tag:blogger.com,1999:blog-20367415.post6902169208916610938..comments2023-07-14T02:21:08.219-07:00Comments on जयप्रकाश मानस: ‘ब्लॉग लेखन अनुपयुक्त है’जयप्रकाश मानसhttp://www.blogger.com/profile/16792869521782040232noreply@blogger.comBlogger40125tag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-57135265356908102862009-07-28T09:05:43.208-07:002009-07-28T09:05:43.208-07:00मानस जी आपने नामवार सिंह जी के विचारों को अच्छे ढं...मानस जी आपने नामवार सिंह जी के विचारों को अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया है | इनदिनों ब्लॉग मैं कुछ अच्छाइयों से साथ साथ ढेर सारा कूड़ा-करकट भी है | मेरे हिसाब से ब्लॉग ज्यादातर लोग अपनी संतुस्टी या अपनी पहचान स्तापित करने के लिए लिखते हैं | ब्लॉग पे यदि मैं अपने नए कार, एसी, लैपटॉप पे लिखूंगा तो कोई रोक भी नहीं सकता है और मैं कह सकता हूँ की ये मेरी मर्जी थी सो मैंने लिख दी | <br /><br />यदि ब्लॉग मैं आंचलिकता का पुट देने का सुझाव नामवार सिंह जी से आता है तो इसमें बराइ क्या है ? कई blogger बंधू भड़क से गए हैं | नामवार सिंह वरिस्ट हैं, उनका सुझाव मानना न मानना आपके हाथ मैं है मुझे भड़कने वाली कोई बात नहीं दिखती |Rakesh Singh - राकेश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/03770667837625095504noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-67483051016298720372008-06-25T14:17:00.000-07:002008-06-25T14:17:00.000-07:00जयप्रकाश जी:आप से अन्त में समीक्षा, टिप्पाणियों मे...जयप्रकाश जी:<BR/>आप से अन्त में समीक्षा, टिप्पाणियों में उठाये गये प्रश्नो के उत्तर और आप के स्वयं के विचारों की अपेक्षा थी वरना तो यह सिर्फ़ सनसनी फ़ैलानें और पाठकों को ब्लौग तक लाने के लिये किया गया मज़ाक ही रहा । <BR/>दुष्यन्त जी की पंक्तियां याद आ रही है:<BR/>सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं<BR/>मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिये ।<BR/><BR/>स्नेह<BR/>अनूप भार्गवअनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-448308530289293402008-06-19T21:06:00.000-07:002008-06-19T21:06:00.000-07:00जय प्रकाश , अपने तो ब्लागलेखन से नामवर सिंह की अच्...जय प्रकाश ,<BR/><BR/> अपने तो ब्लागलेखन से नामवर सिंह की अच्छी फजीहत करा दी | ब्लाग ने हर एक को स्वतंत्र कहने-लिखने की एक स्लेट-पेंसिल तो दिया ही है '<BR/>कोई भी देश प्रगतिशील एवं सुखी तभी हो सकता है जब बोलने-लिखने की स्वतंत्रता हो |और विज्ञान का अनुसंधान भी इस बात को स्वीकारता है की जहाँ विविधता होगी वहाँ कुछ नया पनपने की सम्भावना है |<BR/><BR/> हर नयी विधा का स्वागत है पर दूर तक यात्रा सत्य की ही हो सकती है | मंगल कामनाओं के साथ ,<BR/><BR/>आदित्य प्रकाश <BR/>डैलास, युएसए<BR/>adityapsingh@aol.comAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-7058033521826157612008-06-19T00:26:00.001-07:002008-06-19T00:26:00.001-07:00यह तो सर्वथा सत्य है की हर सिक्के के दो पहलू होते ...यह तो सर्वथा सत्य है की हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. ब्लोगिंग की होंगी कुछ खामिया, पर अच्छइयां भी है ज़रूर. अब हर कोई पत्र पत्रिकाओं में छपवाने के लिए नहीं लिखता न? अपने विचारों को एक दूसरे के साथ बांटने में क्या उनुप्युक्त्ता हो सकती है भला? यह तो ऐसा ही है जैसे कोई गोष्ठी. <BR/>और सबसे बड़ी बात- आदरणीय नामवर जी का यह कथन मैंने ब्लॉग के द्बारा ही पढ़ा!!Pragyahttps://www.blogger.com/profile/16628365720892083937noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-20715041269716686262008-06-19T00:26:00.000-07:002008-06-19T00:26:00.000-07:00यह तो सर्वथा सत्य है की हर सिक्के के दो पहलू होते ...यह तो सर्वथा सत्य है की हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. ब्लोगिंग की होंगी कुछ खामिया, पर अच्छइयां भी है ज़रूर. अब हर कोई पत्र पत्रिकाओं में छपवाने के लिए नहीं लिखता न? अपने विचारों को एक दूसरे के साथ बांटने में क्या उनुप्युक्त्ता हो सकती है भला? यह तो ऐसा ही है जैसे कोई गोष्ठी. <BR/>और सबसे बड़ी बात- आदरणीय नामवर जी का यह कथन मैंने ब्लॉग के द्बारा ही पढ़ा!!Pragyahttps://www.blogger.com/profile/16628365720892083937noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-66495518134819862862008-06-18T22:37:00.000-07:002008-06-18T22:37:00.000-07:00जयप्रकाश जी:सच में कहूँ , लेख को कई बार पढा लेकिन ...