Tuesday, October 09, 2007

इंटरनेट पर मूल्य आधारित पत्रकारिता यानी लोकमंच डॉट कॉम

वेब-भूमि-4
इंटरनेट को कभी भारतीय संस्कृति में विपक्षी भूमिका के रूप में देखा जा रहा था । कुछ विचारक और समाजशास्त्री इसे भारतीयता की मूल आत्मा के विरूद्ध वैश्वीकरण के हथकंडों के रूप में बताते नहीं थकते थे । पर लगता है ऐसे लोगों को इंटरनेट अब जीवन का जरूरी चीज जैसा नज़र आने लगा है । शायद यही कारण है कि देश के प्रमुख संस्कृति विशेषज्ञ और कवि अशोक बाजपेयी ने इंटरनेट के लिए अंतरजाल शब्द भी गढ़ा जो अब सर्वमान्य भी हो चुका है । अंतरजाल अब राष्ट्रीयता के पुरोधाओं के लिए भी अवांछवीय नहीं रहा । सच तो यह है कि उन्हें राष्ट्रीयता को बचाने के कारगर उपायों में अंतरजाल की भूमिका भी दिखाई देने लगी है । वे बकायदा उसे एक अस्त्र के रूप में लेने हैं या फिर अंतरजाल को हम भारतीयों के लिए एक सकारात्मक दिशा में मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं । जो भी हो, वे मीडिया के प्रक्षेत्र में इसे आजमाते हुए वैकल्पिक मीडिया करार दे रहे हैं । भारत में ऐसे ही वैकल्पिक मीडिया की शुरूआत की है – लोक मंच (www.lokmanch.com)नामक वेबसाइट ने । वैसे यह ऐसे विचारधारा के उन हिमायती लोगों के लिए अचरज का विषय भी हो सकता है कि आखिर कॉम(.com) जिसका मतलब कामर्शियल होता है, ही क्यों चुना गया जबकि ओआरजी (.org) लेने का विकल्प तो बचा ही था और जिसका मतलब संगठन होता है । खैर....

यद्यपि पत्रकारिता पर आधारित इस वेबजाल से राष्ट्रीय विचारधारा के कुशल वक्ता के.एन. गोविन्दाचार्य प्रत्यक्षः नहीं जुड़े हैं तथापि उनका प्रभाव इस वेबजाल पर प्रतिबिंबित होता है । क्योंकर भी न हो । नई दिल्ली से प्रकाशित ‘भारतीय पक्ष’ नामक पत्रिका भी तो यही कर रही है जो मूल रूप में वैश्वीकरण के वैकल्पिक चिन्तन को मान्यता प्रदान करती है। ज्ञातव्य हो कि भारतीय पक्ष प्रसिद्ध विचारक के.एन. गोविन्दाचार्य के कुशल मार्गदर्शन में संचालित पत्रिका है । इसके सम्पादक विमल कुमार सिंह और उप-सम्पादक हर्षित जैन हैं। भारत की सज्जन शक्ति को संगठित करते हुये विभिन्न श्रेत्रों में असंगठित रूप में चलने वाली स्वदेशी पद्धतियों और कलाओं को संगठित करने के उद्देश्य से श्री गोविन्दाचार्य के नेतृत्व में चलने वाला राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन और भारत विकास संगम इस पत्रिका के माध्यम से वैचारिक पुष्टता प्राप्त कर रहा है। भारतीय पक्ष’ के अलावा लोकमंच नेटवर्क से डेनियल पाइप्स , संस्कृति सरगम तथा हिन्दू विश्व आदि भी संबंद्ध हैं । ज्ञातव्य हो कि डेनियल पाइप्स मध्य-पूर्व एवं राजनीति के विशेषज्ञ अमेरिका के निवासी हैं और विश्व के अग्रणी विद्वानों में अपना स्थान रखते हैं। इस्लामी राजनीति और मध्य-पूर्व पर पिछले दो दशकों से लगातार लिखते आ रहे डेनियल पाइप्स सम्प्रति मिडिल ईस्ट फोरम संस्था के निदेशक भी हैं। उनके लेखों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है। संस्कृति सरगम नई दिल्ली से प्रकाशित व मूल रूप में देश के भाषाई समाचार पत्रों को गुणवत्तापरक सामग्री प्रदान करने का माध्यम है। इस पाक्षिक पत्रिका के सम्पादक अमिताभ त्रिपाठी हैं। यह पाक्षिक पत्रिका देश के 1,000 से अधिक भाषाई समाचार पत्रों को प्रति पक्ष सामग्री प्रदान करती है। विश्व हिन्दू परिषद की प्रमुख पत्रिका हिन्दू विश्व पाक्षिक पत्रिका है। इसके सम्पादक ओंकार भावे हैं। इस पत्रिका का प्रसार मुख्य रूप से विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ताओं और धर्मप्रिय लोगों के मध्य है।

