Wednesday, December 13, 2006

आईटी का उपहारः विंकलागों के द्वार

शारीरि रूप से विकलांग लोग भले ही ईश्वर को यह कहकर कोस सकते हैं कि उसने उन्हें सामान्य जीवन से वंचित कर दिया पर मनुष्य की मेधा ने उसे सामान्य मनुष्य की तरह जीवन के सभी सुखों को महसूसने की तकनीक मुहैया कराने में कोई कोताही नहीं बरती है । आईटी में सक्रिय वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने हाल के वर्षों में जिस तरह विकलांगों के लिए अपनी साधना और समर्पण को रेखांकित किया है उससे क्रांतिकारी परिणाम आने लगा है । आज वह कंप्यूटर आधारित सभी उपयोगों का लाभ उठा सकता है । सच्चे अर्थों में कंप्यूटर और उससे संबंधित तकनॉलाजी ने मिलकर उसके जीवन को आसान बना दिया है ।

यूँ तो भारत सहित कई देशों की सरकारों के अनेक विभाग सहित विभिन्न स्वयंसेवी सस्थाएं विकलागों की बुनियादी तालीम और उनके पुनर्वास हेतु कार्यरत हैं । किन्तु उन्हें सूचना तकनीक में व्यापक तौर पर दक्ष बनाया जाना शेष है । अब वह समय आ चुका है कि उन्हें पारंपरिक शिक्षा एवं रोजगार के साथ-साथ नये ज़माने की तकनीक से भी जोड़ा जाय । वर्तमान में नेत्रहीनों के लिए विभिन्न और विशेष प्रकार के कंप्यूटर स्क्रीन रीडर्स, ब्रेल आधारित आउटपुट डिवाइस है जिसके सहारे वे भी कंप्यूटर स्क्रीन या वेबपेज पर अंकित सामग्री पढ़ सकते हैं । ब्रेल लिपि युक्त बडे स्टीकर्स लगाकर कुंजी-पटल पर भी उनकी अंगुलियाँ खेल सकती हैं । शारीरिक रूप से विकलांग भी आन स्क्रीन कुंजी-पटल के माध्यम से आईटी का लाभ उठा सकते हैं । वैसे तो सामान्य तौर पर कई ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो विभिन्न तरह के विकलागों में सीखने की दक्षता को बढ़ा सकते हैं, कंप्यूटर साक्षरता के प्रारंभिक ज्ञान से लेकर उन्हें गणना, एकाउंटेंसी, टंकण कार्य आदि रोजगार मूलक कार्यों के लिए सक्षम बना सकते हैं । और सिर्फ इतना ही नहीं वे वेब-सर्फिंग, सर्चिंग, सहित, संगीत, का आनंद उठा सकते हैं । कंप्यूटर गेम का मजा भी उठा सकते हैं । पर हम विशेष कंप्यूटक उपकरणों के बारे में चर्चा करना चाहेंगे ।


विशेष कुंजीपटल

आम उपभोक्ता के लिए प्रयुक्त कुंजी-पटल विकलांगों के लिए उपयोगी नहीं हो सकते थे, इसलिए विशेष तकनीक से ऐसे कुंजीपटल विकसित किये गये हैं जिससे विकलांगों की शारीरिक अक्षमता बाधा न रहे और वे कंप्यूटर तकनीक का भलीभाँति उपयोग कर सकें। सीमेंस नामक कंपनी ने एप्लाइड साइबरनैटिक्स के सहयोग से एक विशेष कुंजीपटल तैयार किया है जिसमें कुंजी दबने में होने वाली देरी या 2 बार कुंजी दब जाने जैसी समस्या भी नहीं है । इसमें कुंजी भी अपेक्षाकृत बड़ी हैं जिससे ज्यादा नहीं हिल-डुल पाने वाले विकलांग को भी सरलता होती है । कुछ ऐसे कुंजी-पटल भी ईजाद किये गये हैं जो सिर्फ एक हाथ वालों के लिए कारगर साबित हो रहे हैं । केवल माउस स्टिक से ही कंप्यूटर चलाने वाले विकलांगों के लिए भी यह उपयोगी है । कुछ विकलांग ऐसे भी होते हैं जो चल-फिर ही नहीं सकते, के लिए मिनिएचर वर्सन उपलब्ध है । गंभीर बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण जिनकी मांसपेशियाँ शिथिल हो चुकी हैं उन्हें भी निराश होने की कोई जरुरत नहीं है । ऐसे लोगों के लिए एक विशेष कुंजी-पटल विकसित हो चुका है जो काफी उपयोगी सिद्ध होने लगा है ।

दो हिस्सों में तैयार एक और छोटा कुंजी-पटल भी विकलांगो को आईटी में पांरगत बनाने के लिए विकसित किया गया है जो सामान्य कुंजी-पटल से 40 प्रतिशत छोटा है । इसमें सारी कुंजियाँ और नंबर ब्लॉक होते हैं । दोनों हिस्सों में ट्राइपॉड यानी कि स्टैंड लगा होता है जिससे इसे व्हीलचेयर में भी फिट किया जा सकता है ।

शारीरिक विकलांगता और आईटी
जो जन्म से, गंभीर बीमारी या हादसों के कारण विकलांगता या अक्षम हैं । खास तौर पर यदि वे पूरी तरह से बातचीत नहीं कर पाते तो उनके लिए यह मंगलमय ख़बर हो सकती है कि अब वे कंप्यूटर की मदद से बोल-बोल कर लिख सकते हैं । अल्टरनेटिव कंप्यूनिकेशन सिस्टम एक ऐसा ही डिवाइस है जिसके सहारे ब्रेन हेमरेज के कारण भी बोलने में अक्षम लोग बोल सकते हैं । इस डिवाइस में एक खास तरह का हार्डवेयर प्रयुक्त होता है जिसमें विशेष इलेक्ट्रोड मांसपेशियों के कारण उत्पन्न होने वाले छोटे-छोटे विद्युत संकेतों को ग्रहण करते हैं । इसके साथ ही इलेक्ट्रोड दूसरी डिवाइसों से जुड़ जाते हैं जो कंप्यूटर के इनपुट को नियंत्रित करती है।

दृष्टिहीनता के लिए भी हल
अब दृष्टिहीनता भी कंप्यूटर और अंतरजाल के उपयोग करने में बाधक नहीं रह गयी । अमेरिका निवासी 41 वर्षीय वेंडी मिलर की ही बात करते हैं जो बचपन से आठ साल से अंधी हैं । वेंडी दृष्टिहीन होने के बावजूद न्यूयार्क टाइम्स का आनलाइन संस्करण नियमित पढ़ती है जिसे विशेष रूप से नेत्रहीनों के लिए विंडो आधारित लिनेक्स ब्राउजर में प्रतिदिन तैयार किया जाता है । बात सिर्फ इतना ही नहीं है वह बताती हैं – वे कंप्यूटर में प्रयुक्त उस स्क्रीन रीड़र सॉफ्टवेयर का उपयोग करती हैं जिसकी गति प्रति मिनट 1000 शब्द है जो सामान्य व्यक्ति द्वारा प्रति मिनट पढे जाने की क्षमता से कहीं अधिक है ।

हाल में ही ऐसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस विकसित हुए हैं जिससे दृष्टिदोष के बावजूद भी कंप्यूटर का उपयोग सामान्य व्यक्ति की तरह किया जा सकता है । जर्मनी के हैम शहर में जर्मन एसोसिएशन फॉर इलेक्ट्रॉनिक एड फॉर द हैंडिकैप्ड ने इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य कर दिखाया है। संस्थान द्वारा एक ऐसी डिवाइस तैयार की गई है जिससे कमजोर दृष्टि वाले भी बड़ी सरलता से कंप्यूटर स्क्रीन में लिखा बाँच सकते हैं । इस डिवाइस में मैग्नीफाइंग ग्लास और वेब रीडर लगा होता है जिससे दृष्टिहीनता स्वयं पानी भरने लगती है।

दृष्टिहीनों की समस्या को दूर करने वाला एक और महत्वपूर्ण डिवाइस है जो ब्रेल लिपि वाले कुंजी-पटल युक्त होता है । इससे टैक्स्ट को कंपोज करने में आसानी होती है । प्रिंटर भी ऐसे बनाये जा चुके हैं जिनसे ब्रेल कॉपी या साधारण प्रिंट दोनों भी प्राप्त किया जा सकता है । जो ब्रेल लिपि नहीं जानते उनके लिए स्पीच सिंथेसाइजर अति विश्वसनीय यंत्र है जिसमें अक्षरों, शब्दों और वाक्यों को बोलकर कंप्यूटर में डाला जा सकता है । यह वर्ड प्रोसेसर, ई-मेल और इंटरनेट आधारित कार्यों में भी सफल है ।