जयप्रकाश जी:<BR/><BR/>सच में कहूँ , लेख को कई बार पढा लेकिन ठीक से समझ में नहीं आया कि नामवरसिंह जी को आपत्ति या शिकायत किस बात से है । पता नहीं यह अस्प्ष्टता उन के कहने में है या आप को उन का कहा कागज़ पर उतारनें में । <BR/>कुछ बिन्दुओं को छूना चाहूँगा :<BR/><BR/>>>> इस सोच से उत्पन निर्णय में हमारे देश के अनपढ़, अल्पपढ और ग़रीब, किसान, मज़दूर, कारीगर आदि आमजन भी उन्हें दिखाई देते हैं जिनमें से आधे लोग तो आज भी निरक्षर हैं >><BR/><BR/>अब यह तो सीधी सी बात है कि निरक्षता का निवारण न तो परंपरागत पत्रकारिता कर सकती है न ही ब्लौग । ऐसा कोई निरक्षर नहीं होगा जो पत्र/किताब को पढ पायेगा लेकिन ब्लौग को नहीं । <BR/>-----<BR/>>>>यहाँ एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या ब्लॉग लेखन ज़रूरी है सबके लिए ? अभिव्यक्ति के साथ अनभिव्यक्ति भी बहुत ज़रूरी है । कम से कम अंतरजाल पर । आख़िर गोपनता भी कई बार लाज़िमी होती है । वैसे भी बड़ा से बड़ा अभिव्यक्तिवादी समाज सब कुछ कहना नहीं चाहता । ऐसे सभ्य (?) समाजों का भी इतिहास गवाह रहा है कि वहाँ कुछ ही लोग अभिव्यक्ति के अधिकार को बनाये रखते हैं या फिर उसे बहाल करने के लिए संघर्षरत रहते हैं । <<<< <BR/><BR/>अनभिव्यक्ति क्यों ज़रूरी है , कृपया स्पष्ट करें और यदि ज़रूरी है भी तो इस का दायित्व सिर्फ़ ’ब्लौग लेखकों’ पर ही क्यों ? शायद इसलिये कि अभिव्यक्ति पत्रकारिता में ’जीविका’ है और एक दिन की अनभिव्यक्ति का अर्थ एक दिन की आमदनी का कम होना होगा ।<BR/>------------<BR/><BR/>>>>यूँ भी ब्लॉग लेखन पढ़े-लिखे और तकनीक से परिचित (और दक्ष भी ) तथा साधन संपन्न लोगों के वश की बात है, जिसके पास इतना समय भी हो कि वह ऐसा लिख सके <<<<<BR/><BR/>यदि ब्लौग लेखन पर नज़र डालें तो काफ़ी ब्लौग १० रुपये प्रति घंटा की दर से ’सायबर कैफ़े’ में लिखे जाते हैं । ब्लौग लिखने के लिये सम्पन्न होना ज़रूरी नही है । हाँ पत्र में लिखनें के लिये ’कनेक्टेड’ होना ज़रूर ज़रूरी है । आप ही बताइये ’Barrier to Entry' किस में ज़्यादा है ?<BR/><BR/>------------<BR/><BR/>>>>इंटरनेट और हिंदी पत्रकारिता पर चिंतित दिखाई देनेवाले नामवर सिंह यह भी कहते हैं कि अँगरेज़ी अख़बार और इंटरनेट की नकल ने पत्रकारों की नौकरी को ख़तरे में डाल दिया है । बात में काफ़ी दम है । <<<<<BR/><BR/>बात समझ नहीं आई लेकिन इस कथन का लेख के शीर्षक "ब्लौग लेखन अनुपयुक्त है" से कोई ताल्लुक नज़र नहीं आता इसलिये नज़रअंदाज कर रहा हूँ । यदि ब्लौग लेखन नें पत्रकारों की नौकरी को खतरे में डाल दिया है तो उन्हें अपनी नौकरी बचाने के लिये खुद लड़ना होगा या कोई दूसरा व्यवसाय देखना होगा । <BR/>-----<BR/>>>>"आंचलिकता को बनाये रखना ज़रूरी है"<<<<<BR/><BR/>इस बात से सहमत हूँ लेकिन वह ऐसा क्यों सोचते हैं कि ’ब्लौग लेखन’ में इस के प्रयास नहीं हो रहे हैं । कितनी ही नई लिखने की शैलियां , मुहावरे मिलते हैं पढने के लिये । <BR/><BR/>अगर नामवर सिंह जी की बात को स्पष्ट शब्दों में ’बिन्दु बिन्दु विचार’ की तरह उदाहरणों के साथ लिखा जाये तो शायद बेहतर समझ में आये । आप के अपने विचार भी इस विषय में जानना चाहूँगा । <BR/><BR/>स्नेह <BR/>अनूप भार्गवअनूप भार्गवhttps://www.blogger.com/profile/02237716951833306789noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-4505300435449298862008-06-18T21:24:00.000-07:002008-06-18T21:24:00.000-07:00अच्छा. ओहो?अच्छा. ओहो?azdakhttps://www.blogger.com/profile/11952815871710931417noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-29176191815603920932008-06-18T21:08:00.000-07:002008-06-18T21:08:00.000-07:00अब नामवर सिंह जी के सामने हम क्या बोल सकते हैं. मग...अब नामवर सिंह जी के सामने हम क्या बोल सकते हैं. मगर इतना तो कहेंगे कि ब्लॉग भी अपने विचार कहने और वार्ता/संवाद का वैसा ही साधन है जैसे कोई चौपाल,गोष्ठी या मैत्रीपूर्ण बातचीत हो. इससे भी आगे चलें तो कई ब्लॉग सम्पादक के नाम पत्र जैसे भी हो सकते हैं और कुछ सम्पादकीय जैसे भी - जैसे कि आपका यह ब्लॉग. <BR/><BR/>यह संपादित नहीं है और सेंसर्ड तो कतई भी नहीं. साथ ही एक आम ब्लॉग के साहित्यिक होने की आशा करना भी व्यर्थ है. यह ब्लॉग लेखक की खुली डायरी हो सकते हैं पुस्तक होना कठिन है.