किसी शोधार्थी की नज़रों से 1000 कविताओं वाली किताब या पांडुलिपि कदाचित् न गुजरी हो पर हिंदी की दीवानगी से यह भी सहज और संभव हो चुका है । सच तो यह है कि प्रिंट मीडिया में नवीनतम तकनीकी की उपस्थिति के वाबजूद इतनी संख्या में कविताओं को एक कृति में अब तक नहीं समेटा जा सका था परंतु इसे 21 वीं सदी की चमत्कारिक प्रौद्योगिकी यानी अंतरजाल(Internet) के सहारे पाँच सदस्यों की टीम ने सफल कर दिखाया है । इस ऐतिहासिक सफलता का नाम है – कविता कोश । ललित कुमार जैसे समर्पित कंप्यूटर इंजीनियर और हिंदीसेवी के संयोजन में अपनी स्थापना के चंद माहों के भीतर ही एक हजार से अधिक कविताओं को प्रतिष्ठित किया जा चुका है । हिंदी कविता प्रेमियों और हिंदी के शोधार्थियों के लिए यह खास खुशख़बरी हो सकती है कि हजारों-हजार कविताओं को पढ़ने के लिए न उन्हें कविता संकलनों की खरीदी पर खर्च करना पडेगा और न ही उन्हें एकत्रित करने के लिए किसी धूल भरी लायब्रेरी की तलाश में भटकते रहने के लिए किसी प्रकार की मशक्कत करनी पडेगी । सारी की सारी कविताएँ ऑनलाइन हैं जिनका रसपान बड़ी सहजता से किया जा सकता है । हिंदी के कवि और कविता से संदर्भित किसी कोण से यदि पीएच.डी लेनी हो तो बरोकटोक प्रिंट लिया जा सकता है । यहाँ 15 दिसम्बर 2006 तक 1000 हिंदी कविताएं ऑनलाइन सजायीं जा चुकी हैं, यह कार्य अनवरत जारी भी है । यदि आप कविता कोश दल की योजना और दावे पर सहज विश्वास करें तो कविता कोश में आने वाले कुछ ही माहों में आपको हिंदी की 10,000 कविताएँ सजी मिलेंगी । कल्पना कर सकते हैं कि इस वेबजाल पर आने वाले सालों में हिंदी की कितनी कविताएं होगीं और जिसे देखकर कोई भी साहित्य प्रेमी लगभग आर्कमिड़ीज की तरह मुदित होकर क्या कह न उठेगा -हिंदी कविता का महासागर ।
कविता कोश एक तरह से इंटरनेट पर हिदीं कविताओं का पहला सुगठित, विश्वसनीय और वृहत कोश है । अब तक तथाकथित कोश के नाम पर इंटरनेट पर जितने भी वेबसाइट संचालित हैं वे या तो रोमन लिपि में हैं या फिर उन कविताओं का चयन संबंधित वेब-जाल स्वामी की व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर रहा है । अर्थात् वे हिंदी कविता के व्यापक फलक को स्पर्श करने में असमर्थ रहे हैं और जो कुछ विस्तृत तथा आकर्षक हैं पर वे देवनागरी लिपि में पढ़ने का आनंद-अवसर उपलब्ध कराने में असमर्थ वेब-पृष्ठ हैं । यानी कि वहाँ हिंदी कविता पढ़ने का आस्वाद नहीं मिल सकता । इन वेबसाइटों में विकिपीडिया (इनसाइक्लोपीडिया)http://sa.wikipedia.org/wiki/index/ भी सम्मिलित है जहाँ हिंदी साहित्य के निर्धारित काल क्रम में कुछ कवियों को चिन्हाँकित तो किया गया है किन्तु कुल मिलाकर वह नौसिखिये के काम जैसा ही प्रतीत होता है, क्योंकि यहाँ आधुनिक काल के कवियों की सूची में भारतेंदु हरिश्चंद्र, निराला, पंत, महादेवी वर्मा, अज्ञेय, दिनकर आदि कुल 27 कवियों के साथ गोपाल दास नीरज, अशोक चक्रधर, यश मालवीय और सोम ठाकुर जैसे बिलकुल समकालीन और मंचीय कवियों को भी अभी से जोड़ दिया गया है । यह अज्ञानता नहीं है, यह वरिष्ठतम् और स्थापित कवियों का अपमान भी नहीं है किन्तु अपितु इंटरनेट पर हिंदी काव्य को स्थापित करने वाले महाशय के व्यक्तिगत मोह का परिणाम जरूर है । यह मंचीय कवियों के नाम पर बजायी जाने वाली भोथरी तालियों का ही जादू है जो इंटरनेट पर काम करने वाले शहरी लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है । क्योंकि हिंदी काव्य के गंभीर ही नहीं बल्कि मेट्रिक में पढ़ने वाले किसी छात्र से भी पूछेंगें तो वह आधुनिक काल के 27 कवियों में इन्हें सम्मिलित नहीं करेगा । इसका निहितार्थ कदापि इनके कवि नहीं होने पर नहीं समझा जाय पर काल-क्रम भी तो कोई चीज़ होती है । खैर.......
कविता कोश की सबसे बड़ी विशेषता है उसका खुलापन । खुलापन का आशय – कोई भी विकि तकनीकी में दक्ष एवं हिंदी कविता का ज्ञाता इसमें शामिल हो सकता है । यद्यपि वह कोश में संपादन, तकनीक, वर्तनी संशोधन एवं नीति निर्धारण से संबंधित कार्यों में दखल नहीं दे सकता किन्तु कविता उपलब्ध कराने, किसी खास कवि और उसकी किसी कविता की अनुशंसा करने में खुलकर सहयोग कर सकता है । ऐसे योगदान का उल्लेख बाकायदा वेब-पृष्ठ पर की जाती है । इंटरनेट की विकी तकनीक का लाभ यह है कि कोई भी व्यक्ति कोश में नई रचनाएँ जोड सकता है या पहले से उपलब्ध रचानाओं में वर्तनी आदि त्रुटियों को सुधार सकता है। कविता कोश से जुड़ने के लिए किसी प्रकार की सदस्यता की भी जरूरत नहीं है वह केवल अपने सहयोगात्मक रुख से सदस्य बन सकता है । अपने व्यवहारिक अर्थों में यह हिंदी जगत् का अनूठा सहकारी प्रयास है । खुलापन का आशय यह नहीं है कि कहीं भी ठसने की फिराक में रहने वाला कोई कवि यहाँ अपनी कविता ठेल सकता है । क्योंकि हिंदी इंटरनेट की दुनिया भी ठीक वैसी है जैसे हिंदी प्रिंट और मंचीय भांडों की दुनिया । कहना प्रासंगिक होगा कि हिंदी काव्य का सत्यानाश करने में जितना हाथ उसके पाठकों और अकादमिक कवियों का नहीं है उतना हाथ मंचीय कवियों का है जिन्होंने हिंदी कविता को चुटकुला और फूहड़ व्यंग्योक्ति बना दिया है । ऐसे कवियों को यहाँ भी प्रतिबंध लगाना चाहिए, जिसका खतरा नीति के अनुसार दूसरे चरण में हो सकता है । वैसे इंटरनेट पर हिंदी कविता की श्रीवृद्धि के नाम पर कुछ ऐसे भोथरे लोग भी अपनी दुकानदारी चला रहे हैं जिन्हें कविता का 