छत्तीसगढ़िया लोग भी अब संगठित होने लगे हैं । कम से कम यहाँ के ब्लॉगरों ने तो यह कर दिखाया है कल । पर, जैसा कि प्रेस क्लब के अध्यक्ष और अमीर धरती गरीब लोग के ब्लॉगर श्री अनिल पुसदकर जी कल जिस तरह मोबाइल पर बता रहे थे वह चिंताजनक और ब्लॉगर्स के ख़िलाफ़ एक षडयंत्र से कम नहीं ।
वे बता रहे थे कि राज्य के कुछ कथित बड़े लोगों को इस मीट से सिर्फ़ इसलिए आपत्ति थी कि इसमें राज्य की ग़लत छवि प्रस्तुत करने वालों के विरोध में सब ब्लॉगर्स एक जूट होकर उनकी छवि नेट पर कहीं धूमिल न कर दें । शायद इसलिए उन्होंने इस मीट को बदनाम करने, कुछ ब्लॉगर्स को भड़काने, मीट से दूर रहने का लुकाछिपी खेल भी खेला हो ।
मैं नहीं जानता ये कौन लोग हैं किन्तु अनिल जी के अनुसार यह कार्य बखूबी किया है - कुछ लोंगों ने । शायद वे लोग ऐसे खेमे थे जो पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के विवाद पसंद वकील शांत भूषण द्वारा मीडिया और नक्सलवाद से जूझ रहे पुलिस के ख़िलाफ़ दिये गये बयान से स्वयं को भी जोड़कर देख रहे हैं । कोई अपराध बोध भी उन्हें कुछ करने को उकसा रहा हो । उन्होंने इसके पहले दिन साहित्यकारों की हुई प्रेस क्लब की बैठक को भी प्रायोजित करके बदनाम करने की कोशिश की थी । जैसे वे साहित्यकारों के पंजीयक हों, उनके पास जो रजिस्ट्रेशन न कराये वह साहित्यकार नहीं हो सकता । जैसे वे पत्रकारिता के अधिनायक हैं, उनकी अनुमति के बग़ैर पत्रकार कुछ भी नहीं कर सकता ।
विश्वास है जो ब्लॉगर्स ऐसी परिस्थितियों से गुज़रे होंगे वे उनका चेहरा ज़रूर उजागर करेंगे ।
8 comments:
जयप्रकाश भैया-ब्लागरो को भड़का कर समिलन से दुर रखने वाली बात तो मेरे सामने नही आई। कल सभी ब्लागर एक जगह इकट्ठे हुए बड़े ही आत्मीय वातारवरण मे। हां आपकी कमी जरुर खली।
कल छत्तिसगढ़ के ब्लागरों ने यह संकल्प लिया कि छत्तिसगढ की छवि धुमिल करने वालों को ब्लागरों द्वारा मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। इस ठोस कदम पर शीघ्र ही अमल किया जा रहा है।
शेष शुभ
बिल्कुल ठीक. हिन्दी के ऊपर हिन्दी के प्रोफेसरों ने और पत्रकारिता पर ऐसे स्वनामधन्य लोगों ने एकाधिकार बना रखा है.
कोई अपराध बोध भी उन्हें कुछ करने को उकसा रहा हो -सही कहा कि कोई कुंठा या ग्रन्थि ही जोर मार रही होगी उनकी.
आह! अच्छा लगा जानकर कि यहां भी राजनीति हुई. राजनीति किये बिना हमारी संस्कृति में कुछ संपन्न हो जाए तो मुझे चिंता होने लगती है कि शायद हम भटक रहे हैं...साधुवाद
ईश्वर उनको सदबुद्धि दे।
bhai ji aap bhi gaye the kya us meet mein...
बहुत दिनो बाद उपस्थिति दर्ज हो ...।
मित्रो, अब जबकि ब्लॉगिंग नागरिक पत्रकारिता का रूप धारण करता चला जा रहा है क्यों न हम राज्य की प्रभुता, अस्मिता, नागरिकता, स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा को धूमिल करनेवालों के ख़िलाफ़ भी एकजूट हों । ये विचार सभी ब्लागरो के लिए प्रेरणा दाई है आप जेसे पुराने ब्लागर की टिपण्णी से तो हिम्मत बढती है चले चलो ......... बढे चलो अजय त्रिपाठी
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