<BR/><BR/>भविष्य से कोई जीत नहीं सकता है. हर अच्छी तकनीक पुराना कुछ ख़त्म करती है या उसके असर को कम करती है और इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि इससे पुरानी चीज़ बेहतर होती है. ताडपत्र से समाचारपत्र तक के सफर को देखें या समाचारपत्र से रेडियो या रेडियो से टीवी और अब उपग्रह रेडियो, इन्टरनेट रेडियो या वेब २.०. समाज की बेहतरी भविष्योन्मुख होने में ही है.<BR/><BR/>Future is bright, try to be a part of it.<BR/><BR/> धन्यवाद!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-2122282837889729612008-06-18T20:52:00.000-07:002008-06-18T20:52:00.000-07:00डॉ. सिंह पर 'पूर्वाग्रह' का एक अंक आया था जिसमें उ...डॉ. सिंह पर 'पूर्वाग्रह' का एक अंक आया था जिसमें उदयप्रकाश जी नें डॉ.सिंह के कुछ मन्तव्य छापे थे जिसे डॉ.सिंह नें बाद में सिरे से खारिज कर दिया था एवं किसी दूसरे मसले पर अपने स्वयं के 'पूर्वाग्रह की दृष्टि बदली' को भी स्वीकारा था । <BR/><BR/>ब्लाग के संबंध में उनका यह कथन पूर्वाग्रह है जिसे बदलना ही है एक दिन । उन्हें प्रणम्य माने अगरबत्ती लगायें पर उनके वैचारिक आदर्शों का अनुसरण करें यह आवश्यक नहीं है ।<BR/><BR/>आपने ब्लाग मंथन किया जिसके लिये आभार । सभी के अपने अपने विचार पढने को जो मिला ।36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-34585410805561242122008-06-18T20:13:00.000-07:002008-06-18T20:13:00.000-07:00आपके ब्लाग पर नामवर की टिप्प्णी व आपकी विवेचना पढी...आपके ब्लाग पर नामवर की टिप्प्णी व आपकी विवेचना पढी।ब्लोगर अधिकांश ब्लागर भाषा व विचारों में अधकचरे हैं ,माना पर शुरूआत में तो आज के प्रतिष्टित आलोचक-साहित्यकार भी अधकचरे ही थे।समय एवं अभ्यास ने उन्हें यह ऊंचाई दी।ब्लागर भी पा रहें हैं,पा ही जायेंगे स्तर एक दिन।पत्रकार ? कहां हैं या तो सेठ मालिकों के हाथ की कठ्पुतलियां हैं।या सनसनी फ़ैलाकर टी.आर.पी के जुगाडू़ लोग ही तो हैं मीडिया कर्मी,ब्लागर अधकचरा हो ,नासिखिया हो ,अपरिपक्व हो वह मुखौटे नहीं औढता,उसे मुखौटे की जरूरत नहीं है।यहां इ=कविता को ही देख लें और बताएं संस्कृत कविता को संस्कृत न जानने वाले भी पढ़ रहें हैं,पसन्द कर रहे हैं,अच्छी व बुरी[छंद दृष्टि से] गज़ल आरही हैं,लोग ,कुछ लोग सीख भी रहे हैं,यह किस अखबार पत्रिका में संभव है,इतनी विपुल अभिव्यक्ती को फ़लक केवल आउर केवल नेट ही दे सकता है।समझो नामवर !<BR/><BR/>श्यामसखा‘श्याम’Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-5430339705344439892008-06-18T20:01:00.000-07:002008-06-18T20:01:00.000-07:00मानस जी , नामवर जी संभव हॆ अभी ब्लाग की दुनिया से...मानस जी , नामवर जी संभव हॆ अभी ब्लाग की दुनिया से पूर्ण परिचित न हों. मेरा परामर्श हॆ यदि उन्हें समय हो तो आप उन्हें इसके बारे में विस्तार से बताएं ताकि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस माध्यम से हिन्दी के विस्तार से परिचित हो सकें.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-48403390516497097232008-06-18T19:27:00.000-07:002008-06-18T19:27:00.000-07:00E-Guru Maya जी से मुझे नहीं सिखना कि सही पोस्त (सह...E-Guru Maya जी से मुझे नहीं सिखना कि सही पोस्त (सही शब्द पोस्ट) किसे कहते हैं । मेरे भाई !(मुझे नहीं पता कि आपकी नज़रों में आपके प्रति मेरा सही संबोधन क्या हो सकता है !) आप दूसरों को इतना बुद्धू क्यों समझते हैं जो किसी मनचाहे विषयों के चिट्ठों पर यदा-कदा टिप्पणी कर देते हैं । आपने भी तो वही किया है जो दूसरों ने किया है और जो आपकी नज़रों में बुद्धू हैं (वस्तुतः न आप, न ही कोई टिप्पणीबाज बुद्धू है - यहाँ ब्लॉग-जगत् में ) पहले यही ग़लतफ़हमी आप दूर करलें कृपया । <BR/><BR/>आपने जो सवाल मुझसे कियें हैं, वे मेरे पोस्ट में पूरी तरह से संकेतित हैं । आप क्या मानते हैं, मुझे नही पता । पर मैं इतना तो अवश्य मानता हूँ कि हर अंतिम विचार के बाद भी एक विचार बचा रहता है । कृपया विचार करने से दुनिया को ना रोकें ! विचारों की अनुपस्थिति या उसकी हत्या का फ़रमान जारी करना मध्ययुगीन हरक़त कहला सकता है । आपने शायद मेरे पोस्ट को ठीक से नहीं पढ़ा जिसमें