Saturday, October 06, 2007

घर बैठे सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर

वेब-भूमि-2

वैसे तो मैं प्रार्थना करता हूँ कि ईश्वर आपको न्यायालय जाने से बचाये । वकील साहब का मुँह भी देखना न पड़े । घर-घाट न बिके । मन का सुकून सलामत रहे, पर ख़ुदा न खास्ता; कहीं से आपको न्याय न मिले और आप न्यायालय के शरण लेने बाध्य हैं । और इतना ही नहीं आपको सर्वोच्च न्यायालय तक का द्वार खटखटाना पड़ रहा हो । इस पर आपका कंप्यूटर यदि कहे कि मेरे आका, चिंता की कोई बात नहीं, मैं हूँ ना ! तो समझिए वह सच कह रहा है । यह अब बायें हाथ का खेल हो चुका है कि आप अपने किसी मामले को सुप्रीम कोर्ट में घर बैठे दायर कर सकते हैं । आपको पता होना चाहिए कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अक्तूबर, 2006 से सर्वोच्च न्यायालय में ई-फाइलिंग की शुरुआत हो चुकी है ।
ई-फाइलिंग का मतलब है किसी भी नागरिक द्वारा इंटरनेट के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा दायर करने की सौगात । इस कार्य के लिए वकील से मदद की कोई आवश्यकता नहीं । ई-फाइलिंग के इच्छुक व्यक्ति को मात्र इंटरनेट पर जाकर सर्वोच्च न्यायालय के वेबसाइट- http://tempweb97.nic.in/sc-efiling/login.jsp को लॉगइन कर अपना पंजीकरण कराना होगा। चलिए हम ही दोहराये देते हैं कि पंजीकरण कराने के लिए आपको क्या-क्या करना होगा-

1. सर्वोच्च न्यायालय के ई-फाइलिंग सेवा का पहली बार उपयोग करने वाले को उसमें दिए गए साईन-अप विकल्प के माध्यम से अपने नाम का पंजीकरण कराना होगा। इंटरनेट पर यह पंजीकरण मुफ्त है और कोई भी अपने नाम का पंजीकरण करा सकता है।

2. पंजीकरण कराने के लिए इंटरनेट पर दो विकल्प आपको दिखेंगे- (1) यूजर नेम अर्थात् उपयोगकर्त्ता का नाम व (2) पासवर्ड।

3. ई-फाइलिंग के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में पीड़ित व्यक्ति अर्थात् मुकदमा दायर करने के इच्छुक व्यक्ति स्वयं और अनुबंधित वकील ही मुकदमा दायर कर सकता है।

4. पंजीकरण के लिए वहाँ पर दो विकल्प उपलब्ध होंगे –(1) एडवोकेट ऑन पर्सन अर्थात् आप वकील के रूप में अपना नाम पंजीकृत कराना चाहते हैं या (2) पेटिशनर इन पर्सन अर्थात् आप साधारण व्यक्ति के रूप में अपने को पंजीकृत कराना चाहते हैं। यदि आप कोई साधारण जनता है और मुकदमा दायर कराना चाहते हैं तो आपको पेटिशनर इन पर्सन के रूप में पंजीकृत करानी चाहिए। वकील एडवोकेट ऑन रिकार्ड के रूप में अपना नाम पंजीकृत करायें। दोनों के पहले खाली स्थान बना होता है और अपने उपयोग के अनुसार उसमें माऊस की सहायता से क्लिक कर दें।

5. एडवोकेट ऑन रिकार्ड के लिए “लॉग इन कोड” उनका एडवोकेट ऑन रिकार्ड कोड होगा जबकि साधारण व्यक्ति को साइन-अप विकल्प के द्वारा अपना लॉग-इन आईडी बनानी होगी। उसके बाद पासवर्ड डालनी जरूरी होगी। एक बार लॉग-इन आईडी बन जाने के बाद भविष्य में ई-फाइलिंग के लिए उसका उपयोग अनिवार्य होगा। सफलतापूर्वक लॉग-इन करने के बाद आप अपना मुकदमा इंटरनेट के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक रूप से दायर कर सकते हैं।

6. यहाँ पर आपके सामने फिर दो विकल्प होंगे- (1) नया मुकदमा व (2) संशोधित (यह मुख्य रूप से ई-फाइलिंग के तहत पहले से ही दायर की गई मुकदमा से संबंधित है)। नया मुकदमा वाले विकल्प पर क्लिक करके आप कोई नया मुकदमा दायर कर सकते हैं। संशोधित वाले विकल्प चुनने पर आपके द्वारा पहले से दायर किसी मुकदमे में सुधार करने का मौका दिया जाएगा।

7. सर्वोच्च न्यायालय में ई-फाइलिंग के लिए शुल्क केवल क्रेडिट या डेबिट कार्ड के माध्यम से ही जमा किया जा सकता है।

भारत सरकार को धन्यवाद देना होगा कि यह फीस भी ज्यादा नहीं है । यानी कि फोलियो प्रतिपेज 1 रुपया, सर्टिफिकेशन चार्ज 10 रुपये, शीघ्रता शुल्क 5 रुपये, रजिस्ट्री हेतु डॉक शुल्क 22 रुपये, थर्ड पार्टी शुक्ल 5 रुपये मात्र पर । इसकी भी सूचना बकायदा आपको ई-मेल से भेजी जायेगी । यदि आप अपने केश की स्थिति का जायजा लेना चाहते हैं तो उसकी भी व्यवस्था दुरुस्त है । http://causelists.nic.in/sccause/index1.html पर जाकर आप कॉजलिस्ट देख सकते हैं ।

चलते-चलते-
देश के किसी भी शहर में आपका तबादला हो गया और आपको वहाँ किराये का मकान चाहिए या आप वहाँ स्थायी रूप से प्रापर्टी खरीदना चाहते हैं तो आपके लिए ही कुछ खास साइटें हैं– www.Indiaproperty.com, www.99acres.com, www. Magicbricks.com, Indiaproperties.com । ये साइटें ब्रम्हास्त्र हैं – चाहें तो आप पसंदीदा फ्लैट, बंगला आदि का चित्र भी देख सकते हैं । यहाँ आपको त्वरित ऋण सुविधा भी मिल जायेगी ।

1 comment:

अनुनाद सिंह said...

जयप्रकाश जी,

उच्चतम् न्यायालय ने यह प्रशंशनीय कार्य किया है। किन्तु इसे प्रकाशित करके उससे भी अच्छा काम आपने किया। प्रथम दृष्ट्या यह सुविधा अत्यन्त उपयोगी, सुविधाजनक और सस्ती लग रही है।

मेरे खयाल से भारत में "मशीनी न्याय" (निर्णय) की व्यवस्था भी की जानी चाहिये। मुझे लगता है कि यह कार्य भाषा को अनुवाद करने की अपेक्षा सरल ई ओगा। यदि ऐसा हो जाता ऐ तो भारत में न्याय-व्यवस्था में लोगों की आस्था मजबूत हो जायेगी और इससे भारत के विकास को बल मिलेगा।