इन दिनों अधिकतर दृष्टिहीन स्क्रीन रीडर इस्तेमाल करते हैं जो कि डॉस आपरेटिंग सिस्टम पर आधारित है । इस डिवाइस की कमजोरी मात्र इतनी ही है कि वह ग्राफिक यूजर इंटरफेस की सुविधा नहीं दे पाता किन्तु कई कंपनियों ने ग्राफिक इंट्रानेट व वेबसाइटों के उपयोग को आसान बनाने के लिए एप्लिकेशन भी देने लगी हैं । विंडोज एप्लिकेशन के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने एक्टिव एक्सेसबिलिटी डव्लपर्स किट प्रस्तुत किया है । हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट द्वारा इंटरनेट एक्सप्लोरर का जो नया संस्करण बाजार में उतारा गया है उसमें स्क्रीन रीड़र के लिए टैक्स्ट ओनली विकल्प भी है । नैटस्कैप ने भी बराबरी करते हुए ओएस/2 रैप 4 एप्लिकेशन प्रस्तुत किया है जिसमें स्पीच रेकॉगनेशन है जिसकी सहारे बहुत कम देख सकने वाले या पूरी दृष्टिहीन भी आईटी में दक्ष बन सकते हैं । एक कंपनी इससे भी एक कदम आगे सिद्ध होने वाली एप्लिकेशन विकसित कर रही है जिसमें स्पीकिंग वेब ब्राउजर भी होगा जिससे हाइपरटैक्स्ट मार्कअप लैग्वेज पेजों को भी समझा जा सकेगा ।

हैड माउस
हैड माउस ऐसा डिवाइस है जिसे स्मार्ट-नैव कैमरा कहा जाता है । इसके सहारे कोई भी विकलांग व्यक्ति मात्र अपने सिर को हिलाकर ही कंप्यूटर संचालित कर सकता है । इसमें रेजोल्यूशन इतना ज्यादा होता है कि सिर के हिलते ही कर्सर हिल जाता है । माना कि प्रयोक्ता का सिर आधा सेंटीमीटर भी घूम गया तो कर्सर पूरे स्क्रीन पर घूम जायेगा । यदि प्रयोक्ता कंप्यूटर स्क्रीन के बजाय अन्यत्र देख रहा होगा तो कर्सर या पार्टर गायब ही हो जायेगा । यह अलग बात है कि कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर भी तैयार कर लिये गये हैं जिससे कर्सर भी यथास्थान रखा जा सकता है । विकलांगों की अंगुली में रिफ्लेक्टिव छल्ला लगाकर उसे माउस की तरह कार्य लिया जा सकता है ।

आई माउस
आई ट्रैकिंग सिस्टम ऐसी पद्धति है जिसमें विकलांग व्यक्ति मात्र अपनी आँखों का उपयोग करके ही कंप्यूटर को उपयोग में लिया जा सकता है । इस डिवाइस में मॉनिटर पर एक कैमरा इस तरह लगा होता है जो प्रयोक्ता की आँखों पर फोकस करता है । हल्के से पलक झपकते ही माउस क्लिक होने लगता है । इसमें प्रयोक्ता स्पीच सिंथेसाइजर वाली विधि से टाइप कर सकता है । फोन कर सकता है । कंप्यूटर सॉफ्टवेयर चला सकता है । इतना ही नहीं वह इंटरनेट-सर्फिंग भी कर सकता है ।

फुट माउस
जैसा कि नाम से ज्ञात है यह पैरों से संचालित यंत्र है । इस माउस में दो पैडल होते हैं । उपयोगकर्ता एक पैर से माउस को क्लिक करता है और दूसरे पैर से कर्सर को नियंत्रित करता है । इस यंत्र की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि इसमें कार्यक्षमता लगभग 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है । साथ ही इसमें हाथ या कलाई पर पड़ने वाला तनाव भी घट जाता है क्योंकि इसमें माउस संचालित करने हेतु हाथ का उपयोग होता ही नहीं ।

बैकपैक
इसे जाइबरकिड्स पीसी भी कहा जाता है । इसका निर्माण जाइबरनॉट नामक कंपनी ने किया है । यह उन विकलांग बच्चों के लिए कारगर है जो पढ़ने-लिखने में कठिनाई महसूस करते हैं। बैकपैक में फ्लैट पैनल टच स्क्रीन डिस्पले, पोर्टेबल स्पीकर और छोटी-सी प्रोसेसिंग यूनिट होती है जिसकी सहायता से विकलांग बच्चे एक दूसरे से बात कर सकते हैं और कक्षा की सारी गतिविधियों में भाग सकते हैं । इस यंत्र की सहायता से वे आनलाइन खरीददारी भी कर सकते हैं ।


बधिरों के लिए भी सौगात
बधिरों के लिए कंप्यूटर अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि कंप्यूटर का सबसे अहम पक्ष का दृश्य माध्यम या विजुअल होना है । बधिरों के लिए भी कई ऐसे हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकसित किये जा चुके हैं जिसके माध्यम से बधिर सांकेतिक भाषा, फिंगर स्पैलिंग और लिप रीडिंग का प्रशिक्षण दिया जा सकता है । इस पद्धति में केवल एक माइक्रोफोन की अतिरिक्त आश्यकता होती है । जैसे ही प्रयोक्ता द्वारा कोई शब्द चुना जाता है उसका सही उच्चारण स्क्रीन पर डिस्पले हो जाता है और ध्वनि भी जब माइक्रोफोन में पहुँचती है उसका भी डिसप्ले स्क्रीन पर होने लगता है । इस तरह से दोनों डिस्पले के अनुसार तुलना कर वास्तविक उच्चारण तक प्रयोक्ता पहुँच सकता है । बधिर आसानी से ई-मेल और चैटिंग भी कर सकते हैं । इस दिशा में ट्रायबल वॉयस द्वारा ईजाद की गई एप्लिकेशन-पॉवो का जिक्र प्रांसगिक होगा जिसमें बधिर और दृष्टिहीन भी चैटिंग कर सकते हैं । इस डिवायस की खासियत है- उसका टैक्स्ट-टू-स्पीच से लैस होना जिसके कारण सरलता से दृष्टिहीन स्क्रीन पर लिखा हुआ आसानी से सुन सकता है और ठीक दूसरी ओर बधिर स्क्रीन पर टैक्स्ट को देख सकता है ।इस सॉफ्टवेयर को ट्रायबल.कॉम से डाउनलोड की सुविधा भी है।

डिसएबल्डपर्सन.कॉम भी एक ऐसा वेबसाइट है जो मूलतः विकलागों के लिए उपयोगी सामग्री से भरा पड़ा है । यहाँ कुछ ऐसी सच्ची कहानियाँ भी प्रकाशित की गई हैं जो प्रत्येक विकलांग के लिए भावनात्मक रूप से भी प्रेरणास्पद है । विकलांगों के लिए दुनिया भर में रोजगार प्राप्त करने की अतिरिक्त जानकारी भी यहाँ प्राप्त की जा सकती हैं ।

इधर राष्ट्राय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान (NIIT) ने भी विकलांगों के लिए आई-राइट नामक साफ्टवेयर विकसित की है जिसकी सहायता से विकलांग व्यक्ति कंप्यूटर द्वारा लिख सकता है । जो विकलांग अब तक की-बोर्ड का इस्तेमाल नहीं कर सकता था, वह अब सिंगल प्वाइंट इंट्री व्यवस्था के माध्यम से लिखने का काम कर सकेगा । यह टच पैड, प्रकाश, और आवाज़ से संचालित स्विच व्यवस्था से हो सकेगा । इससे उपयोगकर्ता स्क्रीन पर उपलब्ध विभिन्न विकल्पों में अपने लायक माध्यम को चुन सकेगा ।
जयप्रकाश मानस
संपादक,
सृजनगाथा डॉट कॉम
रायपुर, छत्तीसगढ

आपके घर से आकाशवाणी !