मैंने स्वयं प्रश्नांकित(आपके) संदर्भों यानी कि बिजली, कंप्यूटर, इंटरनेट, तकनीक, भूगोल आदि सभी कोणों को स्पर्श किया है । <BR/><BR/>मित्र, किसी लेख या रचना को वजह और बेवजह होने का प्रमाण-पत्र संपादक देता है, आलोचक देता है । पर वह भी अंतिम नही हुआ करता । यह ब्लॉग की दुनिया है । यहाँ ऐसे सभी वर्चस्वों और अधिनायकवादियों की परवाह नहीं की जाती है । बल्कि स्वयं अनुशासन के साथ अभिव्यक्ति के नये सोपानों को तय किया जाता है किया जा रहा है। किया जाता रहेगा । वैसे आपके द्वारा किसी को वजह और बेवजह की कसौटी में रखना सिर्फ़ आपकी निजी मान्यता हो सकती है । इसे लेकर मुझे कोई आपत्ति भी नही है । इसे लेकर मैं क्यों चिंतित रहूँ । मित्र, मैं आपकी सोच पर तरस भी नहीं खाना चाहता जो आपको इतने स्वस्थ और शालीन तरीके से लिखे शब्दों और विचारों में बारूद, बम, मोर्टार, रॉकेट लांचर, एके-47 आदि दिखाई देते हैं । चर्चा करना युद्ध नही होता । विमर्श कोई आक्रमण या प्रत्याक्रमण नहीं होता। जब हर चीज़ पर चुप्पी साध ली जाती है वह समय चुक गया है । शायद इसीलिए आप भी यहाँ नहीं चुकना चाहते हैं और यह अच्छी परंपरा भी है । <BR/><BR/>पूरी सदाशयता के साथ कहना चाहूँगा कि मैं किसी भी प्रचलित विचार को अंतिम नहीं मानता । हर श्रेष्ठ विचार के बाद भी नये विचार की संभावना और आवश्यकता सदैव बनी रहती है । कोई किसी विचार को अंतिम मानता है तो यह उसकी बला हो सकती है । आपका आदर्श भी हो सकता है । मेरा नहीं । मैं किसी भी विचार को सिर्फ़ इसीलिए अंतिम नहीं मान लेता क्योंकि वह किसी प्रभु व्यक्तित्व का है, और उसे नहीं मानना उसकी तौहीनी है । सच्चा विचारक अपने विरुद्ध उठने वाले सभी तर्कों का जवाब देने में सक्षम होता है और विनम्र भी । <BR/><BR/>निश्चय ही महावीर प्रसाद द्विवेदी, रामचंद्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा आदि के बाद नामवरजी हिंदी के एक बड़े आलोचक रहे हैं, और उनका हम सभी सम्मान भी करते हैं पर हम इसी अधिकार से उनकी बातों पर टिप्पणी करने का अवसर भी जुटाते हैं । पर वे हिंदी के अंतिम आलोचक भी नही हैं । और तो और वे किसी एक विचारधारा के आलोचक हैं । फिर साहित्य या विचार का संसार तो कहीं अधिक विस्तृत और संभावनाशील है । एक बात मैं आपके बहाने स्पष्ट कर दूँ कि न तो मैं वामपंथी हूँ ना दक्षिणपंथी । न ही और कोई पंथी-वंथी । आप के मन में किसी वाद को लेकर भी मेरे प्रति शंका हो तो कदाचित् वह व्यर्थ है । हम किसी दिये गये डब्बे में बंद किये जानेवाली चायपत्ती नहीं है कि जब चाहे कोई डब्बा खोले और उसमें से चायपत्ती निकाल चाय बनाले । हम उबाले जाने के लिए नहीं हैं । और यह हमारी सोच की विनम्रता ही है । एक तरह से हमारे होने का अर्थ इसी सोच में फलित होता है । <BR/><BR/>हाँ पुनः विचार करके देखें कि विमर्श युद्ध नही होता । सिर्फ़ विमर्श होता है और विमर्श करने के अधिकार से आप तो क्या कोई भी वंचित नहीं कर सकता । फिर ब्लॉग तो विमर्श का, और आज तक ईजाद की गई सभी माध्यम-साधनों, कौशलों में सबसे अधिक प्रजातांत्रिक है । <BR/><BR/>आपको कुछ ग़लतफ़हमी थी, शायद वह दूर हो गई होगी । <BR/><BR/>आपने यद्यपि मुझसे नहीं पूछा है फिर भी मैं यह कहना चाहूँगा कि आज की पीढ़ी के आलोचकों को भी यह यानी कि चिट्ठाकारी उपयुक्त लगने लगी है । आप ज़रा समय निकाले, खंगालें इंटरनेट, एग्रीगेटर । आपको नयी पीढ़ी के दो-चार आलोचक वहाँ ज़रूर दिखाई देंगे, जो स्वयं ब्लॉग पर विश्वास करते हैं । <BR/><BR/><BR/>सबसे बड़ी बात कि नामवरजी का वह वक्तव्य कई अर्थों में निहायत निजी भी है । क्योंकि हर विचार पहले निजी होता है फिर समाज के लिए । पर किसी निजी बात जो समाज से संबंधित होता है पर समाज के लोगों को सोचने-विचारने का मौका तो देना होगा ना हमे !<BR/><BR/>आग्रह है कि मेरी बातों को आप सिर्फ़ स्वस्थ तौर पर देखें.. । यह आपके साथ युद्ध का कोई बहाना भी नहीं । आपसे इसी बहाने जुड़ने का ज़रिया मात्र है ।जयप्रकाश मानसhttps://www.blogger.com/profile/16792869521782040232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-14599247553619909442008-06-18T19:22:00.000-07:002008-06-18T19:22:00.000-07:00भई, मेरा तो ये मानना है कि ब्लॉग - नई रचना धर्मिता...