'एबीसीडी' भी नहीं आता । भले ही वे स्तरीय कविता के नाम पर चार पंक्ति भी ठीक से नहीं लिख सकते हैं किन्तु उनका दावा कम से कम अकादमिक लोगों को हास्यास्पद लग सकता है कि वे इंटरनेट के माध्यम से सारी दुनिया के लोगों को हिंदी कविता लिखना सीखा रहे हैं । उन्हें मुगालते पालने में नहीं रोका जा सकता है कि हिंदी की श्रीवृद्धि का पवित्र कार्य कर रहे हैं । बलिहारी हो ऐसे मंचीय आत्मा से अनुप्राणित कवियों की, और बलिहारी हो ऐसे शिष्यों की भी । यदि ये इंटरनेट पर सवार होने के नाते स्वयं को वैश्विक हिंदी कविता के स्वामी मान बैठे हैं तो बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं, क्योंकि भाषा सिखायी जा सकती है कविता नहीं, और कोई भाषा मात्र विशाल आकार किन्तु थोथों पन्नों से नहीं अपितु कम किन्तु भविष्योन्मुखी पृष्ठों से समृद्ध होती है । अभी तक तो कविता कोश ऐसे महामानवों से सुरक्षित है । विश्वास किया जा सकता है और कामना भी कि भविष्य में भी इन नौसिखियों और काव्य कीटों से मुक्त होकर पुष्पित-पल्लवित होता रहेगा । यह तो सभी को ज्ञात ही है कि जो भी लिख दिया जाय वह कविता नहीं होती । आखिर कुछ तो फर्क होती है कविता में और कथन में । ज्यादा कुछ कहना विषयांतर होना होगा, सो सीधे मूल प्रसंग पर लौट आते हैं ।
अंतरजालीय-हिंदी अभी कमोवेश बालपन से गुजर रही है । अंतरजाल पर हिंदी के ख्यातिलब्ध बुजुर्ग पीढ़ी और समकालीन साहित्य में चर्चित और समर्पित रचनाकारों की उपस्थिति अभी तक प्रिंट मीडिया के समानांतर संभव नहीं हो सकी है । कारण चाहे जो भी रहे हों पर यह वास्तविकता है जबकि अंतरजाल पर हिंदी में काम करने के सारे औजार(Tools) विकसित हो चुके हैं । और वे कारगर भी हैं । सबसे खुशी यह कि हिंदी में काम करने के लिए अंगरेज़ी सहित किसी परदेशी भाषा में पांरगत होने की लाचारी भी अब समाप्त हो चुकी है । ऐसे में वैश्विक क्षितिज पर हिंदी को विश्वविजयी देखने के स्वप्नदर्शी और समर्पित काव्यरसिकों तथा कवियों के लिए यहाँ अपने योगदान को रेंखांकित करने का अच्छा अवसर है बशर्ते कि वे युनिकोड़ फोंट को लेकर कंप्यूटर पर बुनियादी काम करना जानते हों । एक हिंदी प्रेमी का परिचय देते हुए वे कविता कोश में पूर्व निर्धारित सूची अनुसार किसी कवि की महत्वपूर्ण कविता रख सकते हैं । किसी छूटे हुए खास कवि और कविता का नाम सूझा सकते हैं । पूर्व से संधारित कविता में लिपिकीय त्रुटि सुधार सकते हैं । परंतु इसके लिए उन्हें वर्तनी संबंधी नियमों का सहारा लेना होगा, जिसके नियम भी साइट पर ही अंकित है । खास तौर पर ऐसे लोगों के लिए साइट में – “कविता कोश में योगदान कैसे करें?” “कविता कोश में कविताओं को जोड़ने का तरीका”, “कविता कोश के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न”, “सक्रिय प्रोजेक्ट्स की सूची”, “वर्तनी नियम”, “कविता कोश टीम की सदस्यता” सहित “कविता कोश की नीतियाँ” आदि स्तम्भें दी गई हैं, जिससे सम्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है । यह भी कहना प्रासंगिक होगा कि कविता कोश के परिप्रेक्ष्य में किसी भी चर्चा के लिए "कविता कोश ” नामक समूह भी विकसित किया गया है । यह कविता कोश संचालन परिवार के साथ-साथ अन्य हिंदी भाषा सेवियों के लिए भी स्वागतेय कदम है । जो विकि तकनीक में पारंगत नहीं है वे वे केवल युनिकोडित फोंट में टाइप कर रचना ई-मेल से भेज सकते हैं । जो कंप्यूटर पर युनिकोडित फोंट पर टाइप करना नहीं जानते तो किसी भारतीय सदस्य के पास डाक से भी रचना भेज सकते हैं । चाहे किसी भी रूप में, इससे जुड़ना निश्चित ही उस स्वप्न को साकार करने में योगदान देना है जिसमें इंटरनेट पर हिंदी की स्थिति को प्रथम स्थान पर प्रतिष्ठित करने जैसी नेक भावना सर्वोपरि है । जैसा कि कविता कोश के संस्थापक और वर्तमान में एडिनबर्ग, स्काटलैंड में अध्ययनरत ललित कुमार के साथ ह्यूस्टर, अमेरिका से आईटी विशेषज्ञ मितुल, यूएई से पूर्णिमा वर्मन, दिल्ली से इंजीनियरिंग छात्र दीपक मोदी, रायपुर, छत्तीसगढ़ से स्वयं मैं आदि भौगोलिक दूरी के बावजूद बड़ी आत्मीयता से कविता कोश में हाथ बँटा रहे हैं ।
यद्यपि कविता कोश में कतिपय महत्वपूर्ण कवियों की अनुपस्थिति को लेकर हिंदी कविता के गंभीर अध्येताओं को आपत्ति हो सकती है कि तथापि हिंदी कविता के शिल्पियों की लंबी फेहरिस्त को देखते हुए उन्हें अवश्य संतोष हो सकता है कि प्रथम चरण में इतने सारे कवियों और उनकी कविताओं को खोज निकालना कम चुनौती नहीं रहा होगा, और कम श्रमसाध्य कर्म भी नहीं । यूं तो हिंदी कविता की सुदीर्घ परंपरा रही है । हर काल और वाद के सैकडों नामचीं कवि हुए हैं जिन्हें इस कोश में होना ही चाहिए । और जैसा कि कविता कोश की नीति में कहा गया है कि – “प्रथम चरण में केवल अपेक्षाकृत अधिक प्रतिष्ठित कवियों की रचनाओं का संकलन किया जाएगा। कौन कवि कितने प्रतिष्ठित हैं या थे - इस बात का कोई पैमाना सोचना बडा मुश्किल है क्योंकि प्रतिष्ठा सापेक्षिक और व्यक्तिगत होती है। इसलिये यह तय किया गया है कि इस चरण में मुख्यत: केवल उन रचनाकारों को सम्मिलित किया जाएगा जिनकी कविताएँ पाठ्यपुस्तकों में छप चुकी हैं। पहला चरण कोश में कम से कम 5000 कविताओं के इकठ्ठे होने तक चलता रहेगा।” यह दूसरी बात है कि यदि आप इस नीति पर गंभीर हो जायें तो कविता कोश के पहले चरण में आपको कुछ ऐसे नाम भी मिलेंगे जिनकी कविता कहाँ और किस पाठ्यक्रम में पढ़ायी जाती है, कोई पता नहीं है ? पर इतनी तो छूट दी ही जा सकती है कविता कोश को शुरुआती दौर में ।