हो सकता है आपको मेरी बातों पर सहसा विश्वास न हो । शायद आपके मन में यह विचार भी आ जाये कि मैं किसी आध्यात्मिक प्रसंग पर कहना चाहता हूँ पर जिन्हें इंटरनेट प्रौद्योगिकी की क्रांतिकारी शक्तियों की जानकारी हो वे बखूबी समझ सकते हैं कि मैं किसी ढोंगी तांत्रिक की भाँति कोई अंधविश्वास नहीं फैलाना चाहता बल्कि इंटरनेट रेडियो या ऑनलाइन रेडियो प्रसारण की बात करना चाहता हूँ । जी हाँ! यदि आप ऐसा सोचते हैं, तो ठीक सोचते हैं और संभव है कि आपका कोई निजी रेडियो स्टेशन भी हो ।

प्रसारण की दुनिया में यह जादू कर दिखाया है अंतरजाल यानी इंटरनेट ने । दरअसल इस सफलता के पीछे है मल्टीमीडिया को इंटरनेट की सौगात-वर्ल्ड वाइड वेब, कहने का आशय विश्वव्यापी जाल । कदाचित् इन्हीं कारणों से इंटरनेट को हिंदी के भाषाशास्त्री ‘विश्वजाल’ कहते हैं । जो भी हो.... अब आप जब चाहें अपना निजी आकाशवाणी (रेडियो स्टेशन) घर से संचालित कर सकते हैं । यह क्षमता आपके नज़दीक पहुँच चुकी है । इसके लिए आपको प्रसारण मंत्रालय के नियमों-कायदों का भी पालन करने की कोई जरुरत नहीं । भारी-भरकम अमला खड़ा करने के लिए लाखों-करोडों की भी जरूरत नहीं । बस आप तय कर लें कि आपके रेडियो स्टेशन से प्रसारण किन विषयों पर केंद्रित रहेगा? आप गाने सुनायेंगे या समाचार या दोनों ही? कारोबारी दुनिया पर प्रसारण करेंगे या घर-द्वार पर? प्रसारण की भाषा भी आपको ही तय करनी होगी । बशर्ते कि आपके पास हो एक कंप्यूटर, मॉडम, लाइड स्पीकर और इंटरनेट का कनेक्शन । सच मानिए, इससे आप अपने आसपास तक ही नहीं अपितु विश्व के किसी भी कोने तक प्रसारण कर सकते हैं । यानी आपके रेडियो प्रसारण की कोई सीमा नहीं । वह भी चौबीसों घंटे । ठीक वैसे ही जैसे चौबीसों घंटे Live365.com प्रसारित करता है ।

इसे आईटी के विशेषज्ञों का कमाल ही कहिए कि अब तकनीकी दुनिया में ऐसे सॉफ्टवेयर ईजाद किये जा चुके हैं जिनसे डिजिटल रिकार्डिंग को किसी भी कंप्यूटर के मेमोरी या भंडार में रखा जा सकता है । इसे इंटरनेट पर प्रसारित कर दिया जाता है जिसे श्रोता का कंप्यूटर तुरंत ग्रहण कर सकता है और लगातार ऑनलाइन सुन सकता है । यह तकनीक को MBONE (IP Multicast Backbone on the Internet) कहलाता है ।

जबसे टेलीफोन लाइन पर डिजिटल सामग्री के प्रसारण की शुरुआत हुई है, रिकार्ड की गई आवाज़ को दुनिया में कहीं भी भेजना संभव हो गया लेकिन इस आवाज़ को तभी सुना जा सकता था, जब संपूर्ण डिजीटल रिकार्डिंग को पहले श्रोता का कंप्यूटर ग्रहण न कर ले और अपने पीसी में संग्रहित न कर ले । इसके पश्चात ही वह इस ध्वनि फाइल को साउंड सॉफ्टवेयर पर चला कर सुन सकता था । तब इस प्रसारण को तत्क्षण सुनने की क्षमता नहीं होने के काण उस प्राप्त रिकार्डिंग को सुनना रेडियो सुनने जैसा नहीं था । वह किसी सीडी या कैसेट को सुनने जैसा था । लेकिन वर्ल्ड वाइड वेब के मार्फत अब प्रसारण को तत्क्षण व निरंतर सुनने की क्षमता विकसित हो चुकी है और इसने संपूर्णतः रेडियो का रूप ग्रहण कर लिया है । है न ताजुब्ब की बात!


ऐसे रेडियो स्टेशन की संपूर्ण दुनिया तक पहुँच शक्ति के पीछे है इनका अपने संकेतों को टेलीफोन लाइनों के जरिए भेजा जाना जबकि पुराने ढंग के रेडियो स्टेशनों में संकेत वायुतंरगों के द्वारा भेजा जाता था । इस तथ्य में सबसे खास बात है इन रेडियो स्टेशनों को स्थापित करने के लिए मंहगे ट्रांसमीटरों और प्रसारण केंद्रों की भी अब आवश्यकता नहीं रह गई है । सच तो यह भी है कि इसके लिए कोई लाइसेंस लेने की भी दरकार नहीं ।


आवश्यक सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर

अब शायद आप यह जरूर पूछना चाहेंगे कि रेडियो केंद्र को संचालित करने के लिए क्या-क्या आवश्यक है । लीजिए, वह भी बताये देते हैं- पहला- ऐसा सॉफ्टवेयर जिससे आप वेब रेडियो स्टेशनों से प्रसारित ध्वनि अर्थात् गीत-संगीत, बातचीत आदि को सुना सकें । इन सॉफ्टवेयरों में वैसे तो प्रोग्रेसिव नेटवर्क का रियल आडियो (Real Adio) सबसे पसंदीदा है तथापि अब तो कई सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनमें विंडो मीडिया प्लेयर, विनएम्प, झिंग प्लेयर्स, क्विक टाइम, आई ट्यून्श प्रमुख हैं । विंडो मीडिया प्लेयर्स तो Windows xp आदि ऑपरेटिंग सिस्टम में बाय डिफाल्ट है । अर्थात् इसके लिए अतिरिक्त खर्च भी नहीं । उपर्युक्त सभी ध्वनि केंद्रित सॉफ्टवेयर्स मुफ्त में डाउनलोडेबल हैं । आप चाहे तो इनमें से कोई भी मनपंसद सॉफ्टवेयर www.downlod.com से मुफ़्त में डाउनलोड करके इंस्टाल कर सकते हैं । वैसे इन सॉफ्टवेयरों को उनके नाम के वेबसाइट से भी डाउनलोड किया जाना अति सरल है । इन दिनों इंटरनेट पर संचालित अधिकांश ऑनलाइन रेडियो स्टेशनों में इन्हीं सॉफ्टवेयरों का उपयोग किया जा रहा है । इनमें भी रियल आडियो का लेटेस्ट वर्जन लेना अधिक फायदेमंद होगा क्योंकि इससे अच्छी स्टीरियो जैसी आवाज़ पायी जा सकती है । इसके अलावा शिंग टेक्नोलॉजी के स्ट्रीमवर्क्स और लिक्विड आडियो के लिक्विड म्युजिक प्लेयर सॉफ्टवेयर को भी आजमाया जा सकता हैं ।

दूसरा – कोई पंसदीदा वेब खोजक (ब्राउजर) । जैसे नेटस्केप नेवीगेटर या फॉयरफॉक्स । यहाँ हम माइक्रोसॉफ्ट इंटरनेट एक्सप्लोरर का जिक्र जानबुझकर नहीं कर रहे हैं क्योंकि यह भी विंडो में बायडिफाल्ट होता है और अधिकांश भारतीय विंडो ऑपरेटिंग सिस्टम ही काम में ला रहे हैं । ब्राउजर की उपयोगिता इसलिए भी है कि इससे मनमाफिक भाषा या विषय का रेडियो चैनल सर्च किया जा सके । तब तो और जरुरी है जब आप केवल इंटरनेट सुनना चाहते हैं ।

जैसा कि हम इंटरनेट कनेक्शन के बारे में पहले ही बता चुके हैं यह वेब रेडियो की रीढ़ है । सामान्य घरेलू कनेक्शन में देखा गया है कि रेडियो का प्रसारण ठीक से नहीं हो सकता क्योंकि इसमें डेटा ट्रांसफर रेट कम होता है । उचित होगा कि आप कोई ब्रॉडबैंड या और उन्नत नेट सर्विस की सेवा ले लें । ऐसा करने से आपके रेडियो स्टेशन का प्रसारण विश्व के किसी भी कोने तक पहुँचना सरल हो सकेगा । कुल मिलाकर ये अग्रांकित न्यूनतम किन्तु अपरिहार्य चीजें भी आपके पीसी में हों –विंडो 98, 2000, मिलेनियम या एक्सपी वर्सन का ऑपरेटिंग सिस्टम । 128 एमबी रैम, पैंटियम, 600 मैगाडर्टज् या अधिक उन्नत प्रोसेसर, न्युनतम 128 केवीएस स्पीड वाला इंटरनेट कनेक्शन, जावास्क्रीप्ट सहित इंटरनेट एक्सप्लोरर । पॉपअप निरोधक फायरवॉल । एक एमपी-3 प्लेयर ।