भई, मेरा तो ये मानना है कि ब्लॉग - नई रचना धर्मिता, नए-रचनाकारों को जन्म देगा. कई मामलों में जबरदस्त शुरूआत हो चुकी है. ब्लॉग के माध्यम से क्रांतिकारी, अति-मौलिक, प्रयोग-धर्मी साहित्य रचे जाएंगे. नामवरों की पूरी जमात (सिर्फ एक नहीं, :)) ब्लॉगों के माध्यम से पैदा होगी. ऊपरिलिखित टिप्पणियां भी कैपिटल और बोल्ड में ये बातें कह रही हैं...<BR/><BR/>- तो, ब्लॉग अनुपयुक्त सिर्फ उनके लिए है, जो इससे जुड़ना नहीं चाहते या ऐन-केन-प्रकारेण जुड़ नहीं सकते.रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-39511886926842101672008-06-18T17:24:00.000-07:002008-06-18T17:24:00.000-07:00समय ही इस बात का फैसला करेगा, अभी तो ये परिवर्तन क...समय ही इस बात का फैसला करेगा, अभी तो ये परिवर्तन की धीमी सी बयार भर है। अभी ढेर सारे नामवर उखडेंगे हमे उनकी आलोचना पर त्वरित प्रतिक्रिया ना व्यक्त करते हुए अपने लेखन के सुधार पर ध्यान देना चाहिए। <BR/><BR/>वैसे नामवर जी से मेरा यह् निवेदन है कि अपनी सोच का दायरा थोडा बडा करके देखें। ब्लागिंग ने लेखक और् पाठक के बीच की दूरी को घटाया है, एक सीधा संवाद् स्थापित किया है, किसी और विधा मे ऐसा सम्भव था क्या?<BR/><BR/>टंकण साभार <A HREF="http://jitu.info/indichelp/" REL="nofollow">इंडिक हैल्प </A<>br/>></A>Jitendra Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/09573786385391773022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-55180239470736810122008-06-18T14:51:00.000-07:002008-06-18T14:51:00.000-07:00नामवर सिंह केवल अपने विवादों के चलते नामवर बन पाये...नामवर सिंह केवल अपने विवादों के चलते नामवर बन पाये थे ।<BR/>सृजन सीमा से धकेल दिये जाने वाले , आलोचक नामधारी जीव<BR/>का चोला धारण कर लेते हैं । उनका कद बढ़ाते हैं चाटुकार लेखक ..<BR/><BR/><BR/>अब क्या कहें ? नामवर के तंग सोच को महिमामंडित कर आख़िर <BR/>आप क्या सिद्ध करना चाहते हैं ?डा. अमर कुमारhttps://www.blogger.com/profile/12658655094359638147noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-27410515102069046042008-06-18T13:52:00.000-07:002008-06-18T13:52:00.000-07:00Rahul ji ki kavita ne sahi samay per vyang baan ka...Rahul ji ki kavita ne sahi samay per vyang baan kasa aur to aur iss garam baat-chit mein thodi si rahat mili!!!<BR/><BR/>Mera maan na hai ke humein iss baat per garv hona chaiye ke blog ke sahare hee sahi Hindi bhasha mein likha ja raha lekh ya kavitayein….ismein koi buri baat nahi, kyunke aaj ka yug hee computer aur internet ka zamana hai aur aise mein jitni aasani se hum prekshakon tak pahunch sakte hein wohi koshish acchi rehati hai ….iss se Hindi parhne walon ko lekhan parhne ka mauka milta hai aur Bhasha ke zinda rehane aur oose rakhne mein mera maan na hai ke Aap sabhi jinhone bhi yahan tippani ki hai …oon sabhi ka sahayog prapta hua hai….asha hai aage bhi aap lekh likhenge ye hamari inteza hai<BR/><BR/>Khush rahein sada<BR/>sehar<BR/><BR/>http://pratahakaal.blogspot.comDawnhttps://www.blogger.com/profile/15924485784546039937noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-37251982313945262402008-06-18T13:29:00.000-07:002008-06-18T13:29:00.000-07:00नामावर जी प्रख्यात साहित्यकार हैं. हिंदी भाषा की उ...नामावर जी प्रख्यात साहित्यकार हैं. हिंदी भाषा की उन्होंने हमेशा सेवा की है. <BR/>वे हिंदी का विरोध नहीं कर सकते. हिंदी ब्लोगिंग न उन्होंने कभी की है न ही स्वयं अनुभव की, उनकी इस टिपण्णी को मैं अतिशयोक्ति मानता हूँ...<BR/>पत्रकार जगत की महत्ता जरूर ब्लोगिंग से कुछ कम हुई है अब अमिताभ बच्चन और आमिर खान को पत्रकारों के सहारे नहीं रहना पड़ता जो मन मे है सीधा पाठकों तक पहुचता है उसमे तोड़ मरोड़ संभव नहीं.<BR/>हिंदी साहित्यकारों (जिनमे नामावर जी भी शामिल हैं) की रायल्टी लगातार कम हो रही है पाठक संख्या कम हो रही है उसपर अगर नए साहित्यकार नयी सोच और प्रभावी माध्यम (ब्लॉग) के साथ सहित्य जगत मे प्रवेश करेंगें तों पुस्तक खरीदने वालों की और कमी हो जायेगी, फिर नामवर सिंह जी को रायल्टी कहाँ से आयेगी.<BR/>पेट के लिए सब जायज़ है इस तर्ज़ पर नामवर जी ने ये वक्तव्य दिया है.<BR/>आप और हम लिखते रहें .........<BR/>नामावर जी का ये वक्तव्य हमें बताता है की हम सही राह पर हैं और मठाधीशों की चूले हिलने वाली हैं.