तरीके तलाशे जा रहे हैं । यदि ऐसा न होता तो वहाँ के एक कुलाधिपति शास्त्री जे सी फिलिप इस दिशा में नहीं आ झँपाते । वैसे वे भारतीय मूल के ही हैं । उन्होंने हाल ही में हिन्दी चिट्ठों एवं जालस्थलों में उप्लब्ध सामग्री की खोज हिन्दी में करने के लिये सारथी का वृहद खोज-यंत्र "नाचिकेत" (
www.Sarathi.info) की शुरूआत की है ।

नाचिकेत में हिन्दी के 1000 से अधिक जाल-स्थल इसमें शामिल कर दिये गये हैं, एवं अगले कुछ दिनों में सारे ज्ञात हिन्दी जालस्थल इसमें जोड दिये जायेंगे । जाल-स्थल सारथी/नाचिकेत के सम्पादकों के द्वारा चुने/जोडे जाते हैं एवं इन चुने हुवे जाल-स्थलों की खोज गूगल द्वारा होती है । अत: खोजियों को सही जानकारी तुरंत उपलब्ध हो जाती है व प्राप्त फल में अनावश्यक जानकरी आपका समय भी नष्ट नहीं करती । हिन्दी खोज एवं अनुसंधान के लिये अब कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है ।

चलिए जानते हैं ये शास्त्री जे सी फिलिप के बारे में कि ये करते क्या हैं ? एक समर्पित लेखक, अनुसंधानकर्ता, एवं हिन्दी-सेवी हैं. उन्होंने भौतिकी, देशीय औषधिशास्त्र, और ईसा के दर्शन शास्त्र में अलग अलग विश्व्वविद्यालयो से डाक्टरेट किया है । आजकल वे पुरातत्व के वैज्ञानिक पहलुओं पर अपने अगले डाक्टरेट के लिये गहन अनुसंधान कर रहे हैं । शास्त्रीजी बताते हैं - उनका बचपन मध्य प्रदेश के ग्वालियर मे बीता है, जहां उन्होंने कई स्वतंत्रता सेनानियों से शिक्षा एवं प्रेरणा पाई थी । इस कारण उन्होंने अपने जीवन में राजभाषा हिन्दी की साधना और सेवा करने का प्रण बचपन में ही कर लिया था। उनका मानना है कि यदि हम भारतीय संगठित हो जायें तो सन २०२५ से पहले हिन्दुस्तान एक विश्व-शक्ति बन जायगा। फिर से एक सोने की चिडिया भी बन जायगा। इस चिट्‍ठे में वे इस विषय से संबंधित लेख प्रस्तुत करेंगे।

वैज्ञानिक विषयों के अतिरिक्त उन्होंने जाने-माने अध्यापकों की देखरेख में दुनिया के सभी प्रमुख धर्मों का भी अध्ययन किया है। वे इन सभी विषयों पर आप के प्रश्नों का स्वागत करेंगे, और उनका जवाब इस चिट्‍ठे मे देंगे। प्रश्न पूछने के लिये या तो उनको ईमेल भेजें (जिसका पता मुख्य पेज पर दहिनी ओर दिया गया है), या इस चिट्‍ठे मे हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणी के साथ अपना प्रश्न भी जोड दें।
फिलिप साहब ने हिंदी की मानकता के लिए कमर कस ली है – पाणिनि बनाकर । पाणिनि हिन्दी में मानक एवं सरल/सहज शब्दों की कोई कमी नहीं है। पाणिनि का लक्ष्य है हर कार्य के लिये सरल/सहज मानक शब्द सुझाना जिससे कि हिन्दी बोलते/लिखते समय अंग्रेजी शब्दों पर हमारा आश्रय कम हो। यदि आप में से कोई हिंदी प्रेमी चाहता है कि तो अपने सुझाव पाणिनी को भेज सकता है उनका पता है
-Panini@iicet.com