फिलहाल कविता कोश में कविताओं का क्रम कवि की रचनात्मक प्रतिष्ठा, उसकी वरिष्ठता या काल तथा हिंदी कविता के कालों या प्रचलित वादों या आन्दोलनों के आधार पर नहीं अपितु वर्णमाला के आधार पर (alfabaticly) रखा गया है । यह कविता तलाशने वालों के लिए सुविधाजनक भी है । इस प्रकार अब तक जिनकी कविताएं प्रतिष्ठित हो चुकी हैं उनमें हैं - अटल बिहारी वाजपेयी, अज्ञेय, अमरनाथ श्रीवास्तव, अमीर खुसरो, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, अशोक चक्रधर, अशोक वाजपेयी, इसाक अश्क, उमाशंकर तिवारी, उमाकांत मालवीय, उर्मिलेश, ओम प्रकाश चतुर्वेदी 'पराग, कन्हैयालाल नंदन, कबीर, कमलेश भट्ट 'कमल', काका हाथरसी, किशोर काबरा, कीर्ति चौधरी, कुमार रवींद्र, कुंवर नारायण, कुँवर बेचैन, केदारनाथ अग्रवाल, कैफ़ी आज़मी, कैलाश गौतम, गजानन माधव मुक्तिबोध, गिरिजाकुमार माथुर, गुलज़ार, गुलाब खंडेलवाल, गोपालदास "नीरज", गोपाल प्रसाद व्यास, गोपाल सिंह नेपाली, गोरखनाथ, चंद बरदाई, चंद्रसेन विराट, जयशंकर प्रसाद, डॉ॰ जगदीश व्योम, जयप्रकाश मानस, डा तारादत्त निर्विरोध, तुलसीदास, द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी, दुष्यंत कुमार, धर्मवीर भारती, नईम, नरेश मेहता, नरेन्द्र शर्मा, नरोत्तमदास, नागार्जुन, निदा फ़ाज़ली, निर्मला जोशी, नेमिचन्द्र जैन, डॉ.पदुमलाल पन्नालाल बख्शी, प्रदीप, प्रभाकर माचवे, बशीर बद्र, बिहारी, भगवतीचरण वर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, भारतभूषण अग्रवाल, भारतेंदु हरिश्चंद्, मलिक मोहम्मद जायसी, मलूकदास, महेश अनघ, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मीराबाई, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, मुकुटधर पांडेय, मुकुट बिहारी सरोज, यश मालवीय, रघुवीर सहाय, रमानाथ अवस्थी, रसखान, रहीम, राजी सेठ, रामावतार त्यागी, रामकुमार वर्मा, रामधारी सिंह "दिनकर", राम प्रसाद बिस्मिल, राम विलास शर्मा, राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर', रामानुज त्रिपाठी, रैदास, विद्यापति, विष्णु विराट, वीरेंद्र मिश्र, श्यामनन्दन किशोर, श्यामनारायण पाण्डेय, शमशेर बहादुर सिंह, शहरयार, शांति सुमन, शिवमंगल सिंह सुमन, सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला", सुमित्रानंदन पंत, सुभद्राकुमारी चौहान, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, सोहनलाल द्विवेदी, सुकीर्ति गुप्ता, सुदर्शन फ़ाकिर, सूरदास, सूर्यभानु गुप्त, सोम ठाकुर, हरिवंशराय बच्चन, त्रिलोचन शास्त्री, श्रीकांत वर्मा, श्रीकृष्ण सरल । इसके अलावा कुछ ही दिनों में यहाँ दो-ढाई सौ ख्यातिलब्ध और प्रतिष्ठित ग़ज़लकारों की ग़जलें भी पढ़ने को मिलेगी, जिसका श्रीगणेश हो चुका है । सब कुछ सकारात्मक गति से चलता रहा तो इस रूप में ग़ज़ल के विकास-क्रम को भी आसानी से समझा जा सकेगा है । हाँ, पाठ्यक्रम वाली शर्त की शिथिलता के साथ, क्योंकि (समग्र रूप से) कम से कम हिंदी के पाठ्यक्रमों में ग़ज़लों के प्रति सकारात्मक नज़रिया अभी प्रतीक्षित है ।
यदि मैं अपनी भावना का स्थानीयकरण करके कहूँ तो पहले चरण में छत्तीसगढ़ के 4 पुरोधाओं को यहाँ समादृत किया गया है । ये हैं – छायावाद के संस्थापक कवि पद्मश्री मुकुटधर पांडेय, सरस्वती के संपादक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, कविता के ख्यातिलब्ध नाम श्रीकांत वर्मा । द्वितीय चरण में राज्य के ऐसे खास कवियों को भी यहाँ पढ़ने का अवसर मिल सकेगा जिन्हें पढ़कर वास्तव में उनके कवि सहित (वादरहित)इंसान होने का भी प्रमाण मिलता रहा है । इस नज़रिये से अन्य प्रदेश के साहित्यिक संगठनों को भी सोचने से कोई बुराई नहीं । जो स्थानीयता का सम्मान नहीं कर सकता वह विश्व का भला क्या सम्मान कर सकेगा । प्रगतिशीलता में गति नहीं तो वह कैसी प्रगति ? चलिए फिर लौटते हैं केंद्रीय विषय पर ।
कविता कोश में बोनस के तौर पर कई कवियों का जीवन-परिचय भी दिया गया है । यदि धीरे-धीरे सभी कवियों का जीवन-परिचय भी यहाँ समादृत किया जा सके तो निश्चित ही इस ऐतिहासिक कार्य के लिए भी यह साइट जाना जायेगा । सुना है दिल्ली के 'आलेख प्रकाशन' के मुखिया और संपादक उमेशचंद्र अग्रवाल भी इस दिशा में आगे बढ़ते हुए विश्व के कवियों, रचनाकारों का बायोडेटा अंतरजाल पर ला रहे हैं । परन्तु उनके प्रस्ताव में रचनाकार को अपना अर्थशास्त्र भी समझना पडेगा । बहरहाल आज की तारीख में ही कविता कोश के इस कार्य की महत्ता बतायें तो हम कह सकते हैं कि हिंदी के लघु-पत्रिका के संपादकों के लिए यह अनुपम बन चुका है जहाँ से मनोच्छित कविताएं प्रकाशनार्थ, संदर्भार्थ चयन की जा सकती हैं । हाँ, कविता के अध्येताओं और शोध-वृत्तियों से जुड़े लोगों को भविष्य में ऐसी सूची की प्रतीक्षा भी रहेगी जो हिंदी कविता के मानक काल, वाद, आंदोलनों और प्रवृतियों पर केंद्रित रहे और यदि ऐसा हो सका तो किसी भी विश्वविद्यालय के हिंदी या भाषा विभाग को इसे अपना संदर्भ ग्रंथ के रूप में मान्यता देने में कोई गुरेज़ नहीं होगा । कविता कोश के वर्तमान स्वरूप और रचनाओं के वर्गीकरण को लेकर यह प्रश्न भले ही कोई उछाल सकता है कि यहाँ कविताओं को विधात्मक चरित्र (कविता, गीत, दोहे, सोरठा, ग़ज़ल, मुक्तक, हाइकु आदि) के आधार पर रखा जाना चाहिए । पर इसके लिए कविता कोश में जुटे भाषासेवियों की कठिनाईयों पर भी गौर करना चाहिए ।