<BR/>आपका ही<BR/>आलोचक<BR/>अवस्थी.एस<BR/>www.vidurneeti.blogspot.comAwasthi Sachinhttps://www.blogger.com/profile/16532107312358072764noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-86312915671299046302008-06-18T12:24:00.000-07:002008-06-18T12:24:00.000-07:00कमाल कि बात है जयप्रकाश मानस जी के इस लेख पर इतनी ...कमाल कि बात है जयप्रकाश मानस जी के इस लेख पर इतनी प्रतिक्रिया !!<BR/>अरे नहीं भाई ! मैं टिपण्णी नहीं हूँ. मेरा तो बस यही कहना है कि मानस जी की यह पोस्त ही सही नहीं है. उन्होंने तो मात्र एक लाइन ( ‘ब्लॉग लेखन अनुपयुक्त है’ ) पर एक लेख लिख दिया और हम सभी बुद्धू टिपण्णी करने लगे. <BR/>मेरा पहला सवाल तो मानस जी से ही है कि किस सन्दर्भ में उन्होंने ऐसा कहा ?<BR/>क्या पता नामवर जी यह कहना चाहते हों कि <BR/>1. बिजली हर जगह नहीं पहुँची है इसलिए ‘ब्लॉग लेखन अनुपयुक्त है’.<BR/>2. सबको कंप्युटर सुलभ नहीं इसलिए ‘ब्लॉग लेखन अनुपयुक्त है’.<BR/>3. इन्टरनेट गाँव में नहीं पहुँचा है पर किताबें और अखबार की पहुँच तो हर छोटे से छोटे जिले देहात में है इसलिए ‘ब्लॉग लेखन अनुपयुक्त है’.<BR/>और भी कारण हो सकते हैं.<BR/>मानस जी तो बेवजह का युद्ध छिड़ा रहे हैं. <BR/>अरे प्रभू मानस जी ग़लतफ़हमी तो न पैदा करें. <BR/>संजय जी की बात ग़लत है नामवर जी को भले ही अनपढ़, अल्पपढ और ग़रीब, किसान, मज़दूर, कारीगर आदि आमजन नहीं पढ़ते हों पर क्या अनपढ़, अल्पपढ और ग़रीब, किसान, मज़दूर आदि आमजन ब्लॉग लिखते हैं ??<BR/>वैसे मैं मसिजीवी से सहमत हूँ कि अभी शायद उन्हें हिन्दी ब्लॉगिंग उपयुक्त न लगे पर कल लगेगी..उन्हें नहीं लगेगी तो अगली पीढ़ी के आलोचकों को लगेगी.<BR/>PD भाई ! आपको प्रेमचंद जी कभी भी रोकने नहीं आयेंगे पर आप प्रेमचंद जी को लेखन विरोधी न बताएं हालांकि आपने बस एक उपमा भर ही दी है पर सही आदमी को ग़लत रूप में चित्रित कर दिया है. <BR/>मिहिरभोज जी बिल्कुल सही लाइन पकड़ी आपने ( हिंदी मठाधीशों के चंगुल से मुक्त हो रही है...)<BR/>तपेश, दृष्टिकोण और निशाचर जी आप ने तो विरोध करते हुए अति कर दी है, सीमा पार कर गया है आप का विरोध. दुर्योधन की गर्जना और युधिष्ठिर का शांतिपूर्वक विरोध दोनों एक ही जैसे हैं पर कुछ अन्तर के साथ. शान्ति के विरोध को तो हर शत्रु सुनना पसंद करेगा. जैसे महात्मा गांधी द्वारा किया गया विरोध. यह जरूरी है कि हम बापू से यह गुण सीखें. फ़िर हम ब्लोग्गेर्स तो बौद्धिक प्राणी हैं, शालीनता पूर्वक लेखन तो हमारा गुण होना ही चाहिए.E-Guru Mayahttps://www.blogger.com/profile/09815517766600337664noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-8365804198169887592008-06-18T12:18:00.000-07:002008-06-18T12:18:00.000-07:00http://mere--words.blogspot.com/हमने देखी हैंइन bl...http://mere--words.blogspot.com/<BR/><BR/>हमने देखी हैं<BR/>इन blogs की टपकती लारें<BR/>भूल से भी इन्हें<BR/>comments का इनाम न दो<BR/>सिर्फ़ बकवास हैं ये<BR/>दूर से ignore करो<BR/>blog को blog ही रहने दो<BR/>कोई नाम न दो<BR/>हमने देखी हैं …<BR/><BR/>blog कोई wiki नहीं<BR/>blog website नहीं<BR/>एक email है<BR/>आए दिन post हुआ करती है<BR/>न कोई लिखता है<BR/>न कोई पढ़ता है<BR/>न पढ़ी जाती है<BR/>एक chain mail है<BR/>जो forward हुआ करती है<BR/>सिर्फ़ बकवास हैं ये<BR/>दूर से ignore करो<BR/>blog को blog ही रहने दो<BR/>कोई नाम न दो<BR/>हमने देखी हैं …<BR/><BR/>sinister से remarks<BR/>छुपे रहते हैं<BR/>smileys में कहीं<BR/>spelling mistakes से<BR/>भरे रहते हैं<BR/>sentences कई<BR/>बात कुछ कहते नहीं<BR/>काम की या कमाल की मगर<BR/>journalism की डींग भरा करते हैं<BR/>सिर्फ़ बकवास हैं ये<BR/>दूर से ignore करो<BR/>blog को blog ही रहने दो<BR/>कोई नाम न दो<BR/>हमने देखी हैं …<BR/><BR/>(गुलज़ार से क्षमायाचना सहित)Rahul Upadhyayahttps://www.blogger.com/profile/17340568911596370905noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-67088428785391895022008-06-18T11:48:00.000-07:002008-06-18T11:48:00.000-07:00मित्रो, आपने मेरे विचार से सहमति मे कुछ लिखा । यह ...