कितने ही रेडियो स्टेशन

इतनी चीजों की व्यवस्था हो जाने पर आप किसी भी रेडियो नेटवर्क की जानकारी के लिए इंटरनेट पर सर्च कर सकते हैं । वैसे इन दिनों कई ऐसे वेबसाइट हैं जो रेडियो नेटवर्क की सूची उपलब्ध करा रहे हैं । उदाहरण के लिए प्रोग्रेसिव नेटवर्क की जानकारी के लिए www.timecast.com पर लॉग ऑन करें । यहाँ 400-500 वेब-रेडियो के पते हैं । या फिर मुफ़्त इंटरनेट रेडियो स्टेशनों की जानकारी के लिए रेडियो फ्री वर्ल्ड पर जायें । इसका पता है www.radiofreeworld.com । यहाँ दुनिया भर के वेबरेडियो केंद्रों की विस्तृत जानकारी और लिंक उपलब्ध है । उदाहरण बतौर www.ktru.org टेक्सास के राइस युनिवर्सिटी के छात्र द्वारा संचालित ऑनलाइन रेडियो है जहाँ आप शैक्षणिक जानकारी ले सकते हैं । इनमें से कुछ ऐसे हैं जो आपको अपना रेडियो स्टेशन केंद्र स्थापित करने का मुफ़त आमंत्रण देते हैं और कुछ नाममात्र का रजिस्ट्रेशन शुल्क लेकर सेवा उपलब्ध कराते हैं । live365.com एक ऐसा रेडियो केंद्र है जहाँ विश्व भर के कई देशों की साइटों की डायरेक्टरियाँ हैं । उदाहरण स्वरूप अनुराग के रेडियो स्टेशन (www.live365.com/stations/anupam2005)पर आप भारतीय शास्त्रीय संगीत सुन सकते हैं । यह साइट आपको कुछ शर्तों के साथ अपना इंटरनेट रेडियो स्थापित करने की सुविधा दे सकता है । वैसे आपकी आवाज़ मधुर है । दो-चार मित्र आपके साथ इस काम में नाम और दाम दोनों कमाना चाहते हैं तो कुछ ही रुपया खर्च कर अपना स्वतंत्र वेबसाइट बनाकर भी ऑनलाइन रेडियो प्रसारण कर सकते हैं ।

हिंदी के इंटरनेट रेडियो

ऑनलाइन संगीत स्टेसन (24x7)
Haagstad Radio, The Hague

रिकार्डेड समाचार स्टेशन

आंशिक हिंदी प्रसारण स्थानीय केंद्र
अब तो जाने कितनी तरह की वेब रेडियो इंटरनेट पर सक्रिय हैं । कोई पश्चिमी धुन सुनाता है तो कोई पूर्वी दुनिया का कोई राग । कोई शास्त्रीय संगीत सुनाने के लिए चल रहा है तो कोई मात्र आधुनिक संगीत । शुरु-शुरु में आपको भी इन्हें इंटरनेट पर तलाशना पडेगा । ठीक जैसे मैंने तलाश की । हुआ क्या कि मैं एक दिन यूँ ही इंटरनेट पर ऐसे रेडियो स्टेशनों के बारे में जानने के लिए बेताब था जहाँ कविताएँ सुनी जा सकें और जिन्हें सुनने में कोई बाधा न हो यानी कि कि ऐसा इंटरनेट रेडियो जहाँ पॉप-अप विज्ञापन न हों या कम हों, और नए पुराने गाने भी बीच-बीच में चलते रहें।

इस तलाश के दौरान मिली किसी माइक भाई की वेब-साइट – माईक्स रेडियोवर्ल्स यानी कि www.mikesworld.com । माइक ने बकायदा सूची बना रखी है दुनिया भर के ऐसे रेडियो स्टेशनों की जो इंटरनेट पर प्रसारण करते हैं। इनकी संख्या 3000 से कम कहीं अधिक है । दक्षिण और पूर्व एशिया की सूची में भारत का कहीं नाम नहीं है। हाँ वीएसएनएल (www.internet.vsnl.com )ने दो स्टेशन प्रारंभ किया है जो 24*7 प्रसारण करता है । इसमें से एक है हिंदी भजन चैनल और दूसरा तमिल चैनल । ऐसा कुछ अब आकाशवाणी से तो उम्मीद कर नहीं सकते कि लगातार अपने कार्यक्रम वेबकास्ट करे। सिंगापोर का एक स्टेशन है, जो ठीक से चलता नहीं है। मध्य-पूर्व के स्टेशनों में संयुक्त अरब अमीरात का सिटी १०१.६ (http://asx.abacast.com) है, जो अच्छा है। यहाँ हिंदी भाषियों के लिए काफी कुछ प्रसारित होता रहता है । इसके अलावा यूरोप, अमरीका और अफ्रीका की सूचियों में भी कई स्टेशन हैं जो भारतीय संगीत बजाते हैं। वैसे यहाँ 3000 सभी इंटरनेट रेडियो की सूची को उनके प्रसारण चरित्र और प्रसारण स्थल के आधार पर सूचीबद्ध किया गया है । इसलिए ढूँढने वालों के लिए कोई कठिनाई कि वे किस देश की किस भाषा में संगीत सुनना चाहते हैं । पर गूगल से खोजने पर एक और इंटरनेट रेडियो स्टेशन मिला जिस का नाम तो बकवास(www.rediobakwaas.com) है, पर काम बढ़िया करता है। बस एक बार साइन-अप करना पड़ता है। वैसे यह अब लगता है बंद हो चुका है । पर देशीहिट नामक एकसाइट(www.desihitsradio.com) अपना काम शुरु कर चुका है जहाँ आप हिंदी फिल्मी गाने सुन सकते हैं । वैसे आकाशवाणी(Air) का पुराना यूआरएल भी वहीं ले जाता है। सुना है वह जल्दी ही ऑनलाइन रेडियो की सुविधा जल्दी ही देश के सभी क्षेत्रों पहुँचाने वाली है । मस्त रेडियो और रेडियो तराना नामक दो अच्छे रेडियो स्टेशन के लिंक यहाँ भी हैं - www.hindilink.com/hindi_radio.html

गूगल, एमएसएन आदि सर्च इंजिनों की सहायता से 10 हजार से अधिक रेडियो स्टेशनों की सूची देखते ही देखते संग्रहित की जा सकती है और जिसके माध्यम से विश्व के किसी भी संस्कृति के बारे में घर वैठे जाना जा सकता है । जब मैं ऐसे किसी पसंदीदा रेडियो स्टेशन पर कुछ खास सुनता रहता हूँ तो मन ही मन उस वैज्ञानिक का धन्यवाद ज्ञापित करता रहता हूँ जिसे Carl Malumud के नाम से सारे विश्व में जाना जाता है और जिसने 1993 में दुनिया का पहला इंटरनेट रेडियो स्टेशन विकसित किया था ।

इंटरनेट रेडियो या वेब रेडियो बड़ी काम की चीज है । दुनिया में इसका उपयोग सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं अपितु शिक्षा, सूचना और संचार सहित वैकासिक कार्यकमों के लिए भी हो रहा है । इसी तकनीक का फायदा उठाकर युनेस्को ने भी श्रीलंका के डाक, तार एवं दूरसंचार मंत्रालय मंत्रालय तथा श्रीलंका ब्रॉडकॉस्टिंग कार्पोरेशन, कोलम्बो विश्वविद्यालय के सहयोग से इंटरनेट रेडियो संचालित किया जा रहा है जिसकी सहायता से सेंट्रल श्रीलंका के कुछ हिस्सों जैसे काटमले, गम्पोला, नवलपिटिया, और दिसपाने आदि ग्रामीण क्षेत्रों में ई-लर्निंग का काम साधा जा रहा है । इस इंटरनेट रेडियो संचालन में स्थानीय लोग प्रवीण हो चुके हैं जिसमें 50 प्रतिशत यूजर्स महिला हैं । अधिकांश 15 से 20 आयु वर्ग हैं । इसमें से 70 प्रतिशत उपयोगकर्ताओं के पास कंप्यूटर भी है ।

जो लोग यह सोचते हैं कि लेटे-लेटे रेडियो सुनना और कंप्यूटर पर बैठे-बैठे इंटरनेट रेडियो में ज़मीन-आसमान का फ़र्क है । सच है कंप्यूटर पर रेडियो सुनना कठिन काम है पर सच खुश होइए कि इसका भी निदान किया जा चुका है । 'इनट्यून' नामक एक छोटा-सा रेडियो है जो किसी भी कंप्यूटर से वायरलैस यानी बेतार तकनीक से जुड़ सकता है । ब्रिटेन के मैनचेस्टर स्थित कंपनी पीडीटी पोर्टेबल प्लेयर तैयार करनेवाली कंपनी, पीडीटी के प्रबंध निदेशक डेविड होल्डर का कहना है कि " इंटरनेट रेडियो एक उपलब्धि है क्योंकि कंप्यटूर के पास बैठ कर कोई भी संगीत नहीं सुनना चाहता था, इनट्यून की मदद से अब कोई भी कंप्यटूर के निकट बैठे बिना रेडियो सुन सकेगा।" आप कुछ भी कहें, पर रेडियो तरंगे ऐसी तकनीक है जिससे यह संभव है ।