कविता कोश में विभिन्न कवियों की सिर्फ फूटकर कविताएँ ही नहीं हैं, वहाँ हिंदी के महत्वपूर्ण कवियों की चर्चित कविता किताबों, संग्रहों, खंडकाव्यों आदि को प्रतिष्ठित किया जा रहा है । अब तक जिन किताबों को पूर्णतः ऑनलाइन किया जा चुका है वे हैं- मैथिली शरण गुप्त जी की सैरन्धी (खंडकाव्य), साकेत (प्रथम सर्ग) और नरोत्तम दास का सुदामा चरित । यहाँ आने वाले दिनो में अन्य महत्वपूर्ण कृतियों भी संपूर्णतः ऑनलाइन मिल सकती हैं । इसमें कबीर, तुलसी, निराला, पंत, महादेवी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, मुकुटधर पांडेय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, श्रीकांत वर्मा आदि की चर्चित कृतियाँ सम्मलित हैं । कविता कोश के वेब-पृष्ठों पर कई कवियों की ऐसी कविताएं भी जुटायीं जा चुकी हैं जो आम पाठक के लिए सहजता से उपलब्ध नहीं होती । इसमें से कुछ तो अब तक अप्रकाशित भी रही हैं । यह अक्सर होता है कि हमारे किसी प्रिय कवि की कोई खास कविता ढूँढने पर भी नहीं मिलती और हम मन मसोसकर रह जाते हैं । आम पाठक ही क्यों, समकालीन साहित्यिक बिरादरी भी इस कदर स्वकेंद्रित हो चुकी है कि वह अब धीरे-धीरे हिंदी साहित्य के स्वर्णकाल यानी भक्तिकाल और रीतिकाल के कवियों को लगातार भूलते जा रही है । इधर कई नामवर आलोचक उन कविताओं को खारिज़ करते चले जा रहे हैं । उन कविताओं में उन्हें नानाभाँति बुराईयाँ नज़र आती हैं । ऊपर से प्रौद्योगिक युग की मार और नई पीढ़ी में कविता या साहित्य जैसे विषय के प्रति घटती अभिरुचि । ऐसे दौर में वीरगाथा काल सहित हिंदी के तमाम महत्वपूर्ण कवियों को यहाँ पढ़ना कविता के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना भी है, जिसके लिए कविता कोश को निश्चित ही साधुवाद दिया जाना चाहिए । साधुवाद इसलिए भी कविता कोश में वह जबाब भी छिपा हुआ है जिसके लिए प्रश्न किया जाता है कि कविता संग्रह खरीदने के लिए रुपए कहाँ से आयेंगे ? कविता कोश उन प्रकाशकों के शातिराने अंदाज वाली कथन का भी मुँहतोड़ जबाब हो सकता है जिसमें कहा जाता है कि कविता संग्रह बिकती नहीं है, तो छापें कैसे ? मत छापिए, कविता कोश जो है अब उनके लिए ।
कविता कोश में किसी कवि की कविता सम्मिलित होना अपने आप में आत्मतोष का भी विषय हो सकता है क्योंकि यह मुक्त या निजी वेबसाइट नहीं अपितु इंटरनेट पर सर्वाधिक चर्चित और देखी जाने वाली साइट-विकीपीडिया (मुक्त इनसाइक्लोपीडिया) द्वारा उपलब्ध करायी गई जालस्थल सेवा का अहम् हिस्सा है जो ललित कुमार की सुदीर्ष सोच का परिणाम है । कविता कोश को देखकर उसके विकिपीडिया का हिस्सा होने का भ्रम जरूर हो सकता है पर यह विकिपीडिया परियोजना का हिस्सा नहीं है । इस मायने में यह न केवल हिंदी कविता के शोधकर्ताओं के लिए बल्कि आम इंटरनेट उपयोग कर्ताओं के लिए आकर्षक साइट है । यही कारण है कि कई कवि यहाँ स्वयं को देखने के अभिलाषी हो सकते हैं और वे अपनी कविता भी भेजे जा रहे हैं और उन्हें द्वितीय चरण में सम्मिलित करने की आवश्यक तैयारी भी की जा रही है ।
कविता कोश में मात्र कवियों की ख्यातिप्राप्त कविताएं ही नहीं है, वहाँ कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी रखी गयीं हैं । इस क्रम में हम हिंदी काव्य छंद नामक सूचनात्मक लेख और नई घटनाएं जैसे स्तम्भों का भी जिक्र कर सकते हैं । पर यह कम से कम मेरे समझ से परे की बात है कि नई घटनायें के नाम पर क्यों किसी एक ही व्यक्ति को इतना महत्व दिया जा रहा है । यह न तो प्रजातांत्रिक है न ही अन्य पाठकों के लिए रुचिकर । यहाँ कई ऐसे सांस्कृतिक समाचार भी दिये गये हैं जिनका स्थानीय मूल्य के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई महत्व नहीं है । ऐसी लोकप्रियता से बचने में ही हिंदी के अतरराष्ट्रीय चरित्र का विकास हो सकता है । भारत के कई शहर, गाँव ऐसे हैं जहाँ हर दिन कोई न कोई सांस्कृतिक घटनाएं होती रहती हैं पर इसका मतलब यह तो नहीं कि सभी को कविता कोश जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रकृति वाले जाल-स्थल को ही रखा जाये । इन्हें भी अन्य वेबजालों का लिंक बताया जाना चाहिए । होना तो यह चाहिए कि यहाँ सिर्फ कविता या कवि से जुड़ी सास्कृतिक घटनाएं ही दें । पर कवि सम्मेलन की रिपोर्ट कदापि नहीं ।
कविता कोश निस्वार्थ सेवाभावियों के योगदान का दूसरा नाम है । यह साधारण लोगों के लिए आश्चर्य का विषय हो सकता है कि कोई भी यानी संस्थापक, प्रशासक, सिसओप, संपादक, या योगदानकर्ता कोई भी आर्थिक लाभ या लालच से सर्वथा मुक्त हैं । कविता कोश के स्वप्न को साकार करने के लिये विश्वभर से हिन्दी-प्रेमी व्यक्ति स्वेच्छा से स्वयंसेवा कर रहे हैं। कोश बनाने के लिये जालस्थल की सेवा उपलब्ध कराने वाली संस्था Wikia.com कोश के जालस्थल पर कुछ विज्ञापन जरूर दिखा रही है जिससे कविता कोश परिवार को कोई लेना–देना नहीं है । जैसा कि स्पष्ट है कि कविता कोश का उद्देश्य लाभार्जन नहीं है अतः किसी अल्पज्ञानी और शंकाधर्मी व्यक्ति को भी शायद ही कॉपाराइट जैसे मुद्दों को लेकर किसी आपत्ति होगी । क्योंकि कोश का मूल उद्देश्य हिंदी कविता को इंटरनेट पर एक मुकाम पर लाना है ताकि समूचा संसार इसका लाभ उठा सके । हिंदी काव्य का विश्वव्यापी प्रतिष्ठा मिल सके । फिर भी कविता कोश दल द्वारा सावधानीपूर्वक उन्हीं कविताओं, कृतियों को रखा जा रहा है जो कॉपीराइट मुक्त हैं या जिन कवियों या उत्तराधिकारियों ने इसके लिए बाकायदा अनुमति दे रखी है । फिर भी जिन्हें आपत्ति है उन्हें अपनी वैधानिक शिकायत दर्ज कराने लिए और जिन्हें अपनी या किसी खास कवि की कविता उपलब्ध करानी हो उनके लिए भी kavitakosh@gmail.com पर आमंत्रित किया जाना कविता कोश के नियोजकों के खुलेपन को चरितार्थ करता है । आपसे गुजारिश सिर्फ इतनी कि शुभकामना ही मत दीजिए कविताकोश को, कुछ सहयोग भी दीजिए....आमीन.... ।