जो राष्ट्रीयता यानी भारतीयता के आग्रही हैं और फ्रीलांसिग करना चाहते हैं । पत्रकारिता जिनके लिए जनता के सुख-दुःख का मिशन है वे लोकमंच से किसी भी क्षण जुड़कर अपनी अभिव्यक्ति को वैश्विक कर सकते हैं । कदाचित् यह हिंदी की मूल संस्कृति को भी समूची दुनिया के लिए अभिव्यक्त करने जैसा होगा । लोकमंच से जुड़ने में तकनीकी दृष्टि से भी कोई खास कठिनाई नहीं दिखाई देती । जो युनिकोड़ फोंट में लिखना –पढ़ना जानते हैं वे किसी भी क्षण यहाँ अपने निजी मेल के सहारे मुफ्त पंजीकृत हो कर लिख सकते हैं । लिखने के लिए यहाँ कई स्तंभ तय किये गये हैं इनमें
स्वदेश, परदेश, बहस, ब्लॉगर्स पार्क, आस्था, गिल्ली-डंडा, राशन-पानी, ज्ञान विज्ञान, विविधा, चिट्ठी-चोखा आदि प्रमुख हैं । स्वदेश और परदेश स्तम्भ के अंतर्गत देश एवं विदेश के किसी कोने में रहकर भी वहाँ से संबधित प्रमुख समाचार भेज कर प्रकाशित कराया जा सकता है । लोकमंच में प्रारंभ से ही इस्लामाबाद, लदन, न्यूयार्क, काठमांडू, पयुरटो रिको आदि विदेशी शहरों के समाचार वहाँ के फ्रीलांसरों द्वारा भेजे जा रहे हैं और वे बाकायदा प्रकाशित भी हो रहे हैं । प्रिंट मीडिया में किसी समाचार, विचार या संपादकीय पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए अलग से पत्र लिखना होता है जबकि वेबमीडिया में यह तत्क्षण संभव है । जाहिर हैं लोकमंच में भी उसी क्षण समाचार या विचार या आलेखों को पढ़कर प्रतिक्रिया लिखी जा सकती है जो स्थायी रूप से प्रकाशित रहता है ।

ओपन सोर्स से उपलब्ध जुमला नामक सॉफ्टवेयर में निर्मित यह जाल स्थल केवल पत्रकारों के लिए ही नहीं अपितु साहित्यिक पत्रकारिता से संबंद्ध तथा साहित्यकारों के लिए भी उपयोगी नज़र आता है । यहाँ किताबघर नामक स्तम्भ के अंतर्गत 8 विविध उप स्तम्भों में रचनाकार अपनी अभिव्यक्ति को वैश्विक बना सकते हैं । ये 8 विषय है – कविता, कहानी, नाटक, संस्मरण, समीक्षा, हास्य-व्यंग्य, साहित्य विविधा, साहित्य समाचार हैं ।

इस जाल स्थल की लोकप्रियता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि अमेरिका के डैनियल पाइप्स जैसे प्रमुख स्तम्भकार भी एक नियमित लेखक के रूप में संबंद्ध हैं । अपूर्व कुलश्रेष्ठ भी इस जाल स्थल के नियमित लेखक हैं ।