तो आप अपना इंटरनेट रेडियो लांच करने के लिए तैयार हैं ना ! एक बार प्रयास करके तो देखिए । वैसे आपको पूरी छूट है कि समाचार, विचार, फिल्म, संगीत, कृषि, राजनीति, संस्कृति, साहित्य, कला, वाणिज्य, व्यापार, वैंक, विज्ञान, परिवार, समाज, समस्या चाहे किसी भी विषय पर अपना प्रसारण कर सकते हैं । है ना प्रौद्योगिकी में सकारात्मक और प्रजातांत्रिक स्वतंत्रता की पहल। मनोरंजन का मनोरंजन और मेहनती हों तो विज्ञापन से कमाई भी । नाम भी होगा और पुरस्कार भी मिलेगा जैसे अपनी स्थापना के कुछ ही दिनों के भीतर सिएटल के समाचार प्रसारक Kiro को उसके निजी इंटरनेट रेडियो www.kiro710.com में समाचार रिपोर्टिंग के लिए पुरस्कार मिलने शुरु हो गये थे । कहा जाता है अब तो उन्हें कितने ही पुरस्कार मिल चुके हैं । जाते-जाते हम आपको एक और वेबसाइट का यूआरएल दिये जाते हैं चाहें तो आप यहाँ मुफ्त में केवल पंजीकृत होकर अपना इंटरनेट रेडियो घर से संचालित कर सकते हैं । सचमुच तैयार हैं तो यह लीजिए - www.shoutcast.com
जयप्रकाश मानस
संपादक
www.srijangatha.com
E-mail:srijangatha@gmail.com

लोक को स्पर्श करती वेबमीड़िया

श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था - “लोक-संग्रहमेवापि संपश्यन् कर्त्तुमर्हसि ।”

(और कुछ नहीं जानते-मानते तो, कम से कम, लोक-संग्रह को ध्यान में रखते हुए- संपश्यन् – तुम्हें कर्म से नहीं भागना चाहिये । )

अंतरजाल(इंटरनेट) की रंग-बिरंगी दुनिया की सैर करते वक्त गीता की यह पंक्ति बार-बार सुनाई देती है । संवेदनाहीनता के इस भयानक दौर और हर क्षण अत्याधुनिकता के लिए लपलपाती जीव्हा वाले युग के बीच छटपटाते हुए मन में धुंधली ही सही पर कुछ किरनें विश्वास जगाती हैं कि मनुष्य चाहे कितना भी उत्तरआधुनिक हो जाये वह लोक के प्रति अपने नैतिक दायित्वों को संपूर्णतः नहीं टाल सकता है ।

इसे लोक-चेतना का तकाज़ा ही कहें कि वैश्वीकरण के तमाम दबाबों के बावजूद मनुष्य अपने पुरावैभव को भूला नहीं पाया है । वह क्यों कर भी भूलाये ! वह एकदम से नैतिकताशून्य हो नहीं सकता । शायद उसे यह भी पता है कि लोक-चेतना वेद-शास्त्रों से भी पुरानी है । इस भूमिका की ज़मीन पर खड़े होकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि वेबमीडिया यानी इंटरनेट की थाल पर सूचना तकनीक के नाम से जो भी परोसा जा रहा है वह मात्र कूड़ा-कर्कट नहीं है, उसे नीर-क्षीर विवेक के साथ देखने की गुंजायश है । उसे हम नागर और अति-नागर बोध की विकृति मान लेंगे तो शायद अन्याय होगा । वहाँ लोक की हरियाली भी यत्र-तत्र बिखरी पड़ी है । कहीं पनघट पर पनिहारिनों की चुडियों की लय में लोकगीत की मद्धिम धून है तो कहीं चौपाल पर बुजुर्गवारों की बतकही के बीच-बीच में उभरती लोककथायें भी । कहीं शोख और चटक परिधानों में सजे-सँवरे ग्राम्यबालाओं को गिद्धा या करमा की नृत्यमुद्रा में भी आत्मविभोर होकर देख सकते हैं और कहीं उस कलाकार की जीवटता को भी जो निहायत अनुपयोगी चीजों को एक जीवंत रूप दे देता है । आइये आप भी जऱा सैर करलें :

वेबपोर्टल में समृद्ध लोक-रंग

भारतीय लोक की दुनिया अति समृद्ध रही है । सच तो यह है कि भारतीत जीवन जितना नागर रूप में है उतना ही लोक रूप में । यानी कि आधुनिकता और परंपरा से समन्वित जीवन शैली । सच यह भी है कि कोई भी देश या उस भू-भाग का कोई समाज केवल आधुनिक समय में नहीं जीता, उसमें लोक-परंपराओं की साँसे भी होती हैं । समृद्ध भारतीय लोक-रूपों का समृद्ध लोक-संग्रहण किया है - डिजटल सांस्कृतिक संपदा पुस्तकालय, इंदिरा गाँधी सेंटर कला एवं सस्कृति केंद्र ने । इन्होंने जाल स्थल का नाम रखा है- http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCAपारम्परिक साहित्य वर्ग में जातक की कहानियाँ सहित, हितोपदेश, पंचतंत्र, सिंहासन बत्तीसी जैसे अनिवार्य लोकसाहित्य का भंडार है । यहाँ मौखिक महाकाव्य, ब्रज-वैभव, वैदह वैभव - मिथिला- वैभव , और मगध का रसपान किया जा सकता है । वेब-पृष्ठ ‘ब्रज-वैभव’ अपने नामकरण को सच्चे अर्थों में चरितार्थ करता है । यहाँ आप ब्रज को जिस किसी कोण से जानना-पढ़ना चाहते हैं, मिल जायेगा । बस्स, आप शीर्षकों पर अपना माउस क्लिक करते जाइये । यह एक तरह से ब्रज पर केंद्रित एवं सारगर्भित विशालतम वेब-स्थल है । एक मायने में ब्रज का इनसायक्लोपीडिया । यहाँ ब्रज की झीलें, सरोवरें, कुंड, ताल, पोखर, बावड़ी, कूप से लेकर रास नृत्य, सूखे रंगों की चित्रकला, सांझी कला, कलाकृतियों में प्रस्तुत कथा दृश्य, भाषा, संगीत को संपूर्ण आत्मीयता के साथ संजोया गया है । संगीत ब्रज-संस्कृति का अविभाज्य अंग रहा है । भारतीय संगीत को ब्रज की देन के रूप में हम आज भी जिस तरह ध्रुवपद- धमार, वृंदगानी विद्या, ग्वारिया बाबा, हरिदासजी, वल्लभाचार्य, संगीत शिरोमणि सूरदास आदि को जिस तरह याद करते हैं वह हमारे लोक जीवन को उज्जवल और मन को शांति प्रदान करने में सर्वोपरि है । ब्रज वैभव अध्याय में ही राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी की महत्वपूर्ण लोक ग्रंथ धरती और बीज को समूची प्रतिष्ठित किया गया है जो नये ज़माने की तकनीक इंटरनेट के माध्यम से लोक साहित्य के वैश्वीकरण का ईमानदार प्रयास है । ज्ञातव्य हो कि यह कृति हजारों पृष्ठों की हैं एवं बहुमूल्य है । इसके अलावा बुंदेलखण्ड की लोक संस्कृति का इतिहास नामक पूरी किताब को भी रखा गया है जिसके लेखक है नर्मदा प्रसाद गुप्त । अन्य किताबों में बुन्देलखण्ड की लोक संस्कृति का इतिहास, परिव्राजक की डायरी, हजारी प्रसाद द्विवेदी के पत्र, युगान्तर (अन्तरंग-वार्त्ता), अक्षर-अक्षर अमृत (अन्तरंग-वार्ता) भी लोक के बहाने पठनीय हैं । इस तरह से यहाँ हजारों पृष्ठ की लोक-सामग्री संग्रहित है ।

इतना ही नहीं यहाँ भारत के प्रतिष्ठित लोकविशेषज्ञों के शोधपूर्ण आलेख भी यहाँ हिंदी में समादृत हैं । इसमें 1. कला वह वस्तु है जो जीवन को परिपूर्ण बनाती है (अटल बिहारी बाजपेयी), 2. अतीत का अद्यतन अस्तित्व –मथुरा (वीरेन्द्र बंगरु) 3. ॠग्वेद में सामाजिक जीवन (विजय शंकर शुक्ल) 4. जनपद सम्पदा – (प्रोफेसर बैद्यनाथ सरस्वती) 5. राक पेंटिग पर केंद्रित शिलाओं पर कला (हिमानी पाण्डे) तथा ‘भारतीय परम्परा में भाषा संस्कृति एवं लोक की अवधारणा तथा उनका परस्पर अन्त:सम्बन्ध’ और ‘प्रक्रिया रूप में भाषा, संस्कृति और लोकः एक सतत् प्रक्रिया’ नामक महत्वपूर्ण लेख भी हैं जो लोकअध्येताओं के लिए किसी संदर्भ सामग्री से कम नहीं ।
छत्तीसगढ़ जैसे लोक प्रदेश को व्यापक रूप से समझने के लिए भी इसी वेब-स्थल का भ्रमण किया जा सकता है । यहाँ
छत्तीसगढ़ का लोकगीत, लोकनृत्य, लोक कथाएँ, लोकगाथा, लोकोक्तियों (हाना), छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति के पहलुओं के कलाकार, लोक आभूषण, लोक खेल, लोक- वाद्य लोक-संस्कृति से जुड़ी हुई गतिविधियाँ आदि सभी लोक अवयवों को समाहित किया गया है । यहाँ कुछ बातें खटकने वाली भी हैं । उदाहरण के लिए- दिल्ली की पढ़ी-लिखी एक महिला को, जो सामजिक संस्था चलाती है, छत्तीसगढी संस्कृति का विशेषज्ञ बताने का प्रकारांतर से किया गया प्रयास । इतना ही नहीं, लोकसंस्कृति के क्षेत्र में अज्ञात संस्था को प्रमुख लोक आयोजक बताया गया है । यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति के मर्मज्ञों के लिए आपत्ति जनक भी हो सकती है फिर भी भारत सरकार और इंदिरा कला केंद्र को साधूवाद, जिसके कारण छत्तीसगढ़ जैसे नवोदित प्रदेश और उसके लोकवैभव को कम से कम इतना तवज्जो मिला है । अन्यथा राज्य के इस लोक-संपन्नता को विश्वव्यापी बनाने की दिशा में किये जा रहे वादे और घोषणायें के बल पर तो कुछ भी संभव न हो पाता । बहरहाल यहाँ नारी मनोविज्ञान की प्रिय कला गोदना पर भी सामग्री दी गयी है जो और कहीं देखने को नहीं मिलती । कुछ लोकगीतों को आडियो फार्मेट में रखा गया है । सुआ, पंडवानी, भरथरी जैसे लोकगीत को इंटरनेट पर देखकर कोई भी प्रवासी छत्तीसगढिया आनंदित हुए बिना नहीं रह सकता जो विश्व में इस जनपद की पहचान हैं । यहाँ छत्तीसगढ़ी साहित्य का भी विहंगावलोकन किया जा सकता है । जिसे वेब संपादक ने गाथा युग , भक्ति युग-मध्य काल, आधुनिक युग में बाँटकर प्रस्तुत किया है । यह बात अलग है कि छत्तीसगढ़ी साहित्य को बाँटने का क्या आधार है नहीं बताया गया है ।