कविता कोश एक तरह से इंटरनेट पर हिदीं कविताओं का पहला सुगठित, विश्वसनीय और वृहत कोश है । अब तक तथाकथित कोश के नाम पर इंटरनेट पर जितने भी वेबसाइट संचालित हैं वे या तो रोमन लिपि में हैं या फिर उन कविताओं का चयन संबंधित वेब-जाल स्वामी की व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर रहा है । अर्थात् वे हिंदी कविता के व्यापक फलक को स्पर्श करने में असमर्थ रहे हैं और जो कुछ विस्तृत तथा आकर्षक हैं पर वे देवनागरी लिपि में पढ़ने का आनंद-अवसर उपलब्ध कराने में असमर्थ वेब-पृष्ठ हैं । यानी कि वहाँ हिंदी कविता पढ़ने का आस्वाद नहीं मिल सकता । इन वेबसाइटों में विकिपीडिया (इनसाइक्लोपीडिया)http://sa.wikipedia.org/wiki/index/ भी सम्मिलित है जहाँ हिंदी साहित्य के निर्धारित काल क्रम में कुछ कवियों को चिन्हाँकित तो किया गया है किन्तु कुल मिलाकर वह नौसिखिये के काम जैसा ही प्रतीत होता है, क्योंकि यहाँ आधुनिक काल के कवियों की सूची में भारतेंदु हरिश्चंद्र, निराला, पंत, महादेवी वर्मा, अज्ञेय, दिनकर आदि कुल 27 कवियों के साथ गोपाल दास नीरज, अशोक चक्रधर, यश मालवीय और सोम ठाकुर जैसे बिलकुल समकालीन और मंचीय कवियों को भी अभी से जोड़ दिया गया है । यह अज्ञानता नहीं है, यह वरिष्ठतम् और स्थापित कवियों का अपमान भी नहीं है किन्तु अपितु इंटरनेट पर हिंदी काव्य को स्थापित करने वाले महाशय के व्यक्तिगत मोह का परिणाम जरूर है । यह मंचीय कवियों के नाम पर बजायी जाने वाली भोथरी तालियों का ही जादू है जो इंटरनेट पर काम करने वाले शहरी लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है । क्योंकि हिंदी काव्य के गंभीर ही नहीं बल्कि मेट्रिक में पढ़ने वाले किसी छात्र से भी पूछेंगें तो वह आधुनिक काल के 27 कवियों में इन्हें सम्मिलित नहीं करेगा । इसका निहितार्थ कदापि इनके कवि नहीं होने पर नहीं समझा जाय पर काल-क्रम भी तो कोई चीज़ होती है । खैर.......
कविता कोश की सबसे बड़ी विशेषता है उसका खुलापन । खुलापन का आशय – कोई भी विकि तकनीकी में दक्ष एवं हिंदी कविता का ज्ञाता इसमें शामिल हो सकता है । यद्यपि वह कोश में संपादन, तकनीक, वर्तनी संशोधन एवं नीति निर्धारण से संबंधित कार्यों में दखल नहीं दे सकता किन्तु कविता उपलब्ध कराने, किसी खास कवि और उसकी किसी कविता की अनुशंसा करने में खुलकर सहयोग कर सकता है । ऐसे योगदान का उल्लेख बाकायदा वेब-पृष्ठ पर की जाती है । इंटरनेट की विकी तकनीक का लाभ यह है कि कोई भी व्यक्ति कोश में नई रचनाएँ जोड सकता है या पहले से उपलब्ध रचानाओं में वर्तनी आदि त्रुटियों को सुधार सकता है। कविता कोश से जुड़ने के लिए किसी प्रकार की सदस्यता की भी जरूरत नहीं है वह केवल अपने सहयोगात्मक रुख से सदस्य बन सकता है । अपने व्यवहारिक अर्थों में यह हिंदी जगत् का अनूठा सहकारी प्रयास है । खुलापन का आशय यह नहीं है कि कहीं भी ठसने की फिराक में रहने वाला कोई कवि यहाँ अपनी कविता ठेल सकता है । क्योंकि हिंदी इंटरनेट की दुनिया भी ठीक वैसी है जैसे हिंदी प्रिंट और मंचीय भांडों की दुनिया । कहना प्रासंगिक होगा कि हिंदी काव्य का सत्यानाश करने में जितना हाथ उसके पाठकों और अकादमिक कवियों का नहीं है उतना हाथ मंचीय कवियों का है जिन्होंने हिंदी कविता को चुटकुला और फूहड़ व्यंग्योक्ति बना दिया है । ऐसे कवियों को यहाँ भी प्रतिबंध लगाना चाहिए, जिसका खतरा नीति के अनुसार दूसरे चरण में हो सकता है । वैसे इंटरनेट पर हिंदी कविता की श्रीवृद्धि के नाम पर कुछ ऐसे भोथरे लोग भी अपनी दुकानदारी चला रहे हैं जिन्हें कविता का 'एबीसीडी' भी नहीं आता । भले ही वे स्तरीय कविता के नाम पर चार पंक्ति भी ठीक से नहीं लिख सकते हैं किन्तु उनका दावा कम से कम अकादमिक लोगों को हास्यास्पद लग सकता है कि वे इंटरनेट के माध्यम से सारी दुनिया के लोगों को हिंदी कविता लिखना सीखा रहे हैं । उन्हें मुगालते पालने में नहीं रोका जा सकता है कि हिंदी की श्रीवृद्धि का पवित्र कार्य कर रहे हैं । बलिहारी हो ऐसे मंचीय आत्मा से अनुप्राणित कवियों की, और बलिहारी हो ऐसे शिष्यों की भी । यदि ये इंटरनेट पर सवार होने के नाते स्वयं को वैश्विक हिंदी कविता के स्वामी मान बैठे हैं तो बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं, क्योंकि भाषा सिखायी जा सकती है कविता नहीं, और कोई भाषा मात्र विशाल आकार किन्तु थोथों पन्नों से नहीं अपितु कम किन्तु भविष्योन्मुखी पृष्ठों से समृद्ध होती है । अभी तक तो कविता कोश ऐसे महामानवों से सुरक्षित है । विश्वास किया जा सकता है और कामना भी कि भविष्य में भी इन नौसिखियों और काव्य कीटों से मुक्त होकर पुष्पित-पल्लवित होता रहेगा । यह तो सभी को ज्ञात ही है कि जो भी लिख दिया जाय वह कविता नहीं होती । आखिर कुछ तो फर्क होती है कविता में और कथन में । ज्यादा कुछ कहना विषयांतर होना होगा, सो सीधे मूल प्रसंग पर लौट आते हैं ।