हस्तलिखित पाठ्य को पढ़ेगा कम्प्यूटर

कंप्यूटर क्या-क्या नहीं कर सकता । कोई भी वास्तविक मूल्याँकन नहीं कर सकता । भविष्यवाणी नहीं कर सकता । आप ही जान लीजिए ना । अब वह हस्तलिखित और मुद्रित सामग्री को भी बाँच सकता है । ऍच पी ने एक टूलकिट - यानी लाइब्रेरी निकाली है जो कि भारतीय भाषाओं के हस्तलिखित और छपे हुए पाठ्य को पढ़ने में कम्पयूटर को मदद करेगा। यह मुक्तस्रोत है - जीपीऍल और ऍमआईटी अनुमतिपत्र के तहत उपलब्ध है। क्योंकि यह मुक्तस्रोत है, और साथ ही एक बड़ी कम्पनी का इसमें हाथ भी है, अतः सम्भवतः देवनागरी और अन्य लिपियों का ओसीआर - ऑप्टिकल कॅरॅक्टर रीडर - बनाने में काफ़ी मदद करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि आप छपी हुई पुस्तकों को - जैसे कि रामायण, गोदान आदि - बिना टङ्कित किए, केवल स्कॅनर की मदद से अपने कम्प्यूटर पर यूनिकोडित रूप में पा सकेंगे - इस टूलकिट का इस्तेमाल करके बने तन्त्रांशों की मदद से, और वे मुफ़्त भी होंगे।

चलते-चलते –
भारत में भले ही कोई हिंदी सेवी या प्रौद्योगिकी को हिंदी की श्रीवृद्धि के लिए उपयोग में लाने में विश्वास करने वाले बुद्धिजीवी कोई साहित्यिक साइट विगत एक दो वर्ष में भले ही शुरू न कर सके हों पर ब्रिटेन में प्रवासी साहित्यकार शैल अग्रवाल ने एक हिंदी पत्रिका ऑनलाइन निकाल कर अपने देश राग की तीव्रता का परिचय दिया है । हाल ही में उन्होंने एक साहित्यिक पत्रिका प्रांरभ की है –
http://www.lekhni.net । इस पत्रिका का लोगो है - सोच और संस्कारों की साँझी धरोहर । आखिर क्यों न हो । लेखिका जो हैं । यहाँ आप कहानी, कविता, व्यंग्य, ग़ज़ल कई विधा की सामग्री पढ़ भी सकते हैं और छपने को भेज भी सकते हैं । वैसे यह द्विभाषी पत्रिका है । हिंदी के अलावा यहाँ कुछ सामग्री अँग्रेजी में भी रखी जा रही है । कई पृष्ठों में टायपिंग की त्रुटियाँ हैं जो हिंदी पत्रिकाओं की कमजोरी को ही रेखांकित करती है । हड़बड़ी में प्रकाशन लगता है हिंदीवालों का स्थायी चरित्र बन चुका है । कई पत्रिका के संपादकों को, खासकर अंतरजालीय पत्रिकाओं में, विधा तक की परख नहीं है, वहाँ लेखनी में विभिन्न विधाओं के साथ अब तक तो न्याय हुआ है । वैसे तो अंतरजाल की कई पत्रिकाओं में संपादकीय इस तरह से गायब है जैसे गधे के सिर से सिंग, पर लेखनी के संपादक को बधाई दी जानी चाहिए कि वह लगातार लेखनी को अपने संपादकीय के साथ प्रस्तुत कर रही हैं । संपादकीय के बगैर संपादन या पत्रिका रचनाओं का कलेक्शन मात्र बन जाती है और आज के तकनीकी सुविधाओं के दौर में रचनाओं का कलेक्शन साधारण काम हो चुका है । लेखनी के हर अंक में संपादकीय का जाना संपादक की दृष्टि, गंभीरता और विचारवान् होने का प्रमाण भी है । अक्टूबर-07 के अंक में गाँधी जी की महत्ता पर लिखा गया संपादकीय पठनीय है ।

2 comments:

संजय बेंगाणी said...

पढ़ कर अच्छा लगा.

Ayush said...

हाल ही मे एक हिन्दी ट्राफिक परिसंख्यान टूल का पता चला , सभी हिन्दी वेबसाइट और चिट्ठों के लिए -- http://gostats.in , यह एक मुफ्त टूल है और आपकी चिट्ठों के ट्रैफिक क जानकारी देता है |