इसी तरह मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराचंल आदि प्रदेशों की लोक-संपन्नता का आंकलन इसी जाल-स्थल से संभव है । उत्तराचंल को ‘मेलों का अंचल ’ कहें तो अतिशयोक्ति न होगी । शायद इस तथ्य का खयाल रखते हुए राज्य के सभी मेलों की विस्तृत और सम्यक जानकारी भी यहाँ रखी गयी है । इसमें राजस्थान में सूर्य प्रतिमाओं का रुपांकन , राजस्थानी गाथाओं में वेश-भूषा वर्णन व लोक विश्वास, कुमाऊँ की आलेखन परम्परा, कुमाऊँ हिमालय की पारम्परिक प्रौद्यौगिकी-पद्धतियाँ, मृतक-कर्म की रीतियाँ आलेख आदि अत्यंत रोचक और संग्रहणीय बन पड़ी हैं । राजस्थान की लोक संस्कृति को उसके जनपदों के आधार पर प्रतिष्ठित किया गया है जिसमें मेवाड़(उदयपुर),मारवाड़, झालावाड़,कोटा क्षेत्र, अलवर, भरतपुर आदि प्रमुख हैं । राजस्थानी चित्रकला के शोधार्थियों के लिए यह वेबपृष्ठ आँखों को चमक प्रदान कर सकती है । राजस्थानी चित्रकला की विशेषताएँ ,राजस्थानी चित्रकला का आरम्भ सहित मारवाड़ी शैली, किशनगढ़, बीकानेर, हाड़ौती शैली/बूंदी व कोटा, ढूंढ़ार / जयपुर, अलवर, आमेर, उणियारा, सहित डूंगरपूर, देवगढ़ उपशैली पर विशद् सामग्री यहाँ रखी गयी हैं । मेवाड़ और मारवाड़ समाज पर जितनी सामग्री है उसे देखकर कोई भी समाजशास्त्री अचम्भे में पड़ सकता है । इसी तरह मध्यप्रदेश के ग्वालियर के चितेरे एवं उनके बनाए भित्ति चित्र, ग्वालियर के अनुष्ठानिक भित्ति चित्र भी महत्वपूर्ण हैं जो पारंपरिक चित्रकलाओं की किसी ख़ास किताबों में भी कई बार नहीं दिखाई पड़ते ।

भारत सरकार को धन्यवाद देते हुए आइये ऐसे ही एक और व्यापक वेबपोर्टल की ओर जो केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडॉक (सेंटर फॉर डवलपमेंट आफ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका के रूप में संचालित की जा रही है । विश्वप्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री गिजूभाई की दर्जनों लोककथाएँ आनलाइन पढ़ने और डाउनलोड करके अपने कंप्यूटर में स्थायी रूप से संजोकर रखने की ख़्वाईश इस वेबघर(mobilelibrary.cdacnoida.com/Books/KahaniKahunBhaiya.doc) में आकर की जा सकती है ।

संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा संचालित राष्ट्रीय संग्रहालय में लोक का अद्भूत संग्रह है उसे (www.nationalmuseumindia.gov.in) नामक वेबसाइट में प्रचारित करने का प्रयास किया जा रहा है । यद्यपि राष्ट्रीय संग्रहालय में चित्रकला प्रभाग के अंतर्गत प्राचीनतम ज्ञात लघुचित्र, पूर्वी भारत में 10वीं और 12वी शताब्दियों में ताड़-पत्र के वृंतों पर बनाए गये थे, की व्यापक जानकारी मिलती है । पाण्डुलिपियाँ नामक प्रभाग में विभिन्न भाषाओं और लिपियों में लिखित लगभग 14,000 पांडुलिपियों का अर्जन किया गया है ये प्राचीन काल की इतिहास, साहित्य, सुलेखन कला, चिकित्सा शास्त्र, जीवनियों आदि से संबंधित हैं, जिसके बारे में भी यह वेबपृष्ठ बखान करता है । मुद्रा एवं अभिलेख एक तरह से सिक्कों का वेब पर राष्ट्रीय संग्रहालय जैसा है । यहाँ भारतीय सिक्कों का समूचा इतिहास (6वीं शताब्दी ई.पू. से 19वीं शती ई. का समापन काल)भी निर्देशित है । इसके अलावा आभूषण वीथिका, नृविज्ञान, अस्त्र-शस्त्र और कवच, सुसज्जा कलाएं आदि खंड़ों में भी लोक आधारित प्रचुर सामग्रियों कें संदर्भ हैं ।


‘लोक’ को चाहे विद्वान कितना भी जटिल मानते रहें और उत्तरआधुनिकवादी उसे अस्पृश्यभाव से देखते रहें, यह शब्द जब मस्तिष्क में घुलता है, सबसे पहले उसके अर्थ का जो रस मिलता है उसमें नानी-नाना की कहानी बरबस याद आने लगती हैं । हम लोककथा की दुनिया में पहुँच जाते हैं । ऐसे ही लोककथाओं की सुंदर-सी फुलवारी है चीन का जाल-स्थल- चाइना रेडियो इन्टरनेशनल का हिंदी सेवा (http://in.chinabroadcost.cn/) ।

यूँ तो यह चीन के समृद्ध लोक को प्रतिबिंबित करता हुआ वेबजाल है किन्तु यहाँ चीन की जितनी लोककथायें संजोयी गयी हैं उतनी संख्या में शायद ही किसी देश की लोककथाएँ अन्यत्र किसी वेबजाल पर होगीं । कम से कम हिंदी अनुवाद के रूप में तो यह बात सौ आने खरी उतरती है । यहाँ बाकायदा लोक कथाओं को कई भागों में बाँट कर रखी गयी हैं, इनमें कहावत से जुड़ी कथाएं, पौराणिक कथाएं, नीति कथाएं, दर्शनीय स्थलों से जुड़ी कथाएं, बुद्धि से जुड़ी कथाएं, सैनिक कहानी आदि विभेदों में अर्धशतक से अधिक लोककथायें संग्रहित है । इन कथाओं का बस आप बाँचते जाइये और देखिए आपका मन चीन के समृद्ध अतीत में कैसे विचरण करने लगता है । वही नदी, वही पर्वत, वही पशु-पक्षी वही लोग-बाग और उनसे जुडे मार्मिक और रोचक कथा संसार । कुछ लोककथायें तो वहाँ ऐसी है जिनमें पात्र का भारतीय नामकरण कर दें तो धीरे-धीरे हमारी अपनी लोककथायें स्मृति में उभरने लगती हैं । इससे पता चलता है कि भले ही चीन-भारत का वर्तमान सौहार्दपूर्ण न बन सके पर दोनों का अतीत मानवता के मूल्यों के मामले में कहीं न कहीं एक बराबर सोचते-विचारते थे ।