अंतरजालीय-हिंदी अभी कमोवेश बालपन से गुजर रही है । अंतरजाल पर हिंदी के ख्यातिलब्ध बुजुर्ग पीढ़ी और समकालीन साहित्य में चर्चित और समर्पित रचनाकारों की उपस्थिति अभी तक प्रिंट मीडिया के समानांतर संभव नहीं हो सकी है । कारण चाहे जो भी रहे हों पर यह वास्तविकता है जबकि अंतरजाल पर हिंदी में काम करने के सारे औजार(Tools) विकसित हो चुके हैं । और वे कारगर भी हैं । सबसे खुशी यह कि हिंदी में काम करने के लिए अंगरेज़ी सहित किसी परदेशी भाषा में पांरगत होने की लाचारी भी अब समाप्त हो चुकी है । ऐसे में वैश्विक क्षितिज पर हिंदी को विश्वविजयी देखने के स्वप्नदर्शी और समर्पित काव्यरसिकों तथा कवियों के लिए यहाँ अपने योगदान को रेंखांकित करने का अच्छा अवसर है बशर्ते कि वे युनिकोड़ फोंट को लेकर कंप्यूटर पर बुनियादी काम करना जानते हों । एक हिंदी प्रेमी का परिचय देते हुए वे कविता कोश में पूर्व निर्धारित सूची अनुसार किसी कवि की महत्वपूर्ण कविता रख सकते हैं । किसी छूटे हुए खास कवि और कविता का नाम सूझा सकते हैं । पूर्व से संधारित कविता में लिपिकीय त्रुटि सुधार सकते हैं । परंतु इसके लिए उन्हें वर्तनी संबंधी नियमों का सहारा लेना होगा, जिसके नियम भी साइट पर ही अंकित है । खास तौर पर ऐसे लोगों के लिए साइट में – “कविता कोश में योगदान कैसे करें?” “कविता कोश में कविताओं को जोड़ने का तरीका”, “कविता कोश के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न”, “सक्रिय प्रोजेक्ट्स की सूची”, “वर्तनी नियम”, “कविता कोश टीम की सदस्यता” सहित “कविता कोश की नीतियाँ” आदि स्तम्भें दी गई हैं, जिससे सम्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है । यह भी कहना प्रासंगिक होगा कि कविता कोश के परिप्रेक्ष्य में किसी भी चर्चा के लिए "कविता कोश ” नामक समूह भी विकसित किया गया है । यह कविता कोश संचालन परिवार के साथ-साथ अन्य हिंदी भाषा सेवियों के लिए भी स्वागतेय कदम है । जो विकि तकनीक में पारंगत नहीं है वे वे केवल युनिकोडित फोंट में टाइप कर रचना ई-मेल से भेज सकते हैं । जो कंप्यूटर पर युनिकोडित फोंट पर टाइप करना नहीं जानते तो किसी भारतीय सदस्य के पास डाक से भी रचना भेज सकते हैं । चाहे किसी भी रूप में, इससे जुड़ना निश्चित ही उस स्वप्न को साकार करने में योगदान देना है जिसमें इंटरनेट पर हिंदी की स्थिति को प्रथम स्थान पर प्रतिष्ठित करने जैसी नेक भावना सर्वोपरि है । जैसा कि कविता कोश के संस्थापक और वर्तमान में एडिनबर्ग, स्काटलैंड में अध्ययनरत ललित कुमार के साथ ह्यूस्टर, अमेरिका से आईटी विशेषज्ञ मितुल, यूएई से पूर्णिमा वर्मन, दिल्ली से इंजीनियरिंग छात्र दीपक मोदी, रायपुर, छत्तीसगढ़ से स्वयं मैं आदि भौगोलिक दूरी के बावजूद बड़ी आत्मीयता से कविता कोश में हाथ बँटा रहे हैं ।
यद्यपि कविता कोश में कतिपय महत्वपूर्ण कवियों की अनुपस्थिति को लेकर हिंदी कविता के गंभीर अध्येताओं को आपत्ति हो सकती है कि तथापि हिंदी कविता के शिल्पियों की लंबी फेहरिस्त को देखते हुए उन्हें अवश्य संतोष हो सकता है कि प्रथम चरण में इतने सारे कवियों और उनकी कविताओं को खोज निकालना कम चुनौती नहीं रहा होगा, और कम श्रमसाध्य कर्म भी नहीं । यूं तो हिंदी कविता की सुदीर्घ परंपरा रही है । हर काल और वाद के सैकडों नामचीं कवि हुए हैं जिन्हें इस कोश में होना ही चाहिए । और जैसा कि कविता कोश की नीति में कहा गया है कि – “प्रथम चरण में केवल अपेक्षाकृत अधिक प्रतिष्ठित कवियों की रचनाओं का संकलन किया जाएगा। कौन कवि कितने प्रतिष्ठित हैं या थे - इस बात का कोई पैमाना सोचना बडा मुश्किल है क्योंकि प्रतिष्ठा सापेक्षिक और व्यक्तिगत होती है। इसलिये यह तय किया गया है कि इस चरण में मुख्यत: केवल उन रचनाकारों को सम्मिलित किया जाएगा जिनकी कविताएँ पाठ्यपुस्तकों में छप चुकी हैं। पहला चरण कोश में कम से कम 5000 कविताओं के इकठ्ठे होने तक चलता रहेगा।” यह दूसरी बात है कि यदि आप इस नीति पर गंभीर हो जायें तो कविता कोश के पहले चरण में आपको कुछ ऐसे नाम भी मिलेंगे जिनकी कविता कहाँ और किस पाठ्यक्रम में पढ़ायी जाती है, कोई पता नहीं है ? पर इतनी तो छूट दी ही जा सकती है कविता कोश को शुरुआती दौर में ।
फिलहाल कविता कोश में कविताओं का क्रम कवि की रचनात्मक प्रतिष्ठा, उसकी वरिष्ठता या काल तथा हिंदी कविता के कालों या प्रचलित वादों या आन्दोलनों के आधार पर नहीं अपितु वर्णमाला के आधार पर (alfabaticly) रखा गया है । यह कविता तलाशने वालों के लिए सुविधाजनक भी है । इस प्रकार अब तक जिनकी कविताएं प्रतिष्ठित हो चुकी हैं उनमें हैं - अटल बिहारी वाजपेयी, अज्ञेय, अमरनाथ श्रीवास्तव, अमीर खुसरो, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध, अशोक चक्रधर, अशोक वाजपेयी, इसाक अश्क, उमाशंकर तिवारी, उमाकांत मालवीय, उर्मिलेश, ओम प्रकाश चतुर्वेदी 'पराग, कन्हैयालाल नंदन, कबीर, कमलेश भट्ट 'कमल', काका हाथरसी, किशोर काबरा, कीर्ति चौधरी, कुमार रवींद्र, कुंवर नारायण, कुँवर बेचैन, केदारनाथ अग्रवाल, कैफ़ी आज़मी, कैलाश गौतम, गजानन माधव मुक्तिबोध, गिरिजाकुमार माथुर, गुलज़ार, गुलाब खंडेलवाल, गोपालदास "नीरज", गोपाल प्रसाद व्यास, गोपाल सिंह नेपाली, गोरखनाथ, चंद बरदाई, चंद्रसेन विराट, जयशंकर प्रसाद, डॉ॰ जगदीश व्योम, जयप्रकाश मानस, डा तारादत्त निर्विरोध, तुलसीदास, द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी, दुष्यंत कुमार, धर्मवीर भारती, नईम, नरेश मेहता, नरेन्द्र शर्मा, नरोत्तमदास, नागार्जुन, निदा फ़ाज़ली, निर्मला जोशी, नेमिचन्द्र जैन, डॉ.