मित्रो, आपने मेरे विचार से सहमति मे कुछ लिखा । यह मेरे लिए संबल है । मै आपका आभार मानता हूँ । सदैव में इसी राह मे लगा रहूँ । बस्स आपका विश्वास मेरे साथ रहेगा.... वैसे मैं नामवर जी की आलोचना का एक बड़ा फैन भी हूँ । उनका विरोध नही करता । यहाँ भी मैं प्रवृति के विरोध मे अपना प्रतिरोध कराया हूँ । बाकी कुछ नहीं...जयप्रकाश मानसhttps://www.blogger.com/profile/16792869521782040232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-23153912541658998592008-06-18T11:41:00.001-07:002008-06-18T11:41:00.001-07:00मित्रों में यहाँ कुछ ऐसे वर्चस्ववादियों का उदाहरण ...मित्रों में यहाँ कुछ ऐसे वर्चस्ववादियों का उदाहरण देना चाहता हूँ जो नामवरी इशारों में मानवता की भी अनदेखी करते हैं । <BR/><BR/>आप सभी जानते हैं कि बस्तर में हजारों लोग बेघरवार हो चुके हैं । हजारों लोग विकलांगता के शिकार है । सैकड़ो घर उजाड़ डाले गये । हर वर्ष 1 हजार करोड़ की हानि हो रही है और ये सिर्फ वामपंथ या उससे आगे के अनुयायी यानी कि माओवादी के स्वार्थ के कारण हो रहा है । आपको ताज्जूब होगा कि ऐसे हताश, निराश, पीडित, आदिवासियों के पक्ष में एक भी बात नामवर और नामवर के चेले नही करते । ये सिर्फ यही कहते हैं कि पुलिस मानवाधिकार का हनन कर रही है । <BR/><BR/>आप पूछे इन कमीनों से कि क्या सिर्फ नक्सवादियों और वामपंथियों का या फिर माओवादियों का ही मानवाधिकार होता है । गरीबों का नहीं । आदिवासियों का नहीं । जंगली लोंगों का नहीं । <BR/><BR/>वैसे ये सब निर्लज्ज होते हैं । इन पर कितना भी पानी डालिये । ये गीले नही होते हैं । ये होते है मूलतः व्यवस्था और प्रजातांत्रिक इलेमेंट विरोधी । <BR/><BR/>अन्यथा नामवरी वाणी में चिट्ठाकारी के प्रति इतनी भद्दी बात नहीं निकलती । वैसे हम ऐसे लोगों की बात पर विश्वास करना छोड़ भी चुकें है । पर इतना तो कह ही सकते हैं कि नामवर जी आपका जमान लद चुका । जब आप हिंदी की दिशा तय करते थे । अपने शर्तों पर । अपनी भाषा में । अपने मुहावरों में । <BR/><BR/>हम आपके चाकर नही जो आपकी बात माने । हम मान भी लेते जब आप प्रजातंत्र पर विश्वास करते । आपको नही पता कि गैर प्रजात्रांतिक उद्देश्यों के लिए आपके मित्र हमारी शांति भंग करने चले आते है मानवाधिकार के नाम पर । <BR/><BR/>आपको किसने यह अधिकार दिया कि आप हमारे युवा और डेमोक्रेटिक बातों जिसमें मानवता, परस्पर विश्वास और प्रेम का संदेश है पर बाधा पहुँचायें । छत्तीसगढ को मूर्ख मानने की भूल ना करें भविष्य मे आप अब... <BR/><BR/>तपेश गोलझा <BR/>रायपुरछत्तीसगढ - चित्र-विचित्रhttps://www.blogger.com/profile/06273778009864961420noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-44080140302834848242008-06-18T11:41:00.000-07:002008-06-18T11:41:00.000-07:00मित्रों में यहाँ कुछ ऐसे वर्चस्ववादियों का उदाहरण ...मित्रों में यहाँ कुछ ऐसे वर्चस्ववादियों का उदाहरण देना चाहता हूँ जो नामवरी इशारों में मानवता की भी अनदेखी करते हैं । <BR/><BR/>आप सभी जानते हैं कि बस्तर में हजारों लोग बेघरवार हो चुके हैं । हजारों लोग विकलांगता के शिकार है । सैकड़ो घर उजाड़ डाले गये । हर वर्ष 1 हजार करोड़ की हानि हो रही है और ये सिर्फ वामपंथ या उससे आगे के अनुयायी यानी कि माओवादी के स्वार्थ के कारण हो रहा है । आपको ताज्जूब होगा कि ऐसे हताश, निराश, पीडित, आदिवासियों के पक्ष में एक भी बात नामवर और नामवर के चेले नही करते । ये सिर्फ यही कहते हैं कि पुलिस मानवाधिकार का हनन कर रही है । <BR/><BR/>आप पूछे इन कमीनों से कि क्या सिर्फ नक्सवादियों और वामपंथियों का या फिर माओवादियों का ही मानवाधिकार होता है । गरीबों का नहीं । आदिवासियों का नहीं । जंगली लोंगों का नहीं । <BR/><BR/>वैसे ये सब निर्लज्ज होते हैं । इन पर कितना भी पानी डालिये । ये गीले नही होते हैं । ये होते है मूलतः व्यवस्था और प्रजातांत्रिक इलेमेंट विरोधी । <BR/><BR/>अन्यथा नामवरी वाणी में चिट्ठाकारी के प्रति इतनी भद्दी बात नहीं निकलती । वैसे हम ऐसे लोगों की बात पर विश्वास करना छोड़ भी चुकें है । पर इतना तो कह ही सकते हैं कि नामवर जी आपका जमान लद चुका । जब आप हिंदी की दिशा तय करते थे । अपने शर्तों पर । अपनी भाषा में । अपने मुहावरों में । <BR/><BR/>हम आपके चाकर नही जो आपकी बात माने । हम मान भी लेते जब आप प्रजातंत्र पर विश्वास करते । आपको नही पता कि गैर प्रजात्रांतिक उद्देश्यों के लिए आपके मित्र हमारी शांति भंग करने चले आते है मानवाधिकार के नाम पर । <BR/><BR/>आपको किसने यह अधिकार दिया कि आप हमारे युवा और डेमोक्रेटिक बातों जिसमें मानवता, परस्पर विश्वास और प्रेम का संदेश है पर बाधा पहुँचायें । छत्तीसगढ को मूर्ख मानने की भूल ना करें भविष्य मे आप अब... <BR/><BR/>तपेश गोलझा <BR/>रायपुरछत्तीसगढ - चित्र-विचित्रhttps://www.blogger.com/profile/06273778009864961420noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-8351868146721186542008-06-18T11:21:00.000-07:002008-06-18T11:21:00.000-07:00पर उपदेश कुशल बहुतेरे । आप लोग किसी लफ्फाज हिंदी आ...