ऐसे समय में जब मीडिया अब मिशन नहीं अपितु कमीशन केंद्रित होता जा रहा है, लोकमंच जैसे वेब मीडिया मंचों की स्थापना महत्वपूर्ण साबित हो सकता है । इसे मात्र हिंन्दूत्व के प्रचार-प्रसार का माध्यम नहीं माना जा सकता है । आज जबकि मीडिया जनता के घर की चिंता नहीं अपने बाजार की चिंता में व्याकुल है । जाहिर है बाजार मूलक वैश्वीकरण की शक्तियाँ अधिकतम मुनाफे के लिये विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित समाचार पत्रों को खरीदकर या उनमें अपनी पूँजी बढ़ाकर देश में हर क्षेत्र में व्याप्त होने की व्यापक योजना पर कार्यरत हैं । यदि यह योजना सफल हुई तो संस्कृति, भाषा, मूल्य व परम्पराओं को सहेज पाना किसी के लिये संभव न हो सकेगा । वैश्वीकरण के इस प्रवाह को रोकने का एकमात्र मार्ग है । मूल्य आधारित पत्रकारिता को जीवित रखना । ऐसे में आवश्यक है कि वैकल्पिक राष्ट्रवादी पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करते हुये वैश्वीकरण की बाजार मूलक शक्तियों से प्रेरित तथाकथित मुख्यधारा की पत्रकारिता को अप्रासंगिक बनाया जाये ।

जैसा कि लोकमंच के उद्देश्यों में भी कहा गया है कि वर्तमान समय में जबकि वैश्वीकरण में अन्तर्निहित बाजार मूलक शक्ति ने मूल्यों को नये सिरे से परिभाषित कर उसे मुनाफे से जोड़ दिया है और संस्कृति, भाषा, परम्परा को क्षीण कर उसे विकृत और क्षत-विक्षत करने का प्रयास आरम्भ कर दिया है, ऐसे में पत्रकारिता में भारतीय तासीर, संस्कृति, भाषा, परम्परा और मूल्यों को सहेज कर रखने वाले पत्रकारों को राष्ट्रीय क्षितिज पर लाने का समय आ गया है ।

यह अब एक सच की तरह व्याख्यातित और प्रमाणित हो चुका है कि वैश्वीकरण केवल आर्थिक चिन्तन नहीं है यह एक जीवन दर्शन है जो मुनाफे को ही जीवन मूल्य मानता है. ऐसे में इस बात का संकट उत्पन्न हो गया है कि समाज को दिशा देने वाली पत्रकारिता को अब बाजार में एक वस्तु बनाकर प्रस्तुत कर दिया जायेगा और उसका दायित्व जनशिक्षण और संस्कार निर्माण के स्थान पर स्वयं को बेचना हो जायेगा । ऐसे कठिन दौर में लोकमंच जैसे वेब मीडिया के साथ जुड़ना मूल्य आधारित पत्रकारिता को प्रोत्साहित करना होगा । पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह देश का तथाकथित मुख्यधारा का मीडिया राष्ट्रीय भावना का प्रकटीकरण करने में असमर्थ रहा है उसे देखते हुए लोकमंच वालों पर विश्वास करने में कोई सांपदायिकता नज़र नहीं आती ।

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

जयप्रकाश जी,

आपकी पोस्ट फ़ायरफाक्स में ठीक से प्रदर्शित नहीं होती।

यदि आप टेक्ट को 'जस्टिफ़ाई' न करें तो इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है।

Anonymous said...

आपका लिखा कुछ भी पढता हुँ तो अपने हे दिल की आवाज लगती है । भगवान आपको सफलता प्रदान करे । वैश्वीकरण के नाम पर महंगे (मुल्य अभिवृद्धीकृत) तक्नीकी सामान पश्चीमी देश हमे बेच रहे है । हम सस्ते सामान जिनके उत्पादन से हमारा श्रम मुल्य भर निकल पाता है, उनका उत्पादन उनके लिए भी हम हि कर रहे है । फलस्वरुप हम गरिब होते जा रहे है और वह अमीर । भगवान जाने कोई इन चिजो को देख पा रहा है की नही ?