पदुमलाल पन्नालाल बख्शी, प्रदीप, प्रभाकर माचवे, बशीर बद्र, बिहारी, भगवतीचरण वर्मा, भवानीप्रसाद मिश्र, भारतभूषण अग्रवाल, भारतेंदु हरिश्चंद्, मलिक मोहम्मद जायसी, मलूकदास, महेश अनघ, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी, मीराबाई, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, मुकुटधर पांडेय, मुकुट बिहारी सरोज, यश मालवीय, रघुवीर सहाय, रमानाथ अवस्थी, रसखान, रहीम, राजी सेठ, रामावतार त्यागी, रामकुमार वर्मा, रामधारी सिंह "दिनकर", राम प्रसाद बिस्मिल, राम विलास शर्मा, राम सनेहीलाल शर्मा 'यायावर', रामानुज त्रिपाठी, रैदास, विद्यापति, विष्णु विराट, वीरेंद्र मिश्र, श्यामनन्दन किशोर, श्यामनारायण पाण्डेय, शमशेर बहादुर सिंह, शहरयार, शांति सुमन, शिवमंगल सिंह सुमन, सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला", सुमित्रानंदन पंत, सुभद्राकुमारी चौहान, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, सोहनलाल द्विवेदी, सुकीर्ति गुप्ता, सुदर्शन फ़ाकिर, सूरदास, सूर्यभानु गुप्त, सोम ठाकुर, हरिवंशराय बच्चन, त्रिलोचन शास्त्री, श्रीकांत वर्मा, श्रीकृष्ण सरल । इसके अलावा कुछ ही दिनों में यहाँ दो-ढाई सौ ख्यातिलब्ध और प्रतिष्ठित ग़ज़लकारों की ग़जलें भी पढ़ने को मिलेगी, जिसका श्रीगणेश हो चुका है । सब कुछ सकारात्मक गति से चलता रहा तो इस रूप में ग़ज़ल के विकास-क्रम को भी आसानी से समझा जा सकेगा है । हाँ, पाठ्यक्रम वाली शर्त की शिथिलता के साथ, क्योंकि (समग्र रूप से) कम से कम हिंदी के पाठ्यक्रमों में ग़ज़लों के प्रति सकारात्मक नज़रिया अभी प्रतीक्षित है ।
यदि मैं अपनी भावना का स्थानीयकरण करके कहूँ तो पहले चरण में छत्तीसगढ़ के 4 पुरोधाओं को यहाँ समादृत किया गया है । ये हैं – छायावाद के संस्थापक कवि पद्मश्री मुकुटधर पांडेय, सरस्वती के संपादक पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, कविता के ख्यातिलब्ध नाम श्रीकांत वर्मा । द्वितीय चरण में राज्य के ऐसे खास कवियों को भी यहाँ पढ़ने का अवसर मिल सकेगा जिन्हें पढ़कर वास्तव में उनके कवि सहित (वादरहित)इंसान होने का भी प्रमाण मिलता रहा है । इस नज़रिये से अन्य प्रदेश के साहित्यिक संगठनों को भी सोचने से कोई बुराई नहीं । जो स्थानीयता का सम्मान नहीं कर सकता वह विश्व का भला क्या सम्मान कर सकेगा । प्रगतिशीलता में गति नहीं तो वह कैसी प्रगति ? चलिए फिर लौटते हैं केंद्रीय विषय पर ।
कविता कोश में बोनस के तौर पर कई कवियों का जीवन-परिचय भी दिया गया है । यदि धीरे-धीरे सभी कवियों का जीवन-परिचय भी यहाँ समादृत किया जा सके तो निश्चित ही इस ऐतिहासिक कार्य के लिए भी यह साइट जाना जायेगा । सुना है दिल्ली के 'आलेख प्रकाशन' के मुखिया और संपादक उमेशचंद्र अग्रवाल भी इस दिशा में आगे बढ़ते हुए विश्व के कवियों, रचनाकारों का बायोडेटा अंतरजाल पर ला रहे हैं । परन्तु उनके प्रस्ताव में रचनाकार को अपना अर्थशास्त्र भी समझना पडेगा । बहरहाल आज की तारीख में ही कविता कोश के इस कार्य की महत्ता बतायें तो हम कह सकते हैं कि हिंदी के लघु-पत्रिका के संपादकों के लिए यह अनुपम बन चुका है जहाँ से मनोच्छित कविताएं प्रकाशनार्थ, संदर्भार्थ चयन की जा सकती हैं । हाँ, कविता के अध्येताओं और शोध-वृत्तियों से जुड़े लोगों को भविष्य में ऐसी सूची की प्रतीक्षा भी रहेगी जो हिंदी कविता के मानक काल, वाद, आंदोलनों और प्रवृतियों पर केंद्रित रहे और यदि ऐसा हो सका तो किसी भी विश्वविद्यालय के हिंदी या भाषा विभाग को इसे अपना संदर्भ ग्रंथ के रूप में मान्यता देने में कोई गुरेज़ नहीं होगा । कविता कोश के वर्तमान स्वरूप और रचनाओं के वर्गीकरण को लेकर यह प्रश्न भले ही कोई उछाल सकता है कि यहाँ कविताओं को विधात्मक चरित्र (कविता, गीत, दोहे, सोरठा, ग़ज़ल, मुक्तक, हाइकु आदि) के आधार पर रखा जाना चाहिए । पर इसके लिए कविता कोश में जुटे भाषासेवियों की कठिनाईयों पर भी गौर करना चाहिए ।
कविता कोश में विभिन्न कवियों की सिर्फ फूटकर कविताएँ ही नहीं हैं, वहाँ हिंदी के महत्वपूर्ण कवियों की चर्चित कविता किताबों, संग्रहों, खंडकाव्यों आदि को प्रतिष्ठित किया जा रहा है । अब तक जिन किताबों को पूर्णतः ऑनलाइन किया जा चुका है वे हैं- मैथिली शरण गुप्त जी की सैरन्धी (खंडकाव्य), साकेत (प्रथम सर्ग) और नरोत्तम दास का सुदामा चरित । यहाँ आने वाले दिनो में अन्य महत्वपूर्ण कृतियों भी संपूर्णतः ऑनलाइन मिल सकती हैं । इसमें कबीर, तुलसी, निराला, पंत, महादेवी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, विद्यानिवास मिश्र, मुकुटधर पांडेय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, श्रीकांत वर्मा आदि की चर्चित कृतियाँ सम्मलित हैं । कविता कोश के वेब-पृष्ठों पर कई कवियों की ऐसी कविताएं भी जुटायीं जा चुकी हैं जो आम पाठक के लिए सहजता से उपलब्ध नहीं होती । इसमें से कुछ तो अब तक अप्रकाशित भी रही हैं । यह अक्सर होता है कि हमारे किसी प्रिय कवि की कोई खास कविता ढूँढने पर भी नहीं