पर उपदेश कुशल बहुतेरे । आप लोग किसी लफ्फाज हिंदी आलोचक के वाक्जाल में न फँसे । क्योंकि ये ही वे शातिर हैं जो वामपंथ के नाम पर अब देश के विकास की धारा को रोकने के लिए भी उद्दत हैं । <BR/><BR/>ज्यादा दूर मत जाइये । स्वयं नामवर सिंह जैसे कथित पुरातनपंथी भी मोबाइल और फोन पर विश्वास करते हैं । फ्रीज में सुरक्षित दारू उडाते हैं । रेलयात्रा की जगह हवाई की यात्रा करते हैं । किसी आयोजक द्वारा ऐसी शर्तों को पूरा नही करने पर जाते ही नहीं । ये ही वे गरीब विरोधी है हैं जो कहते कुछ और हैं और करते कुछ हैं । ऐसे लोगों ने न केवल देश का सत्यानाश किया है बल्कि भाषा, साहित्य, हिंदी सहित अन्य प्रगतिशील चेतना की विधाओं को एक निश्चित खाके में या सांचे में रखकर ही देखने का जाल बिछाया है । <BR/><BR/>यह दकियानुसी ही है जो नामवर जैसे लोग कथित वामपंथी होने के बावजूद भी एक समय में प्रगतिविरोधी बन जाते हैं । <BR/><BR/>ब्लॉग ऐसे लोगों को भले ही रास नही आता हो । इससे हमारा क्या बिगड़ता है। <BR/><BR/>जयप्रकाश मानस जैसे युवा पहले व्यक्ति हैं जो ऐसे नामवरों की धज्जी बड़ी ही शालीनता से उड़ाते हैं । उनकी सारी बातें स्पष्ट हैं । हमे ऐसे युवा सचेतकों की प्रशंसा करनी चाहिए जो एक युवा साहित्यकार होने के बाद भी ऐसे नामवरी मोह में नहीं पडते हैं अपितु सच की वकालत करते हैं । एक तरह से वे हिंदी की सच्ची चिट्ठाकारी को मोड़ देने के मार्ग में दधीचि की तरह खड़े दिखाई देते हैं । मै तो कम से कम उनकी वंदना करना चाहता हूँ । मानस जी । हिंदी की यही भाषा होनी चाहिए जो आपने यहाँ लिखा है । साँप भी मार दो और लाठी की टूटने की आवाज़ तक नही आये ।<BR/><BR/>रामशरण टंड़न<BR/>संपादक, मिनीवार्ता मासिक<BR/>रायपुर, छत्तीसगढ़दृष्टिकोणhttps://www.blogger.com/profile/13465059480713889831noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-5982696544362147052008-06-18T09:50:00.000-07:002008-06-18T09:50:00.000-07:00ब्लॉग में बसी है जो विचारों की आगबुझा नहीं पाए को...ब्लॉग में बसी है जो विचारों की आग<BR/>बुझा नहीं पाए कोई कितना गाए राग<BR/><BR/>मैं अधिक नहीं बस इतना ही कहूंगा कि जैसे मोबाईल फोन के आने से इसका भी विरोध हुआ था, इसी प्रकार ब्लॉग लेखन या ब्लॉगकारिता का विरोध हो रहा है तो इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए। <BR/>इसी प्रकार जिस तरह मोबाईल फोन सर्वग्राह्य हो गया है, उसी प्रकार ब्लॉग लेखन भी होने वाला है। <BR/>इंटरनेट का विरोध तो अभी तक हो रहा है, पर क्या किसी को लगता है कि इससे इंटरनेट का वजूद खतरे में पड़ सकता है, बिल्कुल नहीं। <BR/>इसी प्रकार मोबाईल और इंटरनेट के माफिक ब्लॉगलेखन और ब्लॉगकारिता परवान चढ़ेगी, इस में मुझे रंच मात्र भी संदेह नहीं है।<BR/>- अविनाश वाचस्पतिAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-20367415.post-27218480004469347102008-06-18T09:47:00.000-07:002008-06-18T09:47:00.000-07:00ब्लॉग में बसी है जो विचारों की आगबुझा नहीं पाए को...ब्लॉग में बसी है जो विचारों की आग<BR/>बुझा नहीं पाए कोई कितना गाए राग<BR/><BR/>मैं अधिक नहीं बस इतना ही कहूंगा कि जैसे मोबाईल फोन के आने से इसका भी विरोध हुआ था, इसी प्रकार ब्लॉग लेखन या ब्लॉगकारिता का विरोध हो रहा है तो इसमें कोई हैरत नहीं होनी चाहिए। <BR/>इसी प्रकार जिस तरह मोबाईल फोन सर्वग्राह्य हो गया है, उसी प्रकार ब्लॉग लेखन भी होने वाला है। <BR/>इंटरनेट का विरोध तो अभी तक हो रहा है, पर क्या किसी को लगता है कि इससे इंटरनेट का वजूद खतरे में पड़ सकता है, बिल्कुल नहीं। <BR/>इसी प्रकार मोबाईल और इंटरनेट के माफिक ब्लॉगलेखन और ब्लॉगकारिता परवान चढ़ेगी, इस में मुझे रंच मात्र भी संदेह नहीं है।Anonymousnoreply@blogger.com