यह जाल स्थल उन्हें खास तौर पर अपने घेरे में ले सकता है जो चीन के लोक साहित्य के बारे में शोध करना चाहते हैं । प्राचीन काव्य में
प्रतिभाशाली कवि सू शी , महाकवि तु फू , महाकवित ली पाई, चीन के थांग राजकाल की शानदार कविताएं , ग्रामीण जीवन पर लिखने में मशहूर महाकवि थो य्वान मिंग , छ्यु य्वान और उन की कविताएं , चीन का पहला काव्य ग्रंथ यहाँ बडे मजे से संग्रहित किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त नाटककार ली यू और मशहूर नाटककार क्वान हान छिंग का प्राचीन अपेरा साहित्य और फु सुंग लिंग और उन की भूत आत्माओं की कथाएं , पश्चिम की तीर्थयात्रा ,त्रिराज्य की कहानी, लाल भवन सपना जैसे प्राचीन उपन्यास और राजा कसार की जीवनी, चांगर तथा मनास जैसे महाकाव्य भी यहाँ पाठकों को लिये आनलाइन रखे गये हैं । चीन की लोककला, मूर्ति, काष्ठ, तंत्र-मंत्र केंद्रित नृत्यों पर भी रोचक जानकारी यहाँ सहेजी गयी हैं । चीन में परंपरागत कठपुतलियों की प्रदर्शन में छुएनचोउ की कठपुतलियाँ काफी मशहूर हैं और इस की इतिहास लगभग 2,000 वर्ष पुराना है। यहाँ पर कठपुतलियाँ मानव और भगवान के एक दूसरे से मिलते-जुलते रूप जैसी रही है। इस वजह से वे शुरु से ही स्थानीय लोगों के धार्मिक जीवन का एक अभिन्न अंग रही है।

मात्र इतना ही नहीं यहाँ चीन की समृद्ध चीनी परम्परागत खिलौड़ियों की कला, चीनी परम्परागत परिवारिक वास्तुओं की कला, सजावट की कला, वेशभूषा की कला, आदि की व्यापक और संदर्भ सामग्री बिखरी पड़ी है । जिन्हें परंपरागत चिकित्सा पद्धति, परंपरागत औषधियां और विशेषकर एक्यूपंक्चर का विशद् जानकारी हासिल करनी हो उनके लिए यह अपरिहार्य कोष सा है । इन में
अल्पसंख्यक, तिब्बती, मंगोलियाई, वेवूर जाति, कोरियाई ज्वांग जाति, ह्वेई जाति और म्याऔ जाति की परंपरागत चिकित्सा पद्धति विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।

विकिपीडिया(http://hi.wikipedia.org/wiki/) अंतरजाल पर सबसे बड़ा इनसायक्लोपीडिया है । यह विकि तकनीक पर आधारित एक खुली परियोजना है । यहाँ विश्व की कई भाषाओं में निरंतर विकसित हो रही है । हिंदी विकिपीडिया यद्यपि प्रांरभिक दौर में है । विकि तकनीक में पारंगत तथा कंप्यूटर व इंटरनेट कोई भी विशेषज्ञ उपयोगकर्ता हिंदी सहित कई भाषाओं में ज्ञान और जानकारी का आदान-प्रदान कर सकता है । ऐसे ही किसी जानकार और इंटरनेट पर हिंदी लोक को प्रतिष्ठित करने की ललक रखने वाले किसी लोकानुयायी ने महात्मा गांधी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल महात्मा गाँधी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल प्रभृति लोकविशेषज्ञों द्वारा लोकगीतों की टिप्पणियों का समाविष्ट करना शुरू किया है । आशा की जाती है यहाँ जल्द ही व्यापक पृष्ठ जुड़ सकेंगे । संस्कृत का लोकगीत सौंदर्य पर शास्त्री नित्यगोपाल कटारे (http://hindikonpal.blogspot.com/) कहते हैं-

वैभवं कामये न धनं कामये
केवलं कामिनी दर्शनं कामये ।

भारतीय जनपद में हिंदी की विभिन्न बोलियाँ प्रचलित हैं जिनमें अथाह लोकसाहित्य है इनमें से कुछ में अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य भी रचा जा रहा है। लोक साहित्य सहित शिष्ट साहित्य को विकिपीडिया में स्थापित करने का महती कार्य शुरू हो चुका है । यहाँ हिंदीतर प्रदेशों की हिंदी बोलियाँ यथा - बंबइया हिंदी कलकतिया हिंदी, दक्खिनी सहित विदेशों में बोली जाने वाली हिंदी बोलियां खासकर उजबेकिस्तान, मारिशस, फिजी, सूरीनाम, मध्यपूर्व, त्रीनीदाद और टोबैगो, दक्षिण अफ्रीका में प्रचलित हिंदी प्रयोगों के परिप्रेक्ष्य में कार्य होने लगा है ।

- खडिया(www.kharia.org) हिन्दी और अंग्रेजी में एक साथ प्रकाशित भारत की पहली एवं एकमात्र वेबसाइट है । तेलंगा खडिया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र प्यारा केरकेट्टा फाउन्डेशन की इकाई है जो झारखंड की देशज एवं आदिवासी संस्कृति तथा भाषाओं के संरक्षण व संवर्द्धन और विकास के लिये प्रयासरत है। सांस्कृतिक विरासत की रक्षा और सामाजिक पुनर्गठन का सवाल झारखंड के देशज लोगों की मूल चिन्ता है। ग्रेटर झारखंड की लगभग २ करोड देशज एवं आदिवासी आबादी १५ से अधिक भाषाओं क इस्तेमाल करती है। फाउन्डेशन ने भाषा और संस्कृति के सवाल को गंभीरता से लिया है तेजी से विनष्ट होती देशज भाषा संस्कृति के संरक्षण एवं विकास के लिये तेलंगा खडिया भाषा एवं संस्कृति केन्द्र की शुरुआत की है।, सातोःड पत्रिका यहाँ विशेष रूप से पठनीय है । किताबें और आडियों भी यहाँ उपलब्ध है । अखडा झारखंड़ी भाषा की त्रैमासिक पत्रिका है । पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं - वन्दना टेटे ।

भोजपत्र (http://www.bhojpatra.net) देवनागरी प्रयुक्त भारतीय भाषाऑं का एक वेब आधारित साहित्य संग्रह तन्त्र है। यह वेब आधारित विषय-वस्तु प्रबन्धन के लिये विकसित किया गया है इसे देवनागरी प्रयुक्त किसी भी भारतीय भाषाऑं के लिये क्रियान्वयन में लाया जा सकता है। भोजपत्र को भोजपुरी भाषा के लिये यहाँ प्रयोग किया गया है। जल्दी ही इसे हिन्दी के साहित्य संग्रह तन्त्र के रूप में भी क्रियान्वयित किया जाएगा । यह हिंदी के अलावा यह अंगरेज़ी और भोजपुरी भाषा में भी उपलब्ध है । यूनिकोड देवनागरी आधारित भोजपुरी विषय-वस्तु प्रबन्धन तन्त्र भोजपत्र पर गुणवत्ता परक गद्य व पद्य में लोकप्रिय पारम्परिक लोकोक्तियाँ, उपदेशपरक दोहा व चौपाई,विधा में रचना जमा किया जा सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में यह लोक केंद्रित लेखन से संबंद्ध लोगों, संगठन के लिए भी आकर्षण और प्रेरणास्पद है । काश, छत्तीसगढ़ी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाने वालों भी समझ में आती कि ऐसे जाल स्थलों के द्वारा विश्व के छत्तीसगढी भाषियों को एक मंच पर जोड़ा जा सकता है ।

ख़जाना (www.khazana.com/et/) में भारत, इंडोनेशिया, नेपाल, थाइलैंड के लोककला की ढे़र सारी सामग्रियों का बेचने के लिए सजाया गया है । जिन्होंने गोपीचंद का इकतारा और मीरा का इकतारा जीवन में न देखा हो वे यहाँ चित्र ही देखकर बिना उसे अपने लिए सेव किये नहीं रह सकते हैं । कंपनी को साधूवाद दीजिए कि उसके लोक कलात्मक वस्तुओं का विस्तृत जानकारी भी यहाँ जुटा रखी है । और हाँ खरीदने के लिए जेब में क्रेडिट कार्ड हो तो क्या कहने । ऑनलाईन आदेश दिया और पैकट आपके घर के पते पर । ऐसा ही एक वेबजाल है – सालिनीक्रॉफ्ट जहाँ लोक कलात्मक चीजों का संग्रह है ।

हिंदी की पहली वेबसाइट होने के वाबजूद पोर्टल
वेबदुनिया(www.webdunia.com) में लोक सामग्री के प्रति खास लगाव अभी तक नहीं झलक सका है । वहाँ साहित्य खंड के अंतर्गत ‘लोक-साहित्य’ के नाम पर कुल 12 सामग्री हैं- सुग्गा और अमृत फल (लोककथा- मिथिलेश्वर), घोड़िया बोली के लोकगीत (उत्तम एल. पटेल), बुंदेली वैवाहिक पंरपराएँ (आलेख- सुधा रावत), भारतीय लोक जीवन-दर्शनः सैद्धांतिकी की तलाश(आलेख- ब्रदीनारायण), स्वाधीनता आंदोलन में भीलों का योगदान (आलेख- रमेश चंद्र बडेरा), संथाली प्रेम गीत (अनुवाद- रमणिका गुप्ता), भाषा, लोक और काव्य (आलेख- शैलेन्द्र चौहान), हो जाति के लोक गीत (आलेख- डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद), आदिवासियों के लोकगीत (आलेख- आत्माराम जाधव) आदि।