मिलती और हम मन मसोसकर रह जाते हैं । आम पाठक ही क्यों, समकालीन साहित्यिक बिरादरी भी इस कदर स्वकेंद्रित हो चुकी है कि वह अब धीरे-धीरे हिंदी साहित्य के स्वर्णकाल यानी भक्तिकाल और रीतिकाल के कवियों को लगातार भूलते जा रही है । इधर कई नामवर आलोचक उन कविताओं को खारिज़ करते चले जा रहे हैं । उन कविताओं में उन्हें नानाभाँति बुराईयाँ नज़र आती हैं । ऊपर से प्रौद्योगिक युग की मार और नई पीढ़ी में कविता या साहित्य जैसे विषय के प्रति घटती अभिरुचि । ऐसे दौर में वीरगाथा काल सहित हिंदी के तमाम महत्वपूर्ण कवियों को यहाँ पढ़ना कविता के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना भी है, जिसके लिए कविता कोश को निश्चित ही साधुवाद दिया जाना चाहिए । साधुवाद इसलिए भी कविता कोश में वह जबाब भी छिपा हुआ है जिसके लिए प्रश्न किया जाता है कि कविता संग्रह खरीदने के लिए रुपए कहाँ से आयेंगे ? कविता कोश उन प्रकाशकों के शातिराने अंदाज वाली कथन का भी मुँहतोड़ जबाब हो सकता है जिसमें कहा जाता है कि कविता संग्रह बिकती नहीं है, तो छापें कैसे ? मत छापिए, कविता कोश जो है अब उनके लिए ।
कविता कोश में किसी कवि की कविता सम्मिलित होना अपने आप में आत्मतोष का भी विषय हो सकता है क्योंकि यह मुक्त या निजी वेबसाइट नहीं अपितु इंटरनेट पर सर्वाधिक चर्चित और देखी जाने वाली साइट-विकीपीडिया (मुक्त इनसाइक्लोपीडिया) द्वारा उपलब्ध करायी गई जालस्थल सेवा का अहम् हिस्सा है जो ललित कुमार की सुदीर्ष सोच का परिणाम है । कविता कोश को देखकर उसके विकिपीडिया का हिस्सा होने का भ्रम जरूर हो सकता है पर यह विकिपीडिया परियोजना का हिस्सा नहीं है । इस मायने में यह न केवल हिंदी कविता के शोधकर्ताओं के लिए बल्कि आम इंटरनेट उपयोग कर्ताओं के लिए आकर्षक साइट है । यही कारण है कि कई कवि यहाँ स्वयं को देखने के अभिलाषी हो सकते हैं और वे अपनी कविता भी भेजे जा रहे हैं और उन्हें द्वितीय चरण में सम्मिलित करने की आवश्यक तैयारी भी की जा रही है ।
कविता कोश में मात्र कवियों की ख्यातिप्राप्त कविताएं ही नहीं है, वहाँ कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी रखी गयीं हैं । इस क्रम में हम हिंदी काव्य छंद नामक सूचनात्मक लेख और नई घटनाएं जैसे स्तम्भों का भी जिक्र कर सकते हैं । पर यह कम से कम मेरे समझ से परे की बात है कि नई घटनायें के नाम पर क्यों किसी एक ही व्यक्ति को इतना महत्व दिया जा रहा है । यह न तो प्रजातांत्रिक है न ही अन्य पाठकों के लिए रुचिकर । यहाँ कई ऐसे सांस्कृतिक समाचार भी दिये गये हैं जिनका स्थानीय मूल्य के अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई महत्व नहीं है । ऐसी लोकप्रियता से बचने में ही हिंदी के अतरराष्ट्रीय चरित्र का विकास हो सकता है । भारत के कई शहर, गाँव ऐसे हैं जहाँ हर दिन कोई न कोई सांस्कृतिक घटनाएं होती रहती हैं पर इसका मतलब यह तो नहीं कि सभी को कविता कोश जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रकृति वाले जाल-स्थल को ही रखा जाये । इन्हें भी अन्य वेबजालों का लिंक बताया जाना चाहिए । होना तो यह चाहिए कि यहाँ सिर्फ कविता या कवि से जुड़ी सास्कृतिक घटनाएं ही दें । पर कवि सम्मेलन की रिपोर्ट कदापि नहीं ।
कविता कोश निस्वार्थ सेवाभावियों के योगदान का दूसरा नाम है । यह साधारण लोगों के लिए आश्चर्य का विषय हो सकता है कि कोई भी यानी संस्थापक, प्रशासक, सिसओप, संपादक, या योगदानकर्ता कोई भी आर्थिक लाभ या लालच से सर्वथा मुक्त हैं । कविता कोश के स्वप्न को साकार करने के लिये विश्वभर से हिन्दी-प्रेमी व्यक्ति स्वेच्छा से स्वयंसेवा कर रहे हैं। कोश बनाने के लिये जालस्थल की सेवा उपलब्ध कराने वाली संस्था Wikia.com कोश के जालस्थल पर कुछ विज्ञापन जरूर दिखा रही है जिससे कविता कोश परिवार को कोई लेना–देना नहीं है । जैसा कि स्पष्ट है कि कविता कोश का उद्देश्य लाभार्जन नहीं है अतः किसी अल्पज्ञानी और शंकाधर्मी व्यक्ति को भी शायद ही कॉपाराइट जैसे मुद्दों को लेकर किसी आपत्ति होगी । क्योंकि कोश का मूल उद्देश्य हिंदी कविता को इंटरनेट पर एक मुकाम पर लाना है ताकि समूचा संसार इसका लाभ उठा सके । हिंदी काव्य का विश्वव्यापी प्रतिष्ठा मिल सके । फिर भी कविता कोश दल द्वारा सावधानीपूर्वक उन्हीं कविताओं, कृतियों को रखा जा रहा है जो कॉपीराइट मुक्त हैं या जिन कवियों या उत्तराधिकारियों ने इसके लिए बाकायदा अनुमति दे रखी है । फिर भी जिन्हें आपत्ति है उन्हें अपनी वैधानिक शिकायत दर्ज कराने लिए और जिन्हें अपनी या किसी खास कवि की कविता उपलब्ध करानी हो उनके लिए भी kavitakosh@gmail.com पर आमंत्रित किया जाना कविता कोश के नियोजकों के खुलेपन को चरितार्थ करता है । आपसे गुजारिश सिर्फ इतनी कि शुभकामना ही मत दीजिए कविताकोश को, कुछ सहयोग भी दीजिए....आमीन.... ।
0 जयप्रकाश मानस
2 comments:
कविता-कोश की अवधारणा और उसको साकार करना हिन्दी-जगत के लिये निश्चित ही एक महान उपलब्धि है। किन्तु उतना ही महान यह आपका लेख भी लगा जिसमें आपने कविता-कोश के परिचय, उद्देश्य और नीतियों को बड़े ही स्पष्ट रूप से रखने में सफल रहे हैं।
क्या कविता-कोश जैसा कुछ हिन्दी गद्य के लिये नहीं बनाना चाहिये जिसमे हिन्दी के प्रसिद्ध निबन्ध आदि रखे जाँय?
hey very good bhut accha likha ha tumne
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