यूँ तो प्रभासाक्षी, क्षितिज (उत्तरी अमेरिका की हिंदी पत्रिका), शब्दांजलि, भारत दर्शन(न्यूजीलैंड़), अभिव्यक्ति(यू.ए.ई.) सहित कई वेबपोर्टलों में कुछ न कुछ ऐसी सामग्री जरूर मिल जायेगी जिसे हम लोक-केंद्रित कह सकते हैं पर लोक पर आधारित ऐसी कोई पोर्टल अब तक हिंदी में नसीब नहीं हो सका है। पर सृजनगाथा में लोकआलोक स्तम्भ में नियमित स्तरीय सामग्री दी जा रही है जिसमें अनेक शोध पूर्ण लेखों के अलावा पद्मा सचदेव का आलेख सहित प्रसिद्ध लोकशास्त्री डॉ. श्यामसुंदर दुबे का साक्षात्कार आदि को भी महत्वपूर्ण मान सकते हैं । इतना ही नहीं इसमें नियमित रूप से छत्तीसगढ़ी सहित अन्य लोकभाषाओं की कविताएँ भी विश्व के पाठकों को उपलब्ध करायी जा रही है । बिलकुल हाल में ही छत्तीसगढ़ से पत्रकार सुनील कुमार ने अपनी “इतवारी अख़बार” (www.itwariakhbar.com)नामक साप्ताहिक पत्रिका का वेबजीन संस्करण भी प्रांरभ किया है । यहाँ लोककथाओं को भी स्थान दिया जा रहा है ।


भोजपुरिया डॉट कॉम का जिक्र करना यहाँ समीचीन होगा पूर्णतः लोकभाषा - भोजपुरी साहित्य, कला, गीत, संगीत, तीज-त्यौहार, परंपराओं के लिए चर्चित है । भोजपुरी के अनुयायियों की एक बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए वे भोजपुरी आधारित वेबसाइटों की संख्या बढ़ाने में समस्त भारतीय लोकभाषाओं को कब से पीछे छोड़ चुके हैं । वे जिस हालत में हैं, जिस देश हैं, लगातार अपनी मातृभाषा की समृद्धि के लिए कटिबद्ध नज़र आते हैं । इसी कटिबद्धता का परिणाम है- भोजपुरी.कॉम , अँजोरिया.कॉम , भोजपुरिआ.कॉम , लिट्टीचोखा.कॉम , भोजपत्र.नेट आदि वेबसाइट, जो देवनागरी लिपि में हैं ।भोजपुरिया.कॉम, भोजपुरीसिनेमा.कॉम, भोजपुरीशादी.कॉम, भोजपुरीफिल्म.कॉम, भोजपुरीदुनिया.कॉम, भोजपुरीफिल्मएवार्ड्स.कॉम, भोजपत्र.कॉम, भोजपुरिहा.कॉम, भोजपुरी.इन , भोजपुरिआ.इन , भोजपुरिआ.इन्फो, भोजपुरीवर्ल्ड.कॉम लिट्टी-चोखा.कॉम, भोजपुरीपत्रिका.कॉम , भोजपुरिहाफिलिम.कॉम , भोजपुरीसिनेमा.को.इन आदि रोमन लिपि में हैं । ये साइट उन प्रवासियों के लिए वही आस्वाद जगाती है जो देवनागरी लिपि में लिख-पढ़ नहीं सकते हैं

व्यक्तिगत प्रयासों की क्षीण रेखा

कंप्यूटिंग और इंटरनेट पर अंगरेज़ी भाषा की अनिवार्यता के छद्म प्रेरित सबसे बड़ी हानि है वेबजाल लेखन पर शहर-नगर निवासियों का ही आकर्षित हो पाना । फलतः दो-
चार जो भी हिंदी लेखन से जुड़े उन्होंने स्वयं को लोककथा तक ही सीमित कर लिया । निजी वेबजालों में एक भी ऐसा नहीं है जहाँ लोककथाओं के अलावा कोई सार्थक सामग्री हो । बहरहाल रचनाकार वेबतकनीक के चर्चित-पुरस्कृत विशेषज्ञ और तकनीक विषयों के लेखक रवि श्रीवास्तव का निजी ब्लॉग है जो पत्रिका के रूप में संचालित होता है । यहाँ भी लोककथाओं को बानगी के तौर पर रखा गया है । रतलाम के ही निवासी हितेंद्र सिंह ने अपने
ब्लॉग (एचएसआनलाइन) में विभिन्न प्रांतों की लोककथाओं को संग्रहित करने का उद्यम शुरू किया है । फिलहाल तो यहाँ शिवसहाय चतुर्वेदी, लक्ष्मीनिवास बिडला, श्यामाचरण दुबे, चंद्रशेखर, और भगीरथ कानोडिया जैसे नामी लोगों की संग्रहित लोककथायें रखी जा सकी है जिसमें बुंदेलखंडी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवा की क्रमशः बुद्धि बड़ी या भैंस, चोर और राजा, भाग्य की बात, सवा मन कंचन, आदि लोककथायें प्रमुख हैं । संस्कृत का एक लोकगीत का जिक्र किये बिना रहा नहीं जाता । इसके लिए ब्लॉग हिंदीकोणपल (http://hindikonpal.blogspot.com) पर खंगालना पडेगा । उधर काव्यकला (http://kavyakala.blogspot.com/-) में भी दो लघुकथायें हैं ।


मासिक वागर्थ डॉट कॉम में भी दो-चार लोककथायें पढी जा सकती हैं किन्तु यह पत्रिका प्रिंट में ज्यादा लोकप्रिय है । इस साइट के साथ अड़चन है कि भारतीय भाषा परिषद कोलकाता के जमे-जमाये सांगठनिक ढाँचा के बावजूद यह नियमित नहीं नज़र नहीं आता । सृजन-सम्मान नामक छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक संस्था ने छत्तीसगढ़ी भाषा के एक संपूर्ण उपन्यास ‘पछतावा’ (http://sonijr.blogspot.com/2006/08/blog-post.html)
को आनलाईन स्थापित किया है । यह किसी भी भारतीय लोकभाषाओं में अंतरजाल पर स्थापित पहला उपन्यास है ।


अंगिका भारतवर्ष के अंग-देश की भाषा रही है । आज भी तीन राज्यों- बिहार (भागलपुर, मुंगेर, बाँका, लखीसराय, शेखपुरा, कटिहार, पुर्णिया, खगङिया, बेगूसराय, सहरसा, मधेपुरा, अररिया, किसनगंज और सुपौल जिले ), झारखंड ( साहेबगंज, गोड्डा, दुमका, देवघर, पाकुङ, गिरीडीह और जमुई जिले ) और पश्चिम बंगाल ( मालदह जिला ) तथा नेपाल, कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया और अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के 5 करोड़ आबादी की मातृभाषा है जिसमें से 3 करोड़ सिर्फ भारत में ही रहते हैं । दुखद यह कि 5करोड़ मातृभाषियों की प्रतिनिधित्व करने वाली एकमात्र वेबसाइट है –
अंगिका (http://www.angindia.com/)। इस वेब-साइट के पृष्ठ पटलों पर अंग और अंगिका के विभिन्न पहलुओं की विस्तार से चर्चा की गई है इसमें अंगिका लोक साहित्य के व्यापक संदर्भों के अलावा खेती-बारी, भैंसा संबंधी बातों को भी समोया गया है जो काफी रोचक और अनूठा बन पड़ा है ।

यह सिद्ध है कि वेबमीडिया में लोक की दुनिया लगातार समृद्ध होती जा रही है । मैं यह भी मानता हूँ कि संपूर्ण को खंगाल पाना दुष्कर-कार्य भी है अतः यह मात्र एक बानगी ही है । जो भी हो, इंटरनेट मीडिया में लोक से जुड़ी सभी विधाओं - गीत, संगीत, साहित्य- लोक गीत, गाथा, कहावत, हाना, मुहावरा, किवंदती, साक्षात्कार, लोकद्रव्य, लोकचित्र, फिल्म, आदि निरंतर प्रतिष्ठित होते जा रहे हैं । और वेबमीडिया में लोक की प्रतिष्ठा का प्रश्न लोकआश्रितों अर्थात् कलाकारों के रातों-रात हीरो बन जाने से भी जुड़ सकता है । शोध, अध्ययन, और लोक संरक्षण से इसका मतलब तो है ही । सबसे बड़ी बात कि वैश्वीकरण के लाख बुराईयों के बाद भी हिंदी का मन लोक विहीन नहीं हो सकता है । हिंदी जहाँ तक और जब बची रहेगी लोक की दुनिया भी जुगुर-जागर करती रहेगी ।
जयप्रकाश मानस
संपादक, सृजनगाथा डॉट कॉम
रायपुर, छत्तीसगढ़
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